पशुपोषण के बुनियादी पहलू एवं संतुलित आहार का महत्व

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Challenges in Establishing a Dairy Farm in a Village

पशुपोषण के बुनियादी पहलू एवं संतुलित आहार का महत्व

डॉ. मोक्षता गुप्ता

सहायक आचार्य, पशु पोषण विभाग

उत्तर प्रदेश पंडित दीन दयाल उपाध्याय पशु चिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालय एवं गो-अनुसंधान संस्थान, मथुरा

किसी भी पशुधन से अधिकतम उत्पादन प्राप्ति हेतु संतुलित आहार का एक विशेष महत्व है, क्यों की इस व्यवसाय मे होने वाले व्यय का लगभग 70 से 75 प्रतिशत आहार पर ही खरच होता है। यह पर्यावरण संबंधी चिंताओं को भी संबोधित करता है, जैसे खाद एवं अपशिष्ट उत्पादों का प्रबंधन और अपचित पोषक तत्वों के साथ हवा, मिट्टी और पानी के प्रदूषण को रोकना। इसके अलावा, गुणवत्ता और मात्रा के संदर्भ में अंडे, मांस और दूध जैसे उत्पादों को भी पशु पोषण अत्यदिक प्रभावित करता है।

राशन से तात्पर्य एक जानवर के लिए एक निश्चित अवधि के लिए आमतौर पर 24 घंटे तक खिलाए जाने वाले चारे की एक निश्चित मात्रा से है। चारा एक समय में या अंतराल पर भागों में दिया जा सकता है। दूसरी ओर, संतुलित आहार का मतलब पशु को विभिन्न आवश्यक पोषक तत्वों की उचित मात्रा, अनुपात और विविधता प्रदान करना है जिससे पशु स्वास्थ्य और उत्पादन के मामले में सर्वोत्तम प्रदर्शन कर सके। आमतौर पर यह सोचा जाता है कि आवश्यकता से अधिक आहार करना, उससे कम आहार देने की तुलना में कम हानिकारक होता है। दरअसल यह इस गलतफहमी के कारण है कि आवश्यकताओं से अधिक आहार देना एक रणनीति के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि जानवरों की न्यूनतम आवश्यकताएं पूरी हो जाएं। वैसे यह सत्य नहीं है। अतिरिक्त पोषक तत्व खिलाते समय, जानवरों को अतिरिक्त पोषक तत्वों को बाहर निकालने के लिए फीड की ऊर्जा के एक हिस्से का उपयोग करने की आवश्यकता होती है। इसलिए, जिस ऊर्जा का उपयोग विकास, मोटापा या दूध उत्पादन के लिए किया जाना चाहिए, उसका उपयोग पोषक तत्वों की इस अतिरिक्त मात्रा के उत्सर्जन के लिए किया जाता है।इसके अलावा, पोषक तत्वों की अधिकता गोबर में चली जाती है जिससे पर्यावरण प्रदूषण होता है। इसलिए, खेत पर उपलब्ध पशु आहार संसाधनों को समुचित उपयोग करनेए स्वास्थ्य, प्रतिरक्षा स्थिति, उत्पादकता और दीर्घायु को बढ़ाने के लिए राशन को संतुलित करना अति महत्वपूर्ण है।

संतुलित आहार पशुओं की विभिन्न शारीरिक आवश्यकता के हिसाब से बनाया जाता है जिसमे पशुओं की उत्पादकता और प्रजनन क्षमता को विशेष रूप से ध्यान में रखा जाता है। अच्छा पोषण पशुओं की उत्पादन क्षमता, रोग प्रतिरोधकता व भार वृद्धि में अत्यन्त सहायक है। यह पर्यावरण पर न्यूनतम प्रभाव के साथ लागत प्रभावी भी होना चाहिए और जानवरों के सामान्य स्वास्थ्य और कल्याण पर सकारात्मक प्रभाव डालना चाहिए।

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संतुलित आहार के लिए प्रमुख तत्व

प्रोटीनः यह वह पदार्थ है जो शरीर के ऊतकों के निर्माण के लिए अति आवश्यक होते हैं, साथ ही यह पशुओं  की उत्पादक क्षमता, शारीरिक जरूरत व भार वृद्धि में अत्यन्त सहायक होते हैं। विभिन्न खल (जैसे सोयाबीन खली, बिनौला खली) प्रोटीन के प्रमुख स्रोत हैं।

कार्बोहाइड्रेटः यह तीन प्रकार के होते हैं: शर्करा, स्टार्च और रेशायुक्त। शर्करा और स्टार्च पशु द्वारा ही पचाए जा सकते हैं। लेकिन, रेशायुक्त कार्बोहाइड्रेट जानवरों के प्रथम आमाशय (रुमेन) में पाए जाने वाले विभिन्न प्रकार के जीवाणुओें द्वारा पचाया जाता है। ये जीवाणु रुमेन में सहजीवन के रूप में रहते हैं।

