संकलन -सवीन भोगरा, पशुधन विशेषज्ञ, हरियाणा
पशुधन उत्पादों की बढ़ती मांग ने देहाती शैली से पशुपालन प्रथाओं से हट कर पशुओं के वैज्ञानिक प्रबंधन के लिए परिवर्तन को प्रेरित किया है। पशुधन उत्पादन का प्राथमिक उद्देश्य है पर्यावरण के मुद्दों और जानवरों के कल्याण को ध्यान में रखते हुए मानव आबादी के इए सुरक्षित भोजन पैदा करना। पशुधन क्षेत्र सही विकास सक्षम होने के लिए कई कारक जैसे नस्ल सुधार, आधुनिक आवास प्रबंधन, संतुलित भोजन पशु चिकित्सा देखभाल आदि पर विशेष ध्यान दिया गया, लेकिन प्रमुख क्रडिट लाखों पशुपालकों को जाता है जिन्होंने अनेकों बाधाओं के बावजूद प्रतिबद्धता, धीरज का प्रदर्शन करके यह संभव बनाया।
पिछले कुछ दशकों के दौरान, पशुधन की उत्पादकता/उत्पादों की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए रसायन, हार्मोन, एंटीबायोटिक दवाओं आदि का इस्तेमाल किया गया। 21 वी सदी में लोग पशु उत्पादन में एंटीबायोटिक दवाओं और हार्मोन के प्रयोग से संबंधित सुरक्षा मुद्दों के बारे में अधिक जानते हैं। इसने पशु खाद्यों में एंटीबायोटिक दवाओं के प्रयोग पर प्रतिबंधित किया और कुछ अन्य देश पशु खाद्यानों में रसायनों और दवाओं के प्रयोग को सीमित करने की प्रक्रिया में है। पारंपरिक फीड योजकों पर प्रतिबंध से पशुधन उद्योग और उपयुक्त विकल्प की तलाश के लिए बहुत दबाव डाल दिया है। इस कारण, न्यूट्रस्यूटिक्ल्स का उपयोग उत्पादकता और पशुधन उत्पादों की गुणवत्ता बनाये रखने के लिए व्यवहार्य विकल्प के रूप में उभरा है। मुक्त उत्पादन के लिए प्रोत्साहित किया है। इसने एक नई अवधारणा, पोषण और दवा के एक संकर या संकुचन यानी न्यूट्रस्यूटिक्ल्स के उद्भव को जन्म दिया है। न्यूट्रस्यूटिक्ल्स को एक आहार या आहार के हिस्से के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो एक बीमारी की रोकथाम या उपचार सहित चिकित्सा या स्वास्थ्य लाभ प्रदान करता है इसलिए न्यूट्रस्यूटिक्ल्स में पृथक किये गये पोषक तत्व, पूरक आहार. विशेष आहार अनुवांशिक रूप से तैयार खाद्य पदार्थ, हर्बल उत्पाद में शामिल हो सकते हैं। यह अवधारणा पिछली सदी के मध्य 90 के दशक से अमेरिका में शुरू हुई है, लेकिन एशियाई देशों को भारत और चीन में पारंपरिक रूप से बीमारियों की रोकथाम और उपचार के लिए पौधे या उनके निष्कर्षों के प्रयोग करने के लिए अच्छी तरह से जाना जाता है( जिसें हमे देशी वैध कहते है) न्यूट्रस्यूटिक्ल्स और दवाइयों में अंतर है। जहाँ दवाइयां रोगों के इलाज के लिए प्रयोग किये जाते हैं। जहाँ दवाइयां रोगों के इलाज के लिए प्रयोग की जाती हैं वहीँ न्यूट्रस्यूटिक्ल्स रोगों से बचाव के लिए प्रयोग किये जाते हैं।
न्यूट्रस्यूटिक्ल्स के वर्गीकरण
न्यूट्रस्यूटिक्ल्स को उनके उपयोग के आधार पर अलग – अलग तरीकों से वर्गीकृत किया जा सकता है। जो इस प्रकार है
1.आहार के रेशे (फाइबर)
2. प्रीबोयोटीक्स
3.प्रीबयोटिक्स
4.पॉलअनसेचूरेटेड फैटी एसिड 5.एंटीओक्सिडेंट
6. पालीफीनाल्स
