गाय का दूध धरती पर अमृत

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1961

गाय का दूध धरती पर अमृत

Compiled & shared by-DR RAJESH KUMAR SINGH ,JAMSHEDPUR,JHARKHAND, INDIA, 9431309542,rajeshsinghvet@gmail.com

वेदों, उपनिषदों, महाभारत, भागवत, चरक-सहिंता, आर्यभिषक्र अष्टांगहृदय, भावप्रकाश निघंटू, दीन-ए-इलाही, आईना-ए-अकबरी, कुरान शरीफ जैसे अनगिनत ग्रन्थों तथा विज्ञान और साहित्य में गाय के दूध की महिमा गायी गई है।
‘यक्ष ने धर्मराज से प्रश्न किया था कि
पृथ्वी पर अमृत कौन-सा है?’

धर्मराज ने प्रत्युतर दिया था कि ‘दूध’।

दूध जैसा पौष्टिक और अत्यन्त गुण वाला ऐसा अन्य कोई पदार्थ नहीं है। दूध जो मृत्युलोक का अमृत है। सभी दूधों में अपनी माँ का दूध श्रेष्ठ है और माँ का दूध कम पडा। वहाँ से गाय का दूध श्रेष्ठ सिद्ध हुआ है।

गाय के दूध के गुण –

  1. गाय का दूध धरती पर सर्वोत्तम आहार है।
  2. गोदुग्ध मृत्युलोक का अमृत है। मनुष्यों के लिए शक्तिवर्धक, गोदुग्ध जैसा अमृत पदार्थ त्रिभुवन में भी अजन्मा है।
  3. गोदूध अत्यन्त स्वादिष्ट, स्निग्ध, कोमल, मधुर, शीतल,वाला, ओज प्रदान करने वाला, देहकांति बढाने वाला, सर्वरोग नाशक अमृत के समान है।
  4. आधुनिक मतानुसार गोदुग्ध में विटामिन ‘ए’ पाया जाता है जो कि अन्य दूध में नहीं। विटामिन ‘ए’ रोग-प्रतिरोधक है, आँख का तेज बढ़ाता है और बुद्धि को सतर्क रखता है।
  5. गोदुग्ध शीतल होने से ऋतुओं के कारण शरीर में बढ़ने वाली गर्मी नियंत्रण में रहती है, वरन् गंभीर रोगों के होने की प्रबल संभावना रहती है।
  6. गोदुग्ध जीर्णज्वर, मानसिक रोग, शोथ, मूछ, भ्रम, संग्रहणी, गर्भस्त्राव में हमेशा उपयोगी है। वात-पित्तनाशक है, दमा, कफ, श्वास, खाँसी, प्यास, भूख मिटाने वाला है। गोलारोग, उन्माद, उदर रोगनाशक है।
  7. गोदुग्ध मूत्ररोग तथा मदिरा के सेवन से होने वाले मदात्य रोग के लिए लाभकारी है।
  8. गोदुग्ध जीवनोपयोगी पदार्थ अत्यन्त श्रेष्ठ रसायन है तथा रसों का आश्रय स्थान है जो कि बहुत पौष्टिक है।
  9. ऐलोपैथी चिकित्सानुसार गोदुग्ध में केरोटीन नामक पीला पदार्थ होता है जो आँखों की दृष्टि के तेज को बढ़ाता है।
  10. गोदुग्ध के प्रतिदिन सेवन से सभी प्रकार के रोगों से मुक्ति मिलती है।
  11. गोदुग्ध अग्रिउद्दीपक है, भोजन को पचाने वाला है, स्कन्ध मजबूत करता है। बच्चों की माँसपेशियों और हड़ियों के जोड मजबुत बनाता है। गोदुग्ध क्षय रोगनाशक है।
  12. शारीरिक, बौद्धिक श्रम की थकावट से ताजा गोदुग्ध का सेवन राहत दिलाता है।
  13. गोदुग्ध के प्रतिदिन सेवन करने वाले व्यक्ति को बुढापा नहीं सताता है। वृद्धावस्था में होने वाली तकलीफों से मुक्ति मिल जाती है।
  14. भोजन के वक्त या पूर्व छाती में दर्द या दाह होती है तो भोजन पश्चात गोदुग्ध के सेवन से दाह/दर्द शांत हो जाता है।
  15. वे व्यक्ति जो अत्यंत तीखा, खट्टा, कडवा, खारा, दाहजनक, रुखा, गर्मी करने वाले और विपरीत गुणों वाले पदार्थ खाते हों, उनको सायंकाल भोजनोंपरांत गोदुग्ध का सेवन अवश्य करना चाहिए, जिससे हानिकारक भोजन से होने वाली विकृतियों का दुष्प्रभाव समाप्त हो जाए।
