पशुओं में बाह्य परजीवीयो की रोकथाम

0
1166

पशुओं में बाह्य परजीवीयो की रोकथाम

Dr. RajKumar Berwal

(BVSC &AH, MVSc, Ph.D)

Officer in Charge,

Pashu  Vigyan  Kendra

Suratgarh – Sri Ganganagar

RAJUVAS- Bikaner

Mob: 9414482918

E mail: drberwalraj@yahoo.com

vutrcsuratgarh.rajuvas@gmail.com

परजीवी जन्तु (Parasite):- वे जीव जो किसी अन्य जीव पर आश्रित (भोजन तथा आवास) होते हैं, परजीवी जन्तु ( Parasite ) कहलाते हैं जैसेः चिंचड़ जूं, खटमल जोंक, एंटअमीबा, फीताकृमि आदि।
नोटः- इनके अंतर्गत आने वाले परजीवी मुख्यतः ऑटोबियस, एक्सोडिस, डरमोकैंटर, हिमोफाइलसेलिस इत्यादि है। यह चमड़ी की ऊपरी सतह से शरीर के अंदर अनेक प्रकार की बीमारियां फैलाते हैं और अधिक समय तक रहने पर शरीर से खून चूसते रहते हैं, तथा यह त्वचा पर चिपके रहकर घाव बनाते हैं जिससे द्वितीयक जीवाणु संक्रमण भी हो सकता है। परजीवी के मुख्यतः
(1) बाहय परजीवी (Ectoparasite) :-इस प्रकार के परजीवी पोषक के शरीर के बाहर रहकर उनसे भोजन प्राप्त करते हैं, जैसे-जूं, खटमल आदि।
(2) अंतः परजीवी (EndoParasite) :-ये परजीवी पोषक के शरीर के अंदर रहकर उनसे भोजन प्राप्त करते हैं, जैसे-एस्केरिस, टेपवर्म आदि
पशुओं में बाह्य परजीवी से प्राय सभी प्रकार तथा उम्र के पशु प्रभावित होते हैं परंतु विशेष रूप से यह गोवंश पशुओं में ज्यादा होते हैं इसके अतिरिक्त चिंचड़ भेड़, बकरी, सूअर, कुत्ता, बिल्ली आदि में भी पाए जाते हैं भैंस में चिंचड कम मिलते हैं परंतु जो इन में जूं अत्यधिक मात्रा में मिलती हैं चिंचड प्राय गर्मी एवं वर्षा ऋतु में अधिक होते हैं क्योंकि उस समय चिंचड़ के प्रजनन के लिए उचित तापमान व नमी वातावरण में उपलब्ध होती है जिससे चिंचड़ अपनी संख्या बढ़ा लेते हैं चिंचड़ शरीर के किसी भी भाग पर हो सकते है चीचड़ पशुओं में प्राय घुमंतू पशुओं व चारागाह से आते है इसके अलावा यह पशुशाला की दीवारों व फर्श आदि की दरारों व छिद्रों में छिपे रहते हैं और जैसे ही मौका मिलता है वैसे ही पशु के शरीर पर आ जाते हैं और पशु का खून चूसते हैं और पशु को धीरे धीरे हानि पहुंचाते हैं
चिंचड़ के प्रतिकूल प्रभावः-
चिंचड एक प्रकार का बाह्य परजीवी है यानी कि यह अपना भोजन स्वयं तैयार नहीं करते बल्कि दूसरों पर आश्रित रहते हैं अतः चिंचड जब पशु के शरीर में चिपक जाते हैं तब अपने मुख भाग से उनकी (पशु) त्वचा को भेदते है जिससे पशु के शरीर में छोटे-छोटे घाव हो जाते हैं इन घावों से चिंचड पशु के शरीर से खून चूसते हैं अलग-अलग प्रकार के चिंचड की जातियां भिन्न- भिन्न मात्राओं में पशु के शरीर से रक्त चूसते हैं जैसे एक चिंचड़ 1 दिन में 0.5उस से 2उस तक रक्त चूसते हैं यहां तक कि यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि जहां पर हजारों की तादात में चिंचड़ होंगे तब कितना खून निकल जाएगा और पशु को हानी पहुंचाएगा इस प्रकार जब पशु के शरीर पर चीचंड की संख्या बहुत अधिक होती है तो पशु की मृत्यु तक हो सकती है लगभग 20,000 से 50,000 चीचड़ पशु की मृत्यु का कारण बन सकते हैं परंतु जब शरीर पर चीचंडै की संख्या कम होती है जब केवल चिंचड के काटने से जलन, बेचौनी, खुजली, खून की कमी ( रक्त अल्पता ) चीचड़ कई प्रकार के कीटाणु को भी एक पशु से दूसरे पशु तक ले जाते हैं जिससे पशु बीमार हो जाते हैं विषाणु के अलावा चिंचड कई प्रकार के प्रोटोजोआ को भी एक पशु से दूसरे पशु तक ले जाते हैं जिसमें थाइलेरिया, बेबेसीया, एनाप्लाजमा प्रमुख बीमारियां हैं इन बीमारियों से पशुओं की काफी संख्या में मृत्यु होती है
जुंओ के प्रतिकूल प्रभावः-
चींचड़ की तरह की जुएं भी सभी प्रकार एवं सभी आयु के पशुओं को प्रभावित करती है परंतु यह गोवंश पशुओं में कम तथा भैसों में अधिक मात्रा में होती है इसके अतिरिक्त जुएं भेड़, बकरी, कुत्ता, बिल्ली, मुर्गी में भी पाई जाती है जो सर्दी ऋतु में बहुत अधिक संख्या में होती है इसका मुख्य कारण सर्दी में पशुओं के शरीर पर घने व लंबे बालों का होना पशुओं का अधिक नजदीक से एक दूसरे के संपर्क में रहना तथा शारीरिक शक्ति का कम हो जाना माना जाता है पशुओं में मुख्य रूप से 2 तरह की जुएं पाई जाती है जिनमें एक पशु की त्वचा से उतक द्रव्य चुसती है तथा दूसरी पशु की त्वचा से बाहरी सतह पर एपिथीलियम कोशिकाओं को काटकर खाती है दोनों ही प्रकार की जूओ का पशुओं पर मुख्य असर लगातार खुजली व बेचौनी के रूप में होता है इस वजह से पशु ना ही अच्छी तरह से खाना खाता है और ना ही सो पाता है तथा पशु लगातार खुजला- खुजला कर अपने आप को जख्मी कर लेता है इन सब की वजह से मुर्गियों में अंडा तथा गाय भैंस में दूध उत्पादन बहुत कम हो जाता है गायों तथा भैसों में खुजली के द्वारा शरीर में घाव हो जाते हैं जबकि भेड़ों में उन क्षत विक्षक्त हो जाती है बछड़े व बच्चछियों के द्वारा अपनी त्वचा अधिक चाटने से ओर खुजलाने से बाल टूट कर उनके पेट में चले जाते हैं जहां पर वे बालों के गुच्छे बना लेते हैं और पेट में अन्य बीमारियों को जन्म देते हैं

