नवजात बछड़े/बछ़ड़ियों की मुख्य बीमारियॉ व उनकी रोकथाम

0
660

नवजात बछड़े/बछ़ड़ियों की मुख्य बीमारियॉ व उनकी रोकथाम
डॉ. दीपक निंगवाल, डॉ. रश्मि कुलेश डॉ. अलका सुमन एवं प्रितिबाला जमरा

नवजात बछडे़/बछड़ियों का बीमारियॉ से बचाव रखना बहुत आवश्यक है क्योंकि छोटी उम्र में कई बीमारियॉ उनकी मृत्यु का कारण बनकर पशुपालक को आर्थिक हानि पहुंचाती है। नवजात बछ़डे/बछ़डियों की प्रमुख बीमारियॉ निम्नलिखित है :-

1. कॉफ अतिसार (कॉफ डायरिया/व्हायट स्कौर) :- छोटे बच्चों में दस्त लगना उनकी मृत्यु का प्रमुख कारण है। इसके अनेक कारण हो सकते हैं। जिनमें अधिक मात्रा में दूध पी जाना, पेट में संक्रमण होना, पेट में कीड़े होना आदि शामिल है। बच्चे को दूध उचित मात्रा में पिलाना चाहिए। यह मात्रा बच्चे क ेवज़न का 1/10 भाग प्रर्याप्त होता है। अधिक दूध पिलाने से बच्चा उसे हज़म नही कर पाता और वह सफेद अतिसार का शिकार हो जाता है। कई बार बच्चा खूटे से स्वयं खुलकर मां का दूध अधिक पी जाता है और उसे दस्त लग जाते है।ऐसी अवस्था में बच्चे को एंटीबायोटिक्स अथवा कई अन्य एन्टिबैक्टीरियल दवाई देने की आवश्यकता पड़ती है जिन्हें मुह अथवा इंजेक्शन के द्वारा दिया जा सकता है। बच्चे के शरीर में पानी की कमी हो जाने पर ओ.आर.एस. का घोल अथवा इंजेक्शन द्वारा डेक्सट्रोज-सलाईन दिया जाता है। पेट के संक्रमण के उपचार के लिए गोबर के नमूने का परिक्षण करके उचित दवा का प्रयोग किया जाता है। कई बच्चों में कोक्सीडियोसिस में खुनी दस्त अथवा पेचिस लग जाते है। जिसका उपचार कोक्सीडियोस्टेट दवा का प्रयोग करके किया जाता है।

2. पेट में कीड़े पड जाना :- गाय अथवा भैंस के बच्चों के पेट में कीड़े हो जाते हैं जिससे वे काफी कमजोर हो जाते है। नवजात बच्चों में ये कीड़े मां के पेट से ही आ जाते है। इसमें बच्चों को दस्त अथवा कब्ज लग जाते है। पेट के कीड़ों के उपचार के लिए पिपराजीन दवा प्रयोग सर्वोत्तम है। गर्भावस्था के अंतिम अवधि में गाय या भैंस को पेट में कीड़े मारने की दवा देने से बच्चों में जन्म के समय पेट में कीड़े नही होते। बच्चों को 6 माह की आयु होने तक हर ड़ेढ-दो महीनों के बाद नियमित रूप् से पेट के कीड़े मारने की दवा (पिपराजीन अथवा गोली) अवश्य देनी चाहिए।

READ MORE :  Kidney Failure in Dogs

3. नाभि का सड़ना (नेवल इल) :- कई बार नवजात बछडे़/बछड़ियों की नाभि में संक्रमण हो जाता है जिससे उसकी नाभि सूज जाती है तथा उसमें पिक पड़ जाता है। कभी कभी तो मक्खियों के बैठने से उसमें कीड़े (मेगिट्स) भी हो जाते है। इस बिमारी में जल्दी उपचार नहीं करवाने से कई और जटिलतायें उत्पन्न होकर बच्चे को मृत्यु होने का खतरा रहता है। बच्चे के पैदा होने के बाद उसकी नाभि को निश्चित स्थान से काट कर उसकी नियमित रूप से एंटीसेप्टिक ड्रेसिंग करने तथा इसे साफ स्थान पर रखने से इस बीमारी को रोका जा सकता है।

