क्रायलर मुर्गी पालन
क्रायलर मुर्गी संकर (हाइब्रिड) नस्ल की रंग बिरंगी व लुभावनी मुर्गी है। जो कि देशी मुर्गी से चार गुना अधिक मांस व अण्डा उत्पादन देती है। क्रायलर मुर्गी की मृत्यु दर कम होती है तथा घरेलू परिस्थितियों में कम लागत में आसानी से पाली जा सकती है। इसकी विशेषता यह है कि इसमें बीमारी से लड़ने की क्षमता वर्तमान में मौजूद सभी कामर्शियल नस्लों से बहुत ज्यादा है। इस कारण इसमें मृत्यु दर अत्यन्त न्यून है तथा इसे बैकयार्ड कुक्कुट पालन के रूप में किचन वेस्ट एवं अनुपयोगी कृषि उत्पाद पर आसानी से पाला जा सकता है, रंगीन होने के कारण इसे किसानों द्वारा अधिक पसन्द किया जाता है। क्रायलर मुर्गी हाइब्रिड होने के कारण तेजी से बढ़ती है एवं 60 दिन में 1 किग्रा. वजन हो जाता है, जबकि देशी मुर्गी 240 दिन में 1 किग्रा. वजन प्राप्त करती है। देशी मुर्गी 1 वर्ष में 40-50 अण्डे देती है। जबकि क्रायलर 1 वर्ष में 150-200 अण्डे देती है।
क्रायलर पक्षी की विशेषतायें
क्रायलर पक्षियों में निम्न प्रमुख विशेषतायें पाई जाती हैं-
- रोग प्रतिरोधी क्षमता काफी विकसित होने के कारण इस पक्षी में बीमारी से लड़ने की क्षमता बहुत अधिक होती है।
- यह ब्रायलर पक्षी के बराबर ही राशन खाकर 60 दिनों में एक किग्रा वजन प्राप्त कर लेता है।
- इसकी बढ़वार ब्रायलर से कुछ धीमी होने के कारण इसकी पोषण आवश्यकतायें कम होती हैं, तथा कुपोषण सम्बन्धी बीमारी भी कम होती हैं और यह आसानी से छोटे पैमाने पर बैकयार्ड पोल्ट्री के रूप में मक्का, गेहूं रसोई अवशेषों पर पाला जा सकता है।
- क्रायलर पक्षी देर से तैयार होने पर भी लाभप्रद रहता है, इसका विक्रय मूल्य (एक किग्रा वजन होने पर) रंगीन होने के कारण ब्रायलर पक्षी से अधिक है।
- क्रायलर चूजे की दर रू0 35.00 है जबकि ब्रायलर चूजे की कीमत क्रायलर से अधिक होती है।
- पर्वतीय क्षेत्रों के निवासियों द्वारा इसका मांस अत्यधिक पसंद किया जाता है, अतः उत्पादन होने पर इसकी मांग एवं तैयार माल (एक किग्रा होने पर) के मूल्य में वृद्धि होने की प्रबल संभावना है।
- क्रायलर मांस एवं अण्डा दोनों के उत्पादन हेतु भी पाला जा सकता है। यह लगभग 5 माह बाद अण्डा उत्पादन शुरू कर देता है तथा वर्ष में 220 अण्डे तक देने की क्षमता रखता है।
स्थान की आवश्यकता
क्रम संख्या | उम्र (सप्ताह में) | स्थान (स्क्वायर फिट प्रति चूजा) |
1 | 1 | 0.25 |
2 | 2 | 0.35 |
3 | 3 | 0.50 |
4 | 4 | 0.60 |
5 | 5 | 0.75 |
6 | 6 | 1.00 |
तापमान की आवश्यकता
क्रम संख्या | उम्र (सप्ताह में) | तापमान |
1 | 1 | 95 डिग्री फारेन हाईट (35 डिग्री सेन्टीग्रेट) |
2 | 2 | 90 डिग्री फारेन हाईट (33 डिग्री सेन्टीग्रेट) |
3 | 3 | 85 डिग्री फारेन हाईट (31 डिग्री सेन्टीग्रेट) |