  16. गोदुग्ध से तुरन्त वीर्य उत्पन्न होता है जबकि अनाज से वीर्य पैदा होने में अनुमानता एक माह का समय लगता है। माँस, अण्डे एवं अन्य तामसी पदार्थों के सेवन से वीर्य का नाश होता है जबकि गोदुग्ध से वृद्धि होती है। लंबी बीमारी से त्रस्त व्यक्ति को नवजीवन मिलता है।
  17. गोदुग्ध शरीर में उत्पन्न होने वाले जहर का नाश करता है। एलोपैथी दवाईयों, रासायनिक खाद, कीटनाशक दवाईयों आदि से वायु, जल एवं अन्न के द्वारा शरीर में उत्पन्न होनें वाले जहर को समाप्त करने की क्षमता केवल गोदुग्ध मंन ही है।
  18. आयुर्वेद में गाय के ताजे निकाले दूध को अति उत्तम कहा गया है।
  19. गाय के ताजे दूध को ब्रह्ममुहूर्त में प्रात: ४ से ६ बजे के बीच प्रतिदिन पीने से रात्रि अंधकार में भी देख सकते है।
  20. गाय के दूध से बनने वाले व्यंजन जैसे-पेढ़े, बफी, मिठाईयाँ इत्यादि पौष्टिक, स्वादिष्ट, बलवर्धक, वीर्यवर्धक एवं शरीर का तेज बढ़ाने वाले होते हैं। गोदुग्ध से बने व्यंजन लंबे समय तक खराब नहीं होते हैं जबकि भैंस एवं अन्य पशुओं के दूध से बनने वाले व्यंजन जल्दी खराब हो जाते है।
  21. गोदुग्ध से बने हुए घी को उसी गाय के दूध में मिलाकर पिया जाए तो उससे अधिक पौष्टिकता किसी और से नहीं मिल सकती।
  22. नमकीन एवं खड़े पदाथों के साथ दूध का सेवन करने से रतविकार पैदा होता है जो कि विभिन्न प्रकार के चर्मरोग का जन्मदाता है।
  23. मीठे पदार्थ, आचार, सब्जियाँ, मदिरा, मूंग, गुड, कन्दमूल, और कैरी एवं अंगूर के अलावा किसी भी फल कें साथ दूध का सेवन नहीं करना चाहिए।
  24. गाय को शतावरी खिलाकर, उस गोदुग्ध को क्षय रोग से पीडित व्यक्ति को पिलाने से रोग समाप्त हो जाता है।
  25. गोदुग्ध के सेवन से उदर साफ रहता है जबकि भैंस के दूध से कब्ज होती है।
  26. गोदुग्ध की तुलना में भैस का दूध पचने में भारी होता है। और चर्बी को बढ़ाने वाला और बुद्धि को मंद करने वाला होता है।
  27. बिना गरम किया हुआ दूध ४८ मिनट तक एवं गरम किया हुआ दूध आठ घण्टे तक पीने लायक होता है। बिना गरम किया दूध लंबे समय तक रखने से, क्यों न वह फ्रीज में रखा हुआ हो, उसके गुण समाप्त हो जाते हैं।
  28. दूध के रंग में अंतर, स्वाद में बदलाव या दुर्गध आने पर इस प्रकार के दूध का सेवन नुकसानदायक होता है।
  29. दूध की पाचकता पाचक तत्वों को बरकरार रखने के लिये एक उबाल तक ही गरम करना चाहिए।
  30. गोदुग्ध का पावडर बनाने पर उसके तत्वों का नाश होता है।
  31. शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष में चंद्रकला में होने वाले परिवर्तन से दूध के गुणों में भी परिवर्तन होता है।
  32. गाय का घी शरीर में सभी प्रकार के जहर को नाश करने वाला, घाव को भरने वाला, ताकतवर, हृदय के लिए लाभकारी होता है। ताजा घी अधिक सुगंधित एवं स्वादिष्ट होता है।
  33. गोदुग्ध कैन्सर के विषाणुओं को नष्ट करने वाला है।
  34. गाय के दूध, घी से चर्बी बढ़ने की बात कहकर, अंग्रेजों द्वारा गोहत्या का यह षडयंत्र रचा हैं।
