गोवर्धन पूजा से गौसंवर्धन

0
807

गोवर्धन पूजा से गौसंवर्धन

दिवाली के अगले दिन गोवर्धन पूजा की जाती है। इस त्योहार पर गोबर से घर के आंगन में गोवर्धन पर्वत का चित्र बनाकर पूजन किया जाता है। इस दिन गायों की सेवा का विशेष महत्व है। गोवर्धन पूजा का श्रेष्ठ समय प्रदोष काल में माना गया है। सभी हिंदू धर्म के लोग इस पूजा को श्रधा के साथ करते हैं। इस पूजा में गाय की पूजा की जाती है। हमारे देश में गाय को माता कहा जाता है। वह दूध देकर हमारा पोषण करती है। गाय एक पवित्र जानवर है। वह देवी लक्ष्मी का रूप है।
सभी हिंदुओं के लिए गाय पूजनीय होती है। गोवर्धन पूजा में हम सभी गाय की पूजा करते उसके प्रति आभार प्रकट करते हैं। गोवर्धन पूजा को अन्नकूट पूजा के नाम से भी जाना जाता है। यह त्यौहार कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा के दिन मनाया जाता है।
समुद्र मंथन के समय कामधेनु गौमाता समुद्र से निकली थी, तब से ही सनातन धर्म के लोग गाय को गौमाता के नाम से पुकारते हैं और उसकी सेवा और सम्मान करते हैं। गाय ग्रामीण लोगों की आजीविका का एक साधन भी है, गाय के दूध, घी, उसके गोबर से बने उपले और गौमूत्र बेचकर अपने परिवार का पालन-पोषण करते हैं। प्रत्येक घर में गाय के रहने से उनके बच्चे भी दूध पीते हैं और साथ ही दूध-घी बेचकर आमदनी भी होती है। गाय का दूध बहुत ही पौष्टिक और दिमाग को तेज करने वाला होता है। अन्य किसी पशु के दूध का गाय का दूध बच्चों को पिलाना सबसे सर्वोत्तम माना गया है। उत्तर भारत में दीपावली के बाद कार्तिक शुक्ल प्रतिप्रदा पर गोवर्धन पूजा धूमधाम से मनायी जाती है। इस अवसर पर लोग अपने घर के आंगन में गाय के गोबर से गोवर्धन नाथ जी की तस्वीर बनाकर उनकी पूजा करते हैं। यह परम्परा द्वापर युग से चली आ रही है।

गौधन का सम्मान :

बिहार, हरियाणा, पंजाब,महाराष्ट्र, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, उत्तर प्रदेश सहित देश के अनेक हिस्सों में गायाें को विशेष रूप से सजा-धजा करके उनकी पूजा की जाती है। गौ माता के प्रति आभार प्रकट करते हुए, उस दिन का दूध सिर्फ गाय के बछड़े को पीने के लिए छोड़ दिया जाता है। इस प्रकार गोवर्धन पूजन के उत्सव में हमारी कृषि प्रधान संस्कृति की झलक देखने को मिलती है, जिसमें हमें पशुओ के प्रति दया भाव रखना सिखाया जाता है।

पौराणिक कथा:

यह कहा जाता है कि एक दिन भगवान श्रीकृष्ण ने देखा कि ब्रजनगरी में तरह-तरह के स्वादिष्ट पकवान बनाये जा रहे हैं।उन्होंने इसकी जब खोज की तो उन्हें पता चला कि यह तैयारी देवराज इन्द्र की पूजा के लिए हो रही है। लोग वर्षा के आगमन हेतु इन्द्र देवता को प्रसन्न करते थे। इतनी बात सुनकर भगवान श्रीकृष्ण ने देवराज इन्द्र की निन्दा करते हुए कहा कि “उस देवता की पूजा करनी चाहिए जो प्रत्यक्ष में आकर पूजन सामग्री स्वीकार करें। इन्द्र में क्या शक्ति है, जो पानी बरसा कर हमारी सहायता करेगा। उससे तो शक्तिशाली और सुन्दर यह गोवर्धन जी का पर्वत है। यही वर्षा का मूल कारण है। तुम सभी को इसी की पूजा करनी चाहिए।” भगवान कृष्ण ने यह भी तर्क दिया कि गोवर्धन पर्वत गौधन का संवर्धन एवं संरक्षण करता है, जिससे पर्यावरण भी शुद्ध होता है। इसलिए इन्द्र की नहीं गोवर्धन की पूजा की जानी चाहिए।
ब्रजवासियों ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा कि गोवर्धन की पूजा से हमें क्या लाभ होगा?” इस पर प्रभु श्रीकृष्ण ने कहा कि यही गोप-गोपियों की आजीविका का एकमात्र सहारा होगा। सभी ब्रजवासियों ने श्रीकृष्ण कन्हैया की बात मान ली। इसके उपरान्त सभी ने भगवान श्रीकृष्ण के कहे अनुसार पकवान बनाये और पर्वत की तराई में जाकर गोवर्धन जी को भोग लगाया। इस पूजन से गिरिराज बहुत अधिक प्रसन्न हुए और उन्होंने सभी को आशीर्वाद दिया। उन दिनों देवदूत नारद मुनि ब्रज में घूमने आये। ब्रज में आकर उन्हें पता चला कि ब्रजवासी श्रीकृष्ण जी की आज्ञा से इस वर्ष इन्द्र महोत्सव के स्थान पर गोवर्धन पूजा कर रहे हैं।
इतनी जानकारी प्राप्त होते ही देवदूत की संज्ञा से विभूषित देवर्षि नारद बैचेन हो गए और उन्होंने यह बात इन्द्र देवता से जाकर बता दी। राजा इन्द्र को जब इसकी जानकारी दी गई तो उन्हें गुस्सा आ गया और उन्होंने इसे अपना अपमान समझा। उन्होंने इस अपमान का बदला लेने के लिए मेघों को आज्ञा दी कि वे गोकुल में जाकर प्रलयकारी मुसलाधार वर्षा से पुरे गाँव को नष्ट कर दंे। देवराज इन्द्र की आज्ञा पाकर, बादल ब्रज नगरी पर जोर से बरसने लगे। प्रलयकारी वर्षा देखकर सभी ब्रजवासी श्रीकृष्ण भगवान की शरण में जाकर बोले- “हे भगवान! इन्द्र भगवान नाराज हो गये हैं और हमारी नगरी को डुबोना चाहते हैं। भगवान श्रीकृष्ण ने सभी ब्रजवासियों से कहा कि “तुम सभी लोग गोवर्धन की शरण में चलो वही तुम्हारी रक्षा करेंगे”।
इसके तुरन्त बाद सभी ब्रजवासी श्रीकृष्ण जी के साथ गोवर्धन पर्वत पर चले गये। भगवान श्रीकृष्ण ने एक अंगुली से गोवर्धन पर्वत को उठा लिया और सात दिन तक गोप-गोपिकाओ की सुरक्षा की। सात दिन लगातार बारिश होने के बावजूद भी ब्रजवासियों को कुछ नहीं बिगड़ा तो इससे देवराज इन्द्र को आश्चर्य हुआ। वे तुरन्त भगवान श्रीकृष्ण की महिमा को समझ गये और ब्रज आकर उन्होंने इसका पश्चाताप किया। सातवें दिन भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को नीचे रखा, उसी दिन से प्रतिवर्ष गोवर्धन की पूजा की जाती है और भगवान श्रीकृष्ण को अन्नकूट का भोग लगाया जाता है।

READ MORE :  नवजात बछड़ों का पालन पोषण

भगवान श्रीकृष्ण पर्यावरण के संरक्षक थे:

मथुरा जिले के ब्रज में स्थित द्वापर युगीन पहाड़ियों, पर्यावरण एवं यमुना की रक्षा के लिए संघर्षरत स्वामी जयकृष्ण दास ने इस संबंध में बताया कि कृष्ण पर्यावरण के सबसे बड़े संरक्षक थे। इन्द्र के मान-मर्दन के पीछे उनका यही उद्देश्य था कि ब्रजवासी गौ-धन एवं पर्यावरण के महत्व को समझें और उनकी रक्षा करें। इस मौके पर लाखों की संख्या में श्रद्धालु गिरिराज परिक्रमा के लिए आते हैं, जिनमें विदेशी गिरिराज भक्तों की संख्या भी बड़ी तादाद में रहती है।
दीपावली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा की जाती है द्य इसके लिए घर के मुख्य द्वार पर गौ के गोबर से गोवर्धन जी बनाये जाते है। गोवर्धन की पूजा भगवान श्रीकृष्ण के अवतार के बाद द्वापर युग से प्रारम्भ हुई थी। इस दिन ठाकुर जी के अन्नकूट का भोग लगाते हैं। गोवर्धन जी की पूजा लक्ष्मी जी की पूजा में रखा जलता हुआ घी का दीपक एवं लक्ष्मी पूजन की थाली और कलश लेना चाहिए। गोवर्धन की पूजा लक्ष्मी पूजन की सामग्री से ही करनी चाहिए।
इस त्योहार का काफी महत्व है। साथ ही इसकी अपनी मान्यताएं और लोककथा भी है। गोवर्धन पूजा में गोवर्धन, यानी गायों की पूजा की जाती है। गाय को देवी लक्ष्मी का स्वरूप भी कहा गया है। देवी लक्ष्मी जिस प्रकार सुख-समृद्धि प्रदान करती हैं, उसी प्रकार गौ माता भी अपने दूध से स्वास्थ्य रूपी धन प्रदान करती हैं। गौ के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के लिए ही कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के दिन गोर्वधन पूजा की जाती है और इसी के प्रतीक के रूप में गाय की भी पूजा का विधान है।
दिवाली के ठीक बाद गोवर्धन व अन्नकूट पूजा की जाती है. इस दिन शाम के समय खास पूजा का आयोजन किया जाता है. कई लोग इसे अन्नकूट के नाम से भी जानते हैं. अन्नकूट शब्द का अर्थ होता है अन्न का समूह. विभिन्न प्रकार के अन्न को समर्पित और वितरित करने के कारण ही इस उत्सव या पर्व का नाम अन्नकूट पड़ा है. इस दिन अनेक प्रकार के पकवान, मिठाई से भगवान को भोग लगाया जाता है.

गोवर्धन पूजा का महत्व

इस पूजा को सभी हिंदू धूम-धाम से मनाते हैं। हमारा जीवन प्रकृति के बिना पूरा नहीं हो सकता है। इस पूजा में सभी मनुष्य प्रकृति, पेड़ पौधे, फूल, हवा, पर्वत, पठार, सूर्य, सूर्य की रोशनी जैसी सभी प्राकृतिक चीजों के प्रति आभार प्रकट करते हैं। प्रकृति से प्राप्त सब्जियां, दूध, फल खाकर ही मनुष्यों का पोषण होता है।
प्रकृति के बिना कोई भी मनुष्य जीवित नहीं रह सकता। पृथ्वी, धरा (मिट्टी) में ही सभी खाने योग्य फसलें और सब्जियां उगती हैं। गोवर्धन पूजा करके हम सभी लोग ईश्वर को धन्यवाद देते हैं कि उसने हमें विभिन्न प्राकृतिक चीजें देकर हमारा पोषण किया है।

READ MORE :  गौ संरक्षण के लिए गोचर विकास, जल प्रबंधन एवं वृक्षारोपण मूल मंत्र: गिरीश जे. शाह

नैवेद्य अर्पित कर निम्न मंत्र से प्रार्थना करें:

लक्ष्मीर्या लोक पालानाम् धेनुरूपेण संस्थिता।
घृतं वहति यज्ञार्थे मम पापं व्यपोहतु।।
सायंकाल पश्चात् पूजित गायों से पूजित गोवर्धन पर्वत का मर्दन कराएं. फिर उस गोबर से घर-आंगन लीपें.

