पशुओं में आकस्मिक प्राथमिक उपचार

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EMERGENCY FIRST AID TREATMENT IN ANIMALS
EMERGENCY FIRST AID TREATMENT IN ANIMALS

 

पशुओं में आकस्मिक प्राथमिक उपचार

डॉ. आनंद जैन, डॉ. आदित्य मिश्रा, डॉ. दीपिका डी. सीज़र, डॉ. संजू मंडल एवं  डॉ. श्रद्धा श्रीवास्तव

पशु शरीर क्रिया एवं जैव रसायन विभाग

पशुचिकित्सा एवं पशुपालन महाविद्यालय,  जबलपुर ४८२००१ (म.प्र.)

 

ग्रामीण क्षेत्रों के रहन – सहन में पशुओं में दुर्घटनाएं होना एक स्वाभाविक एवं आम बात है। इन दुर्घटनाओं में यदि समय रहते प्राथमिक उपचार कराया जाता है तो कई बड़े खतरों से पशु का बचाया जा सकता है | प्राथमिक उपचार के लिए पशु चिकित्सक, प्रशिक्षित एवं अनुभवी व्यक्ति की सहायता से छोटी समस्याओं को बीमारी का बड़ा रूप लेने से रोका जा सकता है। अत: प्राथमिक उपचार की जानकारी पशुपालकों को अवश्य होनी चाहिए। पशु का अचानक दुर्घटनाग्रस्त हो जाना जिसमें अत्यधिक खून बह जाना, जख्म होना, हड्डी का टूटना एवं बेहोश होने जेसी अवस्था देखने को मिलती है । इनकी प्राथमिक चिकित्सा करने पर पशु को तात्कालिक राहत मिलती है तथा पशु चिकित्सक के आने तक उनकी दशा अधिक ख़राब नहीं होती है। पशुपालकों को साधारण बिमारियों की जानकारी स्वयं होनी चाहिए जिसके आधार पर वे अपने पशु को आकस्मिक प्राथमिक पशु चिकित्सा प्रदान कर सकें। साथ ही कुछ देसी दवाइयां जिनकी गुणवत्ता वैज्ञानिक रूप से रखी जा चुकी हैं उनकी भी जानकारी पशुपालकों को होनी चाहिए।

 

पशुओं में घाव या जख्म:

किसी धारदार हथियार के लगने, चोट लगने या दुर्घटनाग्रस्त होने पर शरीर पर घाव हो जाते हैं। शरीर की खाल से खून निकलने लगता है प्राथमिक उपचार  के रूप में सर्वप्रथम प्रभावित अंग में पट्टी बांधकर खून को बंद करना चाहिए। घाव को साफ कर टिंचर बेन्जाइन का फाहा रखकर पट्टी कर देना चाहिए। यदि खून नहीं निकल रहा हो तो घाव को पोटाश पानी से साफ़ कर लेना चाहिए इसके पश्चात पशु चिकित्सक से आवश्यक सलाह लेनी चाहिए।

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पशुओं में हड्डी चोट, मोच आना, हड्डी उतरना या हड्डी टूटना:

कभी कभी ऊंची – नीची जगह पर पैर पड़ने से तथा चोट लगने से चोट लगे स्थान या मोच के स्थान पर अधिक दर्द होना तथा सूजन आ जाती है ।प्राथमिक उपचार के रूप में यदि मोच है तो तत्काल ठंडे पानी या बर्फ से सिकाई करना चाहिए। सिकाई के बाद काला मलहम (आयोडीन या आयोडेक्स) लगाकर सिकाई करना चाहिए। हड्डी टूटने की स्थिति तत्काल पशु चिकित्सक को दिखाना चाहिए।

 

पशुओं में कब्ज (काँस्टिपेशन):

कई बार ज्यादा चारा या जहरीला चारा या खराब अनाज खाने से पशु को कब्ज हो जाती है जिसके परिणाम स्वरुप गोबर कड़ा होकर निकलता है। कभी-कभी गोबर के साथ आंव भी आता है। इससे पशु को गोबर त्याग के समय कष्ट होता है। इसके लिए पशु को 60 ग्राम काला नमक, 60 ग्राम सादा नमक, 15 ग्राम हिंग, 50 ग्राम सौंफ लेकर 500 ग्राम गुड़ में मिलाकर दिन में दो बार देना चाहिए। इसके अलावा 500 ग्राम मैगसल्फ, 250 मि.ली. अरंडी का तेल भी दे सकते हैं।