  35. गोदुग्ध सेवन हृदय रोग, कैन्सर, क्षय रोग इत्यादि बीमारियों से निजात दिलाने में सर्वोत्तम सहायक है।
  36. आयुर्वेद चिकित्सा में जहाँ कही भी दूध एवं घी के प्रयोग का उल्लेख किया गया है, वह सिर्फ देशी गाय के दूध के संदर्भ में है।
  37. गाय के दूध की तुलना में भैंस का दूध अधिक गाढ़ा होता है जिसके पाचन में कठिनाई होती है। भैंस के दूध से आलस्य, प्रमाद, चर्बी आदि की वृद्धि होती है।
  38. जर्सी, हॉलिस्टीन, फ़िजियन एवं संकर (विदेशी गाय) गायों के दूध से ज्यादा बेहतर है देशी गयो का दूध ।
  39. बाजार एवं डेरी से मिलने वाला दूध मे मिलावट होने की संभावना ज्यादा है , अतः ये हानिकारक भी हो सकता है।
  40. गाय का दूध पीले रंग का है जो कि सोने जैसे गुण परिलक्षित करता है जबकि भैंस का दूध सफेद है जो कि चाँदी के गुणों को दर्शता है।
  41. कुरान शरीफ में स्पष्ट उल्लेखित है कि ‘गाय का दूध सेवन करो, गाय तुम्हारे लिए खुदा की नियामत है।”
  42. हजरत इमाम आजम अम्बुहनीस के द्वारा संग्रहित वचनामृत संग्रह क्रमांक ४८४८ में उल्लेख किया है कि वृद्धावस्था और मौत के अलावा अलाह ने ऐसी कोई बीमारी, औषधि के साथ धरती पर नहीं उतारी है। तुम गाय के दूध का सेवन करने की आदत डालो, गाय अपने दूध में सभी प्रकार की वनस्पतियों का समावेश/संग्रह रखती है।
  43. इसी पुस्तक में पैगम्बर साहब का एक और फरमान है कि गोदुग्ध का सेवन प्रतिदिन करो क्योंकि वह औषधि/दवा है। उसका घी रोगों का नाशक है। गाय के माँस से बचो क्योंकि वह मॉस बीमारी का कारण है।
  44. शताब्दियों से कथाओं और उपन्यास में वर्णित यौवन के उदगम की खोज मनुष्य कर रहा है पर उस आदर्श यौवन का निकटतम सान्निध्य रखने वाला पदार्थ अब तक मिल रहा है वह है गोदुग्ध।
  45. यदि आपको कोई पशुपालक सस्ता दूध बेच रहाहों तो आप सावधान होजाए , क्योकि उसमे मिलावट की संभावना ज्यादा है , आज केडीन मे 1 लिटर दूध की उत्पादन खर्च कम से कम 35 से 40 रुपया आता है ।
  46. मेडिकल साइन्स एवं मेडिकल कॉउन्सिल ऑफ इंडिया के सूत्रों का मानना है कि अहीर, भरवाड, रेबारी और यादव जातियों में कभी भी ऑखों की बीमारी या मोतियाबिन्द इत्यादि की शिकायत नहीं मिलती है, क्योंकि ये चारों जातियाँ ग्वाला जाति हैं। इन चारों जातियों के किसी भी व्यक्ति को चश्मा लगना नहीं के बराबर है। वे कई प्रकार के पशुओं का पालन करते है। परन्तु स्वयं दुग्धाहार ही लेते है। जंगलो में गाय चराते एवं भटकते हुए भी पूर्ण रूपेण स्वस्थ रहते हैं, यह गोदुग्ध एवं घी की विशेषता बताने वाला सबसे बडा उदाहरण है।
  47. बादशाह अकबर द्वारा स्थापित दीन-ए-इलाही में भी गोदुग्ध को अमृत एवं गाय को अमृता कहा गया है।
  48. विश्व प्रसिद्ध व्यायाम विशेषज्ञ मेक फर्डने ने ताकत, समृद्धि एवं स्वस्थता के लिये गोदुग्ध को ही सर्वश्रेष्ठ आहार माना है। मेजिक ऑफ मिल्क नामक अपनी पुस्तक में उन्होंने उल्लेखित किया है कि ताकतवर एवं निरोगी रहने के लिए स्वयं के शरीर के भार से आधे वजन के बराबर दूध पीना चाहिए। दूध के सेवन से उनका शरीर नब्बे वर्ष की उम्र में भी एक युवा के बराबर ताकतवर एवं निरोगी रहा।
