देसी गाय पालन एक उन्नत व्यवसाय: संपूर्ण जानकारी
देसी नस्ल की गाय की सम्पूर्ण जानकारी
गायपालन एक उन्नत व्यवसाय है,इसे बड़े या छोटे दोनों पैमाने पर किया जा सकता है। भारतीय अर्थव्यवस्था में पशुधन एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- यह स्वरोजगार का एक साधन है,
- करीब 16% लघु किसानों का आमदनी का स्रोत पशुपालन है।
- पशुपालन 8.8% रोजगार प्रदान करती है
- यह 4.11% जीडीपी में योगदान देती है।
बाजार में दूध तथा इससे बनी चीजों की मांग तेजी से बढ़ती जा रही है।इसका इस्तेमाल चाय से लेकर घरेलू पकवान तथा घी,दही,मख्खन,पनीर, मिठाई तथा दवाई के रूप में किया जाता है। गाय का दूध अत्यधिक पौष्टिक तथा सुपाच्य होता है। शिशुओं के विकास के लिए गाय का दूध महत्वपूर्ण होता है।
इन दिनों गौपालन के क्षेत्र में नई नई वैज्ञानिक खोजें की गई है। जिससे कम मेहनत में अधिक लाभ कमा सकते हैं। साथ ही बाछा बाछी को बेच कर अतिरिक्त लाभ कमाया जा सकता है साथ ही गोबर के विभिन्न उपयोग है जैसे जलावन,गोबर गैस प्लांट,गोबर खाद (जो की ऑर्गेनिक खेती का सबसे महत्वपूर्ण अंग है) इत्यादि।
भारत प्राचीन काल से ही एक कृषि प्रधान देश रहा है और देसी गाय युगों से भारतीय जीवन शैली का हिस्सा होने के साथ-साथ अर्थव्यवस्था की रीढ़ रही है. गाय का दूध और दुग्ध उत्पाद बहुसंख्यक भारतीय आबादी के लिए प्रमुख पोषण स्रोत हैं. देसी गाय का दूध A2 प्रकार का दूध है जो शिशुओं और वयस्कों में मधुमेह से लड़ने में मदद करता है और यहां तक कि वैज्ञानिकों ने भी इस तथ्य को स्वीकार किया कि यह विदेशी गायों के दूध से बेहतर है. जब उर्वरक और ट्रैक्टर अज्ञात थे, गाय संपूर्ण कृषि को बनाए रखने वाला एकमात्र स्रोत था. गायों के बिना कृषि संभव नहीं थी. गायों ने गोबर की खाद के रूप में उर्वरकों का स्रोत प्रदान किया, जबकि बैलों ने जमीन की जुताई तथा कृषि उत्पादों के परिवहन में मदद करी. वर्तमान समय में भारवहन तथा कृषि संबंधी उद्देश्यों के लिए गाय के उपयोग में कमी आई है लेकिन गाय का दूध और दुग्ध उत्पाद किसानों के आय का प्रमुख स्रोत बने हुए हैं. दवाओं के निर्माण के लिए गोमूत्र का उपयोग बढ़ गया है तथा कारणस्वरूप देसी गाय पालन लाभदायक साबित हो रहा है.
सदियों से खेती और गौपालन का चोली-दामन का रिश्ता रहा है, क्योंकि गौवंश के उत्पाद जितना इंसानों के लिए उपयोगी हैं उससे ज़्यादा खेती के लिए ज़रूरी हैं। मशीनीकरण के मौजूदा दौर में खेती-किसानी की गतिविधियों में गौवंश और ख़ासकर बैल की हिस्सेदारी घटती जा रही है, लेकिन गाय का दूध और अन्य उत्पाद अब भी पशुपालक किसानों की जीविका और कमाई का अहम ज़रिया बना हुआ है।
गौपालन को जैविक खेती का अभिन्न अंग माना गया है। इसकी वजह से कीटनाशक के रूप में गोमूत्र की माँग और उपयोग भी ख़ासा बढ़ा है और देसी नस्लों के गौवंश को पालना लाभदायक साबित हुआ है। यही वजह है कि देश की कुल गायों में से तीन-चौथाई यानी करीब 15 करोड़ गायें देसी नस्लों की हैं, वो भी तब जबकि भारतीय पशुधन की करीब 55 करोड़ आबादी में से एक-तिहाई (करीब 36 फ़ीसदी यानी 20 करोड़) ही गायें हैं।
मौजूदा दौर में प्रगतिशील किसानों का देसी गायों की डेयरी के प्रति रुझान भी लगातार बढ़ रहा है, क्योंकि देसी नस्लों की गायें पालने में लागत के मुकाबले ख़ासी कमाई होती है। भौगोलिक विविधताओं की वजह से भारत में देसी गायों की कम से कम 26 उम्दा नस्लों को उन्नत माना जाता है। फिर अलग-अलग नस्लों की खूबियों के आधार पर देसी गायों की दुनिया को भी तीन वर्गों में बाँटा गया है। इसीलिए यदि गौ-पालक अपनी ज़रूरतों के मुताबिक, देसी गायों की उपयुक्त नस्ल का चुनाव करें तो उन्हें बेहतर आमदनी मिल सकती है।
दुधारू – इस नस्ल की देसी गायें अधिक दूध देने वाली होती हैं। गिर, लाल सिन्धी, साहीवाल और देओनी नस्लों को दुधारू वर्ग में अग्रणी माना गया है।
ड्राफ्ट – दुधारू के मुकाबले ड्राफ्ट वर्ग की नस्लों वाली देसी गायें दूध तो कम देती हैं, लेकिन इसके बैल ज़्यादा बलिष्ठ होते हैं। इनकी वजन ढोने क्षमता ज़ोरदार होती है। नागोरी, मालवी, केलरीगढ़, अमृतमहल, खिलारी, सिरी आदि ऐसी देसी नस्लें हैं जिन्हें ड्रॉफ्ट वर्ग में रखा गया है।
दोहरे उद्देश्य वाली – ये देसी गायों की ऐसी नस्लें हैं जो दूध उत्पादन और भार-वहन क्षमता दोनों में उम्दा होती हैं। इसीलिए इन्हें दोहरे उद्देश्य वाली नस्लें कहा गया। इस वर्ग में हरियाणा, ओंगोल, थारपारकर, कंकरेज आदि नस्लों का प्रमुख स्थान है।
भारत की देसी गायों की नस्लें
भारत की कुल पशुधन जनसंख्या 535.78 मिलियन है जिसमे कुल गायों की संख्या 192.49 मिलियन है. इनमें से देसी गाय की संख्या 142.11 मिलियन हैं. हालाँकि वर्तमान में अधिकांश देसी गाय वर्णनातीत (नॉन डेस्क्रिप्ट) हैं, लेकिन भारत में गाय की 26 अच्छी नस्लें मौजूद हैं. देसी गाय को दुधारू, ड्राफ्ट और दोहरे उद्देश्य वाली नस्लों में वर्गीकृत किया जा सकता है. दुधारू नस्लों की गाय अधिक दूध देने वाली होती हैं. ऐसी नस्लों के उत्कृष्ट उदाहरण गिर, सिंधी, साहीवाल और देओनी हैं. दोहरे उद्देश्य वाली नस्लें दूध देने की क्षमता के साथ-साथ भारवहन क्षमता में भी अच्छी होती हैं. हरियाना, ओंगोल, थारपारकर, कंकरेज आदि दोहरी उद्देश्य नस्लें हैं. इसी तरह, ड्राफ्ट नस्ल की गायें कम दूध देने वाली होती हैं, लेकिन बैल शानदार भारवहन क्षमता वाले होते हैं. इसके उदाहरण नागोरी, मालवी, केलरीगढ़, अमृतमहल, खिलारी, सिरी, इत्यादि हैं.
भारत की देसी गाय की नस्लें और उनकी जानकारी
भारत समृद्ध जैव-विविधता युक्त बड़ी देशी गोवंशीय आबादी वाला देश है । यहां गाय की 50 तथा भैंसों की 17 सुपरिभाषित नस्लें हैं । कठोर जलवायु परिस्थितियों में स्व-अनुकूलन के कारण जीवित रहना, खराब गुणवत्ता वाले आहार एवं चारे पर उत्पादन की योग्यता, रोगों के प्रति प्रतिरोधक दक्षता इत्यादि गुणों के कारण कई पीढ़ियों में इन नस्लों का विकास हुआ है । कुछ देशी नस्लों के वयस्क नर पशु अपने भारवाही गुणों के लिए जाने जाते हैं । इस प्रकार ये देशी नस्लें हमारे वर्तमान कृषि जलवायु परिस्थितियों के अनुकूल हैं और उनमें गर्म जलवायु में होने वाले रोगों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता उपलब्ध है और वे कम एवं खराब गुणवत्ता के आहार तथा चारा संसाधनों पर जीवित रह सकती हैं और दूध का उत्पादन कर सकती हैं । इन नस्लों में से कुछ नस्लें अपने अधिक दूध और फैट (वसा) उत्पादन के लिए जानी जाती है । हालांकि चयन के अभाव में समय के साथ इन पशुओं की उत्पादन क्षमता कम हो गई है।
इस प्रकार की नस्लों की संख्या में कमी का प्रमुख कारण इनकी उत्पादकता में कमी का आना है जो कि किसानों के लिए लाभकर नहीं है । इसलिए दूध के उत्पादन हेतु इन नस्लों की आनुवंशिक क्षमता में वृद्धि करने में ही इसका समाधान निहित है । इस दिशा में व्यवस्थित प्रयासों से न केवल इन नस्लों की उत्पादकता बढ़ेगी, बल्कि इससे उनकी पुन: हानि को भी रोका जा सकेगा ।
इनके द्वारा गाय-भैंसों की हमारी देशी नस्लों की उत्पादकता में वृद्धि होने की संभावना है ।
भारत में गायों को देवताओं का स्वरूप माना जाता है, और उनकी पूजा की जाती है यह तो आप जानते ही होंगे, पर भारत में कितने प्रकार की गायों की नस्लें हैं वह आप नहीं जानते होंगे, तो अभी हम गाय की नस्ल की जानकारी लेंगे।
भारत में गाय की नसलें:
क्रम सं. | नस्ल | प्रजनन क्षेत्र |
मुख्य उपयोग |
1 | अमृतमहल | कर्नाटक | परिवहन और भारवहन |
2 | बाचौर | बिहार | भारवहन |
3 | बद्री | उत्तराखंड | दूध और भारवहन |
4 | बारगुर | तमिलनाडु | भारवहन |
5 | बेलाही | हरियाणा और चंडीगढ़ | दूध और भारवहन |
6 | बिंझारपुरी | ओड़िशा | दूध और भारवहन |
7 | डागरी | गुजरात | भारवहन |
8 | डांगी | महाराष्ट्र और गुजरात | भारवहन |
9 | देवनी | महाराष्ट्र और कर्नाटक | दूध और भारवहन |
10 | गंगातीरी | बिहार और
उत्तर प्रदेश |
दूध और भारवहन |
11 | गावलावो | महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश | दूध और भारवहन |
12 | घुमसारी | ओड़िशा | भारवहन |
13 | गिर | गुजरात | दूध |
14 | हल्लिकर | कर्नाटक | भारवहन |
15 | हरियाना | हरियाणा | दूध और भारवहन |
16 | हिमाचली पहाड़ी | हिमाचल प्रदेश | दूध और भारवहन |
17 | कांगेयम | तमिलनाडु | भारवहन |
18 | कांकरेज | गुजरात और राजस्थान | दूध और भारवहन |
19 | केंनकाथा | उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश | भारवहन |
20 | खरियार | ओड़िशा | भारवहन |
21 | खैरीगढ़ | उत्तर प्रदेश | भारवहन |
22 | हिल्लार | महाराष्ट्र और कर्नाटक | भारवहन |
23 | कोकन कपिला | महाराष्ट्र | भारवहन |
24 | कोसाली | छत्तीसगढ़ | भारवहन |
25 | कृष्णा वैली | कर्नाटक और महाराष्ट्र | भारवहन |
26 | लद्दाखी | जम्मू-कश्मीर | भारवहन |
27 | लखीमी | आसम | दूध और भारवहन |
28 | मालनाद गिद्दा | कर्नाटक | भारवहन |
29 | मालवी | मध्य प्रदेश | भारवहन |
30 | मेवाती | राजस्थान, हरियाणा और उत्तर प्रदेश | भारवहन |
31 | मोटू | ओड़िशा | भारवहन |
32 | नागौरी | राजस्थान | भारवहन |
33 | नारी | गुजरात और राजस्थान | दूध और भारवहन |
34 | निमाड़ी | मध्य प्रदेश | भारवहन |
35 | ओंगोल | आंध्र प्रदेश | दूध और भारवहन |
36 | पोनवार | उत्तर प्रदेश | भारवहन |
37 | पोडा थिरूपू | तेलंगाना | दूध और भारवहन |
38 | पुलिकुलम | तमिलनाडु | भारवाहन एवं खेल (जल्लीकट्टू) |
39 | पुंगनूर | आंध्र प्रदेश | दूध और भारवहन |
40 | पूर्णिया | बिहार | दूध और भारवहन |
41 | राठी | राजस्थान | दूध |
