शरद ऋतु मे पशुओं का संक्रामक रोगों से बचाव एवं प्रबंधन

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शरद ऋतु मे पशुओं का संक्रामक रोगों से बचाव एवं प्रबंधन

डॉ. अशोक कुमार पाटिल एवं डॉ. अंकुश किरण निरंजन

पशु चिकित्सा एवं पशुपालन महाविद्यालय, महू (म. प्र.)

 

वर्षा ऋतु के बाद जैसे ही शरद ऋतु का आगमन होता है तापमान में अचानक गिरावट आने लगती है और मनुष्यों और पशुओं का प्रतिरोधक तंत्र इस होने वाले परिवर्तन के कारण कमजोर हो जाता है  जिस कारण  विषाणुजनित एवं जीवाणुजनित संक्रमण वातावरण में तेजी से फैलने  लगता है ।  संक्रमित होने पर पशु कम ही  चारा खाता है और कमजोर भी हो जाता है । कम चारा खाने से दुग्ध उत्पादन भी कम होता है और समय से यदि उपचार न मिले तो पशु दूध देना भी बंद कर देता है। इस कारण पशुपालकों को उत्तरोत्तर आर्थिक हानि होती जाती है और  अंततः कई बार बीमारी बढ़ने पर पशु की मृत्यु भी हो जाती है। । इसलिए सर्दियों के मौसम में पशुओं को सामान्य दिनों की अपेक्षा अधिक देखभाल की आवश्यकता होती है ।

इस वर्ष मध्यप्रदेश मे सितम्बर के महीने मे बरसात का एक अलग ही स्वरूप देखने को मिला जिसने किसान भाइयो की नकद  फसल  की बरबादी के साथ जो चारा हमे पशुओ को खिलाने को मिलता वह भी नष्ट हो गया इसलिए हमे अपने पशुओ को हर परिस्थिति मे अच्छा उत्पादन लेने के लिए तैयार रखना है l इसके लिए हमे ठंड के मौसम मे पशुओ के रख रखाव एवं पोषण पर विशेष ध्यान देना है l इसके अलावा ठंड में पशुओं को बीमारियों से बचाने के लिए पशुपालन विभाग की ओर से चलाए जाने वाले विशेष टीकाकरण अभियानों में टीके लगवाने चाहिए  जिससे पशु ठंड के मौसम में भी विशेषतः गलघोटू, चरचरा और  खुरपका- मुंहपका की बीमारी से बच कर रह सके ।

इस लेख के माध्यम से आप जान पाएंगे की आप किस तरीके से थोड़ा सा बदलाव करके आप अपने पशु को स्वस्थ रखने के साथ साथ अच्छा उत्पादन भी ले सकते है l ठंड के मौसम में पशुओं की वैसे ही देखभाल करें जैसे हम लोग अपनी करते हैं। उनके खाने-पीने से लेकर उनके रहने के लिए अच्छा प्रबंध करे ताकि वो बीमार न पड़े और उनके दूध उत्पादन पर प्रभाव न पड़े।” खासकर नवजात तथा छह माह तक के बच्चों की विशेष देखभाल करें, सर्दियों के मौसम मे पशुपालक भाइयो को निम्न बातों पर जरूर ध्यान देना चाहिए l