गोसंवर्द्धन क्यो जरूरी है ईसका प्रमाण तथा उपाय धर्म ग्रंथो से –

  1. मा नस्तोके तनये मा नो आयौ मा नो गोषु मानो अश्वेषु रीरिष: |वीरान्‌ मा नो रुद्र भामितो वधीर्हविष्मन्त: सदमित्वा हवामहे || ऋ1.114.8
    गौओं घोड़ों इत्यदि में गर्भ में पूर्ण अवस्था से पूर्व प्रसव काल में उचित चिकित्सा का प्रबन्ध और अग्निहोत्र द्वारा वातावरण के स्वच्छता की व्यवस्था करनी चहिए.
    Develop expert veterinary care for preterm (premature) born to domestic cows and horses etc. Agnihotra should also be regularly performed for sanitizing the atmosphere there.
  2. दुहीयन्‌ मित्रधितये युवाकु राये च नो मिमीतं वाजवत्यै |
    इषे च नो मिमीतं धेनुमत्यै ||ऋ1.120.9दुधारु गौएं आर्थिक लाभ के साथ पौष्टिक आहार द्वारा रोग निरोधक शक्ति भी बढ़ाती हैं . जो लोग स्वेच्छा से गोभक्ति से प्रेरित हो कर गोसेवा करना चहते हैं,उन्हें उत्तम गोसेवा के साधनों का प्रशिक्षण देना चाहिए.
    Milk giving cows provide financial benefits and promote good nutrition for immunity from diseases. Provide cow related knowledge to the persons desiring to engage in maintaining cows to ensure affectionate handling of the cows.
  3. अध प्र जज्ञे तरणिर्मत्तु प्र रोच्यस्या उषसो न सूर: |
    इन्दुर्येभिराष्ट स्वेदुहव्यै स्रुवेण सिञ्चज्जराणाभि धाम || ऋ1.121.6
    जिस प्रकार सूर्य प्रात:काल के अपनी ज्योति से आरम्भ कर के समस्त संसार के कल्याण , समृद्धि और स्वास्थ्य का हेतु है, उसी प्रकार गोदोहन और उस के स्वादिष्ट पौष्टिक आहार और अग्निहोत्र में हवि समाज के कल्याण, समृद्धि और स्वास्थ्य का साधन होते हैं.
    In a manner similar to how an individual obtains bounties by collecting the radiation from the sunrise in the mornings, individuals that obtain milk etc from cows and share its products with community and by providing havi in Agnihotra fires for ridding the disease causing ENVIRONMENTS and promote health and prosperity for his home and society.
  4. तुभ्यं पयो यत्‌ पितरावनीतां राध: सुरेतस्तुरणे भुरण्यु |
    शुचि यत्ते रेक्ण आयजन्त सबुर्दुधाया: पय उस्रियाया: || ऋ1.121.5
    हमारे पितरों माता पिता ने आतुरता से गोदुग्ध पान किया जिस से उत्तम वीर्य और उत्तम सिद्धियां प्राप्त कराने वाला धन प्राप्त होता है. वैसे ही उत्तम सिद्धि कराने वाले धन और संतान को प्राप्त करने के लिए ,दयालु प्रवृत्ति से सदैव स्वच्छ पीने योग्य दूध से सुख देने वाली गौ की निरन्तर सेवा करना चहिए और गौ को प्रसन्न रखने के व्यवहार का सदा पालन करें.
    Our forefathers eagerly sought milk of cows that provided them with good fertility and wealth the provider of excellent bounties and comforts. In the same manner, you should also devote yourself to care and love cows to be blessed with clean health invigorating milk to have good progeny and virtuous, prosperous life.
  5. अष्टा महो दिव आदो हरि इह द्युमनसाहमभि योधान्‌ उत्सम्‌ |
    हरि यत्ते मन्दिनं दुक्षन्‌ वृधे गोरसमद्रिभिर्वाताप्यम्‌||ऋ1.121.8