7.मसाले। न्यूट्रस्यूटिक्ल्सप के स्वास्थय को बढ़ावा देने के प्रभाव मुख्य रूप से जैव रासायनिक और सेलुलर आदान – प्रदान के माध्यम/मध्यस्थता से होते हैं जो बीमारियों के लिए संवेदनशीलता को रोकता है और पशुधन उत्पादों की गुणवत्ता या मात्रा बढ़ावा देता है। न्यूट्रस्यूटिक्ल्स गुण रखने वाले प्रमुख रसायन समूहों में हैं फिनोल्स
फ्ल्वोनोइड्स
एल्कालॉइड
केरोटिनोइइड्स और प्रोबायोटिक्स,
फाइटो स्टीरोल्स
टैनिन
वसा एसिड
टेर्पिनोइड्स
सैपोनिन
आहार फाइबर आदि होते हैं।
प्रीबायोटिक्स
बदलती जीवनशैली के साथ, पशुधन क्षेत्र से मांग नियमित पशुधन उत्पादों की जगह मूल्य संवर्धित (अनिवार्य रूप से एंटीऑक्सीडेंट दवाओं मुक्त, कम कोलेस्ट्रोल लेकिन अधिक एंटीऑक्सीडेंट या कैंसर अवरोधी) उत्पादों की ओर तेजी से बदल गई है जो स्वास्थ्य का ख्याल रखने के साथ – साथ तनाव के खिलाफ और जीवन शैली से संबंधित समस्याओं से सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं प्रीबायोटिक्स विशिष्ट लाभकारी आंत मईक्रोफ्लोरा के विकास सुर गुणन को बढ़ावा देने वाले जैव अणुओं के एक वर्ग है। एंटीबायोटिक दवाओं और हार्मोन फीड योजकों के उपयोग पर प्रतिबंधि और उपभोक्ता जागरूकता प्रीबायोटिक्स पर गहन अनुसंधान के लिए मुख्य चालक बल है। इसलिए, प्रीबायोटिक्स को गैर – सुपाच्य खाद्य सामग्री के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। लाभदायक रूप से मेजबान को प्रभावित करता है और चुन कर विकास को या कोलन में जीवाणुओं की इनकी सीमित संख्या या गतिविधि को प्रेरित करता है। इसलिए, प्रीबायोटिक्स पेट में अपचित रहने के लिए तथा आंत के लाभकारी माक्रोफ्लोरा के चयनात्मक उत्तेजन के लिए लक्षित हैं – ये जैविक पदार्थ है और शरीर में कोई हानिकारक अवशेषों को नहीं छोड़ते हैं।
पाचन प्रणाली के आधार पर पशुओं को दो श्रेणियों अर्थात
जुगाली करने वाले (जिन के विशेषता – अग्रांत्र और पश्चांत्र दो माइक्रोबियल निवास की उपस्थिति)
और गैर जुगाली करने वाला (विशेषता – सिकम केवल एक माइक्रोबियल वास की उपस्थिति) में बांटा जाता है। इसलिए पशुओं के लिए प्रीबायोटिक्स में निम्नलिखित विशेषताएं होनी चाहिए।
पशु के स्वयं के एंजाइमों द्वारा अपाच्य।
लाभकारी आंत माइक्रोफ्लोरा द्वारा चयनित उपयोग।
पौधों के स्रोत या माइक्रोबियल एंजाइमों द्वारा उत्पादन किया ।
जिसका जीआईटी (GIT) की उपकला सतह से अवशोषण न होता हो।
जीआईटी (GIT) से गुजरते हुए संरचनात्मक और कार्यात्मक अखंडता रखता हो।
यहाँ तक कि कम से कम कन्सट्रेशन में अपनी क्षमता का प्रदर्शन कर सकता हो।
हानिकारक पेट माइक्रोफ्लोरा के लिए रसायन/बांड दुर्गम हों।
पशुधन या उनके उत्पादों में कोई अवशेषों की समस्याएँ न हो।
गैर कैंसर कारक।
अन्य फीड सामग्री या सूक्ष्म पोषक तत्वों के मिश्रण के साथ मिश्रण करने के आसान हो।
आमतौर पर इस्तेमाल किये जाने वाले प्रीबायोटिक्स