42 | रेड कंधारी | महाराष्ट्र | भारवहन |
43 | रेड सिंधी | उड़ीसा, तमिलनाडु, बिहार, केरल और असम | दूध |
44 | साहीवाल | पंजाब और राजस्थान | दूध |
45 | श्वेत कपिला | उत्तर और दक्षिण गोवा | दूध |
46 | सिरी | सिक्किम और पश्चिम बंगाल | भारवहन |
47 | थारपारकर | गुजरात और राजस्थान | दूध और भारवहन |
48 | थुथो | नागालैंड | भारवहन और मांस |
49 | अम्बलाचेरी | तमिलनाडु | भारवहन |
50 | वेचूर | केरल | दूध और खाद |
(स्रोतः एनबीएजीआर; http://14.139.252.116/agris/breed.aspx)
भारत में भैंस की नस्लें :
क्र.सं. | नस्ल | प्रजनन क्षेत्र | मुख्य उपयोग |
1 | बन्नी | गुजरात | दूध |
2 | बारगुर | तमिलनाडु | दूध और खाद |
3 | भदावरी | उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश | दूध और भारवहन |
4 | छत्तीसगढ़ी | छत्तीसगढ़। | भारवहन, दूध और मांस |
5 | चिलिका | ओड़िशा | भारवहन और दूध |
6 | गोजरी | हिमाचल प्रदेश और पंजाब | दूध और भारवहन |
7 | जाफराबादी | गुजरात | दूध और भारवहन |
8 | कालाहांडी | ओड़िशा | दूध और भारवहन |
9 | ल्यूट (स्वैम्प) | असम | दूध और भारवहन |
10 | मराठवाड़ी | महाराष्ट्र | दूध और भारवहन |
11 | मेहसाना | गुजरात | दूध |
12 | मुर्रा | हरियाणा और दिल्ली | दूध |
13 | नागपुरी | महाराष्ट्र | दूध और भारवहन |
14 | नीली रावी | पंजाब | दूध |
15 | पंढरपुरी | महाराष्ट्र | दूध |
16 | सुरती | गुजरात | दूध और भारवहन |
17 | टोडा | तमिलनाडु | भारवहन |
(स्रोतः एनबीएजीआर; http://14.139.252.116/agris/breed.aspx)
ये हैं भारत की देसी गाय की नस्लें
साहिवाल गाय
साहिवाल गाय की फोटो
साहीवाल नस्ल की गायों का सिर चौड़ा उभरा हुआ, सींग छोटी और मोटी, तथा माथा मझोला होता है। भारत में ये राजस्थान के बीकानेर,श्रीगंगानगर, पंजाब में मांटगुमरी जिला और रावी नदी के आसपास लायलपुर, लोधरान, गंजीवार आदि स्थानों में पाई जाती है। ये भारत में कहीं भी रह सकती हैं। एक बार ब्याने पर ये 10 महीने तक दूध देती रहती हैं। दूध का परिमाण प्रति दिन 10-20 लीटर प्रतिदिन होता है। इनके दूध में मक्खन का अंश पर्याप्त होता है। इसके दूध में वसा 4 से 6% पाई जाती है।
(पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तरप्रदेश, बिहार)
रेड सिंधी गाय
रेड सिंधी गाय की फोटो
इनका मुख्य स्थान सिंध का कोहिस्तान क्षेत्र है। बिलोचिस्तान का केलसबेला इलाका भी इनके लिए प्रसिद्ध है। इन गायों का वर्ण बादामी या गेहुँआ, शरीर लंबा और चमड़ा मोटा होता है। ये दूसरी जलवायु में भी रह सकती हैं तथा इनमें रोगों से लड़ने की अद्भुत शक्ति होती है। संतानोत्पत्ति के बाद ये 300 दिन के भीतर कम से कम 2000 लीटर दूध देती हैं।
(सिंध का कोहिस्तान, बलूचिस्तान)
कांकरेज गाय
कांकरेज गाय
कच्छ की छोटी खाड़ी से दक्षिण-पूर्व का भूभाग, अर्थात् सिंध के दक्षिण-पश्चिम से अहमदाबाद और रधनपुरा तक का प्रदेश, काँकरेज गायों का मूलस्थान है। वैसे ये काठियावाड़, बड़ोदा और सूरत में भी मिलती हैं। ये सर्वांगी जाति की गाए हैं और इनकी माँग विदेशों में भी है। इनका रंग रुपहला भूरा, लोहिया भूरा या काला होता है। टाँगों में काले चिह्न तथा खुरों के ऊपरी भाग काले होते हैं। ये सिर उठाकर लंबे और सम कदम रखती हैं। चलते समय टाँगों को छोड़कर शेष शरीर निष्क्रिय प्रतीत होता है जिससे इनकी चाल अटपटी मालूम पड़ती है। केंद्रीय गोवंश अनुसंधान संस्थान में गाय पर शोध करने वाले वैज्ञानिकों के अनुसार कांकरेज गाय किसानों की आमदनी कई गुना बढ़ा सकती है।
(कच्छ की छोटी खाड़ी से दक्षिण-पूर्व का भू-भाग)
मालवी गाय
मालवी गाय
ये गायें दुधारू नहीं होतीं। इनका रंग खाकी होता है तथा गर्दन कुछ काली होती है। अवस्था बढ़ने पर रंग सफेद हो जाता है। ये ग्वालियर के आस-पास पाई जाती हैं।
मालवी प्रजाति के बैलों को खेती के लिए और सड़कों पर गाड़ी खींचने के लिए किया जाता है।
(मध्यप्रदेश, ग्वालियर)
नागौरी गाय
नागौरी गाय
इनका प्राप्तिस्थान जोधपुर के आस-पास का प्रदेश है। ये गायें भी विशेष दुधारू नहीं होतीं, किंतु ब्याने के बाद बहुत दिनों तक थोड़ा-थोड़ा दूध देती रहती हैं।
इस प्रजाति की गाय राजस्थान के नागौर जिले में पाई जाती है।
(जोधपुर के आसपास)
थारपारकर गाय
थारपारकर गाय
ये गायें दुधारू होती हैं। इनका रंग खाकी, भूरा, या सफेद होता है। कच्छ, जैसलमेर, जोधपुर, बीकानेर और सिंध का दक्षिणपश्चिमी रेगिस्तान इनका प्राप्तिस्थान है। इनकी खुराक कम होती है ओर इसका दूध 10 से 16 लीटर प्रतिदिन तक होता है।
पोंवर गाय
पोंवर गाय
पीलीभीत, पूरनपुर तहसील और खीरी इनका प्राप्तिस्थान है। इनका मुँह सँकरा और सींग सीधी तथा लंबी होती है। सींगों की लबाई 12-18 इंच होती है। इनकी पूँछ लंबी होती है। ये स्वभाव से क्रोधी होती है और दूध कम देती हैं।
(पीलीभीत, पूरनपुर तहसील और खीरी)
भगनाड़ी गाय
नाड़ी नदी का तटवर्ती प्रदेश इनका प्राप्तिस्थान है। ज्वार इनका प्रिय भोजन है। नाड़ी घास और उसकी रोटी बनाकर भी इन्हें खिलाई जाती है। ये गायें दूध खूब देती हैं।
(नाड़ी नदी का तटवर्ती प्रदेश)
दज्जल गाय
भगनारी नस्ल का दूसरा नाम ‘दज्जल नस्ल है। इस नस्ल के पशु पंजाब के ‘दरोगाजी खाँ जिले में बड़ी संख्या में पाले जाते हैं। कहा जाता है कि इस जिले के कुछ भगनारी नस्ल के सांड़ खासतौर पर भेजे गये थे। यही कारण है कि ‘दरोगाजी खाँ में यह नस्ल काफी पायी जाती है। इस नस्ल की गाय में अधिक दूध देने की क्षमता होती है।
(पंजाब के डेरा गाजी खां जिला)
गावलाव गाय
गावलाव गाय
दूध साधारण मात्रा में देती है। प्राप्तिस्थान सतपुड़ा की तराई, वर्धा, छिंदवाड़ा, नागपुर, सिवनी तथा बहियर है। इनका रंग सफेद और कद मझोला होता है। ये कान उठाकर चलती हैं।
(सतपुड़ा की तराई, वर्धा, छिंदवाड़ा, नागपुर, सिवनी तथा बहियर)
हरियाना गाय
हरियाना गाय
ये 8-12 लीटर दूध प्रतिदिन देती हैं। गायों का रंग सफेद, मोतिया या हल्का भूरा होता हैं। ये ऊँचे कद और गठीले बदन की होती हैं तथा सिर उठाकर चलती हैं। इनका प्राप्तिस्थान रोहतक, हिसार, सिरसा, करनाल, गुडगाँव और जिंद है। भारत की पांच सबसे श्रेष्ठ नस्लो में हरयाणवी नस्ल आती है। यह अद्भुत है।
(रोहतक, हिसार, सिरसा, करनाल, गुडगांव और जींद)
अंगोल या नीलोर गाय
ये गाएँ दुधारू, सुंदर और मंथरगामिनी होती हैं। प्राप्तिस्थान तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, गुंटूर, नीलोर, बपटतला तथा सदनपल्ली है। ये चारा कम खाती हैं।
(तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, गुंटूर, नीलोर, बपटतला तथा सदनपल्ली)
राठी गाय
राठी गाय
इस गाय का मूल मूल स्थान राजस्थान में बीकानेर, श्रीगंगानगर हैं। ये लाल-सफेद चकते वाली,काले-सफेद,लाल, भूरी,काली, आदि कई रंगों की होती है। ये खाती कम और दूध खूब देती हैं। ये प्रतिदिन का 10 से 20 लीटर तक दूध देती है। इस पर पशु विश्वविद्यालय बीकानेर राजस्थान में रिसर्च भी काफी हुआ है। इसकी सबसे बड़ी खासियत, ये अपने आप को भारत के किसी भी कोने में ढाल लेती है।
गीर गाय
गीर गाय
ये प्रतिदिन 12 लीटर या इससे अधिक दूध देती हैं। इनका मूलस्थान काठियावाड़ का गीर जंगल है। राजस्थान में रैण्डा व अजमेरी के नाम से जाना जाता है[कृपया उद्धरण जोड़ें] केंद्रीय गोवंश अनुसंधान संस्थान में गाय पर शोध करने वाले वैज्ञानिकों के अनुसार गीर गाय किसानों की आमदनी कई गुना बढ़ा सकती है।
(दक्षिण काठियावाड़)
देवनी गाय
देवनी गाय
दक्षिण आंध्र प्रदेश और हिंसोल में पाई जाती हैं। इस नस्ल के बैल अधिक भार ढोने की क्षमता रखते हैं। गायें दुधारू होती हैं।
(दक्षिण आंध्रप्रदेश, हिंसोल)
नीमाड़ी गाय
नीमाड़ी गाय
नर्मदा नदी की घाटी इनका प्राप्तिस्थान है। इनके मुँह की बनावट गिर जाति की जैसी होती है। गाय के शरीर का रंग लाल होता है, जिस पर जगह-जगह सफेद धब्बे होते हैं। इस नस्ल की गाय दूध उत्पादन के मामले में अच्छी है।
देसी गायों के संबंध में पूछे जाने वाले सवाल
देसी गाय कितने प्रकार की होती हैं?
भारत में देसी गायों की नस्लें 30 से अधिक है।
सबसे ज्यादा दूध देने वाली गाय की नस्ल कौनसी है?
भारत में सबसे ज्यादा दूध देने वाली गायों में गिर गाय, साहिवाल गाय, लाल सिंधी और राठी गाय आती है।
गाय की उम्र कितनी होती है?
पशु चिकित्सक के मुताबिक, एक स्वस्थ गाय की औसतन उम्र 18 से 20 वर्ष ही होती है।
सबसे अच्छी गाय कौन सी होती है?
गिर गाय को भारत की सबसे ज्यादा दुधारू गाय माना जाता है। यह गाय एक दिन में 50 से 80 लीटर तक दूध देती है।
गाय का वैज्ञानिक नाम क्या?
Bos taurus
गाय के दूध में कितनी कैलोरी होती है?
दूसरी तरफ गाय के एक कप दूध से आपको 8 ग्राम प्रोटीन मिलती है। कैलोरी की मात्रा- अगर आप वजन को नियंत्रित रखना चाहते हैं तो गाय का दूध आपके लिए सही है। भैंस के 1 कप दूध में जहाँ 285.5 कैलोरी होती है वहीं गाय के एक कप दूध में सिर्फ 160 कैलोरी ही होती हैं।
गाय के दूध के क्या फायदे हैं?
– इससे हार्ट, डायबिटीज, कैंसर, टीबी, हैजा जैसे बीमारियां दूर रहती हैं।
– बच्चों के दिमागी विकास के लिए यह दूध लाभदायक माना जाता है।
– दूध मीठा होने की वजह से यह पित्त और गैस की समस्या को भी दूर करता है। …
– मूत्राशय से संबंधित रोगों में गाय के दूध में गुड़ मिलाकर पीने से काफी फायदा मिलता है।
साहीवाल गाय
यह मूलतः उत्तर पश्चिमी भारत एवं पाकिस्तान में मिलती है. यह गहरी लाल रंग की होती है. इनका शरीर लम्बा ढीला एवं भारी होता है. इनका सर चौड़ा और सींग मोटे एवं छोटे होते हैं. यह एक ब्यांत में लगभग 2500-3000 लीटर दूध देती है.
