पशु प्रजनन क्षमता को प्रभावित करने वाले कारक

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पशु प्रजनन क्षमता को प्रभावित करने वाले कारक

डॉ पूर्णिमा सिंह, डॉ दीपिका डी जेस्से, डॉ आदित्य मिश्रा, डॉ आनंद जैन, डॉ प्रगति पटेल, डॉ अनिल गट्टानी, डॉ संजू मंडल एवं डॉ सृति पांडेय

पशु चिकित्सा एवं पशुपालन महाविद्यालय जबलपुर (म.प्र.)

 

भारत के आर्थिक विकास में पशु धन का महत्वपूर्ण योगदान है। इसका एक कारण पशु कृषि से उत्पन्न भोजन एवं उत्पादों की बढ़ती मांग है। एक पशु के द्वारा उसके प्रजनन आयु में उत्पन्न सन्तानो की संख्या उसकी प्रजनन क्षमता कहलाती है। पशुधन को बढ़ाने के लिए पशुओ की प्रजनन क्षमता पशुपालको के लिए एक महत्वपूर्ण पहलू है जो  कई कारकों से प्रभावित होती है।

प्रजनन क्षमता को प्रभावित करने वाले कारक: प्रजनन क्षमता आनुवंशिक एवं गैर-आनुवंशिक दोनों कारकों द्वारा नियंत्रित होती है। प्रजनन क्षमता विभिन्न प्रजातियों और नस्लों के बीच भिन्न होती है, यहां तक कि एक ही नस्ल के जानवरों के बीच भी यह क्षमता अलग हो सकती है।  उत्तम भोजन और प्रबंधन के साथ भी पशु अपनी अनुवांशिक सीमा से परे प्रदर्शन नहीं कर सकते हैं, परन्तु अनुवांशिक उन्ननयन (genetic upgradation) संभव है। आनुवंशिक उन्ननयन कई कारकों से प्रभावित होती है जिसमें प्रजनन की आयु (पीढ़ी अंतराल), जनसंख्या के भीतर अनुवांशिक भिन्नता और प्रजनन के लिए प्रतिभागियो को चुनने की सटीकता शामिल है। जलवायु, पोषण और पशुओं का प्रबंधन गैर आनुवंशिक कारक हैं।

पोषण:  पोषण का प्रजनन क्षमता पर विशेष प्रभाव है। उचित पोषण तत्वों के अभाव में शरीर का वजन नहीं बढ़ना, यौवनावस्था देर से आना, मद चक्र में अनियमितता जैसी समस्याएं होती है, साथ ही यह प्रसवकाल एवं दुग्ध उत्पादन को भी प्रभावित करता है।

प्रथम ब्यांत के समय आयु: पशुओ के प्रजनन क्षमता का पूर्ण लाभ लेने के लिए यह ध्यान में रखना चाहिए की प्रजनन हेतु पशु, अधिक उम्र या कम उम्र के नहीं होने चाहिए। प्रथम ब्यात अधिक उम्र में होने से, पहला दुग्धोत्पादन तो अधिक होगा परन्तु ब्यात की संख्या कम होने से पुरे जीवनकाल का उत्पादन कम प्राप्त होगा। यदि पशु कि उम्र ब्यात के समय वांछित से कम रही तो, प्रसव के वक्त कठिनाई, बछड़ा कमजोर एवं पहला दुग्धोत्पादन कम हो सकता है। भारतीय नस्लों में पहले बछड़े के समय वांछनीय आयु 3 वर्ष, संकर नस्ल के मवेशियों में 2 वर्ष और भैंसों में 3 1/2 वर्ष है। आयु के साथ ही पशु का वजन भी महत्वपूर्ण है, उचित वजन ना होने से पशुओ में विकार उत्पन्न होने लगते हैं और तनाव जैसी स्थिति भी उत्पन्न होती है जो आगे चल कर कई प्रजनन संबंधित समस्याओं को जन्म दे सकती है। पशुओ में प्रथम सफल निषेचन हेतु इनका वजन अपने परिपक्व भार का 55% होना आवश्यक है।

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गर्भाधान का उचित समय: सफल निषेचन के लिए सही हीट का पता लगाना आवश्यक है। यह पशु में हीट को पहचानने की दक्षता पर निर्भर करता है। एक बार अंडाशय से अंडा निकलने के बाद यह अनुमान लगाया जाता है कि अंडे का जीवन 12 घंटे से कम है, जब तक कि यह निषेचित नहीं हो जाता क्योंकि शुक्राणु को डिंबवाहिनी के निचले हिस्से तक पहुंचने के लिए लगभग 6 से 10 घंटे की आवश्यकता होती है। इसलिए गर्भाधान का उचित समय गायों में हीट के प्रारम्भ होने के 12 घंटे पश्च्यात होता है, ताकि पर्याप्त संख्या में गतिशील शुक्राणु डिंबवाहिनी में मौजूद हों।