प्री बायोटिक्स यानी आलिगोसकेराईड्स एक बहुत कम एकाग्रता में पौधों और सब्जियों में प्राकृतिक रूप से मौजूद होते हैं। मांग को पूरा करने के लिए, इनका पौधों में उपलब्ध अग्रदूत अणुओं से उत्पादन किया जा सकता है। व्यवसायिक रूप से उपलब्ध प्री बायोटिक्स इन्यूलिन फ्रूक्टो आलिगोसकेराईड्स, गेलेक्तो आलिगोसकेराईड्स, मन्नान आलिगोसकेराईड्स आदि हैं। जैसे – जैसे इनकी मांग बढ़ रही है दुनिया भर शोधकर्ता नए – नए प्रीबायोटिक्स को खोज कर न्यूट्रास्यूटीकल्स टोकरी को समृद्ध कर रहे हैं। उम्मीद है भविष्य में नए न्यूट्रास्यूटीकल्स, न्यूट्रास्यूटीकल्स बाजारों में महत्वपूर्ण स्थान बनाने में सक्षम हो जायेंगे। इसमें जाईलो आलीगोसकेराईड्स, पपेक्टिक आलिगोसकेराईड्स, सोया आलिगोसकेराईड्स आदि शामिल हैं।
मुर्गियों पर प्रीबायोटिक्स का प्रभाव
पिछले डेढ़ दशक के दौरान प्रीबायोटिक्स शोधकर्ताओं के बीच लक्षित जीवाअणुओं को लागत प्रभावी ढंग से निर्माण करने के लिए रुचि बढ़ी है। जाईलो आलिगोसकेराईड्स प्राकृतिक घास, मकई काब्स, मकई भूसी, गन्ना खोई से बनाये जा सकते हैं। इसके अलावा, मकई भूसी से उत्पन्न जाईलो आलिगोसकेराईड्स के ब्रायलर पक्षियों में उपयोग में रक्त कोलेस्ट्रोल, ग्लूकोज और एलडीएल स्तर कम करने में तथा सीकल लाभकारी माइक्रोफ्लोरा को प्रेरित करने में भी प्रभावी था। मुर्गियों के आहार GIT में साल्मोनेला की स्थापना में कमी आई। प्रीबायोटिक्स विशिष्ट माइकोफ्लोरा समूहों अर्थात बिफिडोबैक्टीरिया, लैक्टोबेसिलूस द्वारा विभिन्न लघु श्रृंखला फैटी एसिड जैसे एसिटिक एसिड, ब्यूतैरिक एसिड, प्रोपिओनिक एसिड और लैक्टिक एसिड के उत्पादन के लिए उपयोग किया जाता है। यह लूमिनल PH की कमी का कारण बनता है। जिससे खनिज घूल्नाशिलता और अवशोषण में वृद्धि होती है।
अंडा देने वाले मुर्गी और ब्रायलर पक्षियों के आहार में इन्यूलिन की प्रीबायोटिक्स के रूप में पूरकता विकास ने भार वृद्धि प्रदर्शन में सुधार किया।
शूकरों पर प्रीबायोटिक्स का प्रभाव
जुगाली करने वाली और नहीं करने वाली प्रजातियों की तरह, सूअर भी GIT में माइक्रोफ्लोरा बैक्टीरिया, खमीर, अर्किया आदि की एक बड़ी आबादी घर कराती है। सूअर के जठरंत्र पथ में लाभकारी बनाम हानिकारक बैक्टीरिया के बीच जटिल संतुलन उत्पादकता के रूप में अच्छी तरह से उनके स्वास्थ्य की स्थिति निर्धारित करता है। इसके अलावा, अपने पूरे जीवन के दौरान सूअर अनेकों प्रकार के तनाव अनुभव करते हैं जिसमें विनिंग प्रमुख हैं। इस चरण के दौरान अक्सर पेट के माइक्रोबियल संतुलन में उल्लंघन होता है। नवजात पिग्लेट्स को आलिग्रोफ्रूक्टोज खिलाने के 6 बाद बिफिडोबैक्टरिया की उच्च संख्या (1.68 109 बनाम 4.85 109 CGU/g मल सामग्री) प्रदर्शित किया। आलिगोफ्रूक्टोज और प्रोबायोटिक्स के साथ संयोजन से कुल एनारोब, बिफिडोबैक्टीरिया, लेक्टोब्बेसिलाई की आबादी में एंटीरोक्साई और क्लोस्ट्रीडियम की संख्या में सहवर्ती कमी के साथ महत्वपूर्ण वृद्धि हुई। सूअर अपशिष्ट अत्यधिक बदबू के साथ जुड़ा हुआ है जो कई माइक्रोबियल चयापचयों अर्थात फिनोल, इन्दोल, सल्फाईड्स आदि के कारण होता है प्रीबायोटिक्स के प्रशासन के द्वारा इसे नियंत्रित किया जा सकता है। सूअर के आहार में चिकोरी इन्यूलिन की पूरकता के परिणामस्वरूप सीकम और पेट दोनों में अमोनिया एकाग्रता में एक महत्वपूर्ण कमी देखी गई। प्रीबायोटिक्स की खपत ने लघ्वात्र में शुष्क पदार्थ और कार्बनिक पदार्थ पाचकता दोनों को बढ़ाया है।
