डॉ.संजय कुमार मिश्र,
पशु चिकित्सा अधिकारी ,चोमूहां, मथुरा
यह रोग विशेषकर गाय-भैंसों में पाया जाने वाला छुआछूत का रोग है जिसमें मुंह, जीभ, थनों एवं पैर पर छाले पड़ जाते हैं। इस रोग में पशु को तेज बुखार, भूख में कमी एवं दुग्ध उत्पादन में कमी हो जाती है। इस रोग में मृत्यु दर लगभग 5 से 10% होती है परंतु प्रभावित संक्रमण की दर 90 से 100% तक होती है।
कारण: यह एक विषाणु जनित रोग है जो पिकोरना वीरिडी परिवार के एपथो वायरस समूह से संबंध रखता है। यह सबसे छोटे वायरस के रूप में जाना जाता है। इसके कुल 7 टाइप हैं टाइप ओ ए सी एशिया वन सेट वन सेट टू सेट 3।
अपने देश में यह रोग मुख्यतः ओ ए तथा एशिया वन टाइप से होता है वर्तमान समय में टाइप सी लगभग विलुप्त हो चुका है।
संक्रमण का तरीका: आपसी संपर्क, दूषित चारा, दूषित हवा तथा संक्रमित चारागाह से यह रोग ,रोगी पशुओं से स्वस्थ पशुओं में फैलता है।
लक्षण: रोग के लक्षण सामान्यता 2 से 8 दिन बाद प्रकट होते हैं परंतु यह 2 से 3 सप्ताह के बाद तक प्रकट हो सकते हैं । इस रोग की मुख्य तया दो अवस्थाएं होती हैं।
1. वायरीमिक अवस्था- इसमें पशुओं में तेज बुखार, बेचैनी, सुस्ती ,भोजन व पानी में अरुचि तथा दुग्ध उत्पादन कम हो जाना मुख्य लक्षण है।
2. वेसिकल अवस्था- बुखार उतरने के बाद मुंह तथा खुर पर छाले बन जाते हैं । जबड़ों के चलाने से यह छाले फूट कर घाव बन जाते हैं जिसके कारण रोगी पशु को दर्द होता है और वह खाने पीने में असमर्थ हो जाता है। मुंह से लार टपकती है तथा जीभ मुंह से बाहर निकल आती है। खुर पर छाले होने के कारण पशु लंगड़ा कर चलने लगता है। गर्भवती मादा पशु में इस रोग मैं अधिक बुखार के कारण गर्भपात हो सकता है।
परीक्षण: रोग के लक्षण तथा प्रयोगशाला जांच के द्वारा इस रोग का परीक्षण किया जाता है।
उपचार: इस बीमारी का कोई निश्चित उपचार नहीं है। इसमें एंटीसेप्टिक घोल जैसे पोटेशियमपरमैंगनेट१:१०००० या कॉपर सल्फेट१% का घोल या बोरिक एसिड से मुंह तथा खुर के घाव को धोया जाता है तत्पश्चात उन घावों पर ग्लिसरीन लगाई जाती है। टॉपिक्योर एस.ए.जी.स्प्रे या वुंडहील स्प्रे के उपयोग से भी मुंह एवं पैर के घावों में आराम मिलता है।
बचाव: उपचार से बचाव बेहतर है। रोगी पशु को स्वस्थ पशुओं से अलग रखना चाहिए। रोगी पशु के शव को चुना डालकर जमीन में गाड़ देना चाहिए या जला देना चाहिए। स्वस्थ पशुओं का क्षेत्र में आवागमन को प्रतिबंधित कर देना चाहिए तथा रोगी पशुओं को उस क्षेत्र से बाहर जाने की अनुमति नहीं देनी चाहिए । सभी पशुओं ,मनुष्यों को प्रभावित क्षेत्र में जाने से पहले कीटाणुनाशक घोल वाले फूटबाथ से गुजरना चाहिए। संक्रमित बर्तन ,उपकरण इत्यादि को 4% सोडियम कार्बोनेट से धोना चाहिए। सभी पशुओं को एक साथ वैक्सीन लगवाना चाहिए। यह टीका मानसून रितु के प्रारंभ होने से पूर्व अवश्य लगवा लेना चाहिए।