पशु आवास एवं सामान्य प्रबंधन

  • ठंड के मौसम में पशुपालकों को पशुओं के आवास प्रबंधन पर विशेष ध्यान देंना चाहिए । सर्दी के मौसम में अंदर व बाहर के तापमान में अच्छा खासा अंतर होता है । पशु के शरीर का सामान्यतः तापमान गाय व भैंस में  क्रमश: 5 डिग्री फेरेनहाइट  व 98.3-103 डिग्री फेरेनहाइट (सर्दी-गर्मी) रहता है और इसके विपरीत पशुघर के बाहर का तापमान कभी-कभी शून्य तक चला जाता है । अत: इस ठंड  से पशु को बचाने के लिए पशुशाला के दरवाजे व खिड़कियों पर बोरे लगाकर सुरक्षित करें, जिससे पशुओं पर शीत लहर का सीधे प्रकोप न पड़ सके । जहां पशु विश्राम करते हैं वहां पुआल, भूसा, पेड़ों की पत्तियां बिछाना जरूरी है। इन सब चीजों जेसे पुआल, भूसा, पेड़ों की पत्तियां एवं पुराने कपड़े और बोरो को सिलकर एक मोटा गद्दा भी बनाया जा सकता है जो पशु के बैठने के लिए काफी आरामदायक ओर लाभप्रद सिध्द होगा l बिछावन समय-समय पर बदलते रहे ताकि पशु को गीले होने से बचा सके। सर्दियों मे पशुओं के चराने फिराने का समय भी बदल देना चाहिए ताकि उन्हे ठंड लगने से बचाया जा सके इसलिए सुबह नौ बजे से पहले और शाम को पांच बजे के बाद पशुशाला से पशु को बाहर न निकालें।
  • पशुबाड़े में गोबर और मूत्र निकास की उचित व्यवस्था करे ताकि जलभराव न हो पाए । पशुबाड़े को नमी/सीलन से बचाएं और ऐसी व्यवस्था करें कि सूर्य की रोशनी पशुबाड़े में देर तक रहे।
  • अत्यधिक सर्दी के समय पशुओं को जूट के बोरे बनाकर ओर अच्छी तरीके से पहना दे। इसके अलावा गर्मी के लिए पशुओं के पास अलाव जला कर भी रख सकते है। नवजात पशु को खीस जरूर पिलाएं, इससे बीमारी से लडऩे की क्षमता में वृद्धि होती है।  प्रसव के बाद मां को ठंडा पानी न पिलाकर गुनगुना पानी पिलाएं। गर्भित पशु का विशेष ध्यान रखें व प्रसव में जच्चा-बच्चा को ढके हुए स्थान में बिछावन पर रखकर ठंड से बचाव करें।
  • गर्मी के लिए पशुओं के पास अलाव जला के रखें। अलाव जलाएं पर पशु की पहुंच से दूर रखें। इसके लिए पशु के गले की रस्सी छोटी बांधे ताकि पशु अलाव तक न पहुंच सके।
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पशु आहार प्रबंधन

  • सर्दियों के दिनो मे हमे यह बात ध्यान रखना है की पशु को दैनिक गतिविधियो को पूरा करने के लिए जो ऊर्जा लगती है उसकी अवश्यकता बढ़ जाती है अर्थात हमे आहार की मात्रा समान्य से ज्यादा देना चाहिए नही तो उत्पादन प्रभावित होगा l ऊर्जा की अतिरिक्त पूर्ति के लिए पशु को  गुड़ या शिरा भी खिला सकते है l
  • पशु को 24 घण्टों में खिलाया जाने वाला आहार (दाना व चारा) जिसमें उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु भोज्य तत्व मौजूद हों, पशु आहार कहते है। जिस आहार में पशु के सभी आवश्यक पोषक तत्व उचित मात्रा में उपलब्ध हों, उसे संतुलित आहार कहते हैं।
  • सर्दी के मौसम में पशुओं को संतुलित आहार देना चाहिए। सांद्र आहार हमे रात्री के समय देना चाहिए जिससे की इससे उत्पन्न ऊर्जा पशु को अंदर से रात भर गरम रखेगी जिससे काफी हद तक ठंड से बचने मे मदद मिलती है। पशु के शरीर की निर्वहन के लिए  एक लिए गाय के लिए 0  किलो प्रतिदिन व भैंस के लिए 1.5 किलो प्रतिदिन दाना देना चाहिए, इसके आइरिक्त गाय मे २.५ लीटर दूध पर तथा भैंस मे २.० लीटर दूध पर १.० किलो संतुलित आहार अतिरिक्त देना चाहिए l ऐसा पाया जाता है कि गाँव मे किसान भाई दुधारू जानवर को सिर्फ एक ही प्रकार कि खली या दाना खिलाते है जो कि वैज्ञानिक दृष्टि से उचित नहीं है पशुपालको को दानो का मिश्रण एक अनुपात मे मिलाकर खिलाना चाहिए जिससे कि पशु का उत्पादन अधिक से अधिक ले सके l इस समस्या को दूर करने के लिए इस लेख मे कुछ संतुलित आहार बनाने के सूत्र दिये जा रहे है जिनके हिसाब से पशुपालक भाई एक सस्ता ओर अच्छा दाना बना सकते है l
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फार्मूला 1 फार्मूला 2
अवयव प्रतिशत अवयव प्रतिशत
मक्का/जौ की दलिया 30 मक्का, जौ, गेंहू, बाजरा की दलिया 35
गेंहू का चोकर 40 सरसों/ मूंगफली/ बिनौला/ अलसी की खली 30
दाल की चूरी 06 गेंहू का चोकर 32
मूंगफली की खली 15 खनिज मिश्रण 02
तिल की खली 06 नमक 01
खनिज मिश्रण 02 कुल 100
नमक 01
कुल 100

 