    जिस प्रकार सर्वत्र पृथ्वी पर सूर्य की ज्योति द्वारा सुखों की वृद्धि के लिए मेघादि और खाद्य पदार्थों में रसादि की उत्पत्ति होती है, उसी प्रकार राजा का समाज के प्रति कर्तव्य है कि संसार में शुद्ध जल के साधन और मनोहर शुद्ध वायु को उपलब्ध कराए जिस से गौ और अश्वादि समाज को पूर्ण उन्नति प्रदान कर के राजा का सम्मान बढ़ावें .
    Just like sun that enriches life on earth by rains and solar energy to sanitize the atmosphere and provide plants produce for delicious food .King should EARN respect of all by ensuring clean air (ENVIRONMENTS ) and good drinking water made freely available. This enables the cows to fulfill our needs for excellent milk and farm products and horses to provide for our comfort
    गोरक्षा
  6. त्वामयसं प्रति वर्त्तयो गोर्दिवो अश्मानमुपनीतमृभ्वा |
    कुत्साय यत्र पुरुहूत वन्वञ्छुष्णमनन्तै: परियासि वधै: || ऋ 1.121.9
    जैसे सूर्य मेघ को बरसा कर और अपने प्रकाश से सारे विश्व को आनंदित करता है, वैसे ही हे मनुष्यो तुम बुद्धीमान जनों के परामर्श और शस्त्रों द्वारा गौ हिंसा करने वालों को रोक कर गौ की रक्षा करो.
    Just as sun spreads prosperity and joy on earth by rains and light, for the same purpose men should protect cows from those who kill them by use of iron weapons guided by advice of wise men.
    गो मन्त्रालय
  7. त्वं नो असि भारताsग्ने वशाभिरुक्षभि: |
    अष्टापदीभिराहुत: || ऋ2.7.5
    राष्ट्र के भरण पोषण के हेतु गौओं और बैलों की सुरक्षा के लिए उत्तम भूमि (गोचरों) , मेघों,नदियों की व्यवस्था के लिए आट सचिव रूप पदाधिकारी जनों से विचार विमर्श कर के सुनिश्चित नीति निर्धारित करो, जिस का सब पालन करें
    Tasks for Cow ministry गो मंत्रालय के दायित्व.
  8. यो मे शता च विंशतिं च गोनां हरी च युक्ता सुधुरा ददाति |
    वैश्वानर सुष्टतो वावृधानोsग्ने यच्छ त्र्यरुणाय शर्म|| ऋ 5.27.2
    गोकृषि द्वारा जो सहस्रों अथवा बीसियों गौओं के पालान और उत्तम बैलो को हल में युक्त करके उत्तमघोड़ों को रथादि में युक्त कर के जीवन यापन करते हैं उन के तीनों आश्रमों (ब्रह्मचारियों को गुरुकुलों में गोकृषि के ज्ञान और विद्या की,गृहस्थ आश्रम में उचित निवास वेतन आदि की और वानप्रस्थ में अपने जीवन के अनुभव को जिज्ञासुओं को शिक्षा देने की ) उचित व्यवस्था करो.
    Agenda for Cow Ministry.
  9. ब्रह्मचर्याश्रम Education and training:
    Adequate arrangements and facilities should be developed to impart education and training in all aspects of excellent animal husbandry practices. This should cover very large facilities that may have thousands of cows to small scale HOUSE holders that may have about a dozen cows.
  10. गृहस्थाश्रम Welfare of people engaged in cow keeping:
    Adequate HOUSING and remuneration should be ensured for the people engaged in cow care activities.