गिर गाय
यह मूलतः गुजरात की नस्ल है. यह एक ब्यांत में लगभग 1500-1700 लीटर दूध देती है. इनके शरीर का अनुपात उत्तम होता है. इनके सींग मुड़े होते हैं जो माथे से पीछे की और मुड़ जाते हैं. इनके लम्बे कान होते हैं जो लटकते रहते हैं. इनकी पूंछ लम्बी होती है जो जमीन को छूती हैं. इनके शरीर का रंग धब्बेदार होता है.
हरियाणा गाय
यह मूलतः हरियाणा में पाई जाती है. इनका रंग लगभग सफ़ेद होता है. इनका सर ऊंचा उठा होता है. इनके सींग छोटे और ऊपर एवं भीतर की और मुड़े होते है. चेहरा लम्बा पतला एवं कान छोटे नुकीले होते है. इनकी पूँछ पिछले पैरों के जोड़ एवं जमीन के बीच आधी दूरी पर लटकती रहती है. यह एक ब्यांत में लगभग 1200 लीटर दूध देती है.
लाल सिंधी
यह मूलतः पाकिस्तान के सिंध प्रांत की नस्ल है लेकिन अब लगभग सारे उत्तर भारत में पाई जाती है. यह पशु गहरे लाल रंग का होता है. इनका चेहरा चौड़ा तथा सींग मोटे एवं छोटे होते है. इनके थन लम्बे होते है. ये प्रति ब्यांत लगभग 1600-1700 लीटर दूध देती है.
देसी गाय के डेयरी फार्म के लिए महत्वपूर्ण बातें: इस प्रोजेक्ट में दस देसी गायों के डेयरी फार्म से सम्बंधित महत्वपूर्ण जानकारी दी गयी है.
गाय की नस्ल | गिर/ साहीवाल/ लाल सिंधी/हरियाणा |
कुल जानवरों की संख्या | 10 |
एक गाय की कीमत | 50,000 रु |
एक गाय के लिए जगह (वर्ग फ़ीट में) | 10.5 |
विभिन्न मशीन खरीदने का प्रति पशु खर्च | 1000 रु |
एक गाय के बीमा का खर्च (प्रति वर्ष 3% की दर से) | 1500 रु |
चिकित्सकीय खर्चा (प्रति पशु प्रति वर्ष) | 1000 रु |
हरे चारे की कीमत | 1 रु/ किलो |
दाने की कीमत | 15 रु/ किलो |
सूखे चारे की कीमत | 2 रु/ किलो |
बिजली एवं पानी का प्रति पशु प्रति वर्ष खर्चा | 1000 रु |
प्रति पशु औसत दूध उत्पादन | 10 किलो |
दूध बेचने का मूल्य | 40 रु/ किलो |
चारे के बोरों को बेचने का मूल्य | 10 रु/ बोरा |
श्रमिक की तनख्वाह | 8000 रु/ महीना |
खाने से संबंधी जानकारी
चारा | दूध के दिनों में | दूध न देने वाले दिनों में |
हरा चारा | 20 किग्रा | 15 किग्रा |
सूखा चारा | 15 किग्रा | 15 किग्रा |
दाना | 6 किग्रा | — |
एक बार में होने वाला खर्चा (Capital Cost) | रुपये में |
10 गाय की कीमत | 500000 |
10 गायों के लिए शेड का खर्चा (200रु प्रति वर्ग फीट) | 21000 |
उपकरणों का खर्च (1000 रुपये प्रति गाय) | 10000 |
अन्य खर्चा (500 रुपये प्रति गाय) | 5000 |
कुल खर्चा | 536000 |
निश्चित लागत प्रति साल (Fixed cost) | रुपये में |
शेड का मूल्यह्रास (10% की दर से) | 2100 |
उपकरणों का मूल्यह्रास (10% की दर से) | 1000 |
बीमे का खर्च प्रति वर्ष (3% प्रति गाय) | 15000 |
ब्याज दर (12.5% की दर से) | 67000 |
कुल निश्चित लागत | 85100 |
बार बार होने वाला खर्चा (Variable cost) | रुपये में |
हरा चारा | 73000 |
सूखा चारा | 109500 |
दाना | 328500 |
चिकित्सकीय खर्चा प्रति पशु प्रति वर्ष | 1000 |
श्रमिक की तनख्वाह | 96000 |
कुल (बार-बार होने वाला खर्चा) | 608000 |
आमदनी | रुपये में |
दूध बेचने से | 800000 |
गोबर की खाद बेचने से | 36500 |
कुल आमदनी | 836500 |
कुल लाभ= कुल आमदनी – कुल (बार-बार होने वाला खर्चा)= 836500-608000=228500
निश्चित लाभ= कुल आमदनी – (निश्चित लागत + कुल (बार-बार होने वाला खर्चा))= 836500-(608000+85100)= 143400
गौशाला प्रबंधन
आवास प्रबंधन
गाय पालन के लिए गोशाला का निर्माण आवश्यक है। जहाँ धूप, वर्षा और जोरों से गाय का बचाव हो सके। इस बथानया खटाल के नाम से जाना जाता है। गोशाला के निर्माण में स्थान की चुनाव काफी महत्वपूर्ण है। इसके लिए निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखें –
- स्थान शहर के निकट हो या वहाँ पर यातायात का साधन होता कि दूध को बिक्री में कठिनाई न हो।
- जहाँ मवेशी की आवश्यक आहार आसानी से मिल जाए।
- स्थान थोड़ा ऊंचा हो ताकि जलजमाव न हो।
- मल मूत्र के निकासी का उत्तम प्रबंध हो।
- जमीन कम से कम डेढ़ कट्ठा यानी 50 फ़ीट लंबी और 40 फ़ीट चोरी हो ताकि पांच गाय आसानी से रह सके।
आहार प्रबंधन
कारोबार की दृष्टि से गाय को संतुलित आहार देना जरूरी है। संतुलित मतलब है न ज्यादा, न कम। चारा संतुलित हो लेकिन गाय रुचि लेकर नहीं खा रही हो। ऐसी स्थिती में रुचि बढ़ाने के लिए नमक गुर तथा खली डाल सकते हैं। अंकित नाद में जूठन के अलावा कोई दूसरी चीज़ न डालें। नाद में सारी गली चीज़ न डालें। पेट भरने के अलावा गाय को चारों से संतोष भी होना जरूरी है। संतोष नहीं होने पर वे मिट्टी और हानिकारक चीजें खाने लगती है। एक और बात खाने के समय चारे में अचानक बदलाव न लाएं। इससे दूध में कमी आ जाती है। जब भी चारा बदले यह ध्यान रहे कि पहले दिया जा रहा चारे में नए चारों को शुरू में थोड़ा थोड़ा मिलाएँ।
हरी घास गाय के स्वास्थ्य था दूध उत्पादन के लिए बहुत जरूरी है। अंकित गाय को सालों भर हरी चारा? उपलब्ध कराने की कोशीश करें। लेकिन व्यावहारिक रूप से यह संभव नहीं हो पाता है उस स्थिती में सूखी घास या समिश्रणप्रयोग में लाए।
यहाँ हरा चारा के मिश्रण के कुछ फॉर्मूले दिए जा रहे हैं —
- मक्का का चारा
मक्का 20kg , लुसेरेन 5kg
लोबिया 10kg, कुल 35kg
- बारसिम का चारा
जई 25kg , बारसीम सूखी 7kg
कुल 35 kg
दुधारू गाय की देख भाल
दुधारू गायों के आहार पर विशेष ध्यान दे।एक दिन के पूरे खुराक को 4 से 5 बार में दे।हरी घास की कुट्टी पुआल के साथ मिला के खिलाए। इससे पेट में गैस नहीं बनती है तथा पतला गोबर भी नहीं होता। अंकित निर्धारित समय पर ही दूध है। समय में परिवर्तन होने पर दूध की मात्रा घट सकती है। पर शांत वातावरण में ही दूध दुहे। दूध दुहने के बाद जमीन पर गिरे हुए दूध को पानी से साफ कर दे। गर्मी के मौसम में गाय को छाया में रखें और दिन में एक से दो बार नहलाएं साथ ही उसके थन पर भी दो तीनबार पानी का छिड़काव करें।
गाय का गर्भाधान
एक बचरा के बाद दूसरे बच्चे के बीच 12 से 13 माह का अंतर होना चाहिए। इससे अधिक समय लगता है तो दूध के उत्पादन पर असर पड़ता है। इसका पहला कारण तो खानपान हो सकता है। पेट भर और विटामिन से भरपूर चारा नहीं दिए जाने पर। गाय समय पर नहीं गरमाएगी। अंकित दूसरा अगर कोई रोग आदि हो। समय पर नहीं गर्म आना एक बड़ी समस्या है। पर या बच्चा देने के तीन माह बाद गाए गर्म आती है। इसी समय इसको गर्भाधान करा देना चाहिए।
गाभिन गाय की देखभाल
चारा, पानी के अलावा रोजाना देखभाल भी जरूरी है। गाभिन गाय को चोट न लगे इसके लिए विशेष ध्यान रखेंं और पैर नहीं फिसले इसके लिए उसे दूसरी गायों से अलग रखें। खुले बथान में एक गाय दूसरी गाय से लड़ने लगती है। जिस दिन गाय गाभिन होती है, उसके नौ माह बाद बचरा देती है। इसके हफ्ता भर पहले ही तैयारी शुरू कर दें। पहले इसे सुरक्षित तथा हवादार घर में रखे घर की साफ सफाई अच्छी तरह कर दे रौशनी का इंतजाम करते फर्श पर तीन चार इंच पुआल बिछा दे।
प्रसव के बाद देख भाल
बछड़ा हो जाने के तुरंत बाद लाल रंग की दवा पोटैशियमपरमैग्नेट मिलेसुसुम पानी से गाय का पिछला हिस्सा धीरे धीरे धो दें। गाय को बाहर की हवा से बचाएं, आसपास की जगह गर्म रखें। बच्चा पैदा होने के 8-10 घंटे बाद गाय जड़ याझाड़ी बाहर फेंक देती है। इसके प्रति बहुत सावधान रहें। मौका मिलते ही गाय से खा लेती है। इसका नतीजा होता है कि इस बयान में दूध कम हो जाती है। इसलिए इसे बाहर ले जाकर जमीन में गाड़ दें। इसके बाद हल्के गर्म पानी से धीरे धीरे धन को साफ कर लें, फिर खिल निकाल वही समी को ऊपर। यह भी पता लगा लें कि उसमें कहीं गांठ तो नहीं? अगर ऐसा हो तो तुरंत पशु चिकित्सक से इलाज के लिए मिले बछड़ा को पहला दूध पिलाकर ही फेनुस निकालें। ऐसा करने से दूध ज्वर होने की संभावना होती है। ऐसे समय में गाय को गुरखली, हल्दी आदि मिलाकर गर्म गर्म खाने को दें। एक 2 दिन बाद सामान्य चारा देना शुरू कर दें।
दुग्ध दोहन
दूध दुहना एक कला है। ठीक ढंग से दूध दुहा जाए तो उत्पाद में वृद्धि लाई जा सकती है। गाय के थन की बनावट ऐसी होती है कि दूध भरे रहने पर भी अपने आप नहीं निकलता। दूध का समय निर्धारित कर लें और उसी समय दूर है। ज्यादा दूध देने वाली गाय को तीन बार दूल्हे इससे दूध भी बढ़ जाएगा। गाय को सहलाकर शांत कर ले मारने पीटने या तंग करने से गाय दूध सूखा लेती है। कम से कम समय में दूध ले ज्यादा समय लगाने से दूध की नस सिकुड़ जाती हैं और पूरा दूध नहीं निकल पाएगा।
दूध धोने वाला आदमी नाखून काटकर रहना चाहिए। दुहने से पहले साबुन या राख से हाथ धो लेना चाहिए। दूध दुहने समय अंगूठे कोछीमी के बीच में न रखें। इससे थनैल होने का डर रहता है।
दुधारू पशुओं के प्रमुख रोग
1. विषाणु जनित रोग
a) मुंह वखूंरकी बीमारी
b) रिंडरपेस्ट
- बैक्टेरियाजनितरोग
a) गलाघोंटू
b) जहरवाद
c) प्लीहा या पिलबढ़वा
d) निमोनिया - दुग्ध ज्वार,अफरा,दस्त— मरोड़ इत्यादि।
आज हम पशु आहार घर पर कैसे तैयार करे। इस विषय पर पूरी जानकारी दूँगा ।
तो आइए पशु आहार बनाने में क्या क्या चाहिए ।
सामग्री:-
खली-मूंगफली,सरसों,सोयाबीन,किसी भी तरह की 25 से 35 किलो तक
दाना- गेहू,मक्का,जो,धान आदि 25 से 35 किलो तक
चोकर (दलिया) 10से 25 किलो तक
दालों के छिलके-उड़द,चना,आदि 5से 20 किलो
सोयाबीन- या छिलका 1से 4 किलो
खनिज लवण-1 किलो
विटामिन-Aऔर D-3 =20 से 30 ग्राम तक
पशु आहार बनाने की विधि:-
घर पर पशु आहार बनाने के लिए सबसे पहले खली को बारीक़ कूट ले यदि आपको खली को कूटने में दिक्कत आती है तो।उसे एक दिन पहले पानी में भिगो ले फिर दूसरे दिन उसे सुखा कर मसल के बारीक़ बना ले ।
उसके बाद मक्का गेहू जो आदि को दल ले मशीन से ज्यादा बारीक़ न पिसे ।
अब खल और धान को बराबर मात्रा में फर्श या पाल पर रख दे ।
उसमे चोकर मिलाये ।
उस मिश्रण में दालों के छिलके मिलाये फिर खनिज लवण और नमक प्रति 50 किलो में 450 ग्राम नमक मिलाए और साथ में विटामिन मिला कर अच्छे से हिला कर मिश्रण तैयार कर ले फिर उसमें कटा हुआ बारीक़ चारा मिला ले और एक बेग में भर के रख दे । ये अब आपका पशु आहार बन कर तैयार हे ।
पशु आहार पशु को कैसे खिलाएं :-
सबसे पहले पशु को तोड़ी मात्रा में चखाये ।
दूध देने वाले पशुओं को आहार उनकी आवश्यकता के अनुसार ही दिया जाना चाहिए।
2 किलो दूध देने वाले पशु को 1 किलो पशु आहार खिला सकते है साथ में चारा भी खिलाये चारा एक मुख्य पोषक तत्व होता है।
जैसा की हम सब जानते हैं कि खेती के साथ साथ पशुपालन का कार्य किसानों के लिए काफी लाफदायक होता है और दोनों ही एक दूसरे के पूरक व्यवसाय भी है और यदि किसान सही तरीके से पशुपालन करे तो कम लागत मे अधिक मुनाफा कमा सकते हैं।
गाय भैस के बछड़े और बछड़ीयो की देखभाल कैसे करे?
