लेखक- सबीन भोगरा ,पशुधन विशेषज्ञ, हरियाणा
ये एक मेटाबोलिक डिसीज है जिसमें पशु ब्याने के 2–3 दिन बाद जमीन पर बैठा ही रहता है यह अधिक दूध देने वाली गायों में अधिक होता है इनमें भी हाॅलस्टीन गायें सबसे अधिक चपेट में आती है। विचित्र बात यह है कि इसमें पशु यु तो सक्रिय व सचेत रहता है लेकिन सिर्फ खड़ा नहीं हो पाता है। इसे एक ’’विषेश प्रकार का मिल्क फीवर’’ कहा जा सकता है। यह रोग किन खास कारणों से होता है यह स्पष्ट पता नहीं चल पाया है, लेकिन यह रोग मिल्क फीवर से ही संबंधित है। ऐसा माना जाता है कि ब्याने के बाद शरीर में प्रोटीन, फाॅस्फोरस, पोटेशीयम की कमी के कारण भी यह रोग हो सकता है। डाउनर काऊ को दो बार कैल्शियम लगाने के बाद भी कोई फर्क नहीं पडता है और पशु खड़ा नहीं हो पाता है।
मिल्क फीवर से ग्रसित पशु को जब इलाज नहीं हो पाता है तो पशु कई घंटों तक बैठा ही रहता है। इससे तंत्रिकाओं व मांसपेषियों पर दबाव पड़ता है। पेरेनियल व टिबियल नर्व बुरी तरह से डेमेज हो जाती है। ऐसे में पशु डाउनर काऊ सिन्ड्रोम (downer cow syndrome) से ग्रसित हो जाता है और बार–बार सहारा देकर खड़ा करने पर भी खड़ा नहीं हो पाता है। जब ऐसी स्थिति में पशु खड़ा नहीं हो पाता है तो अक्स ऐसे मामलों में दो तीन दिन तक भारी मात्रा में कैल्शियम देने से शरीर में कैल्शियम लेवल काफी अधिक हो जाता है और हृदय की मांसपेषियां अधिक सक्रिय होकर भारी सूजन आ जाती है। यह हार्ट की मांसपेषियों पर कैल्शियम की ओवरडोज के टाॅक्सिक इफेक्ट के कारण होता है।
मिल्क फीवर के इलाज के बावजूद पशु खड़ा नहीं हो पाता है। यद्यपि पशु सक्रिय व सचेत होता है तथा मदद करने पर खड़े होने की बार–बार कोशिश भी करता है, सहारे से खड़ा करने पर खड़ा हो जाता है, लेकिन सहारा हटते ही गिर जाता है।
भूख कम लगती है, पानी भी कम पीता है।
रेस्पिरेशन, जुगाली, गोबर व मूत्र करना सामान्य होता है।
टेम्प्रेचर — नाॅर्मल होता है लेकिन कभी–कभी रोग की आखरी अवस्था में सबनॉर्मल हो जाता है।
पिछले पैर तो मुड़े हुए ही रहते हैं लेकिन अगले पैरों की मदद से पशु बैठा–बैठा ही इधर–उधर खिसकता रहता है।
सामान्य तौर से यह रोग 1–2 सप्ताह तक चलता है लेकिन यह अवधि अलग–अलग होती है। यह इस बात पर निर्भर करता है कि नर्व और मसल्स का कितना नुकसान हुआ है, पशु के रखरखाव में कितना ध्यान दिया गया है। यदि इस दौरान कोई अन्य इन्फेक्षन हो जाये तो पशु की हालत गंभीर हो जाती है।
जो पशु एलर्ट नहीं है, बिल्कुल नहीं खाता है तो वह कोमा (Coma) में चला जाता है और निढ़ाल हो जाता है।
यदि डाउनर काऊ सिन्ड्रोम में कोई पशु सात दिन से अधिक जमीन पर पड़ा ही रहे (recumbancy) तो वह बच नहीं पाता है। लगातार कई दिनों तक बैठे या लेटे रहने से फेफड़े, किडनी, हार्ट की क्रियाये बुरी तरह प्रभावित होती है। आखिर में सेप्टिसीमिया (septicemia) या मायोकार्डाइटिस से पशु की मौत हो जाती है।
मोटे तौर पर यह कहा जा सकता है कि जो पशु मिल्क फीवर का इलाज देने के बाद भी 24 घंटों तक बैठा ही रहता है तो यह डाउनर काऊ सिन्ड्रोम समझा जाना चाहिये। ऐसे में इसे हापोकेल्षिमिया, हाइपोमेग्नीसिमीया, स्पाइनल कोर्ड की चोट आदि नहीं समझना चाहिये।
डाउनर काऊ सिन्ड्रोम (Downer Cow Syndrome) एक मेटाबोलिक डिसीज है जिसमें पशु ब्याने के 2–3 दिन बाद जमीन पर बैठा ही रहता है यह अधिक दूध देने वाली गायों में अधिक होता है इनमें भी हाॅलस्टीन गायें सबसे अधिक चपेट में आती है। विचित्र बात यह है कि इसमें पशु यु तो सक्रिय व सचेत रहता है लेकिन सिर्फ खड़ा नहीं हो पाता है। इसे एक ’’विषेश प्रकार का मिल्क फीवर’’ कहा जा सकता है। यह रोग किन खास कारणों से होता है यह स्पष्ट पता नहीं चल पाया है, लेकिन यह रोग मिल्क फीवर से ही संबंधित है। ऐसा माना जाता है कि ब्याने के बाद शरीर में प्रोटीन, फाॅस्फोरस, पोटेशीयम की कमी के कारण भी यह रोग हो सकता है। डाउनर काऊ को दो बार कैल्शियम लगाने के बाद भी कोई फर्क नहीं पडता है और पशु खड़ा नहीं हो पाता है।