  49. दूध मानव जाति को मिली एक अमूल्य अनुपम भेंट है। सर्वोत्तम आहार होने के बावजूद गरीबी, अज्ञानता, मिलावट, भ्रष्टाचार आदि कारणों से दूध का जितना प्रयोग करना चाहिए, उतना नहीं कर पाते हैं। एक समय था जब भारत मे दूध की नदियाँ बहती थीं और आज करोडों व्यति ऐसे हैं, जिन्हें गोदुग्ध के दर्शन भी नहीं हो पाते। गोदुग्ध, घी, दही के सेवन से पूर्व में व्यक्ति बुद्धिमान, निरोगी एवं शक्तिमान होते थे, इन सब के अभाव में आज समग्र भारत देश की जनता कुपोषण एवं नाना प्रकार के रोगों से ग्रसित है।
  50. आँखों के दर्द होने पर गोदुग्ध की पट्टी रखने से दर्द समाप्त हो जाता है।
  51. गोदुग्ध एक कटोरे में लेकर पूरे शरीर पर मॉलिश कर नहाने से अनेक रोगों से मुक्ति मिलती है एवं चमडी गोरी, चमकीली व तेजस्वी बनती है।
  52. चाका, गुलाम और कलू हलवान की त्रिपुटी, किनकरसिंह और लीम्बू सिंह, गामा और गम्मू, अहमद बक्श और इमाम बक्श आदि यह सब कुश्ती के पारेगतों ने सन १९४० से भारत की कीर्ति को विश्व में फैलाया। ये पहलवान विश्व में अपराजित थे। ये लोग प्रतिदिन गोदुग्ध व घी का सेवन कर शक्ति प्राप्त करते थे।
  53. वैद्य बलदेव प्रसाद पनारा के अनुसार प्रथम विश्व युद्ध के बाद पेरिस में खुराक संबंधी संशोधन के लिए बहुत बडा सम्मेलन हुआ जिसमें ऐसा निर्णय घोषित किया गया कि यदि पर्यात मात्रा में गोदुग्ध मिल जाए तो मानवीय समाज के लिए अन्य किसी भी पौष्टिक द्रव्य (पदार्थ) की आवश्यकता नही रह जाती है क्योंकि वह सम्पूर्ण आहार है।
  54. वर्तमान वैज्ञानिक मतानुसार गोदुग्ध में आठ प्रकार के प्रोटीन, इक्कीस प्रकार के एमीनो एसिड, ग्यारह प्रकार के चर्बीयुक्त एसिड, छः प्रकार के विटामिन, पच्चीस प्रकार के खनिज तत्व, आठ प्रकार के किण्वन, दो प्रकार की शर्करा, चार प्रकार के फॉस्फोरस यौगिक और उन्नीस प्रकार के नाईट्रोजन होते है। विटामिन-ए-१, करोटिन डी-ई, टोकोकेराल विटामिन बी-१, बी-२ल राईबोफ्लेविन बी-३, बी-४ तथा विटामिन सी है। खनिजों में कैल्शियम, फॉस्फोरस, लोह, ताँबा, आयोडीन, मैग्रीज, क्लोरीन, सिलिकॉन मिले हुए हैं। एमिनो एसिड में लाइसिन, ट्रिप्टोफेन और हिकीटाईन प्रमुख हैं। दूध जो कार्बोहाईड्रेट हैं उनमे लैक्टोस प्रमुख है जो पाचन तन्त्र को व्यवस्थित रखता है। लेक्टेज इत्यादि एन्जाइम, विटामिन ‘ए’, ‘बी’, ‘सी’, ‘डी’, ‘ई’ और लेक्ट्रोकोम, क्रियेटीन, यूरिया, क्लोरीन फॉस्फेट, केसिनो मिश्रण इत्यादि मिलकर १०० से भी ज्यादा विशेष पदार्थ हैं।
  55. गाय के दूध की थुली (दलिया) खाने से प्रसूता स्त्री को कोई भी रोग नहीं होता है।
  56. महाभारत में राजा युधिष्ठिर ने गोदुग्ध को अमृत तुल्य माना है। यक्ष ने जब युधिष्ठिर से पूछा कि पृथ्वी पर अमृत क्या है? धर्मराज ने उत्तर दिया -गोदुग्ध ही पृथ्वीपर एकमात्र अमृत है।
  57. ‘अभक्ष्य अनन्तकाल काय विचार’ नामक ग्रंथ में तन्दुरूस्ती की दृष्टि से आहार के चार भेद बताये हैं, सर्वोत्तम आहार – गोदुग्ध, मध्यम आहार – अन्न, भैस का कठोर दुग्ध, फल, तेल, घी इत्यादि, अधम आहार – कन्दमूल और अधमाधम आहार-माँस मदिरा इत्यादि है।
  58. अलग-अलग प्रकार के नस्लों की गायों के दूध मे अलगअलग प्रकार गुण होते हैं।
