कोविड-19 महामारी का पषुपालन सेक्टर पर दुष्प्रभाव एवं इससे उबरने मं पषुचिकित्सक की भूमिका
डा॰ अजीत कुमार
विभागाध्यक्ष,
पषु परजीवी विज्ञान विभाग
बिहार पषु चिकित्सा महाविद्यालय, पटना
बिहार पषु विज्ञान विष्वविद्यालय, पटना-800014, बिहार
कोरोना वायरस डिजिज अर्थात कोविड-19 महामारी के कारण बहुत सारे सेक्टर का आर्थिक विकास बुरी तरह प्रभावित हुआ है । इसके कुप्रभाव से महत्वपूर्ण सेक्टर पषुपालन भी अछूता नही रह पाया। भारत की 70 प्रतिषत जनसंख्या कृषि एवं पषुपालन पर निर्भर है । लगभग 20 मिलियन लोग अपने आजीविका के लिए पषुपालन पर निर्भर है । भारत के सकल घरेलू उत्पादों में पषुपालन का योगदान 2017-18 में 4.11 प्रतिषत था । पषुधन सेक्टर लगभग 8.8 प्रतिषत रोजगार दे रहा है । रोजगाार के अलावे पषुपालन सेक्टर पौष्टिक आहार एवं खादय उत्पाद जैसें- दूध, मांस, अंडा, पनीर, चीज, स्किम्ड मिल्क पाउडर आदि भी उपलब्ध कराता है । लेकिन कोविड-19 महामारी के चलते पषुपानल सेक्टर बुरी तरह प्रभावित हुआ ।
कोविड-19 महामारी एवं लाॅकडाउन के कारण पषुपालन सेक्टर पर कुप्रभाव:-
* दूध एवं मांस उत्पादों की विक्री और खपत मे कमी: –
कोविड-19 वैष्विक महामारी के कारण लाॅकडाउन अवधि में रेस्टुरेंट, होटल, चाय की दूकान आदि के बंद कर दिया गया, जिसके कारण दूध उत्पादों जैसे- खेाआ, पनीर, आइसक्रीम, चीज आदि की विक्री एवं खपत बहुत कम गया । कोविड-19 वैष्विक महामारी के फलस्वरूप आइसक्रीम का खपत में 60-70 प्रतिषत की कमी हुई । डेयरी सेक्टर में 30 -35 प्रतिषत की कमी षुरूआत के लाॅकडाउन में देखा गया है । इसका कारण यह भी है कि कोविड-19 वैष्विक महामारी के दौरान लाॅकडाउन रहने के कारण बहुत लोग बेरोजगार हो गए एवं लोगो के आमदनी में भी अत्याधिक कमी हुई, जिसके फलस्वरूप लोगो की क्रय षक्ति घट गई । बाजार बंद रहने के कारण दूधारू पषुओं की दूध की बिक्री में कमी के साथ-साथ पषुपालक को दूध का कम मूल्य पर बेचना पड़ा जिसके कारण पषुपालको को दोहारी नुकसान उठाना पड़ा । डेयरी सेक्टर में अन्य क्षेत्रों की तरह पषु उत्पादों को गा्रहक तक सप्लाई चेन के द्वारा पहुँचाया जाता है । परन्तु कोविड-19 महामारी के कारण लाॅकडाउन के दौरान सप्लाई चेन टुट गया जिसके चलते दुध एवं मांस उत्पादों का खपत एवं विक्री नही होने के चलते उत्पादनकर्ता के पास ही खराव हो गया और फलस्वरूप दूध एवं मांस उत्पादों के उत्पादनकर्ता को आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ा।
* मीट एवं मीट उत्पादों की बिक्री में नुकसान:-
दूध उत्पादों के अलावे चिकेन, मटन, चेवोन, पोर्क एवं अन्य मांस उत्पादों की विक्री एवं खपत होटल, रेस्टोरेंट एवं अन्य मीट दूकान के बंद रहने के चलते अत्याधिक प्रभावित हुआ । इसके अलावे, सोषल मिडिया में यह अफवाह फैला कि कोविड वायरस का संक्रमण चिकेन मीट खाने से होता है जिसके कारण भी चिकेन मीट की विक्री में बहुत कमी आई जिसके फलरूवरूप मुर्गीयों के व्यवसाय से जुड़े लोंगो को अत्याधिक आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ा ।
* पषु आहार की उपलब्धता में कमी:-