कुत्तों पर प्रीबायोटिक्स का प्रभाव
आलिगोफ्रुक्टोज /1 प्रतिशत आहार का सेवन लगभग 50 दिनों की अवधि के लिए बैक्टीरियल अतिवृद्धि से पीड़ित जर्मन शेफर्ड कुत्तों की म्यूकोसा और ग्रहणी तरल पदार्थ में कुल एरोब, एच्छिक एनारोब, कुल पेट एरोब की आबादी महत्वपूर्ण रूप से कम हो गई। बीगल के पेट और आंतों में एंटीरो बैक्टीकरिया और यूबेक्टीरिया उपभेदों द्वारा आलिगोफ्रुक्टोज या अधिमान्यतया किण्वित और उपयोग किया जाता है जो रोगजनक बैक्टीरिया के अस्तित्व और लगाव को रोकने का कार्य करते हैं। कुत्ते के मल में माइक्रोफ्लोरा की उपस्थिति में आलिगोफ्रूक्टोज की इन विट्रो किण्वन से एसीटेट, खपत ब्यूतैरेट और प्रोपियोनेट सहित छोटी चेन फैटी एसिड का तेजी से उत्पादन होता है। लघु श्रृंखला फैटी एसिड कोलन की उपकला पर पौष्टिकता संबंधी अधिक प्रभाव की अपेक्षा की जाती है। आलिगोफ्रूक्टोज खपत से कुत्तों में पोषक तत्वों के अवशोषण के लिए अधिक से अधिक सतह क्षेत्रों के साथ लंबी और भारी छोटी आंत देखी गई।
रोमंथिया पर प्रीबायोटिक्स का प्रभाव।
रोमंथी प्रजातियों (गाय, भैंस, भेड़, बकरी आदि) में दो माइक्रोबियल निवास अगांत्र (रूमान, जालिका और ओमेसम शमिल) और पश्चांत्र (सीकुम) फीड की प्रोसेसिंग के लिए मौजूद होते हैं। दोनों ही आवासों में लाखों माइक्रोफ्लोरा अर्थात बैक्टीरिया, कवक, खमीर, फेज कणों अर्किया आदि के विभिन्न समूहों में उपस्थित होते हैं जबकि प्रोटोजोआ अपवाद स्वरुप सिर्फ रूमन में पाए जाते हैं। रोमंथियों को जीवन चक्र के विभिन्न चरणों गर्भावस्था, दूध छुड़ाने और परिवहन, आदि के तनाव का सामना करना पड़ता है जिसका प्रतिकूल प्रभाव पशुओं के स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। परिणामस्वरूप, भूख कम होना, विकास कम होना और DST और आंतों की आकृति ख़राब हो जाती है। ऐसी स्थितियों के तहत, प्रीबायोटिक्स उपचार के माध्यम से पशुधन आंत संबंधित विकारों पर काबू पाने के लिए एक संभावित विकल्प हो सकता है।
सभी रूमन हेमिसेल्युलोज को तोड़ सकने वाले बैक्टरिया विकास के लिए जाईलोआलिगोसकेराइड्स का सब्सट्रेट के रूप में उपयोग में सक्षम हैं जैसे की रूमिनोकोकास अलबस, ब्यूतिरोविब्रियो फिब्रिसोल्वेंस, युबेक्तीरियम रूर्मिनेंशियम। इन विट्रो किण्वन प्रणाली के तहत, प्रीबायोटिक्स कुल अस्थिर फैटी एसिड एकाग्रता और शुष्क पदार्थ और कार्बनिक पदार्थ दोनों की पाचकता बढ़ाने के लिए जिम्मेदार पाए गये। जब होल्स्टीन गायों को आर्चड घास सिलेज या अल्फला सिलेज के साथ प्री\बायोटिक्स पर बनाये रखा गया तब रूमन PH अपरिवर्तित रहे (6.7)। होल्स्टीन गायों और स्टियार्स में रूमन अमोनिया नाइट्रोजन एकाग्रता प्रीबायोटिक्स पूरक की वजह से थोड़ा कम था जिसका कारण रूमन में माइक्रोबियल प्रोटीन संश्लेषण के लिए अमोनिया का उपयोग हो सकता है। पूर्व जुगाली करने वाले बछड़ों के दूध स्थानापन्न में इन्यूलिन के समावेशन के रहते काफी अधिक वजन लाभ बेहतर मल स्थिरता प्राप्त होता है।