4. निमोनिया :- बच्चों का यदि खासतौर पर सर्दियों में पूरा ध्यान ना रखा जाए तो उसको निमोनिया रोग होने की संभावना हो जाती है। इस बीमारी में बच्चे को ज्वर के साथ खांसी तथा सांस लेने में तकलीफ हो जाती है तथा वह दूध पीना बंद कर देता है। यदि समय पर इसका इलाज ना करवाया जाए तो इससे बच्चे की मृत्यु भी हो सकती है। एंटीबायोटिक अथवा अन्य रोगाणु निरोधक दवाईयों के उचित प्रयोग से इस बीमारी को ठीक किया जा सकता है। जाड़ों तथा बरसात के मौसम में बच्चों की उचित देख-भाल करके उन्हें इस बीमारी से बचाया जा सकता है।

5. बछड़े/बछड़ियों का टायफाइड (साल्मोनेल्लोसिस) :- यह भयंकर तथा छुतदार रोग है जो कि एक बैक्टीरिया द्वारा फैलता है। इसमें पशु को बुखार तथा खुनी दस्त लग जाते है। इलाज के अभाव में मृत्यु डर काफी अधिक हो सकती है। इस बीमारी में एंटीबायोटिक्स अथवा एन्टिबैक्टीरियल दवाई प्रयोग की जाती है। प्रभावित पशु को अन्य स्वस्थ पशुओं से अलग रखकर उसका उपचार करना चाहिए। पशुशाला की यथोचित सफाई रखकर तथा बछडे़/बछड़ियों की उचित देखभाल कर इस बीमारी को नियंत्रित किया जा सकता है।

READ MORE :  दुधारू पशुओं में इनफर्टिलिटी

6. मुंह व खुर की बीमारी (फुट एंड माउथ डिसिज) :- बड़े उम्र के पशुओं में तेज़ बुखार होने के साथ-साथ मुंह व खुर में छाले व घाव होने के लक्षण पाए जाते है। लेकिन बछडे़/बछड़ियों में मुंह व खुर के लक्षण बहुत कम देखे जाते है। बच्चों में यह रोग उनके हदय पर असर करता है जिससे थोड़े ही समय में उसकी मृत्यु हो जाती है। हालांकि वायरस (विषाणु) से होने वाली इस बीमारी का कोई ईलाज नहीं है लेकिन बीमारी हो जाने पर पशु चिकित्सक की सलाह से बीमार पशु को द्वितीय जीवाणु संक्रमण से अवश्य बचाया जा सकता है। यदि मुंह व खुर में घाव हो तो उन्हें पोटैशियम परमैग्नेट के 0.1 प्रतिशत घोल से साफ करके मुंह में बोरा-ग्लिसरीन तथा खुरों में फिनाइल व तेल लगाना चाहिए। रोग के नियंत्रण के लिए स्वस्थ बच्चों को बीमार पशुओं से दूर रखना चाहिए तथा बीमार पशुओं की देखभाल करने वाले व्यत्ति को स्वस्थ पशुओं के पास नहीं आना चाहिए। बच्चों को सही समय पर रोग निरोध्क टीके लगवाने चाहिए। बच्चों में इस बीमारी की रोकथाम के लिए पहला टीका एक माह, दूसरा तीन माह तथा तीसरा छः माह की उम्र में लगाने चाहिए। इसके पश्चात हर छः छः महीने बाद नियमित रूप में यह टीका लगवाना चाहिए।

डॉ दीपक निंगवाल
पशुचिकित्सा सहायक शल्यज्ञ पशु चिकित्सालय चंदवासाए जिला मंदसौर ;मण् प्रण्द्ध
डॉ रश्मि कुलेश
पशुचिकित्सा सहायक शल्यज्ञ पशु चिकित्सालय उकवा जिला बालाघाट ;मण् प्रण्द्ध
डॉण् अलका सुमन
सहायक प्राध्यापक पशु शरीर रचना विभाग पशु चिकित्सा एवं पशु पालन महाविद्यालय महू ;मण् प्रण्द्ध

READ MORE :  भेड़ और बकरियों के खतरनाक आंतरिक परजीवी हेमोन्कस कंटोर्टस

https://hi.vikaspedia.in/agriculture/animal-husbandry/92e93992494d93592a94293094d923-91c93e92891593e930940/92c91b94b902-938947-93890292c90292793f924-92e93992494d93592a94293094d923-91c93e92891593e930940

https://www.pashudhanpraharee.com/care-management-of-newborn-calf-of-dairy-cattle/

Please follow and like us:
Follow by Email
Twitter

Visit Us
Follow Me
YOUTUBE

YOUTUBE
PINTEREST
LINKEDIN

Share
INSTAGRAM
SOCIALICON