  • सर्दी मे हरे चारे कि उपल्ब्ध्ता ज्यादा होती है इसलिए किसान पशु को भर पेट हरा चारा खिलाते है जिससे पशु को अफारा व अपचन की बीमारी हो सकती है, ऐसे में हरा चारा व बढि़या सूखा चारा मिलाकर खिलाए । इससे पशु स्वस्थ व निरोग रहेगा और दूध का उत्पादन भी कम नहीं होगा। पशुओं का आहार अचानक न बदलकर धीरे-धीरे बदलना चाहिए जिससे अपचन और दस्त लगने की समस्या से बचा जा सकता है l
  • सामान्यत: अच्छी गुणवत्ता की “हे”, सांद्र आहार की तुलना मे पाचन के दौरान ज्यादा गर्मी देती है इसलिए हमे सर्दियों के समय मुख्यत: “हे” खिलाने पर ध्यान देना चाहिए l
  • पशु सर्दियों के मौसम मे बहुत कम पानी पीता है जिससे की उसका दुग्ध उत्पादन कम होने लगता है, इसलिए पशुओं को सर्दी के मौसम में गुनगुना, ताजा व स्वच्छ पानी भरपूर मात्रा में पिलाएं, क्योंकि पानी दूध बनाने मे मदद करता है और सारी शारीरिक प्रक्रियाओं में पानी का अहम योगदान रहता है। इसके अलावा धूप निकलने पर पशुओं को बाहर बांधे और दिन गर्म होने पर नहलाकर साफ सफाई करे l
  • खली: सरसों और लाही, तिल, मूंगफली, अलसी तथा बिनौले आदि को खिलाने से दूध की मात्रा एवं पौष्टिकता में वृद्धि होती है।
  • अधिक ठंड के समय १०० मिली सरसों का तेल पिलाना भी फायदेमंद होता है जो पशु को आंतरिक ऊर्जा प्रदान करता है साथ ही अफारे की समस्या भी नहीं होने देता जिससे पशु का उत्पादन प्रभावित नहीं होता है ।
  • अधिक दूध उत्पादन करने वाले पशुओ मे (लगभग १५ लीटर या इससे ज्यादा) बाईपास प्रोटीन ओर बाईपास वसा आहार मे खिलाना चाहिए l यह पशु को दुग्ध उत्पादन के लिए जो अतिरिक्त ऊर्जा की अवश्यकता होगी उसकी पूर्ति करने मे सहायक होंगे तथा सर्दी के कारण जो तनाव होगा उसको भी दूर करते है l
  • शीत लहर में पशु की खोर के उपर यूरिया शीरा, खनिज मिश्रण की ईट और सेंधा नमक का ढेला रखें, जिससे की पशु जरूरत के अनुसार उसको चाटता रहे ताकि पशु की पाचन शक्ति बनी रहे । सेंधा नमक चाटने से पशु की चर बढ़ती है ओर पशु पानी भी अधिक पीने लगता है ओर हम जानते है की पशु सर्दी के दिनो मे कम पानी पीता है जिससे उसका दुग्ध उत्पादन कम हो जाता है l प्रति 1 लीटर दूध बनने पर 3 लीटर पानी की अवश्यकता होती है l
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खनिज मिश्रण खिलाने के लाभ

  • दुधारू पशु के दूध उत्पादन में बढतरी करता है।
  • पशु की प्रजनन शक्ति को ठीक करता है।
  • पशुओं की रोगो से लड़ने की क्षमता को बढ़ाता है।
  • पशुओं को ब्याने के आस-पास होने वाले रोगों जैसे दुग्धज्वर, कीटोसिस, मूत्र में रक्त आना आदि की रोकथाम करता है।
  • बछड़े/बछियों की वृद्धधी में सहायक है।
  • पशु द्वारा खाये गये आहार को सुपाच्य बनाता है।

पशुपालक भाई उपरोक्त लिखे सुझावो पर अमल करके सर्दियों मे पशुपालन करके एक अच्छा लाभ ले सकते है l इसके अलावा मौसम के हिसाब से कुछ बीमारियाँ भी फैलती है जिनके टिकाकरण जरूर करवाए जैसे सर्दी के आने के समय पूर्व खुरपका मुहपका बीमारी  का टीका जरूर लगवा लेवे, इनके संदर्भ मे ज्यादा जानकारी के लिए निकटतम स्थानीय पशु चिकित्सालय  जाए और  डाक्टर से संपर्क करके उचित टीका जरूर लगवाएँ जिससे काफी हद तक आर्थिक क्षति से बचा जा सकता है l

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