प्रीबायोटिक्स
FAO/WHO के अनुसार, प्रोबायोटिक्स को ऐसे जीवित सूक्ष्मजीवों के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, जो पर्याप्त मात्रा में देने पर मेजबान पर स्वास्थ्य लाभ प्रदान करते हैं। प्रोबायोटिक्स के लाभदायक प्रभाव आंतों के विभिन्न कार्यों के विनियमन जैसे माइक्रोबियल स्थिरता, जठरांत्र बाधा कार्य, बेक्टीरिओसिन के स्राव, इम्यून प्रभाव, प्रोकैंसर एंजाइमों में कमी, रोगजनकों जीवाणुओं के लगने में हस्तक्षेप आदि। प्रोबायोटिक्स की विशेषता और सुरक्षा मानदंड निम्नानुसार हैं
गैर विषैले और गैर रोगजनक।
सटीक वर्गीकरण पहचान।
लक्षित प्रजातियों के सामान्य निवासी।
गैस्ट्रिक pH और पित्त के लिए प्रतिरोधी।
जठरांत्र पथ में लगाव।
पेट उपकला या बलगम को आसंजन।
निवासी माइक्रोफ्लोरा के साथ संयोग।
रोगाणुरोधी पदार्थ का उत्पादन।
पेट की रोगजनक माइक्रोफ्लोरा का प्रतिरोध।
इम्यून विनियमन की क्षमता।
स्वास्थ्य गुणों को बढ़ावा देना।
भण्डारण और वितरण की तरह प्रसंस्करण के दौरान विशेषताओं की स्थिरता।
स्वीकार्य भेषज गुण।
पशुओं में इस्तेमाल होने वाले आम प्रोबायोटिक्स
बैक्टीरियल प्रोबायोटिक्स (1)लैक्टोबैसिलस
(2) एंटीरोकोकूस
(3) बेसिलस
(4) लेक्टोबकोकूस
(5) बिफिडोबेक्ट्रीय
(6) ल्यूकोनोस्टोक
(7) पेडिओकोकूस
(8) प्रोपिओनिबेक्ट्रीरिउम
(9) स्ट्रेप्टोकोकस आदि हैं।
इन प्रीबायोटिक्स जेनेरा में से लैक्टोबैसिलस का सबसे अधिक परिक्षण किया गया है सफल प्रोबायोटिक वर्ग है जिसका मानव और पशुओं दोनों में अधिक से अधिक परिक्षण किया गया और सफल प्रोबायोटिक वर्ग है जिसका मानव और पशुओं दोनों में अधिक से अधिक आवेदन किया गया है। यूकेरियोटिक श्रेणी के प्रोबायोटिक्स में
(1) सेक्रोमाईसीज
(2) क्लिवेरोमाईसीज और एस्पर्जिल्लूस हैं। यद्यपि यीस्ट भी रोमंथी और गैर – रोमंथी दोनों की जठ रांत्र पथ में प्राकृतिक रूप से पाया जतजाता है लेकिन चुनिंदा प्रजातियाँ ही पूरकता पर प्रोबायोटिक्स संभावना रखती हैं। यीस्ट (खमीर) की कई प्रजातियों के बीच, सेक्रोमाईसिज बोलार्डी सामान्यत: जुगाली करने और गैर जुगाली करने वाली दोनों प्रजातियों प्रोबायोटिक के रूप में प्रयोग किया जाता है।
गैर रोमंथियों में प्रोबायोटिक्स का प्रभाव
