पशुओ में थनैला रोग की पहचान और बचाव
डॉ ममता सैनी और डॉ. विकास सैनी
टीचिंग एसोसिएट, राजस्थान यूनिवर्सिटी ऑफ़ वेटरनरी एंड एनिमल साइंसेस, बीकानेर
काफ रियरिंग इन्चार्ज, साहीवाल प्रोजेनी टेस्टिंग प्रोजेक्ट, सूरतगढ़
Drsaini6@gmail.com, sainivikash627@gmail.com
थनैला रोग विश्व स्तर का रोग हैं। इसे स्तनशोथ और मेसटाईटिस भी कहते हैं। यह दुधारू पशुओं में लगने वाला मुख्य रोग है। यह रोग पशुपालकों के लिए आर्थिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण हैं। इस रोग से दूध की गुणवत्ता में कमी (रंग:लाल,पीला,सफेद गांठे, दूध का स्वाद नमकीन और वसा में कमी) आ जाती हैं। इस रोग से ग्रस्त पशु का दूध पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। यह रोग गायों, भैंसो, भेड़ और बकरियों में बैक्टीरिया, कवक और माइकोप्लाज्मा के साथ साथ मौसमी प्रतिकूलताओं की वजह से भी हो सकता है। इस रोग से ज्यादा दूध देने वाली गायें और पहले ब्यांत वाली गायें, विदेशी नस्ल और मिक्स नस्ल की गायें, ज्यादा प्रभावित होती हैं।
लक्षण
दूध निकालने के बाद थनों की दुग्ध नलिका कुछ समय के लिए खुली रहने से बैक्टीरिया दुग्ध नलिका में प्रवेश कर थनों के ऊतकों में ग्रोथ करके ऊतकों को नुकसान पहुचातें हैं,
सामान्यत: यह रोग प्रारम्भ में एक या दो थनों में होता हैं बाद में अन्य थन भी संक्रमित हो सकते है। पशु का शारीरिक तापमान बढ़ जाता हैं। पशु खाना पीना छोड़ देता हैं। थनों में भारीपन, लालिमा, सूजन, दर्द, गर्माहट गर्माहट और कड़ापन आ जाती हैं।
रोग का इलाज कैसे करें
थनों को ठंडा सेक देवे। थनों को लाल दवा (पोटेसियम पर मेगनेट) के घोल से धोये। एंटीबायोटिक ट्यूब जैसे पेंडिस्ट्रिन लगाना बहुत लाभकारी हैं।
ध्यान रखने योग्य बातें
पशु के थान को साफ–सुथरा, सूखा और फिनाइल के घोल का छिड़काव करते रहना चाहये। रोगी पशु को दूसरे पशुओ से आवश्यक रूप से अलग कर देना चाहिए। रोगी पशु को अंत में दुहे। जो थन सही है उसका दूध पहले निकालना चाहये। थनों में दूध ना रहे व दूध निकालने की तकनीक सही होनी चाहिए।