बत्तख पालन -ग्रामीण भारत के जीविकोपार्जन का एक प्रमुख उद्यम

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डॉ संजय कुमार मिश्र
पशु चिकित्सा अधिकारी चौमूंहा मथुरा

बत्तख पालन -ग्रामीण भारत के जीविकोपार्जन का एक प्रमुख उद्यम

बत्तख पालन के लाभ:

उन्नत नस्ल के बत्तख 300 से अधिक अंडे जिनका वजन 65 से 70 ग्राम होता है 1 वर्ष में देते हैं। बत्तख बहुत से जलचर जैसे घोंघा आदि खाकर अपने आहार की पूर्ति करते हैं। अतःबत्तखों के खानपान पर अपेक्षाकृत कम खर्च करना पड़ता है। मुर्गियों की अपेक्षा बतखों की उत्पादन अवधि अपेक्षाकृत अधिक होती है। बहता हुआ पानी बत्तखों के लिए काफी उपयुक्त होता है किंतु बगैर पानी के भी बत्तख पालन अच्छी तरह किया जा सकता है। मुर्गियों के अंडे सायंकाल तक एकत्रित करने होते हैं जब की बत्तख 98% अंडे प्रात 9:00 बजे से पूर्व ही दे चुकती है। इससे मजदूरी की बचत तथा विपणन में सुविधा होती है। बत्तख एक शांत और समझदार पक्षी है जो आवश्यकतानुसार समय पर बाहर घूम फिर कर अपने निश्चित दड़वे में बिना किसी विशेष प्रयत्न के आ जाते हैं। मुर्गी की तुलना में बत्तख की देखरेख कम करनी पड़ती है। बत्तख को घर की आवश्यकता नहीं होती है। सामान्यता रात्रि के समय बत्तख साधारण बत्तख घर में रखे जाते हैं एवं दिन के समय अहाते में खुले छोड़ दिए जा सकते हैं। बत्तख के अंडे का छिलका मोटा होने के कारण इनके स्थानांतरण में टूट फूट का भय कम रहता है, जिससे लाभ में वृद्धि होती है। बत्तख में मुर्गियों की अपेक्षा रोगों से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है। अतः इनमें मृत्यु दर तथा रोग भी मुर्गी की अपेक्षा कम होते हैं।

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अधिक अंडा उत्पादन क्षमता वाली प्रजातियां (लेयर) :

इनके अंतर्गत कैंपबेल तथा इंडियन रनर प्रमुख है। इस जाति की बतखों का
शारीरिक आकार मध्यम तथा गर्दन पतली होती है। साधारणत: यह 6 माह की आयु से अंडा देना प्रारंभ कर देती है तथा इनकी अंडा उत्पादन क्षमता अधिक होती है।

अधिक मांस उत्पादन वाली प्रजातियां( ब्रायलर) :

अधिक मांस उत्पादन हेतु सर्वाधिक प्रमुख आवश्यकता है कि चूजे स्वस्थ हों और तेजी से बढ़ने की क्षमता रखते हो। इसके अंतर्गत प्रमुख प्रजातियां एलिसवरी, पेकिन, तथा मसकोवी है। उत्तम तथा तीव्र शारीरिक वृद्धि और आहार उपयोग दक्षता के साथ-साथ अच्छी शारीरिक संरचना भरपूर मांस युक्त टांगे सीना तथा कम मृत्यु दर इनकी कुछ वांछित विशेषताएं हैं।

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