नये चूजे का GIT जठरांत्र पथ माइक्रोफ्लोर से मुक्त होता है, लेकिन व फीड, पानी और वातावरण के माध्यम से उन्हें प्राप्त करना शुरू कर देते हैं। ब्रायलर मुर्गी के लघ्वांत्र पर माइक्रोफ्लोरा का घनत्व 108 कोशिका /g पाचक तत्व और सीकम में 1010 कोशिका/g पाचक तत्व जीवन के दुसरे दिन पर होता हैं जो लघ्वात्र में बढ़कर 1010 कोशिका/g पाचक तत्व तक पहुंचता है, पर उसके बाद स्थिर हो जाता है। लैक्टोबैसिलस के अनुप्रयोग से परिगालित आंत्रशोथ के साथ चुनौती दिए गया पक्षियों में मृत्युदर को 60 से 30 प्रतिशत तक कम किया जा सकता है। ब्रायलर पक्षियों में मिश्रित प्रोबायोटिक्स (लैक्टोबैसिलस एसिदफ़िलुस, एल केसिआइ, बिफिदोबिक्ट्रीय थर्मोफिलूस, एंटीरोकोकस फेसियम)आहार में CFU/g के साथ पूर्ण से पेट में कलोस्ट्रीडियम जेजुनी में कमी को दर्शाता है।
रोमंथियों में प्रोबायोटिक्स
नवजात, युवा रोमंथियों में दस्त, रूग्णता और मृत्यू दर के लिए प्रमुख कारण में से एक है। लैक्टोबैससिलस एसिदोफ़िलुस या सेक्रोमाइसिज सेरिविसी के साथ बछड़ा आहार की पूरकता से दस्त की घटना में कमी होती है। इसी तरह, ई कोलाई निसील 1917 के प्रशासन ने नवजात बछड़ों के तनाव और दस्त के प्रोफैलिक्सिस और उपचार पर लाभकारी प्रभाव दिखाया। मेवेशियों में दो साल की अवधि में आयोजित क्षेत्र परिक्षण में लैक्टोबैसिलस एसीदोफिलूस NPS की दैनिक मौखिक खुराक के प्रशासन पर ई कोलाई 0157 प्रतिशत। H7 मल में निकासी में (35 प्रतिशत) की कमी परिलक्षित हुई। प्रोबायोटिक पूरकता रोगजनक को कम करने के अलावा, लाइव वजन लाभ और युवा बछड़ों में रूमन विकास में सुधार आया। प्रारंभिक विकास के चरण के दौरान सकारात्मक प्रभाव के अलावा, प्रोबायोटिक्स दुग्ध उत्पादन के दौरान शुष्क पदार्थ का सेवन और दूध उपज में सुधार कर जाते हैं। प्रोबायोटिक खिलाने के अन्य सकारात्मक प्रभाव में कुल उगाये जाने वाले रूमन बैक्टीरिया में वृद्धि, सेल्यूलैटिक बैक्टीरिया के वृद्धि से युग्मित उच्च फाइबर पचता भी शामिल है।
एंटीऑक्सीडेंट क्रिया
चयापचय प्रतिक्रिया और रोगों के परिणाम के रूप में पशु के शरीर के भीतर प्रतिक्रियाशील ऑक्सीजन और नाइट्रोजन प्रजातियों के रूप में मुक्त रेडिकल्स का उत्पादन होता रहता है। प्रतिक्रियाशील ऑक्सीडजन प्रजातियों के प्रभाव को निष्क्रिया करने के लिए प्राकृतिक तंत्र में होते हैं, एंटीऑक्सीडेंट यौगिकों (विटामिन सी, विटामिन ई, कैरोटिन, यूरिक एसिड आदि) और एंजाइम (केटालेज, सुपर ऑक्साइड दिस्मयूतेज, ग्लूताथिओन परोक्सिडेज/रिडक्टेज)। फ्री रेडिकल्स कण का उत्पादन अधिक होता है) जैसे कि अक्सिकारक तनाव, रोग यूवी जोखिम, चरम वातावरण, आधुनिक कारखाने शैली के प्रबंधन आदि के तहत (अधिक है) शरीर की अपनी एंटीऑक्सीडेंट क्षमता के प्रतिकार सीमा से तो पशु को स्वस्थ रखने के लिए और साथ ही उत्पादन की मात्रा और गुणवता को बनाये रखे के लिए एंटीऑक्सीडेंट के अतिरिक्त खुराक की आवश्यकता हो सकती है। आजकल, नियंत्रित करने में एक रुचि बढ़ रही है। पशुधन उत्पादों के स्वास्थ्य को बढ़ावा देने और बीमारी को रोकने की क्षमताओं के लिए बढ़ती एंटीऑक्सीडेंट मांग के चलते विभिन्न पशु उत्पादों (अंडा, मांस और उसके उत्पादों सहित) में प्राकृतिक एंटीऑक्सीडेंट समावेश पर गहन शोध करने के लिए प्रेरित किया है। एंटीऑक्सीडेंट युक्त पशु उत्पादों की खपत के लाभ मानव में उम्र से संबंधित समस्याओं में देरी की जा सकती है। साथ ही ऑक्सीडेटिव नुकसान जो जीवन के दौरान अपरिहार्य है, को कम किया जा सकता है। सिंथेटिक एंटीऑक्सीडेंट बनाम प्राकृतिक के बीच प्राकृतिक एंटीऑक्सीडेंट अधिक सुरक्षित है और सिंथेटिक एंटीऑक्सीडेंट के विपरीत यह कैंसर पैदा कराने वाले गुण प्रदर्शन नहीं करता। प्राकृतिक एंटीऑक्सीडेंट को कुछ श्रेणियों में बांटा जा सकता है।
