बत्तख पालन : ग्रामीण आजीविका का प्रमुख स्रोत
भारत में बत्तख पालन का महत्वपूर्ण स्थान है। बत्तख भारत में कुल कुक्कुट आबादी का लगभग 10% हैं और देश में उत्पादित कुल अंडे का लगभग 7-8% योगदान करते हैं कुक्कुट की विभिन्न प्रजातियों में, बत्तखें मजबूत और प्रकृति में विपुल होती हैं। हमारे देश की देशी बत्तखों की संख्या कुल बत्तखों की आबादी का 90% से अधिक है और भारत में अंडा उत्पादन में योगदान देने वाली दूसरी सबसे बड़ी प्रजाति है। भारतीय परिदृश्य 2019 की पशुधन जनगणना के अनुसार, भारत की बत्तखों की आबादी 27.43 मिलियन है, जो कुल कुक्कुट आबादी का 8.52 प्रतिशत है। भारत में बत्तख की खेती खानाबदोश, व्यापक, मौसमी की विशेषता है, और अभी भी छोटे और सीमांत किसानों और खानाबदोश जनजातियों के हाथों में है। परंपरागत रूप से पश्चिम बंगाल और केरल बत्तख के अंडे और मांस के प्रमुख उपभोक्ता राज्य हैं और इसका एक कारण यह है, कि बत्तख का अंडा और मांस उनकी मछली आधारित पाक तैयारियों के लिए अत्यधिक उपयुक्त और स्वादिष्ट रहता है।
वर्तमान जलवायु और भौगोलिक स्थिति के तहत, बतख में न्यूनतम निवेश पर आय सृजन की काफी संभावनाएं हैं। इसलिए, हमारे देश के ग्रामीण किसानों को बत्तख पालन के बारे में जागरूक करने की तत्काल आवश्यकता है, ताकि किसान मौजूदा परिस्थितियों में अपनी आय और आजीविका बढ़ा सकें। बत्तख पालन अभी भी गरीब ग्रामीण किसानों के हाथ में है, जो अपनी आजीविका और रोजगार के लिए मुख्य रूप से बत्तखों पर निर्भर हैं। चूंकि बत्तख की खेती में औद्योगीकरण की कोई प्रक्रिया नहीं हुई है, इसलिए इसके पालन के तरीके पारंपरिक, खानाबदोश और कभी-कभी आदिम होते हैं। इसलिए, किसानों द्वारा बत्तख पालन को अपनाने के बाद से समय-समय पर विकसित की गई पारंपरिक प्रथाएं अभी भी मौजूद हैं और टिकाऊपन के लिए कुशल और किफायती साबित हुई हैं।
ग्रामीण आजीविका के वर्त्तमान चुनौती रोजगार सृजन तथा खाध्य सुरक्षा दोनों मोर्चे पर है | पारिवारिक स्तर पर ग्रामीण क्षेत्रों में पोषण सुरक्षा व् ग्रामीण महिलयों व् पुरुषों को लाभप्रद रोजगार के बिना गरीब परिवारों के विकास की कल्पना मुश्किल है | आज देश के ग्रामीण क्षेत्रों में कुपोषण एक बड़ी समस्या है | देश लगभग एक तिहाई बच्चे व् ग्रामीण महिलएं गंभीर कुपोषण के शिकार हैं | कुपोषण का एक बड़ा कारण प्रोटीन की कमी है जो दाल , सोयाबीन जैसे पादप स्रोत या दूध , मांस, अंडा जैसे पशु उत्पाद स्रोत से प्राप्त होता है | चूँकि खेती की जमीन छोटे छोटे टुकड़ों में विभाजित हो रही है तथा दाल व् सोयाबीन की उपलब्धता महँगी होने के कारन बहुत सीमित है , अतः एक विकल्प पशु स्रोत को मजबूत करना है | पिच्च्वाडा पक्षी पालन जैसे बत्तख इस कार्य में अंत्यंत कुशल व प्यारा पक्षी है , जिसे किंचित कारणों से आजीविका प्रयास में सही समर्थन नहीं मिल पाया है |