कोविड-19 महामारी के चलते लाॅकडाउन के दौरान पषु आहार बनाने वाले कारखानों में मजदूर की कमी, सामाजिक दूरी बनाए रखना, कच्चा माल की उपलब्धता में कमी आदि के कारण पषु आहार के उत्पादन में कमी हुआ । पषु आहार एवं हरा चारा की अनुलब्धता का पषुओं के दूध उत्पादन, प्रजनन क्षमता एवं कार्य करने वाले पषुओं की कार्य करने की क्षमता पर बुरा प्रभाव पड़ा, जिसके फलस्वरूप अन्तोगत्वा पषुपालक को आर्थिक नुकसाान उठाना पड़ा।
* बेरोजगारी:-
कोविड-19 वैष्विक महामारी के चलते पषुपालन सेक्टर से जुड़ें लोगों को बेरोजगाार होना पड़ा क्योंकि इस सेक्टर के सप्लाई चेन, प्रोसेसिग प्लांट, वधषाला, मिल्क कोपेरेटिव, डेयरी प्लांट, मीट प्लांट आदि में बहुत लोग काम कर रहे थे । पर कोविड-19 महामारी के चलते पषुपालन सेक्टर संे संबंधित व्यवसाय बंद हो गया जिसकं फलस्वरूप इसमें कार्य कर रहे लोगांें को बेरोजगार होना पड़ा ।
कोविड-19 संकट के समय पषुचिकित्सक की भूमिका:-
1. कोविड-19 महामारी के कारण पषुपालन सेक्टर से संबंधित व्यवसाय में आए कमी को पषुचिकित्सक समुचित पषुचिकित्सा उपलब्ध कराकर दूर कर सकते है ।
2. डेयरी व्यवसाय से जुड़े पषुचिकित्सक, दूधारू पषुओं के दूध उत्पादन में आए कमी को आहार, समुचित पषुचिकित्सा आदि उपलब्ध कराकर दुध उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है ।
3. पषु चिकित्सक पषु आहार की कमी को दूर करने हेतु पषुपालकों को साइलेज, हे एवं संतूलित आहार बनाने एवं इसके संरक्षण के बारे में प्रषिक्षत कर सकते है । इसके अलावे पषु आहार हेतु एजोला एवं हाइड्रोपोनिक्स के उत्पादन के लिए पषुपालको को प्रेरित पषु चिकित्सक ही कर सकते हंै ।
4. पषुचिकित्सक बकरी पालन से जुड़ें लोगों को या इस व्यवसाय के षुरू करने वाले इच्छूक लोगों को बैंक या पषुपालन विभाग से आर्थिक सहायता दिलाने में मददगाार साबित होगें। बकरी को गरीबो की गाय एवं गरीबो का ए. टी. एम. कहा गया है क्योंकि बकरीपालन गरीब तबके के लोग भी कम लागत मे षुरू कर सकते है और जब आर्थिक जरूरत हो तो बेचकर आर्थिक लाभ कमा सकते हंै ।
5. कोविड-19 के लाकडाउन के दौरान कृत्रिम गर्भधान में आए कमी को इस ,क्षेत्र से जुड़ें पषुचिकित्सक पषुपालक के दरवाजे पर जाकर गाय-भैंस को उन्नत नस्लों के वीर्य से कृत्रिम गर्भाधान कराकर समयानुसार पषुपालक को बछड़ें की प्राप्ती सुनिष्चित करवा सकते हंै
6. हमारे देष मे पाए जाने वाले कुल गायों की संख्या का 80 प्रतिषत देषी गायों की संख्या है । देषी गायों में अधिक तापक्रम सहने की क्षमता, किलनी (टिक) के संक्रमण के प्रति प्रतिरोधक क्षमता का विकसित होना एवं दूध की गुणवता विदेषी नस्ल के गायों की अपेक्षाकृत बहुत ज्यादा होता है। इन सभी गुणेां के कारण भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय गोकुल मिषन के तहत देषी गायों के संरक्षण एवं संख्या बढ़ाने पर जोर दिया गया है । इसके द्वारा किसान कम खर्च में उन्नत नस्ल के देषी गायों को रखकर अधिक आर्थिक लाभ कमा पाएगें एवं किसान खुद को एवं देष को आत्मनिर्भर बना सकते है। इस लक्ष्य की प्राप्ति हेतु पषु चिकित्सक की सहभागिता महत्वपूर्ण है ।