  59. ‘गायो विश्वस्यमातर:/- गाय को विश्व की माता का दर्जा दिया गया है। गोदुग्ध को उतना ही लाभदायी और पाचक माना गया है जितना कि माँ का दूध। बालक के जन्म के पूर्व गर्भावस्था में माता यदि गोदुग्ध का सेवन करे तो हृष्ट-पुष्ट एवं मन मस्तिष्क से परिपूर्ण शक्तिशाली बालक को जन्म देती है।
  60. आज के मिलावट के दौर मे आप कोशिश करेकी अपने आखो के सामने दूध दुह कर ले अन्यथा मिलावट की संभावना बढ़ जाएगी और ईसके सेवन से आपका सेहत भी खराब हो जायेगा।
  61. यज्ञ में गाय के घी का उपयोग करने से वायुमण्डल के कीटाणुओं का नाश होता है और शुद्ध वायुमण्डलीय वातावरण का निर्माण होता है। साथ ही हानिकारक आण्विक किरणों का प्रभाव नष्ट होता है।
  62. घी को रोगप्रतिरोधक माना गया है। बीमार पर इसका प्रयोग बीमारी का नाशक है।
  63. गोदुग्ध, दही, घी एवं गोबर, मूत्र को पंचगव्य कहा गया है। पंचगव्य के प्रयोग से मानसिक रोग इत्यादि रोगों से मुक्ति मिलती है। इसका नियमित प्रयोग करने से कोई भी बीमारी नहीं होती है।
  64. वर्तमान वैज्ञानिकों ने गोदुग्ध को मानव शरीर का संपूर्ण भोजन माना है।
  65. विज्ञान के अनुसार गोदुग्ध में मनुष्य के शरीर की समस्त आवश्यकताओं की पूर्ति करने की क्षमता है। उसमे ४.९% शर्करा, ३.७% घी व ११% नाना प्रकार के एसिड है। ३.६% प्रोटीन है जिसमें ल्युसन, ग्लूकेटिक एसिड, टिरोसीन, अमोनिया, फॉस्फोरस आदि २१ पदार्थ सम्मिलित है। ७.५% पौटेशियम, सोडियम इत्यादि ऐसे १७ रसायन हैं।
  66. गोदुग्ध से मानव शरीर में कायाकल्प कर उसके सभी अंगों को पुष्ट बनाकर अन्य अनेक रोगों को नष्ट किया जाता है, कायाकल्प से नया जीवन मिलता है।
  67. यूरोप के कई हिस्सों में सैनिकों को पौष्टिक आहार के लिए गोदुग्ध, घी और अन्य सामग्री रोजाना दी जाती है।
  68. घर में गाय के घी का दीपक जलाने से वातावरण की अशुद्धि दूर होकर वायुमण्डल शुद्ध एवं पवित्र बनता है।
  69. गोदुग्ध में दैवी तत्वों का वास है। गाय के दूध में अधिक से अधिक तेज तत्व है। प्रकृति सात्विक बनती है। व्यक्ति के प्राकृतिक विकार एवं विकृति दूर होती है। असामान्य और विलक्षण बुद्धि आती है।
  70. गाय की पाचन शक्ति श्रेष्ठ है। अगर कोई जहरीला पदार्थ खा लेती है तो उसे आसानी से पचा लेती है, फिर भी उसके दूध में जहर का कोई असर नहीं होता है। डॉ. पिपल्स ने गोदुग्ध पर किए गए परिक्षणों में यह भी पाया कि यदि गायें कोई विषैला पदार्थ खा जाती है तो भी उसका प्रभाव उसके दूध में नहीं आता। इसके शरीर में सामान्य विषों को पचा जाने की अदभुत क्षमता है। अन्य दुग्ध के जानवरों के साथ ऐसा नही है। न्यूयार्क की विज्ञान एकेडमी की एक बैठक में अन्य वैज्ञानिकों ने भी डॉ. पिपल्स के इस कथन की पुष्टि की।
  71. आधुनिक युग की माताएँ अपने बालकों को बिस्किट, चाकलेट, बबलगम, आईस्क्रीम, शीत पेय आदि खिला-पिलाकर उनके अमूल्य जीवन के साथ खिलवाड कर रही हैं। इसके बजाय वह गोदुग्ध से बने व्यंजन खिलायें तो बालक का शारीरिक, मानसिक विकास उत्तम होगा।