यदि हम पशुपालन को व्यावसायिक रूप मे करें तो हमें जन्म से ही पशुओं को तैयार करना पड़ेगा ताकि वो आगे जाकर अच्छी नस्ल के और अच्छे दुधारू पशु बने। इसके लिए हमें उनका संतुलित आहार और उचित रखरखाव पर विशेष ध्यान देना होगा। इस बारे मे बताने से पहले मैं आपको बताना चाहूंगा कि बहुत सी बार देखा गया है कि पशुपालक बछड़े बछड़ियों को बहुत ही कम मात्रा मे पौष्टिक आहार देते हैं।
हरा चारा और दाना भी देते हैं और उन्हें एक ही स्थान पर बंधा रहने देते हैं। उन्हें अन्य पशुओं का बचा हुआ चारा ही डाल देते हैं। उन्हें हमेशा बांधकर रखते हैं जिससे उनका शारीरिक विकास भी रुक जाता है। ऐसी कई छोटी छोटी गलतियां अक्सर देखने को मिलती हैं जिससे आगे जाकर बछड़े एक अच्छा पशु नहीं बन पाता है।
बछड़े और बछड़ीयो को संतुलित आहार कैसे दें?
जन्म से 3 माह तक का आहार
बच्चे के जन्म के तुरंत एक घंटे के अंदर उसे 1-2 gram खींच आहार के रूप मे देना चाहिए।
खींच क्या है?
खींच प्रसव के के बाद प्राप्त होने वाला पीले गाढ़ा रंग का पदार्थ है।
जिसमे दूध की तुलना में अधिक प्रोटीन or विटामिन रहता है। बछड़े को फिर एक घंटे के अंतराल मे 1 ग्राम खींच और देना चाहिए।
जन्म के 24 घंटे बाद लगातार तीन दिन तक दिन मे 2 बार यही आहार देते रहना चाहिए। आहार की मात्रा बच्चे के शरीर के वजन का 10% की दर से देनी चाहिए।
नवजात बच्चे को 60 दिन तक उबला हुआ दूध जिसका तापमान शरीर के तापमान के बराबर हो रोज पिलाना चाहिए।
दूध पिलाने की दर
- शुरुआत के तीन हफ्ते तक बच्चे के शरीर के वजन का 10% तक
- उसके अगले दो हफ्ते तक15% तक पिलाना है।
- उसके बाद उसे 20% की दर से 3 महीने तक 10 किलो तक दूध आवश्यक रूप से पिला देना चाहिए।
यदि आपने सही तरीके से ध्यान दिया है और किसी भी तरह की बीमारी न हुई हो तो जन्म के समय बच्चे का वजन ३ महीने तक बदल जाता है।
इसके बाद आप बच्चे को गेहूं का चोकर, सरसों की खली, मूंगफली की खली, साधारण नमक और उचित खनिज लवण मिलाकर खिलाना चाहिए। साथ मे हरा चारा भी पर्याप्त मात्रा मे दें। इस दौरान बच्चे को एंटी बैटिक जीवाणु नाशक दूध के साथ देना चाहिए और गर्मियों मे वक़्त वक़्त पर दिन मे 3 बार पानी भी पिलाना चाहिए और उनके रहने वाली जगह का तापमान पर भी विशेष ध्यान देना चाहिए।
3 महीने के बाद का खान पान
3 महीने के बाद लगातार बच्चे के शरीर मे वृद्धि के लिए उन्हें पौष्टिक आहार देना जरुरी है। उन्हें उचित मात्रा मे दाना और हरा चारा देना चाहिए और खली मे उन्हें मूंगफली, सरसों आदि देना चाहि। साथ मे सुकले मे हरा चारा या दाना मिलाकर भी देना चाहिए और हरे चारे मे बाजरा, ज्वार आदि का चारा भी खिलायें।
अन्य ध्यान देने योग्य बातें
- पशु को सुबह या शाम के समय 30 से 40 मिनट तक टहलाना और चराना, उनके लिए उपयुक्त रहता है।
- पशु को बांधने वाली रस्सी ज्यादा कड़क नहीं होनी चाहिए, नहीं तो उनको घाव हो जाता है।
- एक पशु का बचा हुआ चारा दूसरे पशु को न डालें।
- पशु को तनाव मुक्त रखें।
- पशुशाला की सफाई पर भी ध्यान दें।और पशु पर निगरानी रखें। यदि किसी तरह की अलग हलचल दिखे तो तुरंत डॉक्टर्स को बताएं। समय समय पर आवशयक टीके भी लगवायें।
दुधारू पशुओं को समय समय कौन से टिके लगवाये?
- मुहँ और खुर रोग टीका
- एन्थ्रेक्स टीका
- ब्लैक क्वार्टर टीका
- हेमोरेजिक सेप्टीकेमिया टीका
- Q H.S टीका और एन्थ्रैक्स
भारतीय नस्ल की गाय(Indian Breed of Cows) की जानकारी एवं विशेषताएं
Indian Breed of Cows – आपने थोड़े समय पहले पेपर और टीवी पर ये news तो सुनी ही होगी की गिर गाय के मूत्र में सोने के कण मिले ले। जिसका रिसर्च जुनागड़ एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के विज्ञानिकों ने गिर नस्ल की 400 गायो के मूत्र परीक्षण के बाद पाया की 1 लीटर मूत्र में 3 मिली ग्राम से ले कर 10 मिली ग्राम तक सोने के कण पाए गये है। इसकी पुष्टि विज्ञानिकों ने करी है।
गाय का दूध अमृत के समान होता है। जो कई तरह के शारीरिक रोगों से लड़ने में मदद करता है। जिसका महत्व प्राचीन समय से ही वेदों और ग्रंथों में लिखा गया है। हिन्दू धर्म में गाय को पूजनीय और पवित्र माना जाता है।
Indian Breed of Cows भारतीय गाय:-
भारत में गायो की 30 प्रकार की नस्ले पायी जाती है आवश्यकता और उपयोगिता के आधार पर इन्हें 3 भागों में विभाजित किया गया है।
1 अच्छा दूध देने वाली लेकिन उसकी संतान खेती के कार्यो में अनुपयोगी
दुग्धप्रधान एकांगी नस्ल
2 दूध कम देती है लेकिन उसकी संतान कृषि कार्य के लिए उपयोगी
वत्सप्रधान एकांगी नस्ल
3 अच्छा दूध देने वाली और संतान खेती के कार्य में उपयोगी
सर्वांगी नस्ल
नोट संतान खेती में उपयोगिता से आशय उनके बछड़े बेल बनने के बाद गाड़ी खींचना जुताई हल चलाना आदि से है
Indian Breed of Cows भारतीय गायो की प्रजातिया :-
सायवाल जाती
यह प्रजाति भारत में कही भी रह सकती है। ये दुग्ध उत्पादन में अच्छी होती है।इस जाती के गाये लाल रंग की होती है। शरीर लम्बा टांगे छोटी होती है। छोड़ा माथा छोटे सिंग और गर्दन के नीचे त्वचा लोर होता है। इसके थन जुलते हुए ढीले रहते है।
इसका औसत वजन 400 किलोग्राम तक रहता है। ये ब्याने के बाद 10 माह तक दूध देती है। दूध का औसत प्रतिदिन 10 से 16 लीटर होता है। ये पंजाब में मांटगुमरी, रावी नदी के आसपास और लोधरान, गंजिवार, लायलपुर, आदि जगह पर पायी जाती है।
रेड सिंधी
इसका मुख्य स्थान पाकिस्तान का सिंध प्रान्त माना जाता है। इसका रंग लाल बादामी होता है। आकर में साहिवाल से मिलती जुलती होती है। इसके सिंग जड़ों के पास से काफी मोटे होते है पहले बाहर की और निकले हुए अंत में ऊपर की और उठे हुए होते है।
शरीर की तुलना में इसके कुबड बड़े आकर के होते है। इसमें रोगों से लड़ने की अदभुत क्षमता होती है इसका वजन औसतन 350 किलोग्राम तक होता है। ब्याने के 300 दिनों के भीतर ये 200 लीटर दूध देती है।
गिर जाती की गाय
गिर गाय, इसका मूल स्थान गुजरात के काठियावाड का गिर क्षेत्र है।इसके शरीर का रंग पूरा लाल या सफेद या लाल सफेद काला सफेद हो सकता है।इसके कान छोड़े और सिंग पीछे की और मुड़े हुए होते है। औसत वजन 400 किलोग्राम दूध उत्पादन 1700 से 2000 किलोग्राम तक हो माना गया है।
थारपारकर
इसकी उत्पत्ति पाकिस्तान के सिंध के दक्षिण पश्चिम का अर्ध मरुस्थल थार में माना जाता है।इसका रंग खाकी भूरा या सफेद होता है। इसका मुँह लम्बा और सींगों के बीच में छोड़ा होता है।
इसका औसत वजन 400 किलोग्राम का होता है।इसकी खुराक कम होती है औसत दुग्ध उत्पादन 1400 से 1500 किलोग्राम होता है।
काँकरेज
गुजरात के कच्छ से अहमदाबाद और रधनपुरा तक का प्रदेश इनका मूल स्थान है।ये सर्वांगी वर्ग की गाये होती है। इनकी विदेशों में भी काफी मांग रहती है।इनका रंग कला भूरा लोहिया होता है।
इसकी चाल अटपटी होती है इसका दुग्ध उत्पादन 1300 से 2000 किलोग्राम तक रहता है।
मालवी
ये गाये दुधारू नही होती है इनका रंग खाकी सफ़ेद और गर्दन पर हल्का कला रंग होता है। ये ग्वालियर के आसपास पायी जाती है।
नागोरी
ये राजस्थान के जोधपुर इनका प्राप्ति स्थान है। ये ज्यादा दुधारू नही होती है लेकिन ब्याने के बाद कुछ दिन दूध देती है।
पवार
इस जाती की गाय को गुस्सा जल्दी आ जाता है। ये पीलीभीत पूरनपुर
खीरी मूल स्थान है। इसके सिंग सीधे और लम्बे होते है और पुंछ भी लम्बी होती है इसका दुग्ध उत्पादन भी कम होता है।
हरियाणा
इसका मूल स्थान हरियाणा के करनाल, गुडगाव, दिल्ली है।ये ऊंचे कद और गठीले बदन की होती है। इनका रंग सफेद मोतिया हल्का भूरा होता है
इन से जो बेल बनते है वो खेती के कार्य और बोज धोने के लिए उपयुक्त होते है। इसका औसत दुग्ध उत्पादन 1140 से 3000 किलोग्राम तक होता है।
भंगनाडी
ये नाड़ी नदी के आसपास पाई जाती है। इसका मुख्य भोजन ज्वार पसंद है। इसको नाड़ी घास और उसकी रोटी बना कर खिलाई जाती है। ये दूध अच्छा देती है।
दज्जाल
ये पंजाब के डेरागाजीखा जिले में पायी जाती है उसका दूध भी कम रहता है।
देवनी
ये आंध्र प्रदेश के उत्तर दक्षिणी भागों में पायी जाती है, ये दूध अच्छा देती है, और इसके बेल भी खेती के लिए अच्छे होते है।
निमाड़ी
नर्मदा घाटी के प्राप्ति स्थान है। ये अच्छी दूध देने वाली होती है।
राठ
ये अलवर राजस्थान की गाये है ये खाती कम है और दूध भी अच्छा देती है।
अन्य प्रजाति की गाये:
गावलाव
अगॊल या निलोर
अम्रत महल -वस्तप्रधान गाय
हल्लीकर – वस्तप्रधान गाये
बरगुर – वस्तप्रधान गाये
बालमबादी -वस्त प्रधान गाये
कगायम – दूध देने वाली गाये
क्रष्णवल्ली – दूध देने वाली गाय
ये है गाय और भैंस के दूध में अंतर:
भैंस के दूध की तुलना में गाय के दूध को पचाना आसान है। क्योंकि भैंस के दूध में गाय के दूध की अपेक्षा 100 प्रतिशत ज्यादा फैट होता है| भैंस के दूध में गाय के दूध की तुलना में 11 प्रतिशत ज़्यादा प्रोटीन होता है। जिन लोगों को ज़्यादा प्रोटीन की जरूरत हो या अपनी मांसपेशियां मजबूत बनानी हों, उन्हें भैंस का दूध पीना चाहिए। मिनरल्स में भैंस का दूध गाय के दूध को पीछे छोड़ देता है। भैंस के दूध में गाय के दूध से 91 प्रतिशत अधिक कैल्सियम, 37.7 प्रतिशत अधिक आयरन और 118 प्रतिशत अधिक फास्फोरस होता है। भैंस के दूध में मैग्नीशियम और पोटाशियम भी गाय के दूध से अधिक पाया जाता है। भैंस का दूध मजबूत हड्डियों, स्वस्थ दांतों, हृदय संबंधी समस्याओं और वजन बढ़ाना के लिए अच्छा माना जाता है। वहीं गाय का दूध भी हड्डियों और दांतों के स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छा होता है। ये बच्चों में वजन घटाने, थायराइड की समस्या से निपटने और हृदय स्वास्थ्य के लिए एक अच्छा स्रोत है।
डेयरी फार्म के लिए गाय भैंस कहाँ से खरीदें?