  11. वानप्रस्थाश्रम People that have taken retirement from active cow care duties should be utilized by imparting the lifelong expertise in cow care to train youth in the finer aspects of cow care.
    Forest protection Development & Cows
    आरन्यकों पर्यावरण और गो सम्वर्द्धन
  12. स्विध्मा यद्‌ वनदिपरिरपस्यात्‌ सूरो अध्वरे परि रोधना गो: |
    यद्ध प्रभासि कृत्याँ अनु द्यूननर्विशे पश्विषे तुराय|| ऋ 1.121.7
    बिना हिंसा किए ( अग्निहोत्रादि से पर्यावरण की सुरक्षा द्वारा ) ,वनों को धारण और उन की सुरक्षा, गोवंश का सम्वर्द्धन और रक्षा ,रथों गाड़ियों के शीघ्र वाहन के योग्य पशुओं की सुरक्षा जैसे उत्तम कार्य , सूर्य के समान प्रतिदिन प्रकाशित हो कर करने चाहिएं.
    Forests should be protected and developed by performing Agnihotras ( to promote regular rain precipitation from bacteria ‘pseudomonas Syringe’ in the undergrowth ) to provide regular forage for cows and fast moving horses. This has to be performed with regularity shown by Sun in its every day bringing sunshine for growth and maintenance of the world.
    गोचर व जल संरक्षण Pasture and water harvesting
  13. उद्वत्स्वस्मा अकृणोतना तृणं निवस्वप: स्वपस्यया नर: |
    अगोह्यस्य यदसस्तना गृहे तदद्येदमृभवो नानु गच्छथ || ऋ 1.161.11
    हे जनों ऊंचे स्थानों पर पशुवर्ग (गोआदि ) के हितार्थ उत्तम घास आदि चारे कि व्यवस्था करो. निचले गहरे स्थानों पर उत्तम कर्मों की इच्छा और परोपकार से प्रेरित हो कर जल एकत्रित करो. जो साधन सुगमता से उपलब्ध हैं उन को नष्ट न करो और इस प्रकार की परम्परा का पालन करो.
    Develop systems for growing excellent fodder grasses on higher grounds. Harness and store rain water on low deep levels for public welfare. Thus do not waste your resources and honor these traditions to be able to enjoy peaceful sleep at night.
    पशु आवास Cow Shelters
  14. या ते अष्ट्रा गोओपशाssघृणे पशुसाधनी |
    तस्यास्ते सुम्नमीमहे|| ऋ6.53.9
    सब प्रकार से गोपालन में समर्थ वास्तुशास्त्र विद्वान गौओं के निवास के साधनों को ऋतु अनुसार गौओं के सोने और सुख से रहने की व्यवस्था करें.
    Veterinary science experts /Architects should design the stalls in such manner that cows are comfortable and have adequate space to sleep.
    गो आहार Cow Feed & Nutrition
  15. उत नो गोषणिं धियमश्वसां वाजसामुत |
    नृवत्कृणुहि वीतये|| ऋ 6.53.10
    पशु पालन के विद्वान गौओं घोड़ों को अलग अलग करके उन के आवश्यकता अनुसार उपयुक्त अन्नदि आहार की उत्तम व्यवस्था करो
    Nutrition feed experts should segregate and arrange to provide cow herd according to its requirements of nutritive feeds.
READ MORE :  Use Of Laboratory Animals In Drug Designing And Potency Testing

 

Compiled  & Shared by- Team, LITD (Livestock Institute of Training & Development)

 

Image-Courtesy-Google

 

Reference-On Request.
Please follow and like us:
Follow by Email
Twitter

Visit Us
Follow Me
YOUTUBE

YOUTUBE
PINTEREST
LINKEDIN

Share
INSTAGRAM
SOCIALICON