  72. गौदुग्ध स्फूर्तिं, तृप्ति, दीप्ति और प्रीति, सात्विकता, सौम्यता, मधुरता, प्रज्ञा और आयुष्य बढ़ाने वाला है। वह पूर्ण रूपेण सर्वमान्य, सर्वप्रिय, अमृततुल्य दुग्धाहार है।
  73. गाय का ताजा दूध तृषा, दाह, थकान, मिटाने वाला और निर्बलता में विशेष उपयोग है।
  74. गोदुग्ध बुखार, सर्दी, मरोड, चर्मरोग, कफ, कृमि, प्रमाद, निद्रा आदि में तो हितकारी है ही, साथ ही वात रोग, पित्त रोग में भी सहायक है।
  75. भारतीय संस्कृति ग्राम संस्कृति है, गो संस्कृति है। गोपालन, गोसंवर्धन, गोरक्षण, गोपूजन और गोदान भारतीयता की पहचान है। कृषि की खोज ने जैसे मानवता को ज्यादा उन्नत किया है वैसे ही गोदुग्ध ने अहिंसा के विकास में अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
  76. काली गाय का दूध त्रिदोष शामक और सर्वोत्तम है। शाम को जंगल से चरकर आई गाय का दूध सुबह के दूध से हल्का होता है।
  77. सद्बुद्धि प्रदान करने वाला गोदुग्ध तुरन्त शक्ति देने वाले द्रव्यों में भी सर्वश्रष्ठ माना गया है।
  78. गोदुग्ध में पी.एच. अम्ल (घनता) और चिकनाहट कम है जो स्वास्थ के लिए लाभदायक है।
  79. गोदुग्ध में २१ एमिनो एसिड है जिसमें से ८ स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत ही उपयोगी है।
  80. गोदुग्ध में २१ सात्विक तत्वों व पाचक तत्वों की प्रचुरता है।
  81. गोदुग्ध में विद्यमान सेरिब्रोसाईडस दिमाग एवं बुद्धि के विकास में सहायक है।
  82. केवल गो दुग्ध में ही स्ट्रोनटाईन तत्व है, जो आण्विक विकारों का प्रतिरोधक है।
  83. केवल गोदुग्ध मे ही रासायनिक अवशेष नहीं के बराबर है जिससे इसके सेवन से कोई विपरीत, हानिकारक असर नहीं होता है।
  84. फॉरमेल विश्वविद्यालय के पशुविज्ञान विशेषज्ञ प्रो. रोनाल्ड गोरायटे ने बताया कि गाय के दुध से रक्त कोशिकाँए रोग निरोधक, प्रोटीन (एम.डी.जी.आई) के कारण नाडी तन्त्र कैन्सर से ग्रस्त होने से बचता है। केन्द्रीय आयुर्वेद अनुसन्धान परिषद के सहायक निदेशक प्रेमकिशोर ने बतलाया कि गोदुग्ध, छाछ आदि से अल्सर, कैन्सर आदि रोगों का इलाज किया जा सकता है।
  85. गोदुग्ध से कोलेस्ट्रोल की वृद्धि नहीं होती है, बल्कि हृदय एवं रत के प्रवाह में आने वाली बाधाओं को दूर करता हैं।
  86. गाय का गरमा गरम दूध पीने से कफ एवं गरम करने के पश्चात ठण्डा करके पिने से पित्त का नाश होता है।
  87. गाय के दूध में उससे आधी मात्रा में पानी मिलाकर वह पानी उड जाए तब तक तपाकर पीने से कच्चे दूध से पचने में ज्यादा हल्का होता है।
  88. जो गाय रात को घर पर बँधती है, उसका दूध सुबह अधिक ठण्डा और पचने में भारी होता है, परन्तु जो गाय रात को भी जंगलो में चरने जाती है उसका दूध पचने में हलका व सहायक होता है।
  89. धर्मग्रंथो के अनुसार गोदुग्ध, घी, दही, शकर और वर्षा के शुद्ध जल से पंचामृत बनाया जाता है। भगवान की प्रतिमा का प्रक्षालन भी इसी पंचामृत के द्वारा किया जाता है।
  90. गाय का दूध अपना सर्वोत्तम दुग्धाहार है। गोदुग्ध से वजन बढ़ता है। गाय का तुरन्त निकाला हुआ ताजा दूध, जितना पचे उतना ही प्रतिदिन पीना चाहिए। दुध के साथ दही, प्याज, लहसुन, उडद, गुड, मूली इत्यादि नहीं खाना चाहिए। साथ ही कोई फल, मॉस, एवं खटाई भी नहीं खाना चाहिए।