अच्छी नस्ल के पशु कहा से खरीदे। |
भारतीय गाय में 30 प्रकार की नस्ल पायी जाती है। बहुत सारी नस्लों की गाये विलुप्त होती जा रही है। और उनकी संख्या भी लगातार घटती जा रही है। और जो बची हुई है। वो भी अशुद्ध नस्ले बनती जा रही है। क्यों की उनके हिट पर आने वाले समय पर उसी नस्ल के सांड का नही मिल पाना या अन्य तरीके से उन्हें गर्भ धारण करवाना आदि कई कारण से भारतीय नस्ल की गाय की संख्या कम होती जा रही है।
अच्छी नस्ल की भारतीय गाय कहा कहा से ख़रीदे ?
सबसे पहले तो हमें जिस नस्ल की गाय चाहिए उसकी पूरी जानकारी होना आवश्यक होता है। उसका वजन रंग शरीर खान पान दूध शारीरिक संरचना उसकी उत्पत्ति का स्थान आदि।क्यों की आज कल पशुओं का व्यापार करने वाले लोग किसी भी नस्ल को कुछ भी बता कर बेचने में माहिर होते है।
पशु की नस्ल की जानकारी के लिए आप अपने पशु पालन विभाग के अधिकारियों से या विरिष्ट पशु चिकित्सक से उसके रूप रंग आकर की जानकारी ज़रुर ले ले इसके अलावा आप inter net के माध्यम से या अन्य तरीके से जानकारी लेने के बाद ही पशु खरीदने जाए।
अच्छी नस्ल के पशु कहा से ख़रीदे उसके लिए हम इन विकल्प का उपयोग कर सकते है।
1 पशु हाट पशु मेले:-
आप अगर पशु जैसे गाय बेल बकरी भैस आदि खरीदना चाहते है। तो पहले अपने क्षेत्र के पशु हाट में तलाश करे अगर आपको जिस तरह की नस्ल का पशु चाहिए वो उस हाट में मिल जाता है। तो अच्छा है क्यों की परिचित से पशु खरीदने पर आपको धोखे की सम्भावना कम हो जाती है।
इनके अलावा आप भारत में कई बड़े बड़े पशु मेलों का आयोजन होता है। वहां भी आपको अच्छी नस्ल के और दुधारू पशु मिल सकते है। में यहाँ पर उन मुख्य मेलों के बारे में sort में बता देता हु।
बिहार के सोनपुर पशु मेला
यह एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला है। जिसमे बहुत सारी नस्ल के पशु आते है इस मेले का आयोजन बहुत बड़े पैमाने पर होता है
मेला- नवम्बर दिसम्बर माह में लगता है।
राजस्थान का पुष्कर पशु मेला
अजमेर के पास पुष्कर में राजस्थान का सबसे बड़ा पशु मेला लगता है। जिसमे दूर दारज के राज्यों के लोग पशु खरीदने बेचने आते है। यहाँ पर भी आपको अच्छी नस्ल के पशु उपलब्ध हो जाते है। गिर गाय भी यहाँ मिल जाती है।
मेला-कार्तिक की पूर्णिमा को यह मेला लगता है।
नागौर का पशु मेला
राजस्थान के नागौर में लगता है यहाँ भी बहुत से राज्यों के व्यापारी पशु खरीदने बेचने आते है।
मेला-जनवरी फरवरी माह में लगता है।
कोलायत पशु मेला
राजस्थान का दूसरा सबसे बड़ा पशु मेला है।इसका आयोजन दिसम्बर माह में किया जाता है।
नागपुर का पशु मेला
यह भारत का दूसरा सबसे बड़ा पशु मेला है। यहाँ अक्सर बहुत से मेले लगते रहते है इस मेले का आयोजन जनवरी फरवरी में होता है।
आगरा का पशु मेला
आगरा के पास बटेश्वर शहर में ये मेला कार्तिक माह में लगता है।
झालावाड़ पशु मेला
इस मेले का आयोजन झालावाड़ के पास झालापाटन में किया जाता है इस मेले में गाय बेल भैस ऊँट की बिक्री बड़े पैमाने पर होती है इसका आयोजन कार्तिक माह में किया जाता है।
साहिवाल जाती की गाये प्राय पंजाब,हरियाणा,उत्तर प्रदेश,बिहार,दिल्ली मध्यप्रदेश में पायी जाती है।आप इन्हें अम्रतसर,जालंधर,हिसार,गुरदासपुर,करनाल,कपूरथला,फिरोजपुर,अन्होरदुर्ग(mp)लखनव,मेरठ,बिहार पश्चिम बंगाल के पशु हाट पशु मेलों से ख़रीद सकते है।
2 पशु विक्रय केंद्र
भारत में इसी कई बड़ी गो शालाए है जहा अच्छी नस्ल की गाय और अन्य पशु वहा आपको उपलब्ध हो जायेगे
3 online गाय खरीदने बेचने के लिए
अच्छी नस्ल के दुधारू पशु की खरीदी बिक्री के लिए अभी भारत सरकार ने भी इस और कदम बढ़ाया है। कृषि मंत्री श्री राधा मोहन जी ने ई पशु हाट पोर्टल की शुरुआत करी है। इस नई website www.epashuhaat.gov.in के जरिये विभिन्न नस्ल की गाय भैस और उनके भूण आदि प्राप्त किये जा सकते है।
इस website पर किसानों को ऑनलाइन सौदे करने और पशु को उनके घर तक पहुचाने की सुविधा है। अभी यह website अँग्रेजी में है जल्द ही इसे हिंदी और अन्य भाषाओं में भी देख सकेंगे।
इस पोर्टल के जरिये सरकार का उद्देश्य एक अधिकृत online pashu haat बनाना है। ताकि पशुपालकों को रोग मुक्त अच्छी नस्ल के पशु उपलब्ध हो सके इस website पर जाने के लिए नीचे लिंक को open करे।
epashuhaat.portal
ऑनलाइन पशु गाय भैस की जानकारी देखना या खरीदना चाहते हो तो India mart, Olx, Quikr पर भी आपको मिल जाएगी
online गाय भैस खरीदने बेचने के लिए आप
अन्य स्रोत
- मध्यप्रदेश के मंदसौर जिले में दो अच्छे पशु हाट लगते है।
- धुन्धडका- रविवार के दिन हर सप्ताह
- जाहडा-सोमवार के दिन हर सप्ताह
- इनके अलावा आप हरियाणा पंजाब के कई सारे डेयरी फार्म पर भी आपको अच्छी नस्ल की गाय भैस मिल जाएगी
पंजाब राज्य में खरड कुराली शहर के पास एक शाहपुरा गाँव है। जहाँ पर खालसा डेयरी फार्म पर भी आपको अच्छी नस्ल के पशु उपलब्ध हो जाते है।इन डेयरी फर्मो में अच्छी नस्ल के पशु तैयार किये जाते है।
पशुओ के रोगों की पहचान भाग 1
पशुओं में होने वाले रोग एवं उनकी पहचान कैसे करे
पशु रोग की जानकारी |
मित्रों पशु पालन एक लाभ दायक व्यवसाय है। लेकिन यदि पशुपालक सावधानी नही रखे तो उसे भारी नुक्सान उठाना पड़ सकता है। खासतौर पर जब पशु बीमार हो क्यों की वर्तमान में अच्छे दुधारू पशु का मूल्य काफी ज्यादा है। और बीमारी के कारण कोई पशु मरता है तो इस धंधे में बहुत नुकसान होता है। आज की इस पोस्ट में पशुओं में लगने वाले रोगों की पहचान के बारे में जानेंगे मैने इसको भाग 1 नाम इसलिए दिया क्यों की सभी रोगों को एक पोस्ट के माध्यम से बता नही सकते बाकी बचे रोगों के बारे में अगली पोस्ट में लिखूंगा। आप माय किसान दोस्त पर विजिट करते रहे इन रोगों के बारे में बताने के बाद हम एक पोस्ट में पशुओं के रोगों का देशी इलाज यानि उपचार कैसे करे और पशुओं के लिए विभिन्न दवाइयों के बारे में भी लिखेंगे।
पशुओं के प्रमुख रोग और उनके लक्षण
संक्रमण रोग;- छूत के कारण होने वाले रोगों को संक्रमण रोग कहते है। यह रोग पशु के शरीर में कई प्रकार के विषाणु चले जाने के कारण होता है। फिर ये एक पशु से दूसरे पशु में लगते है फिर एक के बाद एक पशु बीमार होते है। फिर एक महामारी के रूप में फेल जाते है
संक्रमण से होने वाले रोगों के बारे में नीचे बताया गया है!