बत्तख पालन के निम्नलिखित फायदे हैं
बत्तख प्रति वर्ष प्रति पक्षी मुर्गी की तुलना में अधिक अंडे देती है। बत्तख के अंडे का आकार मुर्गी के अंडे से लगभग 15 से 20 ग्राम बड़ा होता है। बत्तखें सुबह या रात में अंडे दे सकती हैं। आप सुबह अंडे एकत्र करने में सक्षम होंगे, इस प्रकार आपको दिन के बाकी समय में अन्य कर्तव्यों को संभालने का समय मिलेगा। बत्तखें अपने अंडे 95-98% सुबह 9 बजे से पहले देती हैं। इस प्रकार बहुत समय और श्रम की बचत होती है।
बत्तखों को कम ध्यान देने की आवश्यकता होती है। बत्तखों को चिकन जैसे विस्तृत घरों की आवश्यकता नहीं होती है। बत्तखों को सस्ते आश्रय में पाला जा सकता है। उद्यम को अधिक लाभदायक बनाने के लिए स्थानीय रूप से उपलब्ध सामग्री घरों के निर्माण में अच्छा काम कर सकती है। बत्तखों को पालने के लिए आपको काफी कम जगह की आवश्यकता होगी। इसके अलावा, बत्तखों की ब्रूडिंग अवधि अपेक्षाकृत कम होती है। बत्तखें बहुत तेजी से बढ़ती हैं। बत्तख कठोर पक्षी हैं इसलिए उन्हें कम प्रबंधन और देखभाल की आवश्यकता होती है। वे जल्दी से सभी प्रकार की पर्यावरणीय परिस्थितियों के अनुकूल हो सकते हैं।
बत्तख चारा बनाकर अपने आहार की पूर्ति करती है। वे धान के खेतों में गिरे हुए अनाज, कीड़े, घोंघे, केंचुआ, छोटी मछलियाँ और अन्य जलीय पदार्थ खाते हैं। बत्तखें कई तरह के भोजन खा सकती हैं। बत्तख के नियमित आहार में फल, उगाली, सब्जियां, मक्का, और बीन्स शामिल हो सकते हैं।
व्यावसायिक दृष्टि से, बत्तखों का जीवन लंबा होता है। वे दूसरे वर्ष में भी अच्छी तरह से लेटे रहे। वे अधिक विस्तारित अवधि के लिए अंडे भी देते हैं। बत्तखों में न केवल मुर्गे की तुलना में मृत्यु दर कम होती है। बत्तख काफी कठोर, अधिक आसानी से उखड़ जाती हैं और सामान्य एवियन रोगों के लिए अधिक प्रतिरोधी होती हैं।
दलदली नदी के किनारे, गीली भूमि और बंजर दलदल जिस पर मुर्गी या कोई अन्य प्रकार का स्टॉक नहीं पनपेगा, बतख पालन के लिए उत्कृष्ट क्वार्टर हैं। बत्तख आपके बगीचे में कीटों को नियंत्रित करने का एक शानदार तरीका है। वे मच्छरों के लार्वा और प्यूपा के जल निकायों को मुक्त करने का एक शानदार तरीका भी हैं। आर्द्रभूमि और दलदली नदी के किनारे जो चिकन या किसी अन्य स्टॉक के लिए अनुपयुक्त हैं, बत्तखों के लिए आदर्श हैं।
बत्तख एकीकृत कृषि प्रणाली जैसे बत्तख-सह-मछली पालन, चावल की खेती के साथ बत्तख पालन के लिए उपयुक्त हैं। बत्तख-सह-मछली की खेती में बत्तखों की बूंदें मछलियों के लिए चारा का काम करती हैं और मछलियों के लिए तालाब का कोई अन्य चारा या खाद आवश्यक नहीं है (200-300 बत्तख प्रति हेक्टेयर अपशिष्ट क्षेत्र)। चावल की खेती के साथ एकीकृत बतख पालन के तहत, बतख चार आवश्यक कार्य करते हैं, जैसे कि वे भोजन की तलाश करते हैं, उनके बिल चावल के पौधों के आसपास की मिट्टी को ढीला कर देते हैं – निराई, कीट नियंत्रण और खाद।