  91. भारतीय चिकित्सा परिषद ने न्युनतम २७५ ग्राम दूध की सिफारिश की है। इसमे कम दूध मिलने पर कुपोषण होता है और अनेक रोग होते है।
  92. मानरीगुटिका और मुसलीपाक खाने के बाद गोदुग्ध के सेवन से धातु कमजोरी, नपुंसकता आदि विकार दूर होते है। इसके नियमित सेवन से अपूर्व ताकत एवं वीर्य की वृद्धि होती है। अन्य धातु विकार नष्ट करने में उपयोगी है।
  93. अमेरिका के कृषि विभाग द्वारा प्रकाशित पुस्तक (गोमाता एक आश्चर्यजनक रसायनशाला है) समस्त दुग्धधारी जीवों में गोमाता ही एक ऐसी जीव है, जिसकी आंत १८० फुट लंबी होती है। इसकी विशेषता यह है कि जो चारा ग्रहण करती है उससे जो दुध मे कैरोटीन नामक पदार्थ बनता है, वह भैंस के दूध से दस गुना अधिक होता है।
  94. भारतीय औषधि विज्ञान परिषद के अनुसार गाय के दूध में विटामिन ‘ए’ १०० आई.यू (इन्टरनेशनल युनिट) भैंस के दूध में विटामिन ‘ए’ १४० आई.यू, दूध गरम करने या तपाने के बाद (मावा बनाने तक) मावे में विटामिन ‘ए’ ४०० आई.यू भैस के दूध के मावे में विटामिन कुछ भी नहीं, इसलिये पेडा, गाय के दूध से ही बनाया जाना चाहिए। गाय के घी में विटामिन “ए” 99oo आई.यू भैस के घी में विटामिन “ए” 900 आई.यू होती है। (नैडेप काका)
  95. जलोदर के रोगी को पानी पीना सख्त मना है वह सिर्फ गाय का दूध पीकर रहे तो रोग में सुधार होता है।
  96. गाय की रीढ़ में ‘सूर्यकेतु’ नामक नाडी होती है जो सूर्य के प्रकाश में जाग्रत होती है, इसलिए गाय सूर्य के प्रकाश में रहना पसंद करती हैं, भैंस छाया में रहती है। सूर्यकेतु नाडी के जागृत होने से स्वर्ण के रंग का वह एक पदार्थ छोडती है। इसी कारण गाय के दूध का रंग पीला होता है और घी ‘स्वर्ण’ के रंग का होता है जो सर्वरोगनाशक और विष विनाशक होता है।
  97. अमेरिकन पत्र ‘फिजीकल कल्चर’ के संपादक और प्रसिद्ध दुग्धाहार चिकित्सक बनार मेफेडर का कथन है कि इस जगत में गाय के दूध से बने मक्खन के समान सर्वगुणसम्पन्न पौष्टिक खाद्य पदार्थ कोई दुसरा नहीं है।
  98. किशमिश और मनुका के पाँच-पाँच दाने गोदुग्ध में ओटकर रोगी को सुबह-सुबह पिला दें। मलेरिया पुराना हो तो १० ग्राम सौंठ चुर्ण भी डाल दें, मलेरिया भाग जाएगा एवं यदि ४०० ग्राम दूध को उबाला जावे और ऑकडे (आंक) पौधे की अंगूठे जितनी मोठी हिलाने योग्य हरी लकडी से दूध को हिलाया जाता रहे तो कुछ समय में दूध फट जाएगा। उस फटे दुध को इतने समय तक हिलावे कि पानी का संपूर्ण अंश समाप्त हो जावे और खोवा (मावा) तैयार हो जावे, तब उसमें शकर उचित मात्रा में मिलाकर खाने योग्य ठंडा कर रोगी को बुखार उतर जाने पर खिलाएँ। मलेरिया से हमेशा के लिए छुटकारा मिल जावेगा।
  99. गाय का संदर्भ भारतीय नस्ल से है जिसको कंधा और गलकंबल है) भारतीय नस्ल की गाय के एक सेंटीमिटर स्केअर में रोमकूप (रोमग्रंथि) १६०० होती है, जबकि विदेशी गाय में ६०० है। धुप में देशी गाय रह सकती है, विदेशी गाय नहीं। देशी गाय में दूध के रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है। अर्थात् उपार्जित धन का एक उचित भाग दान किए बिना केवल अपने लिए उपभोग पाप का भोग है। इस पाप से मुक्ति के लिए गाय की सेवा (गोपालन, गोसरंक्षण, गोसवंर्धन) सर्वोत्कृष्ट सहज सर्वसुलभ साधन है।