(1) विटामिन (एस्कार्बिक एसिड, अल्फ़ा टोकोफीरल, बीटा कैरोटीन)
(2) फिनोलिक्स (P – कूमेरिक एसिड, केफेईक एसिड, गेलिक एसिड रोज्मेरिनिक एसिड)
(3) के फिनोलिक डाइपींस (कर्नोसिव एसिड, एपिरोस्मानेल) (4) फ्लवोनोइड्स (केटचिन कैम्प्फीरोल)
(5) सुगंधित तेल (मेंथाल कार्वक्राल, थाईमोल, एयूजिनोल)।
सूअर में विटामिन ई आहार के साथ पूरकता पर कोशिका झिल्ली में अल्फ़ा टोकोफेराल की उच्च एकाग्रता हुई जो लिपिड परऑक्सीकरण कम कर देता है। मांसपेशियों में लिपिड ऑक्सीकरण ऑक्सिमायोग्लोबीन के मेटामायोग्लोबीन में ऑक्सीकरण के उत्प्रेरित करने के लिए सूचित किया जाता है, जो की मांस के रंग बिगड़ने का कारण बनता है। अल्फ़ा टोकोफेरल ऑक्सिमायोग्लोबीन के दर से ऑक्सीकरण में भूमिका निभा सकता है और इस तरह मांस के रंग बिगड़ने को रोक सकता है और यह मांसपेशियों की सेल झिल्ली को अखंडता को भण्डारण के दौरान झिल्ली के फॉस्फोफौस्फ़ोलीपिड के ऑक्सीकरण को रोकने के द्वारा, बनाये रखने में भी मदद करता है।
न्यूट्रास्यूटिकालस और प्रजनन
कम उपजाऊ पुरूष में न्यूट्रास्यूटिकल्स की शुक्राणु उत्पादन और गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए सिफारिश की जाती है फोलिक एसिड और जिंक सल्फेट कम उपजाऊ – पुरूष को दिलाने पर शुक्राणु एकाग्रता में एक महत्वपूर्ण सुधार देखा गया है। अर्जिनिन, विटामिन बी 12 मिथाइल कोबलमिन और जिन्सिग की तरह कई अन्य न्यूट्रास्यूटिकल्स पुरूष बाँझपन के इलाज के लिए इस्तेमाल किये गया हैं। बीटा कैरोटिन एक महत्वपूर्ण न्यूट्रास्यूटिकल्स माना जाता है जो संभवत।एक एंटीऑक्सीडेंट के रूप में कार्य करता है। बैलों में यह साबित हुआ है कि बीटा कैरोटिन की मध्यस्थता से उत्पन्न विटामिन ए की कमी से शुक्राणुजनन में कमी, वृषण क्षय, शुक्राणु रूपात्मक आसमान्याताओं में वृद्धि और बीजदार नलिकाओं के अध्:पतन का कारण बनती है। इसलिए बीटा कैरोटिन की सामरिक पूरकता से पुरूष की प्रजनन प्रदर्शन में सुधार कर सकते हैं। कार्निटीन ऊर्जा उत्पादन प्रक्रियाओं में एक महत्वपूर्ण यौगिक है क्योंकि यह माइटोकौन्ड्रिया में फैटी एसिड ऑक्सीजन को विनियमित करता है। यह माइटोकौन्ड्रिया को एसिटाइल CO-A ला स्तर कम करता है जो ऑक्सीडेटीव पाथ पे के कई मुख्य एंजाइमों में से एक है। अधिवृषण के माध्यम से शुक्राणु पारित होने के दौरान इसमें कार्निटीन की मात्रा बढ़ जाती है। घोड़े में एल कर्निटीन की आहार पूरकता का शुक्राणु के माइटोकौन्ड्रिया गतिविधि और शीत संरक्षण के उपरांत गतिशीलता पर एक सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। यह एंटीऑक्सीडेंट क्रिया सहित विभिन्न स्वास्थ्य लाभकारी गुण रखता है चावल तेल गामा ओरेजेनाल का एक अच्छा स्रोत है। PUFA और Y ओरैजेनाल युक्त वाणिज्यिक चावल तेल की घोड़े के आहार में पूरकता से वीर्य की कुल एंटीऑक्सीडेंट क्षमता, उच्च झिल्ली कार्यक्षमता और शुक्राणु की गतिशीलता में वृद्धि पाई गई।