मिल्क फीवर से ग्रसित पशु को जब इलाज नहीं हो पाता है तो पशु कई घंटों तक बैठा ही रहता है। इससे तंत्रिकाओं व मांसपेषियों पर दबाव पड़ता है। पेरेनियल व टिबियल नर्व बुरी तरह से डेमेज हो जाती है। ऐसे में पशु डाउनर काऊ सिन्ड्रोम (downer cow syndrome) से ग्रसित हो जाता है और बार–बार सहारा देकर खड़ा करने पर भी खड़ा नहीं हो पाता है। जब ऐसी स्थिति में पशु खड़ा नहीं हो पाता है तो अक्स ऐसे मामलों में दो तीन दिन तक भारी मात्रा में कैल्शियम देने से शरीर में कैल्शियम लेवल काफी अधिक हो जाता है और हृदय की मांसपेषियां अधिक सक्रिय होकर भारी सूजन आ जाती है। यह हार्ट की मांसपेषियों पर कैल्शियम की ओवरडोज के टाॅक्सिक इफेक्ट के कारण होता है।
मिल्क फीवर के इलाज के बावजूद पशु खड़ा नहीं हो पाता है। यद्यपि पशु सक्रिय व सचेत होता है तथा मदद करने पर खड़े होने की बार–बार कोशिश भी करता है, सहारे से खड़ा करने पर खड़ा हो जाता है, लेकिन सहारा हटते ही गिर जाता है।
भूख कम लगती है, पानी भी कम पीता है।
रेस्पिरेशन, जुगाली, गोबर व मूत्र करना सामान्य होता है।
टेम्प्रेचर — नाॅर्मल होता है लेकिन कभी–कभी रोग की आखरी अवस्था में सबनॉर्मल हो जाता है।
पिछले पैर तो मुड़े हुए ही रहते हैं लेकिन अगले पैरों की मदद से पशु बैठा–बैठा ही इधर–उधर खिसकता रहता है।
सामान्य तौर से यह रोग 1–2 सप्ताह तक चलता है लेकिन यह अवधि अलग–अलग होती है। यह इस बात पर निर्भर करता है कि नर्व और मसल्स का कितना नुकसान हुआ है, पशु के रखरखाव में कितना ध्यान दिया गया है। यदि इस दौरान कोई अन्य इन्फेक्षन हो जाये तो पशु की हालत गंभीर हो जाती है।
जो पशु एलर्ट नहीं है, बिल्कुल नहीं खाता है तो वह कोमा (Coma) में चला जाता है और निढ़ाल हो जाता है।
यदि डाउनर काऊ सिन्ड्रोम में कोई पशु सात दिन से अधिक जमीन पर पड़ा ही रहे (recumbancy) तो वह बच नहीं पाता है। लगातार कई दिनों तक बैठे या लेटे रहने से फेफड़े, किडनी, हार्ट की क्रियाये बुरी तरह प्रभावित होती है। आखिर में सेप्टिसीमिया (septicemia) या मायोकार्डाइटिस से पशु की मौत हो जाती है।
मोटे तौर पर यह कहा जा सकता है कि जो पशु मिल्क फीवर का इलाज देने के बाद भी 24 घंटों तक बैठा ही रहता है तो यह डाउनर काऊ सिन्ड्रोम समझा जाना चाहिये। ऐसे में इसे हापोकेल्षिमिया, हाइपोमेग्नीसिमीया, स्पाइनल कोर्ड की चोट आदि नहीं समझना चाहिये।
2. थैरेपी — इसके लिये कोई विषेश ट्रीटमेन्ट नहीं है इसलिये symptomatic treatment ही दिया जाता है।
Injection Calcium borogluconate — 250 ml I/V very slow, 200 ml S/C
एग एल्बुमिन — अंडो को फोड़कर पीला भाग निकाल लें, बचा हुआ शेश भाग एल्बुमिन कहलाता है। चालीस अंड़ो का एग एल्बुमिन एक ही बार में पशु को खिलाएं।
Injection Cortisone I/V ;k I/M
मेग्नेशियम व फाॅस्फोरस साल्ट पाउडर NSS में मिलाकर I/V दें।
यदि nerve injury है तो विटामिन बी-1 थैरेपी दें।
रोग का निदान:
यह एक जटिल कार्य होता है इसलिये सारी परिस्थितियों पर विचार कर ही प्रोग्नोसिस के बारे में कहा जाता है।
यदि बैठे हुये पशु के पिछले पैर सामान्य स्थिति में रखे होते हैं। पशु खड़े होने की कोशिश भी करता है यदि पशु मेस्टाइटिस या मेट्राइटिस के कारण ही बैठा हुआ है तो पशु के बचने की उम्मीद होती है।
यदि पशु को कोई गंभीर नर्व की चोट या हिप जाॅइंट डिस्लाॅकेशन है, पिछले दोनों पैर फैले हुए चैड़े रखता है तो या कुत्ते की तरह बैठता है, पशु अपनी इच्छा से पैर हिला नहीं पाता है तथा अगले पैरों पर भी वजन नहीं झेल पाता है। ऐसे पशु के ठीक होने की उम्मीद नहीं होती है।