  100. गाय का दूध स्वादिष्ट, रुचिकर, स्निग्ध, शक्तिप्रद, अति पथ्य, कांतिकारक, बुद्धी प्रज्ञा, मेधा, कफ, तुष्टि, पुष्टि, वीर्य और शुक्र की वृद्धि करने वाला, वयस्थापक, रसायन, गुरू, पुसत्वप्रद, मीठा और वात, मूत्रकच्छ, गुल्म, अर्श, प्रवाहिका, पांडू, शूल, उदर अम्लपित्त, क्षयरोग, अतिश्रम, विषमाग्नि, गर्भपात, योनिरोग, नेत्ररोग और वातरोग का नाश करता है। काली गाय का दूध तो खास करके वात का नाश करता है; लाल और चितकबरी की गाय का दूध खासतौर से वातनाशक है। पीली गाय का दूध वातपित्त का नाश करता है। श्वेत गाय का दूध विशेष करके कफप्रद है। शिशु बछडे की माता का दूध तीनों दोष (वात, पित, कफ) का नाशकर्ता है; खली और सनी खानेवाली गाय का दूध कफप्रद है ओर कडबा घास आदि खाने वाली गाय का दूध सभी रोगों पर लाभप्रद है। जवान गाय का दूध मधुर, रसायन और त्रिदोषनाशक है।
  101. दिव्य शक्ति वाला बचा पाना आसान है – गोमाता की कृपा से। गर्भ धारण करने वाली महिला को चाँदी की कटोरी में देशी गाय के दूध का दही जमाकर खिलाएँ। १ माह तक दिव्य शक्ति वाला बालक जन्म लेगा।
    साँच कहूँजग मारन धावे, झूटा जगपतियाय।
    गली-गली गोरस बिके, मदिरा बैठ बिकायां।
    जननी जनकर दूध पिलाती, केवल सालछमाही भर
    गोमाता पय सुधा पिलाती, रक्षा करती जीवन भर
    माता रुद्राणां दुहिता वसूनांस्वसादित्यानां अमृतस्य नाभिः ।
  • ऋग्वेद १०१/१५
    अर्थात् – गाय रूद्रों की माता, वसुओं की पुत्री और आदित्यों की भगिनी है और इसकी नाभि में अमृत है।
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सर्वेदेवाः स्थिता देहे सर्वदेवमयी हिगौः।
-विष्ण धर्मोत्तर
गाय के शरीर में सभी देवताओं का निवास है, अत: गाय सर्वदेवमयी है।

यज्ञ शिष्टासिन सन्तोमुच्चन्ते सर्वं किल्विशैः।
भुञ्जन्ते ते त्वद्यं पापा ये पञ्चयन्ति आत्मकारणात।
गोदुग्ध –
आयुर्वेद में वर्णित श्रीराष्टक (आठ प्रकार के दुध) में गोदुग्ध सर्वप्रथम और सर्वश्रेष्ठ है। अष्ट दुग्ध इस प्रकार है –
गव्यं महिषमानंच कारभं स्त्रैणमाविकम्।
ऐभ मैकशफं चेति क्षीरमष्टीवर्धमतम्।
— योग रत्नाकर दुग्धगुणा: /४

केवलदुग्ध शब्द का जहाँ भी उल्लेख आया हो वहाँ गोदुग्ध ही मानना चाहिए ऐसा भिशम्बर मानते हैं।
“गोक्षीरं मधुरं शीतं गुरू स्निग्धं रसायनम्।
बृहणं स्तन्य कृद्वह्यं जीवनं वातपित्तनुत।”

  • योग रत्नाकर–दुग्धगुणा:/३

‘ठहर गया विद्यासागर नर्मदा के तीर
स्वयं नर्मदा बोल उठी ये इस युग के महावीर
दूध की नदियां लोप हो गई
धरा खून से लाल-लाल,
कृष्ण कन्हैया की गैया भी,
हो गई आज यहां हलाल,
पशु मांस खाने वाला क्या,
इंसानों को खायेगा?’

टीका –उपरोक्त सभी तथ्य विभिन धर्म ग्रंथो ,पुस्तकों तथा पत्रिकाओ से संकलित कियागया है । ये जरूरी नहीं है की ये सारे तथ्य आज के वैज्ञानिक विचार /तथ्य के कशौटी पर सत प्रतिशत खरा उतरे ।

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