कृतिम गर्भाधान के दौरान वीर्य का सही रख रखाव: अधिकतम निषेचन दर बनाए रखने के लिए, कम से कम 30 सेकंड के लिए 37 डिग्री सेल्सियस पर स्ट्रॉ को रखना चाहिए, इसके बाद, तुरंत निषेचन करना चाहिए ताकि ठंड या गर्मी के झटके को रोका जा सके। पशु की  प्रजनन शक्ति कई कारकों पर निर्भर करती है, जिसमें वीर्य की गुणवत्ता, यदि कृतिम गर्भाधान किया जाना है तो वीर्य का सही संचालन व रख रखाव, ए.आई-प्रजनन तकनीक और गर्भाधान का समय आदि शामिल है।

भ्रूण नुकसान: प्रारंभिक भ्रूण हानि 15 या 16 दिनों के दौरान गंभीर अवस्था होती है। गर्भाशय की दीवार से जुड़ाव की विफलता के कारण गर्भाधान के बाद 25 से 40 दिनों की अवधि के दौरान अतिरिक्त देर से भ्रूण हानि हो सकती है। गर्भावस्था के नुकसान के कई कारण हो सकते है जैसे  संक्रामक रोग, खराब पोषण, जुड़वाँ बच्चे, आनुवंशिकी या सूजन।

ब्याने का अंतराल: ब्याने के बाद पुन: प्रजनन में लौटना, मादा पशु के अंतर्ग्रहण और गर्भाशय के स्वास्थ्य पर निर्भर करता है। गायों में  एक ब्यात से दूसरे ब्यात के मध्य 12 से 14 महीने या उससे अधिक का अंतर होने से वित्तीय लाभ में काफी कमी आती है।

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जनन क्षमता पर मौसम का प्रभाव: गर्मी के मौसम एवं उच्च आर्द्रता से भूख कम होती जिससे पोषक तत्वों की पूर्ति नहीं हो पाती जिस कारण पशु की प्रजनन क्षमता कम हो जाती है। गर्मी में तनाव भी पशुओ में सामान्यतः देखा जाता है जिसे हीट स्ट्रेस भी कहा जाता है। यह अन्तः स्त्रावी ग्रंथियों के स्त्राव को प्रभावित करता है, जो की वीर्य की गुणवत्ता एवं मादा में अण्डोत्सर्ग की प्रक्रिया को भी कम करता है। ऐसी स्थिति से निपटने के लिए शीतलन प्रणालियों  का उपयोग किया जा सकता है। सर्दियों का समय प्रजनन क्षमता का सबसे अच्छा समय माना जाता है।

अर्थशास्त्र की दृष्टि से एवं पशुधन में वृद्धि हेतु पशुपालक के लिए पशु प्रजनन का विशेष ध्यान रखना अत्यंत आवश्यक है। कृत्रिम गर्भाधान, भ्रूण सेक्सिंग, ओवा पिक-अप, भ्रूण स्थानांतरण (ईटी) और क्लोनिंग जैसे आधुनिक तकनीक आनुवंशिक प्रगति में सहायक साबित हो रहे है। उत्तम गुणों के लिए चयनित पशुओं के प्रजनन से, रोग के प्रति प्रतिरोधक क्षमता, उन्नत शारीरिक आवरण जैसे लक्षणों में सुधार होता है, इसलिए पशुओं में संपूर्ण सुधार लाने के लिए प्रजनन कार्यक्रम एवं नयी तकनीक आवश्यक हैं, साथ ही प्रजनन पर प्रभाव डालने वाले कारको का विशेष ध्यान रखने की आवश्यकता है। हमें पशुओ को अच्छा आहार देना सुनिश्चित करना चाहिए जिससे पशु सही उम्र में उचित वजन के हो सके, उनको अनुकूल वातावरण देना चाहिए जिससे उनमे विकार ना उत्पन्न हो, रोजाना उनके क्रिया कलापो पे ध्यान रखना आवश्यक है जिससे हमें उनके हीट का सही समय पता चल सके, जब भी प्राकृतिक या कृतिम गर्भाधान करवाए तो नर के वीर्य की गुणवत्ता तथा रख रखाव को ध्यान में रखना चाहिए।  इन सभी बातो को ध्यान में रख कर हम भ्रूण हानि रोक सकते है एवं पशु में उचित गर्भान्तराल दे कर उनके प्रजन क्षमता को उत्तम रख सकते है।

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अतः पशुपालकों को अपने पशुओं के प्रजनन क्षमता संबंधी किसी भी प्रकार के बदलाव के देखे जाने पर अपने नजदीकी पशुचिकित्सक से राय आवश्यक रूप से लेना चाहिए अतएव नई तकनीकों के बारे में जानकारी के लिए संपर्क करना चाहिए। ताकि भविष्य में आने वाले पशु के प्रजनन संबंधी एवं आर्थिक नुकसान से बचा जा सके।

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