1 लगडा बुखार (black quarter)
जैसे की इसका नाम लगडा बुखार है। उसी तरह इसका काम है इस बुखार में पशु के आगे पीछे के पैरो में सूजन आ जाती है। और पशु लगडा लगडा चलता है। इस में कीटाणु पानी अथवा शरीर पर लगे घाव के जरिये शरीर के अन्दर चले जाते है। जिससे पशु का शरीर अकड़ने लगता है। इसके कीटाणु पुरे शरीर में जहर बना देते है। यदि समय पर उपचार नही किया जाया तो पशु एक दो दिन में ही मर जाता । रोग में पशु का शरीर सुस्त हो जाता है। धीरे धीरे पूरा शरीर अकड़ जाता है। बड़ी मुश्किल से चल पता है। उसका सर और कान लटक जाते है। उसकी त्वचा पर सूजन दिखने लगती है। उसका पूरा शरीर गर्म हो जाता है। और तीव्र बुखार आता है। एवं सास लेने और छोड़ने पर परेशानी आती है। इस अवस्था में वो खाना पीना बंद कर देता है यह रोग मुख्य रूप से गाय भैस एवं भेड़ में ज्यादा देखने को मिलता है। छह वर्ष से दो वर्ष के पशु इसकी चपेट में ज्यादा आते है।
2 माता रोग (rinderpest )
यह भी एक छूत वाला रोग ही है जो की पहाड़ी क्षेत्र में रहने वाले पशुओं में अधिक पाया जाता है। इस रोग का चार पांच दिन में आसानी से पता लग जाता है। इस रोग में सबसे पहले पशु को बहुत तेज़ यानि की 104 डिग्री से 106 डिग्री तक हो जाता है। पशु सुस्त हो जाता है उसके शरीर के बाल खड़े हो जाते है। पशु कांपने लगता है। आँखो की पुतलिया सिकुड़ जाती है। और आँखो से आँसू बहने लगते है। कान सर और गर्दन लटक जाती है। पशु एस अवस्था में अपने दाँत पीसने लगता है। और उसे प्यास लगने लगती है। वो जुगाली करना बंद कर देता है। सात आठ दिन बाद पशु के मुहँ में मसूड़ों और ज़ुबान के आसपास नुकीले छोटी किल tyap के छाले हो जाते है। और धीरे धीरे वो बड़े हो कर फोफले बन जाते है। इसे ही छाले पशु के आंतों में भी हो जाते है। पशु खाना पीना बंद कर देता है पतला गोबर करने लगता है। कभी कभी उसके गोबर में खून आने लगता है। मुँह में छाले की वजह से पशु भूखा रहता है। और कमजोर पड़ जाता है और सात आठ दिन में पशु मर जाता है।
3 गल गोटू रोग (haemorrhagic )
यह रोग मुख्य रूप से गाय भेसो में अधिक लगता है। यह मानसून के समय व्यापक रूप से फैलता है। यह बहुत ही तेज़ एवं भयंकर छूत रोग होता है। इसमें पशु के शरीर का तापमान 105 डिग्री से ले कर 108 डिग्री तक पहुँच जाता है। यह pesteurella multocida नामक जीवाणु के कारण होता है। इस रोग में पशु के मुँह से लार टपकती है। सिर और गले में बहुत दर्द होता है। पशु कांपने लगता है। खाना पीना छोड़ देता है। पशु के पेट में दर्द होता है। वह ज़मीन पर गिर जाता है। उसकी आंखे लाल हो जाती है। श्वास लेने में कठिनाई होने लगती है। पशु खूनी दस्त करने लगता है। उसकी जीभ का रंग काला पड़ जाता है। और वो बाहर की और लटक जाती है इस बीमारी में ७० प्रतिशत पशु तत्काल मर जाते है। इसलिए इसका उपचार लक्षण पता चलते ही जितना जल्दी हो सके करना चाहिए। इस रोग से मरे हुए पशु को दफ़ना चाहिए उसे फेंकना नही चाहिए वरना उसके संक्रमण से अन्य पशु इसी बीमारी के चपेट में आकर मर जाते है।
4 खुर मुहँ पका रोग (foot and mouth disease )
पशुओं में खुर मुखपाक रोग अत्यधिक संक्रमण एवं घातक रोग होता है। यह रोग फटे खुर वाले पशुओं में होता है। यह रोग कभी भी किसी भी मौसम में हो सकता है। इस रोग के लक्षण रोग ग्रसित पैर का ज़मीन पर बार बार पटकना लगडा कर चलना खुर के आसपास सूजन रहना खुर में घाव और कीड़े पड़ना मुहँ से लार पटकना मुहँ जीभ ओष्ट पर छाले हो जाना स्वस्थ होने के बाद भी हापना बुखार का आना होठ लटक जाना रोग के अधिक बड जाने पर नथुने में फोफले बन जाना। दुधारू पशु में दूध की कमी आ जाती है उसकी कार्य करने की क्षमता कम हो जाती है।
5 विष ज्वर/बाबला रोग (anthrax )
यह भी एक संक्रमित रोग है। गाय बेल भैस के अलावा यह अन्य पशुओं में भी होता है। यह रोग कुत्तों और सुअर में नही होता है। इस बीमारी में पशु को 106 या 107 डिग्री तक तेज़ बुखार रहता है। इसमें पशु की त्वचा का रंग मटमैला और नीला पड़ जाता है। पशु की आँखो की चमक ख़तम हो जाती है। इसमें पशु बेचन होकर खूटे के चक्कर लगता है। और दर्द के मारे चिल्लाते भी है। गोबर के साथ खून का आना और गहरे रंग का पेशाब आना इसके लक्षण है। फिर पशु बेहोश हो जाता है एक दो दिन बाद उसकी मृत्यु हो जाती है।
6 फुफ्फुस ज्वर (contagious pleuro pneumonia)
इस रोग को निमोनिया भी बोलचाल की भाषा में कहते है। यह बहुत ही सूक्ष्म जीवाणु द्वारा उत्पन्न होता है। इसमे सबसे पहले पशु को तेज़ बुखार आता है। उसमे सभी लक्षण निमोनिया के दीखते है। पशु सुस्त हो जाता है और खाना पीना छोड़ देता है। श्वास लेने छोड़ने में परेशानी आती है। नाक में सर्दी रहती है और बार बार ख़ासी का ठसका उठता रहता है। यह रोग अत्यधिक तेज़ हो जाने पर पशु की श्वास रुक जाती है। और पशु की मृत्यु हो जाती है।
7 सक्रमक गर्भपात (brucelosis)
यह रोग विशेष कर गाय और भेसो में होता है। यह रोग बुसेला कीटाणु एवं संक्रमण के कारण होता है। इसमें बच्चा समय से पहले ही गर्भ में गिर जाता है इस रोग में पांचवें या आठवें माह में ही गर्भपात हो जाता है। जिससे पशु की जेर गर्भ में ही रह जाती है जिसे निकलना अतिआवश्यक हो जाता है। इस रोग में योनी और गर्भाशय में सूजन आ जाती है। और योनी का बाहरी भाग लाल हो जाता है।
8 थनैला रोग (mastitis )
यह भी एक जीवाणु जन्य संक्रमित रोग है। जो की दुधारू पशुओं में होता है। यह रोग कई तरीके के जीवाणु विषाणु यीस्ट एवं फफूंद और मोल्ड के संक्रमण के कारण होता है। इस रोग के लक्षण में सर्वप्रथम पशु के थन गर्म हो जाते है। थनों में सूजन एवं दर्द रहता है। इस दौरान पशु के शरीर का तापमान भी बड जाता है और पशु के दूध में की मात्रा और गुणवत्ता कम हो जाती है। दूध में खून का छटका भी आता है।
9 खूनी पेशाब आना (contagious red water )
इस रोग में पशु को तेज़ बुखार आता है। जिससे आँख और जीभ पर पीलापन आ जाता है। पेशाब के साथ साथ खून भी आने लगता है एवं दस्त लग जाती है
10 दुग्ध ज्वर (milk fever)
मिल्क फीवर ज्यादा दूध देने वाले पशुओं में केल्सियम की कमी के कारण होता है। यह रोग प्राय 5 से 10 साल वाली मादा पशु में प्रजनन के तीन दिन के अन्दर इसके लक्षण दिखाई देते है। जिसमे पशु के शरीर का तापमान कम हो जाता है। पशु बेचैन रहता है उसके शरीर में अकडन आ जाती है। जिस से वो टिक से चल फिर नही पता है और एक तरफ अपनी गर्दन लटकाए बैठा रहता है। यदि हम उसके सिर और गर्दन को सीधा करते है तो भी वह फिर से उसी ओर मोड़ के बेट जाता है।
11 सुखा रोग (john disease)
यह भी एक संक्रमित रोग है जो ” वैसीलस ” नामक कीटाणु से लगता है। इस रोग में ये जीवाणु पशु की लार गोबर मूत्र आदि के माध्यम से बाहर निकलते रहते है। इस रोग का पता बहुत ही धीरे से चलता है। इस रोग में पशु सुस्त रहता है उसके शरीर में खून की कमी हो जाती है। पतला पतला गोबर करता है उसके जबड़े के नीचे सूजन रहती है इस रोग से पशु साल भर में मर जाता है।
12 पशु में चेचक रोग (cow pox )
इस रोग में पशु के शरीर का तापमान ज्यादा हो जाता है। एवं पशु के शरीर पर फफोले जैसे दाने दिखने लगते है। यह रोग अधिकतर गाय और बेल में होता है भैस पर इसका असर बहुत ही कम होता है। यह रोग बकरियों और भेडो के मेमनों को भी अधिक प्रभावित करता है। जिसमे उनके शरीर के नाज़ुक भाग पहले प्रभावित होते है। जैसे आँखो के चारों तरफ का भाग जांघों के अंदरुनी हिस्सा ऑतो में सूजन आ जाती है।
13 जबड हड्डा एवं कंठजीभा रोग
जबड हड्डा रोग में में पशु के जबड़े की हड्डी बड जाती है। फिर उसमे धीरे धीरे फोड़े होने लगते है। और भूख लगने पर भी सही तरीके से खा पी नही पता है। परिणाम स्वरूप पशु कमजोर हो जाता है।
कंठजीभा रोग भी जबड हड्डा रोग से मिलता जुलता ही रोग होता है। इसमें पशु की जीभ सूज कर कठोर हो जाती है। और वो भी खा नही पता है और कमजोर हो जाता है। यह दोनों ही रोग पशु की कमजोर हड्डी और जीभ जैसी ग्रथियो को प्रभावित करते है।
14 पशु में चर्म रोग- खुजली,गजचर्म,और दाद
मित्रों आपने कई बार पशुओं को दीवार पेड़ आदि से अपने शरीर और सींगों को खुजाते देखा होगा। उसे हमें कभी भी नॉर्मली नही लेना चाहिए क्यों की ये गजचर्म हो सकता है। इसमें पशु के शरीर के बाल धीरे धीरे उड़ जाते है। और जिस जगह ज्यादा खुजली चलती है उस वाह की त्वचा सख़्त हो जाती है। और धीरे धीरे वो पुरे शरीर पर फेल जाता है।
दाद भी एक संक्रमित रोग है जो एक पशु से दूसरे पशु में फेल जाता है। यह रोग अधिकतर बरसात के बाद में होता है यह रोग गंदगी और नमी के कारण होता है। इसमें रोगी पशु के शरीर पर गोल गोल दाग चस्ते पड़ जाते है जिससे पशु को बहुत तेज़ खुजली चलती है फिर उन धब्बों यानि दाद के चारों तरफ छोटी छोटी फुंसियां हो जाती है। और उन मे से पानी निकलने लगता है यदि वो अन्य पशु को लग जाये तो वो भी इस बीमारी की चपेट में आ जाता है।
1 5 सर्रा रोग ⇒
दोस्तों यह रोग ट्रिपैनोसोमा -एवेनसाई नामक परजीवी कीटाणु के कारण फैलता है। यह बीमारी मेरुदंड वाले पशु जैसे घोड़े,गधे ,ऊँट एवं खच्चरों में अधिक लगता है। यह रोग वर्षा ऋतु के बाद अधिक फैलता है। जो की मक्खियों द्वारा इसे फैलाया जाता है। इस रोग से पशु में बुखार आता है। पशु के खून में कमी आ जाती है पशु सुस्त रहता है। उसका वजन कम हो जाता है कोई कोई पशु चक्कर भी काटने लगते है। पशु की नज़र कमजोर हो जाती है। पशु दाँत पीसने लगता है बार बार मल मूत्र त्याग करता है। गाय भैंसों में इस रोग का आसानी से पता नही चल पाता है। क्यों की बाहरी लक्षण इतने स्पष्ट रूप से नही दीखते है।