बतख आलू भृंग, टिड्डे, घोंघे और स्लग के अच्छे संहारक हैं। जिन क्षेत्रों में लीवर फूलता है, वहां बत्तख समस्या को ठीक करने में मदद कर सकती हैं (प्रति 0.405 हेक्टेयर भूमि में 2 से 6 बत्तख)। बत्तखों का उपयोग शरीर को मच्छरों के प्यूपा और लार्वा से मुक्त करने के लिए किया जा सकता है (6 से 10 बतख प्रति 0.405 हेक्टेयर पानी की सतह पर) 12. बत्तखें काफी बुद्धिमान होती हैं, उन्हें आसानी से वश में किया जा सकता है, और तालाबों में जाने और वापस आने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है।
अंडे और मांस जैसे बतख उत्पादों की स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय दोनों बाजारों में उच्च मांग है। इसलिए वाणिज्यिक बत्तख की खेती आय प्राप्त करने का एक शानदार तरीका है। व्यवसाय में कई सफल किसान बहुत पैसा कमा रहे हैं।
जमीनी स्तर पर जब किसानों से बत्तख पालन ( कुछ हद तक मुर्गी पालन शामिल) के फायदे के बारे में पूछा जाय तो निम्न मुख्य भूमिका नजर आती है –
१. घर में अंडा व् मांस की उपलब्धता अतः बाजार से खरीदना नहीं पड़ता
२. किसी रिश्तेदार या अतिथि के आने पर बत्तख, या मुर्गे घर पर होने से बाजार जाने और नकद रुपये के जरूरत नहीं पड़ती तथा इज्ज़त बनती है |
३. स्थानीय रूप से अंडा और जिंदा पक्षी बेचकर आकस्मिक जरूरत तुरंत पूरी हो जाती है
- नियमित या माह में कई बार अंडे बेचकर नकद कमाई होते रहती है |
आजीविका के नजरिये से ये भूमिकाएं बहुत महत्वपूर्ण है | ग्रामीण गरीब परिवारों के लिए नियमित आय तथा आकस्मिक जरुरत पर आय दोनों बहित महत्वपूर्ण है | बत्तख और मुर्गी पालन इस सन्दर्भ लोगो के पहली चाहत बन जाती है |
देश के एक बड़े क्षेत्र में जल भराव व् अति वृष्टि तथा बाढ़ आजीविका को बुरी तरह प्रभावित करता है | निचले क्षेत्र , नेपाल से सटे बड़े भूभाग जहाँ नेपाल के पहाड़ का पानी बाढ़ का कारन बनता है , समन्दर के तटीय इलाके, नदी व् नाहर के किनारे के गाँव ऐसे ऐसे पानी वाले क्षेत्र में पानी में पलने वाले जीवों में बत्तख प्रथम स्थान पर है, जो पानी पर उगने वाले पौधों और जीवों तथा बिखरे पड़े दानो को खाकर किसान को अंडा व मांस कम उत्पादन खर्च में सुनिश्चित करता है |
अगर ध्यान से देखें तो बत्तख पालन वातावरण व् प्राकृतिक संसाधन के साथ बेहतर तालमेल कर एक टिकाऊ आजीविका का विकल्प प्रदान करता है | बत्तख जहाँ कीड़ों – मकोड़ों , जूठन , बिखरे दानों, फेकें गए खाद्य पदार्थों , अपशिष्ट पदार्थों को साफ़ कर वातावरण को स्वच्छ करता है वहीँ इसे महत्वपूर्ण प्रोटीन युक्त अंडे में परिवर्तित कर पोषक तत्व परिवार को उपलब्ध करता है | बत्तख पालन और विकास के संबंध को निम्न सन्दर्भ में समझाना आवश्यक है –