7. दूध एक संतुलित आहार माना जाता है एवं मनुष्यों के इम्यून क्षमता को मजबूत बनाने एवं स्वस्थ रखने में दूध का महत्वपूर्ण भूमिका हैं। दूधारू पषुओं से उचित मात्रा में दूध प्राप्त करने हेतु एवं दूध की उत्पादन क्षमता बनाए रखने में पषु चिकित्सक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते है । ताकि लोगों को पर्याप्त मात्रा में दूध मिल सके । इसके अलावे, कोविड-19 महामारी के समय स्वस्थ रहने एवं इम्यून क्षमता को मजबूत बनाए रखने में मीट ज्ैासें- चिकेन, मटन, पोर्क आदि को मांसहारी लोगों अपने भोजन में षामिल कर ,खुद को तंदुरूस्त रख सकते है । इसके लिए मुर्गीपालन, बकरीपालन, भेड़पालन, सूकरपालन आदि के प्रति लोगों को जागरूक करने हेत पषु चिकित्सक मुख्य भूमिका होगी । इन व्यवसाय को षुरू करने के लिए इच्छूक लोगों को पषुपालन विभाग, बैकों, अन्य गैर सरकारी संस्थाओं आदि से आर्थिक सहायता दिलाने में भी पषु चिकित्सक मददगार सिद्व होगें ।
8. पषुचिकित्सक सरकार एवं अन्य गैर सरकारी संस्थाओं और पषुपालक के बीच कड़ी का काम करते है। किसानों को कोविड-19 महामारी के दौरान एवं उपरान्त डेयरी व्यवसाय को बढ़ावा देने हेतु गाय- भैंस पालन, मांस उत्पादन बढ़ाने के लिए मुर्गीपालन, बकरीपालन, सूकरपालन आदि हेतु उचित दर पर ऋण दिलाने में पषुचिकित्सक मददगार साबित हो सकते है । ऐसा करने से लोगों की आय में आए कमी को बढ़ाया जा सकता है तथा साथ-ही-साथ बहुत सारे लोगों को रोजगाार भी मिल पाएगा एवं पोषणयुक्त आहार की उपलब्धता सुनिष्चित हो पाएगी ।
9. पषु चिकित्सक, पषुपालन के क्षेत्र में सरकार की योजनाआंे के बारे में किसानों को जानकारी पहुँचा सकते है जिससे कि पषुपालक इन योजनाओं का लाभ ससमय उठा सकंे और कोविड-19 से हुए आर्थिक क्षति की बहुत हद तक भरपाई की जा सके।
10. युवा पषु चिकित्सक को नौकरियों के तलाष के बजाए स्टार्टअप षुरू करना चाहिए । स्टार्टअप इंडिया एवं कई निजी उद्यम पूंजी कम्पनियां पषुपालन क्षेत्र में स्टार्टअप की मदद कर रही है । पषुपालन क्षेत्र में स्टार्टअप के उदाहरण भी हैं, जैसे- हम्पी ए2, जोफ्रेष, तपलू , षकरू, मिल्क मंत्र, सुब्रमन बकरी फार्म, पावरगोथा आदि । स्टार्टअप षुरू कर युवा पषु चिकित्सक कोविड-19 के दौरान बेरोजगाार हुए लोगों को रोजगार देकर उसके आर्थिक हालात को सुधार सकते है।
11. पषुचिकित्सा महाविद्यालयों में कार्यरत पषुचिकित्सक प्राध्यापको ने रियल टाइम पी॰ सी॰ आर॰ के द्वारा अपने प्रयोगषाला में बहुत संख्या मे लोगों कीं जाँच कर कोविड के नियंत्रण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाया है एवं एक देष एक स्वास्थ की अवधारण को चरितार्थ किया ।
12. कोविड गाइडलाइनों जैसे- समाजिक दूरी बनाए रखना, मास्क पहनना, हाथ धेाना, सनिटाइजर का उपयोग करना आदि के पालन सुनिष्चित करने एव जागरूक करने में पषुचिकित्सक की भूमिका महत्वपूर्ण होगी क्योंकि पषुचिकित्सक किसानो के दैनिक एवं नियमित आय के साधन ( पषुपालन) से सीधा जुड़े होते हैं, जिससे होगा कि पषुचिकित्सक के समझाने पर किसान कोविड गाइडलाइनो का पालन आसानी से कर पाएगें।जिससे कि कोविड वायरस का संक्रमण में कमी हो पाएगा ।
इस तरह पषुचिकित्सक कोविड -19 वैष्विक महामारी एवं इसके चलते कारण लाॅकडाउन के फलस्वरूप लोगों की आय मे आए कमी, कोविड के चलते बेरोजगार हुए लोगों को रोजगार दिलाने के अलावे कोविड की दूसरी लहर से बचाने हेतु मनुष्यों की इम्यून क्षमता को कोविड के दोरान बनाए रखने के साथ-साथ कोविड गाइडलाइनो केा किसानो के बीच पालन सुनिष्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते है ।