READ MORE :  Hypokalemia (Low Potassium Levels) in Animals

चिंचड तथा जूंओ का उपचार तथा रोकथाम :-
1. क्लोरिनेटेड हाइड्रोकार्बनः- इन का घोल बनाकर पशु के शरीर पर लगाना चाहिए इनमें मुख्य रूप से टोक्साफैन , मिथोकसीकलोर है
2. ऑर्गेनोफॉस्फोरस कंपाउंडः- यदि लगाते समय सावधानी बरती जाए तो यह बहुत ही उपयोगी सिद्ध हुए हैं इनमें मुख्य रूप से मेलाथियान , डीलॉक्रोन फोसलोन है
3. पायरेथ्रीन :- साइपरमैथरीन, डेल्टामथ्रीन, ब्यूटोक्स
नोट उक्त दवा 1 लीटर पानी में डालकर पशु के शरीर पर लगाई जाती है तथा सूखने पर तुरंत दो डालते हैं
4. आईवरमेक्टिंन :- यह एक औषधि बाहरी और अंत परजीवी दोनों को समाप्त कर देती है इसको सुई द्वारा त्वचा के नीचे (सबक्यूटेनियस)में लगाया जाता है
दवा लगाने की विधिः-
बाहरी परजीवीओं को पूरी तरह से नष्ट करने के लिए पशुपालकों को पशु चिकित्सक के निर्देशो अनुसार दवा का उपयोग करना चाहिए
1. छिड़काव विधिः- यदि पशुओं की संख्या कम है तो दवा को हाथ या पंप से छिड़काव करना चाहिए तथा पशुशाला में भी दवा का उपयोग करना चाहिए
2. पोछा विधिः- इस विधि में दवा को कपड़े में लगाकर पोछे के रूप में मुंह, सिर, तथा नाक से बचाते हुए संपूर्ण शरीर पर लगा देते हैं तथा 1 घंटे पश्चात पशु को नहला देते हैं
3. डूबकी विधिः- जब पशुओं की संख्या बहुत अधिक हो तो इस विधि को अपनाना चाहिए इसके लिए एक पानी टैंक जिसकी गहराई आवश्यकतानुसार चौड़ाई 6 फीट और लंबाई 15 फीट होनी चाहिए दवा का घोल बनाकर ईस टैंक में भर दिया जाता है और पशुओं को एक-एक करके इसमें डुबोकर बाहर निकाला जाता है डुबकी विधि में पशुपालकों को कुछ सावधानियां रखनी पड़ती है जो इस प्रकार हैं
ऽ डुबाने से पहले पशु के बड़े बाल काट देना चाहिए
ऽ गर्भीत पशु को नहीं डुबाना चाहिए
ऽ पशु को पूरी रात आराम देना चाहिए एवम पशु के शरीर में घाव हो तो डूबाना नहीं चाहिए
ऽ जिस दिन अच्छी धूप निकली न हो तभी यह विधि अपनानी चाहिए
ऽ पशु का सिर , नाक व मुंह नहीं डुबाना चाहिए इसके अतिरिक्त पशुपालकों को अपना भी बचाव रखना चाहिए
पशुपालक को ध्यान रखना चाहिए कि वह अपने स्वयंम का बचाव करें और जिस दिन पशुशाला में दवा का छिड़काव किया जाए तब से एक-दो दिन तक पशु को उस ग्रह में नहीं बांधना चाहिए यदि पशुपालक इन उपायों को अपनाएंगे तो वह निश्चित रूप से ही पशुधन में चिंचड़ और जूओ से मुक्त और स्वस्थ पशु रख पायेगें।

READ MORE :  Johne’s disease in cattle

https://www.pashudhanpraharee.com/%E0%A4%AA%E0%A4%B6%E0%A5%81%E0%A4%93%E0%A4%82-%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82-%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%97%E0%A5%8B%E0%A4%82-%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%95%E0%A4%A5%E0%A4%BE%E0%A4%AE/

https://epashupalan.com/hi/7970/animal-disease/treatment-and-prevention-of-external-parasitic-diseases-in-animals/

Please follow and like us:
Follow by Email
Twitter

Visit Us
Follow Me
YOUTUBE

YOUTUBE
PINTEREST
LINKEDIN

Share
INSTAGRAM
SOCIALICON