16 पशु मुहँ के छाले एवं घाव ⇒
पशु के पेट में ख़राबी होने से उनके मुहँ में घाव और छाले हो जाते है। जिससे पशु के खाने पीने में दिक्कत होती है। वो दिन प्रतिदिन दुबला होता जाता है !यह रोग बढ़ने पर मुहँ के छाले पेट और आंतों में फेल जाते है। और पशु की मृत्यु हो जाती है। इसके लक्षण कभी कभी पशु को ज्वर आ जाता है। मुहँ से जाग निकलते है जीभ सूज जाती है। पशु की जीभ तालू होठ आदि लाल हो जाते है पशु खाना पीना छोड़ देता है।
17 अफ़रा रोग ⇨
यह रोग पशु के अधिक खाने से होता है जिसमे पशु का पेट फूल जाता है इस रोग के बारे में मैने पूरी जानकारी विस्तार से लिखी है। जिसमे रोग के लक्षण और बचाव के साथ साथ घरेलू उपचार एवं दवाइयों के बारे में लिखा है।
18 पशु में दस्त ⇨
पशु में दस्त लगने का मुख्य कारण अपच यानि पाचन क्रिया ढंग से नही होने से होती है। क्यों की कई बार पशु सडा गला दूषित भोजन और गन्दा पानी पी लेता है। और जुगाली करने के लिए पर्याप्त समय नही मिल पाने से और चारा खाते ही तुरंत काम पर लग जाने से ये रोग हो जाता है। इस रोग के कारण पशु पतला पतला गोबर करने लगता है बिना पची हुई वस्तु गोबर में निकालने लगता है। उसकी भूख कम हो जाती और प्यास बढ़ जाती है उसकी त्वचा सूख ने लगती है ये सब लक्षण पशु में दिखने लगते है।
19 कण्ठ अवरोध ⇒
जब पशु कोई ऐसी कड़ी वस्तु जैसे गाजर मूली गुठली या कोई फल को बिना चबाये निगल जाता है। तो वह भोजन की नली यानि गले में जा कर अटक जाता है। पशु बार बार उसे निगलने की कोशिस करता है। बार बार खासता है मुँह से लार निकलता है। ऐसी अवस्था में पशु काफी ज्यादा बेचैन हो जाता है। यदि उसके गले में वो वस्तु ज्यादा देर तक रहती है। तो पशु को अफ़रा हो जाता है। और पशु मर जाता है इसका एक ही उपाय है तत्काल अटकी हुई वस्तु को किसी भी उपाय से निकलवा दे या फिर पशु सर्जन से आपरेशन करवाये
- पशु जुगाली न करना ⇒
पशु को चारा खिला कर सीधे काम पर लगा देना ख़राब भोजन या चारा पशु को खिला देना जुगाली के लिए पर्याप्त समय ना देना पशु में बदहजमी आदि कारणों से पशु में यह रोग हो जाता है।
21 उदरशूल ⇨
80 प्रतिशत पशु रोग पशु के खान पान से संबंधित होते है। जब पशु कड़ी सुखी घास या टहनी आदि खा लेते है। और खाने के बाद या तो पानी नही पीते है। या काम पानी पीने से उदरशूल हो जाता है। इससे पशु के पेट में ज़ोरदार दर्द होता है पशु बार बार अपने पैर पटकता है दाँत पिसता है। पशु बे चैन रहता है बहुत काम और बदबूदार गोबर करता है।
22 पशु में कब्ज ⇨
पशु अधिक मात्रा में सूखा चारा और भूसा खा लेने और कम पानी पीने से एवं बदहजमी हो जाने पर पशु में कब्ज की शिकायत हो जाती है। जिसमे पशु सूखा कड़ा सख़्त गोबर करता है और कभी कभी गोबर भी नही कर पाता है। गोबर में कभी खून के छींटे या माँस की मात्रा भी आने लगती है।
23 खांसी ⇒
मौसम में परिवर्तन और बारिश में पशु का लगातार भीगना और फेफड़ों पर धूल का जम जाना एवं अपच के कारण पशु में खांसी हो जाती है। जिसमे पशु बार बार खांसी का ठसका उठता है। उसके उसके गले से खर्र खरर की आवाज़ निकलती है और कफ जम जाता है। ज्यादा समय तक खांसी रहने से पशु में निमोनिया और दमा जैसे रोग लग जाते है।
24 निमोनिया एवं दमा ⇒
मौसम के परिवर्तन और बरसात में बार बार भीगने और अधिक ठंडा पानी पीने से पशु में निमोनिया हो जाता है। जिसमे बुखार के साथ शरीर कांपने लगता है। पशु बेचैन रहता है उसे सास लेने में दिक्कत आती है। वह अपने नथुनों को बार बार फूलता है। और चलने और बैठने में पशु को परेशानी आती है उसकी आँखो का रंग लाल हो जाता है।
दमा दमे में पशु जल्दी जल्दी ख़स्ता है और बहुत ही ज़ोर कर के पशु को खाँसना पड़ता है। जिससे उसके पेट ओर खोख पर दबाव बढ़ता है और दर्द होता है खांसी के साथ बलगम भी आने लगता है। यह रोग बदहजमी लम्बे समय तक खांसी रहने और ज्यादा मेहनत करने से होता है।
25 पशु के पेशाब में खून आना ⇒
पशु के पेशाब में खून कही कारणों से आ सकते है। जैसे अधिक धूप में रहने या काम करने से किसी तरह की ज़हरीली घास या पेड़ पोधों के पत्ते खा लेने से या फिर पथरी हो जाने पेशाब की नली में घाव हो जाने से किसी अन्य पशु के द्वारा उस पशु को सींगों से कमर गुर्दो पर चोट पहुँचाने से पशु में मूत्र के साथ खून आने लगता है और तेज़ बुखार भी पशु में आ जाता है।
26 पशुओं में पीलिया ⇨
यह रोग पशु में जिगर की ख़राबी के कारण होता है। जिसमे आँखों की झिल्लियों का रंग पीला पड़ जाता है ।पशु पिले रंग का पेशाब करने लगता है। इसमें पशु की की भूख मर जाती है। और प्यास बढ़ जाती है। पशु कमजोर होने लगता है और पशु के शरीर का तापमान घटता बढ़ता रहता है।
- मर्गी ⇒
यह रोग खास कर के पशुओं के बच्चों में होता है। इसका मुख्य कारण पशु के पेट के कीड़ों का पशु के दिमाग में चढ़ जाने से होता है। जिसमे पशु अचानक कांपने लगता और चक्कर खा कर गिर जाता है। और बेहोश हो जाता है इस अवस्था में पशु के हाथ पैर अकड़ जाते है और मुहँ से झाग आने लगते है।
28 पशु को लू लगना ⇒
वैसे तो सभी पशु पलकों को पता होता है। की पशु में लू केसे लगती है फिर भी में यहाँ बता देता हु ताकि अगली पोस्ट में रोगों के उपचार केसे करे उसमे इसके उपाय बता सके यह रोग गर्मी के दिनों में तेज़ धूप और गर्म हवाओं के लगने से होता है इसमें पशु ज़ोर ज़ोर से हापने लगता है पशु में ज्वर रहता है पशु बहुत कम खाता पिता है।
29 पशु को ज़हरीले जानवर काट जाने पर ⇒
कई बार पशु को जहरीले जानवर किट काट लेते है। जैसे बिच्छू ,ततेया ,मधुमक्खी आदि काट जाने पर पशु अचानक बेचैन हो जाता है। और उसे काटे गये स्थान पर जोरों से जलन होने लगती है। और सर्प के काटने पर पशु में शीतलता आ जाती है। पशु की आंखे पथरा जाती है पशु के शरीर का रंग काला नीला पड जाता है। पशु के नाड़ी की गति कम हो जाती है। और पशु के मुँह से झाग निकलने लगते है।
3o मसाने में पथरी ⇒
यह रोग पशु में रूखे सूखे एवं भारी पर्दाथ और कम पानी और चुनायुक्त अधिक पानी पीने से होता है। इसमें पशु के गुर्दे ,मसाने में तेज़ दर्द होता है जिससे पशु बार बार उठता बैठता है। पशु बेचैन रहता है पशु में मूत्र रुक रुक कर बूंद बूंद आता है। मूत्र का रंग गहरा लाल रक्त मिश्रित रहता है।
31 कृमि ⇒
कृमि कई रूप रंग आकर छोटे मोटे हो सकते है।अंकुश कृमि ,फीता कृमि ,पिन कृमि ,गोल चपटे कृमि ,फुफ्फुस कर्मी आदि इनकी कई सारी प्रजाति होती है। इन कृमियों के कारण कई सारे रोग पैदा हो जाते है। कृमि पशु के पेट आंतो और फेफड़े आदि अंगों में रहते है। जो की गोबर और मूत्र जरिये बाहर निकलते है। और संक्रमण फैलाते है। ये कृमि सभी तरह के पशुओं में होते है। जैसे गाय ,भैस ,बैल ,ऊट ,भेड़ बकरी ,घोड़ा ,सुअर ,कुत्ता ,बिल्ली ,मुर्गी में भी कई प्रकार से पाए जाते है। पशुओं के बच्चों में पेट के कीड़े की समस्या भी कृमि और बाहरी परजीवी के दुवारा होती है ।इन कृमियों के कारण कई सारे रोग पशु में लगते है। जैसे चर्म रोग ज्वर दस्त पेशीच उपज कब्ज आदि।
32 बवासीर ⇒
यह रोग जिगर और ज्यादा समय से पशु में कब्ज रहने से होता है। इस रोग की पहचान करने के लिए पशु यदि गोबर के साथ खून मिला हुआ आता है। तो पशु को बवासीर हो जाता है। इस रोग में पशु के मलद्वार पर मस्से हो जाते है।
33 जुकाम और सर्दी ⇒
यह रोग अधिक ठंडा पानी पी लेने से या फिर पशु का तेज़ गर्मी से अधिक ठंडी जगह पर आ जाने से होता है। कभी कभी पशु को ज्यादा गर्मी में ठंडे पानी से नहला देने से भी हो जाता है। इस रोग में पशु को बार बार छींक आती है नाक से पानी बहता है और नाक की झिल्ली लाल हो जाती है! ज्यादा सर्दी रहने पर तेज़ बुखार भी आ जाता है।
34 पशु में लकवा ⇒
इस रोग में पशु का कोई अंग हिस्सा काम करना बंद कर देता है।यह रोग रीड की हड्डी में कीड़े पड़ने चोट लगने से हो जाता है इसके अलावा पशु कभी जहरीली घास खाने से भी हो सकता है।
35 केल्सियम और फास्फोरस की कमी से होने वाले रोग ⇨
कैल्शियम और फास्फोरस की कमी के कारण पशु में निम्न रोग लग जाते ह ।
पशु को भूख नही लगना
रीड की हड्डी में टेढ़ापन आ जाना
पशु के शरीर का ग्रोथ नही कर पाना
दूध में कमी आ जाना
पशु का गर्भ धारण नही कर पाना
फास्फोरस की कमी होने से पशु हड्डी और मॉस खाना स्टार्ट कर देता है।
मित्रों इन रोगों के अलावा भी पशु में कई सारे रोग होते है। जैसे
पाईरो प्लाज्म से होने वाले रोग ,काक्सीडिया से खूनी पेचिस होता है। ,प्रोटोजोआ से मलेरिया ,हेपाटोजुन ,आदि रोग लगते है।
दोस्तों इन मुख्य रोगों के अलावा भी पशुओं में कई सारे रोग होते है जिनकी समय समय पर पहचान कर के उचित इलाज़ पशुपालकों को करवाना चाहिए ताकि उनका पशु असमय ना मरे
निष्कर्ष: जनसंख्या में भारी वृद्धि, शहरीकरण और आय वृद्धि के कारण गाय के दूध और गोमूत्र जैसे अन्य उत्पादों की मांग तेजी से बढ़ रही है. देसी गाय के A2 दूध की श्रेष्ठता की वैज्ञानिक स्थापना के कारण देसी गाय के दूध की मांग तथा प्रति लीटर मुल्य में वृद्धि हुई है. जिसके स्वरुप किसानों के मुनाफे में इजाफा हुआ है. केंद्र और राज्य सरकार देसी गाय पालन को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न योजनाओं के तहत सब्सिडी प्रदान करती है. इस प्रकार किसान आसानी से न्यूनतम निवेश के साथ देसी गाय डेयरी फार्म शुरू कर सकते हैं और निश्चित लाभ कमा सकते हैं.