यदि चूजे गर्मी के स्रोत के नजदीक हैं तो इसका अर्थ यह है कि उन्हें ठण्ड लग रही है एवं तापमान बढ़ाने की आवश्यकता है, यदि चूजे गर्मी के स्रोत से दूर हैं तो इसका अर्थ यह है कि उन्हें गर्मी लग रही है अतः तापमान घटाने की आवश्यकता है। चूजे कमरे में चारों तरफ बराबर रूप से फैले होने चाहिए, गर्मी देने के लिए बल्ब, हीटर, पेट्रोमैक्स, स्टोव, बुखारी, आटोमैटिक ब्रूडर एवं गैस ब्रूडर इस्तेमाल किया जा सकता है।
टीकाकरण
क्रम संख्या | उम्र | वैक्सीन का नाम / मात्रा |
1 | सातवें दिन | लीची डिजीज / 0.2 एम०एल०/खाल में |
2 | बारहवें दिन | गमबोरो डिजीज / पीने के पानी में |
टीकाकरण की समय सारणी स्थानीय बीमारियों के आधार पर बनायी जाती है। उक्त सारणी मांस हेतु पाले जाने वाले क्रायलर के लिए हैं।
दवापान कार्यक्रम
उम्र | दवा का नाम एवं मात्रा |
1 से 2 दिन तक | इलेक्ट्रोलाईट १ ग्राम प्रति लीटर पानी में। |
3 से 6 दिन तक | इनरोसिन/कान्सीफलाक्स/इनरॉक्स १ एम०एल० प्रति लीटर पानी में, 24 घण्टे के पानी में। बी० काम्पलैक्स १0 एम०एल० प्रति १00 चूजों पर, दिन में एक बार के पानी में। विमिरोल/कान्सीटोन/फेमीटोन ५ एम०एल० प्रति १00 चूजों पर दिन में एक बार के पानी में। |
द्वितीय सप्ताह | बी० काम्पलेक्स १0 एम०एल० प्रति १00 चूजों पर, दिन में एक बार के पानी में ३ दिन तक। |
तृतीय सप्ताह | लीवर टॉनिक १0 एम०एल० प्रति १00 चूजों पर, दिन में एक बार के पानी में ३ दिन तक |
चतुर्थ सप्ताह | कैल्सियम सप्लीमेन्ट २0 एम०एल० प्रति १00 चूजों पर, दिन में एक बार के पानी में ३ दिन तक। |
अन्य सावधानियाँ
- वेन्टीलेशन कम होने पर सांस की बीमारी हो सकती है, अतः चारो तरफ जालीदार कमरा बनायें, चूजों को 15 दिन बाद ठण्ड से ज्यादा नुकसान नहीं होगा जितना कि हवा की कमी से होगा।
- बिछावन की भूसी की रोज गुड़ाई करें ताकि अमोनिया गैस न बनने पाये, भूसी को समय-समय पर सुखाते रहें एवं अधिक गोला होने पर चूने का छिड़काव करें।
- चूजों में एक दूसरे को काटने की समस्या होने पर चोंच को गरम प्लेट से दाग दें तथा 1 से 2 ग्राम इलैक्ट्रोलाईट प्रति लीटर पानी में प्रत्येक सप्ताह में एक दिन दें।
किसी भी प्रकार की बीमारी होने पर इनरोसिन 3 दिन तक, बी० कॉम्पलैक्स एवं विमेरॉल के साथ दें, खूनी दस्त होने पर एम्प्रोलियम पाउडर। ग्राम प्रति लीटर पानी में सात दिन तक दें, सांस की बीमारी होने पर टाईमोटिन के साथ इनरोसिन नामक दवा का प्रयोग करें। नये चूजे डालने से पहले कमरे को कीटाणु रहित करने के लिए कमरे को हवादार करके किसी बर्तन में 50 एम०एल० फारमेलिन, 40 ग्राम पोटास मिलाकर कमरे में रखकर 24 घण्टे तक कमरा बन्द रखें।
डॉ अंकित कुमार , पशुचिकित्साधिकारी ,पशुपालन विभाग अल्मोड़ा, उत्तराखंड पिन–263601 मोबाईल नंबर– 7533888874 ईमेल– anksvety@gmail.com