दीपक
आ गई संध्या की बेला ,
शोक ने सूरज को घेरा ।
अस्तगामी हूँ , मगर —–
कौन जग आलोकित करेगा ?
कैसे जग तम में रहेगा ??
चाँद , तारे थे गगन में ,
पर सभी चुपचाप बैठे ।
थीं दिशाएं मौन , ले संताप बैठे।
टिमटिमाता दीप इक आगे बढ़ा ,
नत होके बोला —–
हैं मेरे कमजोर कंधे ,
पर डाल दो ये भार भारी,
हे प्रभु ! मेरे ही कंधे ।
सिमित शक्ति है मेरी ,
पर ऊँचा मनोबल ।
रात है विकराल काली
मगर हो तेरा संबल ;
प्रलय की आन्धियो में भी
प्रभु जलता रहूंगा ।
जब तलक है सांस ,
तम हरता रहूं गा ।
लोकहित की कामना मेरा प्रभु है,
शुद्ध भी अंतःकरण मेरा प्रभु है ।
पाऊँ अगर फिर जन्म ,
धरती पर हो आना ;
कृपा करना हे प्रभु!
“जागृति ” को दिया ही बनाना ।
—–डा जे पी सिंह “जागृति “
संयुक्त निदेशक पशुपालन विभाग बिहार (सेवा निवृत्त )
नत = झुकना
तम = अंधकार