(१) कम खर्च पिछवाडा बत्तख पालन व् ग्रामीण स्वच्छता
(२) पिछवाडा बत्तख पालन और महिला सृजित आय संवर्धन व महिला सशक्तिकरण
(3) बत्तख पालन व पारिवारिक पोषण (महिला व बाल कुपोषण के सन्दर्भ में महत्व)
(4) बत्तख पालन व् ग्रामीण रोजगार सृजन
आइये इन तथ्यों को एक एक कर समझाने का प्रयास करें –
बत्तख पालन व पारिवारिक पोषण (महिला व बाल कुपोषण के सन्दर्भ में महत्व)
पिछवाडा बत्तख पालन का एक प्रमुख उत्पाद अंडा है जो लगभग रोज प्राप्त होने वाला अति पौष्टिक खाद्य सामग्री है | पांच – छः बत्तख पालन से भी रोज दो – तीन अंडे प्राप्त करना आसानी से संभव है | देश के ग्रामीण इलाकों में महिलयों व् बच्चो में कुपोषण का बड़ा कारण प्रोटीन की कमी है , ऐसे में बत्तख पालन कुपोषण को दूर करने का भी एक अनोखा और सर्व सुलभ तरीक नजारा आता है | घर में पैदा हुए खाद्य सामग्री तक महिला व् बच्चो की पहुच बाजार से नकद खरीदने के वनिस्पत बहुत ज्यादा होती है | पुरुष प्रधान समाज होने के कारण या तो गरीब परिवार खरीद कर दूध, दाल, अंडा ला नहीं पाते या फिर बीमार होने पर खरीदते है| अगर खरीद कर लाया भी जाता है तो बच्चे और महिलोयों को पुरुष के खाने बे बाद या नहीं ही मेल पाटा है | इसके विपरीत घर में पैदा हुई खाद्य सामग्री में महिला व् बच्चो को मिलाने की संभाना अपेक्षाकृत ज्यादा होता है | अगर सप्ताह में दो अंडा भी बच्चों और महिलायों को उपलब्ध हो तो प्रोटीन की कमी लगभग पूरी की जा सकती है | इसके साथ ही बत्तख के अंडे में खनिज लवन तथा विटामिन की भी भरपूर मात्रा उपलब्ध है | अगर ज्यादा अंडा होने पर स्थानीय बिक्री होती है तो भी क्षेत्र में प्रोटीन और विटामिन की उपलब्धता बढ़ाने की संभवना है |
अतः पिच्च्वाडा बत्तख पालन गरीब ग्रामीण परिवार को पोषण सुनिश्चित करने का व्यावहारिक और तर्कसंगत तरीका है |
पिछवाडा बत्तख पालन और महिला सृजित आय संवर्धन व महिला सशक्तिकरण
लघु स्तर पर बत्तख पालन एक पारिवारिक आजीविका है जिसमे महिलयों द्वारा घरेलु कार्यों के बाद का समय निवेश किया जाता है | अनुभव व् अध्ययन स्पष्ट संकेत देते है कि महियों द्वारा अर्जित राशि ज्यादादर घर के महत्वपूर्ण खर्च जैसे स्वस्थ्य , भोजन, शिक्षा जैसी मुलभुत लेकिन आवश्यक कार्य में निवेश होता है | बत्तख पालन इस तरह की आजीविका में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है | ग्रामीण महिलयों के पास आयवर्धक गतिविधि के सिमित अवसर मौजूद होते है जिससे वे अपने पारिवारिक जिम्मेदारियों के साथ साथ अपनी मर्जी के अनुसार कार्य कर नकद राशि कम सकें | पिछवाडा बत्तख पालन ऐसे सन्दर्भ में एक सुलभ व् आसानी किया जाने वाला कार्य है |
कम खर्च पिछवाडा बत्तख पालन व ग्रामीण स्वच्छता –