गायों में, प्रसव के बाद, गर्भाशय में गर्भाशय प्रतिगमन के साथ जुड़ें कई गतिशीलता परिवर्तन होते हैं। प्रोसेटाग्लेंडीन गर्भाशय प्रतिगमन में एक प्रमुख भूमिका निभाते हैं। प्रसव अवधि के दौरान लिनोलीईक एसिड खिलाने से PG2 श्रृंखला के प्रोसेटाग्लेंडीन के जैव संश्लेषण को उत्तेजित कर सकते हैं जिससे गायों की प्रसवोत्तर गर्भाशय स्वास्थ्य लाभ प्राप्त किये जा सकते हैं। यह सुझाव दिया है कि जन्मपूर्व गायों में मेगालेक – आर खिलाने से लिनोलीइक एसीड में समृद्ध लिपिड पूल बनाये रखे नमे मदद करता है जो आगे अरेकिडोनिक एसिड की सांद्रता बढ़ाता है जो PGF2α और अन्य PG2 श्रृंखला के प्रोसेटाग्लेंडीन के संश्लेषण के लिए अग्रदूत होते हैं जो प्रसवोतर अनुकूल गर्भाशय स्वास्थय और इम्यूनो दक्षता को बढ़ाते हैं। गायों में प्रजनन, से पहले 25 दिनों से लेकर 70 प्रसवोत्तर दिनों तक लीनोलीइक एसिड के कैल्सियम लवण और मोनो ईनोइक ट्रांस c:18 फैटी एसिड की आहार पूरकता से पहले गर्भाधान की दर में सुधार होता है। लीनोलीइक एसिड से समृद्ध कैल्शियम लवण की आहार पूरकता गायों में प्रजनन क्षमता में सुधार करने में लाभदायक पाया गया है।
भारतीय न्यूट्रास्यूटिकल्स बाजार
बदलती जीवन शैली और उपभोक्ता जागरूकता के साथ युग्मित मंहगी स्वास्थय सेवा लागत की वजह से, भारतीय न्यूट्रास्यूटिकल्स उद्योग अपनी बहुपयोगी भूमिका की वजह से तेजी से बढ़ रहा है । पशुओं के नजरिये से ज्यादातर आयुर्वैदिक निर्माता पहले से ही कई पौधों से उत्पन्न यौगिकों का विपणन कर रहे हैं उनमें से अधिकांश न्यूट्रास्यूटिकल्स हो सकते हैं। न्यूट्रास्यूटिकल्स उत्पादों की एक विस्तृत रेंज को कवर करते है जिसमें अभिनव भोजन से शुरूआत करके प्रीबायोटिक्स और प्रोबयिटिक्स भी शामिल है। हाल ही में डी न्यूट्रा शिखर सम्मेलन में निष्कर्ष निकाला गया कि उनके संभावित लाभ का उल्लेख प्रत्येक उत्पाद के लेबल पर किया जाय। इसी समय में न्यूट्रास्यूटिकल्स के चिकित्सीय उद्देश्य के लिए आवेदन के साथ – साथ जोखिम विश्लेषण के लिए भी सुझाव दिया गया। यहाँ याद करने योग्य है कि भारतीय पारंपरिक हर्बल चिकित्सा हजारों साल पहले विभिन्न रोगों के रोकथाम और साथ ही इलाज के लिए विकसित की गई, जिसे पिछली सदी के दौरान मार्डन दवाओं से आंशिक रूप से स्थानापन्न कर दिया गया जिनके कई साइड इफेक्ट, अवशेष की समस्या और एंटीबायोटिक प्रतिरोध जीनों का स्थानातंरण आदि समस्याएँ हैं। आजकल पशुओं और मानव समाज दोनों के लिए लाभ सुनिश्चित करने के क्रम में भारतीय हर्बल खजाने की ओर या न्यूट्रास्यूटिकल्स उत्पादन पर फिर से विचार करने की जरूरत है।