खनिज और विटामिन ऐसे पदार्थ हैं जिनकी जानवरों को कम मात्रा में आवश्यकता होती है लेकिन महत्वपूर्ण कार्यों को पूरा करने के लिए आवश्यक होते हैं।

संतुलित आहार की आवश्यकता

  • पशु प्रजनन क्षमता में सुधार करने हेतु।
  • पशुओं की एंटीऑक्सीडेंट और रोग-प्रतिरोधक स्थिति में सुधार करने के लिए।
  • पशुओं की उत्पादन क्षमता में सुधार अर्थात दूध उत्पादन, शारीरिक विकास दर आदि।
  • उपलब्ध फीड पदार्थों का समुचित उपयोग के लिए।
  • विभिन्न उत्पाद की गुणवत्ता में सुधार अर्थात दूध की गुणवत्ता, मांस की गुणवत्ता।
  • चारे की लागत कम करके पशु पालन का शुद्ध लाभ बढ़ाना।
  • आंत्रीय मीथेन और अमोनिया उत्सर्जन को कम करने में भी सहायक होता है।

 पशुओं के लिए चारे व दाने की आवश्यकता की गणना करने के चरणः

किसी जानवर के लिए आवश्यक शुष्क पदार्थ की मात्रा उसके शरीर के वजन पर निर्भर करती है। स्थानीय मवेशी आमतौर पर प्रतिदिन अपने शरीर का 2.0 से 2.5 प्रतिशत शुष्क पदार्थ खाते हैं। जबकि संकर नस्ल के जानवर थोड़े ज्यादा खाने वाले होते हैं और उनके शुष्क पदार्थ की खपत उनके शरीर के वजन के 2.5 से 3.0 प्रतिशत के बीच होती है। शुष्क पदार्थ को निम्नानुसार विभाजित किया जाना चाहिएः

आहार संतुलन के लिए सामान्य नियम

यह किसी वैज्ञानिक आधार के बजाय कई प्रयोगात्मक तथ्यों पर आधारित है। इसके अनुसार 20 प्रतिशत क्रूड प्रोटीन सी.पी.) (14-16 प्रतिशत डी.सी.पी) और 68-72 प्रतिशत टी.डी.एन वाला एक दाने का मिश्रण तैयार किया जाता है। गेहूं के भूसे के साथ दाने के मिश्रण को नीचे उल्लिखित खुराक के अनुसार खिलाया जा सकता है

  • जीवन निर्वाह या रख रखाव (मेंटेनेंस) के लिए आहार
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चारा सामग्री देसी मवेशियों के लिए संकर गाय  भैंस के लिए
भूसा 4 किलो 4-6 किलो
दाने का मिश्रण 1-1.25 किलो 2 किलो
  • ग्यावन के दौरान अतिरिक्त आहारःग्यावन पशु के अंतिम तिमाही के दौरान, देसी और संकर गाय व भैंस के लिए क्रमशः 25 किलोग्राम और 1.75 किलोग्राम दाने की अतिरिक्त मात्रा दी जाती है।
  • दूध उत्पादन के लिए अतिरिक्त आहारःदेसी मवेशियों के मामले में रखरखाव की आवश्यकता के अलावा प्रत्येक 5 किलोग्राम दूध के लिए 1 किलोग्राम दाने का मिश्रण अतिरिक्त मात्रा में दिया जाता है और भैंस के मामले में 2 किलोग्राम दूध के लिए 1 किलोग्राम दाने का मिश्रण अतिरिक्त मात्रा में दिया जाता है।