ग्रामीण क्षेत्र में नल व् जल स्रोत के आसपास जल जमाव एक आम समस्या के रूप में सर्वत्र दीखता है | इसी तरह नालें , छोटे गड्ढे में पानी का भराव मच्छर व् कई तरह के कीड़े को पनपने का मौका देते हैं | लेकिन इन जल जमाव में जाकर मच्छर के लार्वा वो कीड़े – मकोड़े खाने का काम सिर्फ बत्तख के लिए हे संभव है | घर के आस पास के कीड़ों , मच्छर के लार्वा , फेकी गयी पत्तों , फल सब्जी के छिलके व टुकड़ो को खाकर ये बत्तख हमें कई बीमारियों से बचाते है तथा इन्हें साफ़ करने में मादा करते है | बड़े पशु जैसे गाय भैंस के नाद के पास तथा गोबर के ढेर में कई तरह के कीड़े व अपशिष्ट पदार्थ पैड्स होते है जिन्हें ये चुन चुन कर साफ़ कर देते है | पहली जरूरत तो गाँव को ऐसे गन्दगी से साफ़ व् पानी जमाव से बचने की है लेकिन फिर भी आसपास खेत खालिहानो के गन्दगी को पानी में जाकर साफ़ करने वाला ये गाँव का अकेला पालतू जीव है |
बत्तख पालन व् ग्रामीण रोजगार सृजन
बत्तख पालन व्यसाय लघु उद्योग के रूप में ग्रामीण युवाओं के लिए भी एक आर्थिक लाभकारी गतिविधि के रूप में स्थापित किया जा सकता है |
बत्तख पालन उन्नयन के लिए उत्पादन सुविधा जैसे हैचरी की स्थापना , दाना का निर्माण व् विक्रय , टीकाकरण तथा दवाई की सुविधा में भी ग्रामीण युवा रोजगार पा सकते है | इसके अतिरिक्त अंडे, जिंदा पक्षी तथा मांस के विपणन (बाजार) भी ग्रामीण युवाओं को रोजगार पैदा हो सकता है | अगर स्थानीय तौर पर विक्री प्रबंधन सहकारी संसथान या उत्पादक कम्पनी बनाकर हो तो कई युवे इस रोजगार में शामिल हो सकते है | बत्तख के फर (निचले महीन पंख) का प्रसंस्करण कीमती कोट तथा वस्त्र बनाने में हो सकता है जिसकी विदेह्सी बज्जरों में काफी मांग है | प्रत्येक ४०० से ५०० बत्तख पर एक युवा ग्रामीण क्षेत्र में स्थाई रूप से विपणन रोजगार से जुड़ सकता है |
धान की खेती के साथ बत्तख पालन के फायदे –
धान की फसल के साथ बत्तख पालन एक कम खर्च में आर्गेनिक खेती है | धान की खेती और बत्तख पालन एक संपूरक तथा परस्पर लाभकारी रोजगार है | धान के खेत में बत्तख पालने से सात मुख्य फायदे किसानों के हित में है –
१. बत्तख धान में लग रहे कीड़े, लार्वा आदि को खाकर धान की फसल को नुक्सान होने से बचाता है |
- बत्तख धान के साथ अनावश्यक रूप से उग आने वाले खर पतवार के पत्तों को खाकर उसकी बढ़वार रोकता है |
३. बत्तख के झिल्लीनुमा पैर पानी को हिलाकर ज्यादा ऑक्सीजन धन के पौधों की जड़ तक पहुचाता है जिससे पौधे घने व ज्यादा शाखा वाले होते हैं तथा उपज बढ़ाती है | ये पढों के जड़ के पास की मिटटी को भी ढीला रखती है |
४. बत्तख के मल से पौधों को उत्तम किस्म का खाद प्राप्त होता है |
५. धान की पैदावार में २०% तक की बढ़ोतरी होती है |
६. बत्तख पालन से अलग से ८ से १०००० रुपये प्रति १०० बत्तख प्राप्त हो जाता है |
