पशुओं में खुर और मुंह पका रोग के लक्षण, इलाज एवम् रोकथाम के उपाय

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पशुओं में खुर और मुंह पका रोग के लक्षण, इलाज एवम् रोकथाम के उपाय

राकेश दांगी,  तान्या सिंह, निधि सिंह, सुपनेश जैन, राहुल पाटीदार

परिचय

मुंह व खुर  पका रोग (Foot and Mouth Disease, FMD)  सामान्यत खुरों वाले पशुओं यानि गाय, भैंस, बकरी, भेड़ एवं सुअरों में होने वाला अत्याधिक संक्रामक रोग है।

कारण

यह रोग एक अत्यंत सूक्ष्म  Apthous  नामक विषाणु से होता है। इस विषाणु के सात मुख्य प्रकार व कई उप-प्रकार होते है: जिसमें मूक्खत O, A, Asia 1, C, SAT-1, SAT-2, SAT-3 है, तथा भारत में इस रोग के केवल तीन प्रकार O, A, Asia-1 के विषाणु पाए जाते है।

रोग से क्षति

  • इस बीमारी से भारत में प्रतिवर्ष लगभग 12-14 हजार करोड़ रुपये का प्रत्यक्ष नुकसान होता है।
  • दुधारू पशुओं में दूध की उत्पादकता में कमी आती है तथा बैलों में रोग आने पर काम करने की शक्ति कम हो जाती है ।
  • प्रजनन क्षमता में गिरावट आ जाती है।
  • छोटे पशुओं में दिल का दौरा पड़ने से मृत्यु हो जाती हैं!
  • ग्रसित भेड़, बकरी व सूअर के शरीर में दुर्बलता एवं ऊन व मीट उत्पादन में कमी आ जाती है।

लक्षण

इस बीमारी के मुख्य लक्षण

  • तेज बुखार
  • मुंह से अत्याधिक मात्रा में लार टपकती और झाग बनती है ।
  • जीभ होटो तथा मशुडो पर छाले बन जाते हैं जो बाद में फट कर धाव में बदल जाते हैं ।
  • खुरों के बीच घाव होने पर पशु लंगड़ा कर चलता है ।
  • मुंह में घाव होने की वजह से पशु आहार लेना और जुगाली करना बंद कर देता है ।
  • थन पर भी कभी-कभी छाले उमर जाते हैं, जिससे दूध देने की क्षमता कम हो जाती है ।
  • छोटे पशुओं में दिल का दौरा पड़ने से मृत्यु हो जाती हैं ।
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रोग का निदान

रोगी पशुओं के लक्षणों द्वारा एवं फफोले की खाल में विषाणु के प्रकार की जांच प्रयोगशाला में आधुनिक तकनीक (ELISA) द्वारा की जाती है।

 

 

सहायक उपचार

बुखार की अवस्था में पशु चिकित्सक से संपर्क करें।

(क) मुँह के घावों को धोने के लिए

  1. बोरिक एसिड (15 ग्राम प्रति लीटर पानी में)
  2. पोटाशियम परमैंगनेट (1 ग्राम प्रति लीटर पानी में)
  3. फिटकरी (5 ग्राम प्रति लीटर पानी में) का उपयोग करे

(ख) खुरों के घावों को फिनाइल (40 मि.ली. प्रति लीटर पानी में) के घोल से अच्छी तरह साफ करके कोई भी एंटीसेप्टिक लगानी चाहिए। पशु चिकित्सक के परामर्श पर ज्वरनाशी एवं  दर्दनाशक दवा का प्रयोग करें।

बचाव व रोकथाम

  • पशुपालकों को अपने सभी पशुओं (चार महीने से ऊपर) को टीका लगवाना चाहिए तथा प्राथमिक टीकाकरण के चार सप्ताह के बाद पशु को बूस्टर खुराक देनी चाहिए और प्रत्येक 6 महीने में नियमित टीकाकरण करवाना चाहिए।
  • टीकाकरण के दौरान प्रत्येक पशु के लिए अलग-अलग सुई का प्रयोग करें।
  • नये पशु को झुंड या गांव में लाने से पहले उसके खून (सीरम) की जांच अवश्य करवाएं।
  • नए पशुओं को कम से कम चौदह दिनों तक अलग बांध कर रखना चाहिए तथा आहार और अन्य प्रबन्ध भी अलग से ही करना चाहिए।
  • रोगी पशुओं को अन्य पशुओं से अलग रखिए। रोगी पशु के पेशाब, लार व बचे हुए चारे, पानी व रहने के स्थान को असंक्रमित करें (4 प्रतिशत सोडियम कार्बोनेट से)
  • पशुओं को पूर्ण आहार देना चाहिए जिससे खनिज एंव विटामिन की मात्रा पूर्ण रूप से मिलती रहे।
  • अगर किसी गांव या क्षेत्र में मुंह-खुर रोग से ग्रसित पशु हो तो पशुओं को सामुहिक चराई के लिए नहीं भेजे अन्यथा स्वस्थ पशुओं में रोग फेल सकता है।
  • रोगी पशुओं को पानी पीने के लिए आम स्त्रोत जैसे कि तालाब, नदियों पर नहीं भेजना चाहिए, इससे बीमारी फैल सकती हैं। पीने के पानी में 2 प्रतिशत सोडियम बाइकार्बोनेट घोल मिलाना चाहिए।
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