दुधारू नस्लों के चुनाव के लिये सामान्य प्रक्रिया
बछड़ो के झुंड से बछड़ा चुनना व मवेशी मेला से गाय चुनना भी कला है। एक दुधारू किसान को अपना गल्ला बनाकर काम करना चाहिये। दुधारू गाय को चुनने के लिये निम्न बिंदुओं को ध्यान में रखा जाना चाहिये-
- जब भी किसी पशु मेले से कोई मवेशी खरीदा जाता है तो उसे उसकी नस्ल की विशेषताओं और दुग्ध उत्पादन की क्षमता के आधार पर परखा जाना चाहिये।
- इतिहास और वंशावली देखी जानी चाहिये क्योंकि अच्छे कृषि फार्मों द्वारा ये हिसाब रखा जाता है।
- दुधारू गायों का अधिकतम उत्पादन प्रथम पांच बार प्रजनन के दौरान होता है। इसके चलते आपका चुनाव एक या दो बार प्रजनन के पश्चात् का होना चाहिये, वह भी प्रजनन के एक महीने बाद।
- उनका लगातार दूध निकाला जाना चाहिये जिससे औसत के आधार पर उसकी दूध देने की क्षमता का आकलन किया जा सके।
- कोई भी आदमी गाय से दूध निकालने में सक्षम हो जाये और उस दौरान गाय नियंत्रण में रहे।
- कोई भी जानवर अक्टूबर व नवंबर माह में खरीदा जाना सही होता है।
- अधिकतम उत्पादन प्रजनन के 90 दिनों तक नापा जाता है।
अधिक उत्पादन देने वाली गाय नस्ल की विशेषताएं
- आकर्षक व्यक्तित्व मादाजनित गुण, ऊर्जा, सभी अंगों में समानता व सामंजस्य, सही उठान।
- जानवर के शरीर का आकार खूँटा या रूखानी के समान होनी चाहिये।
- उसकी आंखें चमकदार व गर्दन पतली होनी चाहिये।
- थन पेट से सही तरीके से जुडे हुए होने चाहिये।
- थनों की त्वचा पर रक्त वाहिनियों की बुनावट सही होनी चाहिये।
- चारो थनों का अलग-अलग होना व सभी चूचक सही होनी चाहिये।
व्यावसायिक डेयरी फार्म के लिये सही नस्ल का चुनाव- सुझाव
- भारतीय स्थिति के अनुसार किसी व्यावसायिक डेयरी फार्म में न्यूनतम 20 जानवर होने चाहिये जिनमें 10 भैंसें हो व 10 गायें। यही संख्या 50:50 अथवा 40:60 के अनुपात से 100 तक जा सकती है। इसके पश्चात् आपको अपने पशुधन का आकलन करने के बाद बाज़ार मूल्य के आधार पर आगे बढ़ाने के बारे में सोचना चाहिये।
- मध्य वर्गीय, स्वास्थ्य के प्रति जागरूक भारतीय जनमानस सामन्यतः कम वसा वाला दूध ही लेना पसंद करते है। इसके चलते व्यावसायिक दार्म का मिश्रित स्वरूप उत्तम होता है। इसमें संकर नस्ल, गायें और भेंसे एक ही छप्पर के नीचे अलग अलग पंक्तियों में रखी जाती है।
- जितना जल्दी हो सके, बाज़ार की स्थिति देखकर तय कर लें कि आप दूध को मिश्रित दूध के व्यापार के लिये किस से स्थान का चुनाव करेंगे। होटल भी आपके ग्राहकी का 30 प्रतिशत हो सकते है जिन्हे भैंस का शुद्ध दूध चाहिये होता है जबकि अस्पताल व स्वास्थ्य संस्थान शुद्ध गाय का दूध लेने को प्राथमिकता देते है।
व्यावसायिक फार्म के लिये गाय अथवा भैंस की नस्ल का चुनाव करना
गाय
- बाज़ार में अच्छी नस्ल व गुणवत्ता की गायें उपलब्ध है व इनकी कीमत प्रतिदिन के दूध के हिसाब से 1200 से 1500 रूपये प्रति लीटर होती है। उदाहरण के लिये 10 लीटर प्रतिदिन दूध देनेवाली गाय की कीमत 12000 से 15000 तक होगी।
- यदि सही तरीके से देखभाल की जाए तो एक गाय 13 – 14 महीनों के अंतराल पर एक बछडे क़ो जन्म दे सकती है।
- ये जानवर आज्ञाकारी होते है व इनकी देखभाल भी आसानी से हो सकती है। भारतीय मौसम की स्थितियों के अनुसार होलेस्टिन व जर्सी का संकर नस्ल सही दुग्ध उत्पादन के लिये उत्तम साबित हुए है।
- गाय के दूध में वसा की मात्रा 3.5 से 5 प्रतिशत के मध्य होता है व यह भैंस के दूध से कम होता है।
भैंस
- भारत में हमारे पास सही भैंसों की नस्लें है, जैसे मुर्रा और मेहसाणा जो कि व्यावसायिक फार्म की दृष्टि से उत्तम है।
- भैंस का दूध बाज़ार में मक्खन व घी के उत्पादन के लिये मांग में रहता है क्योंकि इस दूध में गाय की दूध की अपेक्षा वसा की मात्रा अधिक होती है। भैंस का दूध, आम भारतीय परिवार में पारंपरिक पेय, चाय बनाने के लिये भी इस्तेमाल होता है।
- भैंसों को फसलों के बाकी रेशों पर भी पोषित किया जा सकता है जिससे उनकी पोषणलागत कम होती है।
- भैंस में परिपक्वता की उम्र देरी से होती है और ये 16-18 माह के अंतर से प्रजनन करती है। नर भैंसे की कीमत कम होती है।
- भैंसो को ठन्डा रखने के साधनों की आवश्यकता होती है, जैसे ठन्डे पानी की टंकी, फुहारा या फिर पंखा आदि।
देसी गौवंश को प्रोत्साहन
देसी नस्ल के गौवंश को बढ़ावा देने के लिए केन्द्र और राज्य सरकारों की ओर से सब्सिडी देने की योजनाएँ हैं। इनका लाभ उठाने के लिए पशुपालक किसानों को अपने नज़दीकी पशुपालन विभाग से सम्पर्क करना चाहिए। गौ-पालन के लिए बैंकों से आसान शर्तों और रियायती ब्याज़ दरों पर कर्ज़ भी मिलता है। इसका लाभ लेने के इच्छुक लोगों को अपने नज़दीकी बैंक से सम्पर्क करना चाहिए।
कुलमिलाकर, डेयरी सेक्टर में दिलचस्पी रखने वाले गौपालकों के लिए देसी नस्ल की गायें कम निवेश में बढ़िया कमाई का ज़रिया हैं, बशर्ते पशुपालक किसान गायों के चारे-पानी, देखरेख-उपचार का उचित ख़्याल रखें। सदियों से पशुपालन का मूल मंत्र रहा है कि पशुओं को औलाद की तरह पालना चाहिए तभी वो कमाऊ पूत साबित होते हैं। इसीलिए गौपालन को आमदनी का सुरक्षित ज़रिया बनाने के लिए गौवंश का बीमा करवाना और इसे नियमित रूप से नवीकृत कराते रहना भी बेहद ज़रूरी है।
पशुपालक गिर गाय रखने के लिए ध्यान रखें कुछ आवश्यक बातें!
ज्यादातर पशुपालक देसी गाय पालन को घाटे को सौदा मनाते है लेकिन कुछ पशुपालक देसी गाय (गिर) को पालकर अच्छा मुनाफा कमा रहे है। दूध ही नहीं बल्कि उससे बने उत्पादों को बेच रहे है। खुद पालने के बाद पशुपालक दूसरों को भी यही सलाह देते है कि अगर डेयरी शुरू कर रहे है तो देसी गाय ही पालो। क्योंकि इनको पालने के कई फायदे जो और गायों में कम है। गिर गाय को भारत की सबसे ज्यादा दुधारू गाय माना जाता है। इस गाय के शरीर का रंग सफेद, गहरे लाल या चॉकलेट भूरे रंग के धब्बे होते है। इनके कान लम्बे होते हैं और लटकते रहते हैं। इनके शरीर की त्वचा बहुत ही ढीली और लचीली होती है। सींग पीछे की ओर मुड़े रहते हैं। मादा गिर का औसत वजन 385 किलोग्राम और ऊंचाई 130 सेंटीमीटर होती है जबकि नर गिर का औसतन वजन 545 किलोग्राम तथा और 135 सेंटीमीटर होती है। गिर गाय का औसत दूध उत्पादन 2110 लीटर है। यह गाय प्रतिदिन 12 लीटर से अधिक दूध देती है। इसके दूध में 4.5 फीसदी वसा की मात्रा होती है |
गीर गाय का उचित खाना:-
👉🏻गीर गाय को उचित पोषण देना अनिवार्य होता है अगर उन्हें सही पोषण नहीं मिल पता है तो वे कम दूध का उत्पादन करते है। जिस प्रकार एक व्यक्ति अथवा मेहमान हमारे घर रहने अत है तो हम कुछ दिनों में उसकी पसंद नापसंद सब जान लेते है ठीक उसी प्रकार पशु आहार भी एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं गीर गाय पालन में। डॉक्टर के मुताबिक़ गीर गौ को उच्च पोषण की आवश्यकता अधिक होती है। गाय के खाने के सामान को रखने के लिए एक स्टोर रूम का भी प्रबंध करना चाइये। ताकि मौसम बदलने पर या मार्किट में उस खाने की कमी होने पर हम तुरंत उपलभ्ध करवा सके। 👉🏻बरसीम की सूखी घास, लूसर्न की सूखी घास, जई की सूखी घास, पराली, मक्की के टिंडे, ज्वार और बाजरे की कड़बी, गन्ने की आग, दूर्वा की सूखी घास, मक्की का आचार, जई का आचार, बरसीम (पहली, दूसरी, तीसरी, और चौथी कटाई), लूसर्न (औसतन), लोबिया (लंबी ओर छोटी किस्म), गुआरा, सेंजी, ज्वार (छोटी, पकने वाली, पकी हुई), मक्की (छोटी और पकने वाली), जई, बाजरा, हाथी घास, नेपियर बाजरा, सुडान घास, मक्की/ गेहूं/ चावलों की कणी, चावलों की पॉलिश, छाणबुरा/ चोकर, सोयाबीन/ मूंगफली की खल, छिल्का रहित बड़ेवे की ख्ल/सरसों की खल, तेल रहित चावलों की पॉलिश, शीरा, धातुओं का मिश्रण, नमक, नाइसीन आदि।
गीर गाय को देने वाला खाना कुछ इस प्रकार के होते है:- 👉🏻भूसी, नेवारी, सरसों की खल्ली, मक्का की दर्री, हरी साग सब्ज़ियाँ, पुआल, कुट्टी, गाजर, मूंगफली के छिलके आदि।
गीर गाय के लिए जल प्रबंधन :- जिस जगह पर आप गाय को रख रहे हों ध्यान रहे की उस जगह पर जल का प्रबंध अच्छा होना चाहिए। गायों को नहाने के लिए या फिर उनके जगह की साफ़ सफाई के लिए पानी की बहुत खपत होती है। मगर गाय ज्यादा नहाना पसंद नहीं करती इसलिये उन्हें ज्यादा पानी से नहलाने की जरुरत नहीं होती अन्य था वो अच्छा महसूस नहीं करती और इसका असर सीधा दूध पर पड़ता है।
गीर गाय में पाए जाने वाले रोग:-
👉🏻जब कभी भी आप गौ पालन के लिए गाय खरीदें तो रोग मुक्त गाय हीं खरीदें। इसके अलावा गाय का डॉक्टर से संपर्क बना के रखे ताकि जब कभी भी आपकी गाय बीमार हो तो फ़ौरन हीं डॉक्टर को बुला कर उनका इलाज करवा सके। गाय के आस पास से मच्छर, मक्खी या फिर कोई भी कीटाणु जिससे गाय हो हानि पहुँच सकती है उसे दूर करने के लिए गाय के पास धुंआ जला कर रख देना चाहिए। वैसे तो गीर गाय की ये विशेषता है की वह अपनी पूँछ से किसी भी मक्खी या मछर को अपने ऊपर बैठने नहीं देती। जिस जगह पर कोई भी पशु मरा हो उस जगह को फिनाइल या फिर चुने का घोल से साफ़ करना चाहिए।
दस्त का इलाज:- मुंह द्वारा या टीके से सलफा दवाइयां दें और साथ ही 5 प्रतिशत गुलूकोज़ और नमक का पानी ज्यादा दें।
दूध निकालने का सही समय:- 👉🏻एक दिन में दो या तीन बार दूध देती है। इसलिए आपको चाहिए की आप नित्य हीं उनका दूध निकाले। दूध निकालने का सही समय होता है :- 👉🏻सुबह में 5 बजे से 7 बजे: सुबह में 5 बजे से 7 बजे के बिच का समय गाय का दूध दुहना सही रहता है। इस समय में गाय अच्छी मात्रा में दूध देती है। 👉🏻शाम 4 बजे से 6 बजे: सुबह के बाद शाम के समय में गाय का दूध निकलने से ज्यादा दूध की प्राप्ति होती है। इस तरह से आप एक दिन में 2 बार कर के ज्यादा से ज्यादा मात्रा में दूध की प्राप्ति कर सकते है। गीर गाय का दूध कैसे निकालें:- 👉🏻गाय को हर वक्त बांध कर नहीं रखना चाहिए उन्हें समय समय पर खुली हवा में घास चरने के लिए छोड़ देना चाहिए इससे गाय स्वस्थ रहती है और दूध भी ज्यादा देती है। गाय के दूध को दुहने का भी एक तरीका होता है। चलिए हम जानते है कैसे गाय का दूध निकला जाता है :- 👉🏻जब कभी भी गाय का दूध दुहना हो तो उन्हें शेड में ले आयें जहां उनके खाने का इन्तेजाम किया हुआ हो। 👉🏻परन्तु गाय का दूध निकल रहा हो तो तब ध्यान दे के उस समय किसी भी प्रकार की अनवांछित ध्वनि उन्हें सुनाई न दे क्योंकि गाय डर जाती है और दूध रुक जाता है 👉🏻जब तक आप एक गाय को दुह रहें हो तब तक के लिए बांकी की गायों को घास चरने के लिए छोड़ दें। गिर गाय के बारे मे कुछ अन्य रोचक बाते:- 👉🏻गीर नस्ल की गाय का मुख्य स्थान गुजरात प्रांत के दक्षिणी काठियावाड़ के गीर जंगल है। यह गुजरात के जिला जूनागढ़, भावनगर, अमरेली और राजकोट के क्षेत्र में पाई जाती है। 👉🏻यह दुधारू प्रजातियों की दूसरी श्रेणी में गिनी जाती है। 👉🏻सूखे की स्थिति में और कुदरती आपदाओं के समय भी इसके अंदर दूध देते रहने की अद्भुत शक्ति होती है। 👉🏻गीर गाय ब्राजील मेक्सिको अमेरिका वैनेजुएला आदि अनेक देशों में अधिक संख्या में ले जाई गई है। 👉🏻गीर गाय का रंग सफेद और लाल रंग का मिश्रण होता है। पूरी तरह लाल रंग की गाय को भी गीर गाय ही माना जाता है। 👉🏻गीर गाय को यदि अनुकूल परिस्थितियों के अंदर रखा जाये तो यह 25-30 किलो दूध एक में दिन में देने की क्षमता रखती है। 👉🏻ब्राजील ने 1850 में गिर गाय, अंगोल गाय और कांकरेज गाय को भारत से लेकर जाना शुरु किया था। इस समय लगभग 50-60 लाख गिर गाय सिर्फ ब्राजील में ही पाई जाती है। 👉🏻शुद्ध गिर नस्ल की पूरे गुजरात में सिर्फ 3000 गाय ही बाकी रह गई है। 👉🏻1960 के बाद गुजरात सरकार ने गीर गाय के निर्यात पर पाबंदी लगा दी थी। गुजरात में गीर ने एक बयात में 8200 किलोग्राम दूध दिया है। गुजरात के फार्म हाउस में गीर गाय का एक दिन में 36 किलो दूध देने का रिकॉर्ड दर्ज है जबकि ब्राजील में गिर गाय से 50 किलो दूध एक दिन में लिया जा रहा है।
DR DEEPAK SINHA, DAIRY CONSULTANT, PATNA