७. किसान के कीटनाशक तथा खर पतवार नाशक दवाई के खर्च में कटोती होती है |
मछली पालन के साथ बत्तख पालन के फायदे –
मछली पालन के साथ साथ बत्तख पालन एक लाभकारी विकल्प है | इसके लिए चूजे के लगभग एक महीने के होने के बाद उन्हें मछली के तालाब के पास छोड़ा जा सकता है | बत्तख के घर या तालाब के किनारे या पानी के ऊपर ही कम खर्च में बनाया जाता है | बत्तख जहाँ पानी से पौधे, कीड़े तथा लार्वा व् अन्य चीजें खाकर तालाब को साफ़ रखती है वहीँ इनके पैरों से पानी में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ती है | बत्तख के मल में ७२ से ७९% नाइट्रोजन , ६१ से ८७ % फोस्फोरस तथा ८२ से ९२ प्रतिशत पोटासियम होता है जो मछली के लिए खाद्य पदार्थ का काम करते है | बत्तख के मल में प्रोटीन की अपेक्षाकृत अच्छी मात्रा होती है जिससे मछली के खाने के खर्च में कमी आती है | प्रायोगिक फार्म व् क्षेत्र अध्ययन से देखा गया है कि मछली उत्पादन में ३० से ४०% की बढ़ोतरी बत्तख पालन करने से होती है | इस के अतिरिक्त २०० से ३०० बत्तख एक हेक्टेयर के तालाब में आसानी से पाले जा सकते हैं | इन बत्तखों से २०० अंडे पार्टी बत्तख के हिसाब ४०००० से ६०००० अंडे अतिरिक्त आय के रूप में कम सकते हैं |
कुक्कुट पालन की तुलना में बत्तख पालन के लाभ
1. मुर्गियों की तुलना में बत्तखों को किसी विस्तृत आवास और कम ध्यान देने की आवश्यकता नहीं होती है।
2. बत्तख मुर्गी से लगभग 40-50 अंडे अधिक देती है।
3. बत्तख के अंडे मुर्गी के अंडे से 15-20 ग्राम बड़े होते हैं।
4. बत्तखें कठोर, अधिक आसानी से प्रशिक्षित होती हैं और कई एवियन रोगों के प्रतिरोधी होती हैं।
5. चारा खिलाने की आदत के कारण मुर्गी पालन की तुलना में बत्तख पालन किफायती है।
6. बत्तखों का जीवन लाभदायक होता है क्योंकि वे दूसरे वर्ष में भी आर्थिक रूप से लेट जाते हैं, इससे प्रतिस्थापन की लागत कम हो जाती है।
7. दलदली नदी के किनारे और गीली भूमि बत्तख पालन के लिए उत्कृष्ट स्थान हैं जहाँ चिकन या अन्य प्रकार के पशुधन नहीं पनपेंगे।
8. नरभक्षण और अज्ञेय व्यवहार जो चिकन में बहुत आम है, आमतौर पर बत्तखों के साथ नहीं होता है।
9. समय और श्रम की बर्बादी के बिना प्रजनन उद्देश्यों के लिए अंडे देने का सटीक डेटा दर्ज किया जा सकता है।
10. तुलनात्मक रूप से अधिक भारी होने के कारण, बत्तख के अंडे मुर्गी के अंडे की तुलना में प्रति अंडे अधिक पोषक तत्व प्रदान करते हैं।
11. बतख सह मछली पालन जैसे एकीकृत कृषि प्रणालियों के लिए उपयुक्त हैं।
12. वे मुर्गियों की तुलना में रोग और परजीवियों के प्रति इतने संवेदनशील नहीं होते हैं।
13. अंडे सेने के बाद यह मुर्गियों की तुलना में बत्तखों को पालना आसान होता है।