संतुलित राशन के लक्षणः

पशु आहार बनाते समय निम्नलिखित कारकों पर विचार किया जाना चाहिएः

  1. अतिरक्त आहारःपशु को भरपूर मात्रा में सभी आवश्यकताएं प्रदान की जानी चाहिए, जो अधिक दूध उत्पादन और उसके शरीर के रखरखाव के लिए आवश्यक हैं। गाय को चारा तैयार करने और खिलाने में जो बर्बादी होती है, उसके लिए भी कुछ अतिरक्त आहार दिया जाना चाहिए।
  2. राशन उचित रूप से संतुलित होना चाहिएःअच्छी तरह से संतुलित आहार खिलाने से पशु की आवश्यकता के हिसाब से उसे सारे पोषक तत्व मिल जाते है, साथ ही संतुलित आहार की लागत भी कम होती है।
  3. राशन की पशु के लिए स्वीकार्यताःपशु आहार पर्याप्त स्वादिष्ट होना चाहिए। यदि यह स्वादिष्ट नहीं है, तो नमक और गुड़ मिलाकर इसका स्वाद बढ़ाएँ।
  4. पाचन क्षमताःराशन में अत्यधिक सुपाच्य फीड सामग्री होनी चाहिए ताकि आहार में मौजूद पोषक तत्वों को पशु की आंतों द्वारा आसानी से अवशोषण किया जा सके।
  5. राशन में पर्याप्त मात्रा में खनिज पदार्थ होने चाहिएःगाय द्वारा उत्पादित प्रत्येक लीटर दूध में 0.7 प्रतिशत से थोड़ा अधिक खनिज पदार्थ होता है, अतः भरपूर मात्रा में खनिज पदार्थों का पशु आहार में होना अति आवश्यक है।
  6. पशु आहार में नियमितता बनाए रखें: मवेशियों और अन्य जानवरों में आहार देने में अनियमितता से उनकी उत्पादक शक्ति पर बुरा असर पड़ता है। आहार खिलाने का समय समान रूप से किया जाना चाहिए ताकि जानवरों को आहार के बिना बहुत अधिक समय तक न रहना पड़ें।
  7. राशन में अचानक बदलाव से बचें: पशु आहार में सभी बदलाव धीरे धीरे और क्रमवार तरीके से करने चाहिए।
  8. आहार काफी रेचक होना चाहिएःअधिकांश पाचन समस्याओं का कारण अक्सर कब्ज होता है। इसलिए, ऐसे आहार देना आवश्यक है जो रेचक प्रकृति के हों।
  9. राशन आकार में काफी बड़ा होना चाहिएःमवेशियों का पाचनतंत्र बहुत बड़ा होता है और जब तक उनका पेट ठीक से नहीं भर जाता तब तक उन्हें संतुष्टि महसूस नहीं होती है। अपाच्य रेशा मवेशियों को तृप्ति का एहसास दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  10. राशन में पर्याप्त मात्रा में हरा चारा होना चाहिएःहरे रसीले चारे में शीतलता और थोड़ी रेचक क्रिया होती है। वे भूख में सहायता करते हैं और पशु को अच्छी स्थिति में रखते हैं। हरा चारा आकार मे बड़ा, आसानी से पचने वाला, रेचक होता है और इसमें पर्याप्त मात्रा में आवश्यक विटामिन मौजूद होते हैं।
  11. चारा ठीक से तैयार होना चाहिएःचना, जौ, मक्का आदि कठोर अनाजों को खिलाने से पहले बारीक कर लेना चाहिए ताकि उन्हें पचाने में आसानी हो। सूखा चारा जैसे ज्वार, बाजरा के डंठल आदि को पशु को खिलाने से पहले उन्हे 2-5 सेन्टमीटर के बीच काट कर ही खिलाए।
  12. पोषणविरोधी कारकों और विषाक्त पदार्थों की उपस्थितिःकुछ फीड सामग्रियों में विषाक्त पदार्थ हो सकते हैं, जो अधिक मात्रा में दिए जाने पर पशु के लिए हानिकारक हो सकते हैं। इसलिए फीड तैयार करते समय ऐसी फीड सामग्री का समावेश सीमित या समाप्त कर देना चाहिए।
  13. लागतःकम से कम लागत वाला पशु आहार तैयार करने के लिए हमेशा फीड सामग्री की लागत पर विचार करें।
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अच्छा पोषण पशुओं की उत्पादन क्षमता, रोग प्रतिरोधकता व भार वृद्धि में अत्यन्त सहायक है। परन्तु पशुओं को उपयुक्त मात्रा में खनिज लवण की प्राप्ति न होने से सामान्यतः पशुओं की सेहत पर प्रभाव पड़ता है। सभी क्षेत्रों के चारे व दाने के नमूनों के विलेषण से पता चला है कि विभिन्न खनिज तत्व जैसे कि कैल्शियम, फास्फोरस, कॉपर, जिंक व आयोडीन आदि की क्षेत्रवार 20-50 प्रतिशत तक कमी तथा साथ ही कुछ तत्वों जैसे लोहा, फ्लोरीन, लेड, केडमियम आर्सेनिक व मरकरी आदि की अधिकता पायी गई है।

निष्कर्ष

संतुलित आहार पशु के जीवन के लिए अत्यंत आवश्यक होता है जिससे पशु अपनी शारीरिक क्षमता के हिसाब से भरपूर दुग्ध उत्पादन करता है, साथ ही उसकी प्रजनन क्षमता व विकास दर भी अच्छा बना रहता है। इसके अलावा संतुलित आहार बनाने में लागत भी कम आती है। प्रत्येक पशु को उसकी जरूरत के हिसाब से खनिज मिश्रण को देना भी बहुत महत्वपूर्ण होता है।

 

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