पशुओं में अपच होना:

जब रूमेन सही तरीके से काम नहीं कर पाता तब पशुओं में अनेकों तरीके की समस्याएँ जैसे हाजमा खराब होना अफरा आदि उत्पन्न होती है। अधिक मात्रा में दाना या हरी घास खा लेने से अथवा कीटाणुओं द्वारा पशु के पेट में प्रवेश करने से अपच हो जाती है जिसके कारण  पशु को बार – बार दस्त की शिकायत होने लगती है, प्राथमिक उपचार के रूप में अधिक से अधिक पानी पिलाना चाहिए। गुड, नमक, जौ का पका हुआ आटा पानी में घोलकर पिलाना चाहिए। खड़िया 100 ग्राम तथा कत्था 200 ग्राम मिलाकर पशु को पिलाना चाहिए।

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पशुओं में थन कटना, या उस पर फुंसी निकलना:

बछड़े के दांत लगने, थन पर पैर पड़ जाने से, मक्खी द्वारा काटने से बैठने पर किसी नुकीली वस्तु के चुभने से थन कट जाता है | अथवा उस पर फुंसी निकल आती है। प्राथमिक उपचार  के रूप में थन को पोटाश के पानी से सफाई कर उसे सुखा लेना  चाहिए। उसके बाद जिंकबोरिक मरहम दूध निकालने के बाद सुबह – शाम लगायें तथा थन को साफ रखें एवं गंदगी से बचाएं। साधारण जख्म होने की स्थिति में गर्म पानी को ठंड करके थन को धोना चाहिए तथा पानी सूखने के बाद थन जीवाणुनाशक (एंटीसेप्टिक) क्रीम का लेप करना चाहिए। जिंक आक्साइड ½  भाग (5 ग्राम), बोरिक एसिड 1 भाग (10 ग्राम), सफेद या पीली वैसलीन 6 भाग (60 ग्राम) लेकर तीनों को भली भांति मिलाकर एक रूप करके ढक्कनदार चौड़े मुंह वाली शीशी में भरकर रखें जिससे आवश्यकता पड़ने पर उसका प्रयोग किया जा सके।

पशुओं में सींग टूटना:

पशुओं के आपस में लड़ने से या पेड़ व झाड़ी में उलझने से सींग टूट जाता है| प्राथमिक उपचार के रूप में यदि टूटे सींग से खून बह रहा हो तो स्प्रिट, एल्कोहल अथव मरक्यूरोक्रीम (लाल दवा या एस.सी. लोशन) में साफ रूई भिगोकर पहले उस भाग की सफाई कर दें। तत्पश्चात उस पर टिंचर बेन्जाइन अथव टिंचर फेरिपरक्लोराइड  से भीगी रूई चिपका दें, खून का बहना बंद हो जयेगा।

पशुओं में ब्याने के बाद जेर का न निकलना:

गाय व भैंसों में ब्याने के बाद जेर का बाहर न निकलना अन्य पशुओं की अपेक्षा काफी ज्यादा पाया जाता है| सामान्यत: ब्याने के 3 से 8 घंटे के बीच जेर बाहर निकल जाती है| लेकिन कई बार 8 घंटे से अधिक समय बीतने के बाद भी जेर बाहर नहीं निकलती या फिर आधी जेर टूट कर निकल जाती है तथा आधी गर्भाशय में ही रह जाती है | जेर न निकलने के अनेक कारण हो सकते हैं| लक्षण के रूप में योनि द्वार से बदबूदार लाल रंग का डिस्चार्ज निकलने लगता है| पशु की भूख कम हो जाती है तथा दूध का उत्पादन कम हो जाना, बुखार का आना | कभी – कभी पशु में स्ट्रेनिंग के कारण योनि अथवा गर्भाशय तथा कई बार गुदा भी बाहर निकल आता है तथा बीमारी जटिल रूप ले लेती है | ब्याने के 12 से 72 घंटे के बाद जेर को हाथ से निकालने की सलाह दी जाती हैं | ब्याने के बाद पशु चिकित्सक की सलाह एवं गर्भाशय में जीवाणु नाशक औषधि अवश्यकरूप से रखनी चाहिए |

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FIRST – AID booklet

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