14. बत्तखों के नीचे और छोटे शरीर के पंख मूल्यवान होते हैं और विभिन्न औद्योगिक उद्देश्यों के लिए उपयोग किए जाते हैं।
15. बतख आलू भृंग, ग्रास हॉपर, घोंघे और स्लग के अच्छे संहारक हैं।
16. व्यावहारिक अनुभव और परीक्षण स्पष्ट रूप से दिखाते हैं कि बतख के अंडे मुर्गियों की तुलना में भंडारण के दौरान काफी लंबे समय तक अपनी ताजगी बनाए रखते हैं। विभिन्न अवसरों पर, चार महीने और लंबे समय तक अच्छी तरह से साफ किए गए बत्तख के अंडों को रेफ्रिजरेट किया है, जिसमें स्वाद में कोई बदलाव नहीं आया है। अंडे या मांस के उद्देश्य से बत्तखों को पालना अधिक किफायती है।
भारत में बत्तख पालन की अन्य समस्याएं
बत्तख पालन प्रथाओं पर वैज्ञानिक ज्ञान का अभाव – बहुत से लोगों को बत्तख पालन का तकनीकी ज्ञान नहीं है। इससे भारत में बत्तख पालन का अनुचित प्रबंधन होता है।
गुणवत्तापूर्ण बत्तखों की अनुपलब्धता
अक्षम बत्तख बाजार भारत में बत्तख की खेती में एक और समस्या है I छोटे जोत वाले उद्यमों का बढ़ता व्यावसायीकरण बतख पालन करने वाले किसानों के लिए समस्याएं पैदा कर रहा है। हमारे पास बाजार में स्वस्थ बत्तखों की कमी है। इससे मांस और अंडे के लिए निम्न-गुणवत्ता वाली बत्तखें पैदा होंगी। सरकार को इस मामले पर गौर करना चाहिए ताकि अच्छी गुणवत्ता वाली बत्तखें उपलब्ध कराई जा सकें।
गुणवत्तापूर्ण फ़ीड की अनुपलब्धता
भारत में एक अन्य प्रमुख बत्तख पालन समस्या चारा है। हालांकि चारा भरपूर मात्रा में उपलब्ध है, लेकिन पोषक तत्वों की दृष्टि से यह उतना अच्छा नहीं है। इसलिए बत्तखों का विकास उतना कुशल नहीं है।
वित्तीय संसाधनों की कमी
बत्तख पालन ऋण और सब्सिडी बहुत दुर्लभ हैं। इसलिए भारत में बत्तख पालन करने वाले किसानों के लिए वित्तीय बैकअप की भारी कमी है।
जैव-सुरक्षा उपायों की अनुपस्थिति
चूंकि उचित जैव-सुरक्षा उपाय नहीं हैं, इसलिए कई बीमारियों का प्रकोप अब आम हो गया है। इसलिए बतख पालन करने वाले किसानों को इस संबंध में कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।
एक संगठित विपणन प्रणाली का अभाव
इस तथ्य के बावजूद कि बत्तख की खेती एक पुराना कृषि-व्यवसाय है, इसकी कोई विपणन प्रणाली नहीं है। इसलिए बत्तख पालन करने वाले किसानों को बत्तख का मांस और बत्तख के अंडे बेचने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। बत्तख उत्पादों की मांग में तेजी से गिरावट आ रही है। यह मुख्य रूप से वाणिज्यिक चिकन क्षेत्र से प्रतिस्पर्धा के कारण है। वर्तमान जलवायु और भौगोलिक स्थिति के तहत, बतख में न्यूनतम निवेश पर आय सृजन की काफी संभावनाएं हैं। ग्रामीण किसानों को बतख पालन के बारे में जागरूक करने की तत्काल आवश्यकता है, ताकि किसान मौजूदा परिस्थितियों में अपनी आय और आजीविका बढ़ा सकें।
संकलन: टीम लाइवस्टोक इंस्टिट्यूट ट्रेनिंग एंड डेवलपमेंट( एल आई टी डी)