बायोगैस तथा गोबर-धन (Galvanizing Organic Bio-Agro Resources Dhan – GOBAR-DHAN) योजना
डॉ जितेंद्र सिंह ,पशु चिकित्सा अधिकारी ,कानपुर देहात ,पशुपालन विभाग, उत्तर प्रदेश
कुछ साल पहले हालैंड की एक कंपनी ने भारत को गोबर निर्यात करने की योजना बनाई थी तो खासा बवाल मचा था, लेकिन यह दुर्भाग्य है कि इस बेशकीमती कार्बनिक पदार्थ की हमारे देश में कुल उपलब्धता आंकने के आज तक कोई प्रयास नहीं हुए। अनुमान है कि देश में कोई 30 करोड़ मवेशी हैं जिनसे हर साल 120 करोड़ टन गोबर मिलता है। इसमें से आधा उपलों के रूप में चूल्हों में जल जाता है। यह ग्रामीण उर्जा की कुल जरूरत का 10 फीसदी भी नहीं है। बहुत पहले राष्ट्रीय कृषि आयोग की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि गोबर को चूल्हे में जलाया जाना एक अपराध है। ऐसी और कई रिपोर्ट सरकारी बस्तों में बंधी होंगी, लेकिन इसके व्यावहारिक इस्तेमाल के तरीके गोबर गैस प्लांट की दुर्गति यथावत है। राष्ट्रीय कार्यक्रम के तहत निर्धारित लक्ष्य के 10 फीसदी प्लांट भी नहीं लगाए गए हैं। ऊर्जा विशेषज्ञ मानते हैं कि हमारे देश में गोबर के जरिये 2000 मेगावाट ऊर्जा पैदा की जा सकती है। सनद रहे कि गोबर के उपले जलाने से बहुत कम गर्मी मिलती है। इस पर खाना बनाने में बहुत समय लगता है यानी गोबर को जलाने से बचना चाहिए। यदि इसका इस्तेमाल खेतों में किया जाए तो अच्छा होगा।
बायोगैस क्या है?
बायोगैस ऊर्जा का एक ऐसा स्रोत है, जिसका बारंबार इस्तेमाल किया जा सकता है। इसका उपयोग घरेलू तथा कृषि कार्यों के लिए भी किया जा सकता है।
इसका मुख्य घटक हाइड्रो-कार्बन है, जो ज्वलनशील है और जिसे जलाने पर ताप और ऊर्जा मिलती है। बायोगैस का उत्पादन एक जैव-रासायनिक प्रक्रिया द्वारा होता है, जिसके तहत कुछ विशेष प्रकार के बैक्टीरिया जैविक कचरे को उपयोगी बायोगैस में बदला जाता है। चूंकि इस उपयोगी गैस का उत्पादन जैविक प्रक्रिया (बायोलॉजिकल प्रॉसेस) द्वारा होता है, इसलिए इसे जैविक गैस (बायोगैस) कहते हैं। मिथेन गैस बायोगैस का मुख्य घटक है।
बायोगैस उत्पादन की प्रक्रिया-——-
बायोगैस निर्माण की प्रक्रिया उल्टी होती है और यह दो चरणों में पूरी होती है। इन दो चरणों को क्रमश: अम्ल निर्माण स्तर और मिथेन निर्माण स्तर कहा जाता है। प्रथम स्तर में गोबर में मौजूद अम्ल निर्माण करनेवाले बैक्टीरिया के समूह द्वारा कचरे में मौजूद बायो डिग्रेडेबल कॉम्प्लेक्स ऑर्गेनिक कंपाउंड को सक्रिय किया जाता है। चूंकि ऑर्गेनिक एसिड इस स्तर पर मुख्य उत्पाद होते हैं, इसलिए इसे एसिड फॉर्मिंग स्तर कहा जाता है। दूसरे स्तर में मिथेनोजेनिक बैक्टीरिया को मिथेन गैस बनाने के लिए ऑर्गेनिक एसिड के ऊपर सक्रिय किया जाता है।
बायोगैस उत्पादन के लिए आवश्यक कच्चे पदार्थ——
हालांकि जानवरों के गोबर को बायो गैस प्लांट के लिए मुख्य कच्चा पदार्थ माना जाता है, लेकिन इसके अलावा मल,मुर्गियों की बीट और कृषि जन्य कचरे का भी इस्तेमाल किया जाता है।
•इससे प्रदूषण नहीं होता है यानी यह पर्यावरण प्रिय है।
•बायोगैस उत्पादन के लिए आवश्यक कच्चे पदार्थ गांवों में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है।
•इनसे सिर्फ बायोगैस का उत्पादन ही नहीं होता, बल्कि फसलों की उपज बढ़ाने के लिए समृद्ध खाद भी मिलता है।
•गांवों के छोटे घरों में जहां लकड़ी और गोबर के गोयठे का जलावन के रूप में इस्तेमाल करने से धुएं की समस्या होती है, वहीं बायोगैस से ऐसी कोई समस्या नहीं होती।
•यह प्रदूषण को भी नियंत्रित रखता है, क्योंकि इसमें गोबर खुले में पड़े नहीं रहते, जिससे कीटाणु और मच्छर नहीं पनप पाते।
•बायोगैस के कारण लकड़ी की बचत होती है, जिससे पेड़ काटने की जरूरत नहीं पड़ती। इस प्रकार वृक्ष बचाये जा सकते हैं।
बायोगैस उत्पादन संयंत्र के मुख्य घटक————-
बायोगैस के दो मुख्य मॉडल हैं : फिक्स्ड डोम (स्थायी गुंबद) टाइप और फ्लोटिंग ड्रम (तैरता हुआ ड्रम) टाइप
उपर्युक्त दोनों मॉडल के निम्नलिखित भाग होते हैं :
1) डाइजेस्टर : यह एक प्रकार का टैंक है, जहां विभिन्न तरह की रासायनिक प्रतिक्रिया होती है। यह अंशत: या पूर्णत: भूमिगत होता है। यह सामान्यत: सिलेंडर के आकार का होता है और ईंट-गारे का बना होता है।
2) गैसहोल्डर : डाइजेस्टर में निर्मित गैस निकल कर यहीं जमा होता है। इसके उपर से पाइपलाइन के माध्यम से गैस चूल्हे के बर्नर तक ले जायी जाती है।
3) स्लरीमिक्सिंगटैंक : इसी टैंक में गोबर को पानी के साथ मिला कर पाइप के जरिये डाइजेस्टर में भेजा जाता है।
4) आउटलेटटैंकऔरस्लरीपिट : सामान्यत: फिक्स्ड डोम टाइप में ही इसकी व्यवस्था रहती है, जहां से स्लरी को सीधे स्लरी पिट में ले जाया जाता है। फ्लोटिंग ड्रम प्लांट में इसमें कचरों को सुखा कर सीधे इस्तेमाल के लिए खेतों में ले जाया जाता है।
बायोगैस संयंत्र निर्माण में ध्यान में रखने योग्य बातें :———
जगह का चुनाव: जगह का चुनाव करते समय निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए :
•जमीन समतल और अगल-बगल से थोड़ी ऊंची होनी चाहिए, जिससे वहां जल जमाव न हो सके।
•जमीन की मिट्टी ज्यादा ढीली न हो और उसकी ताकत 2 किग्रा प्रति सेमी 2 होनी चाहिए।
•संयंत्र का स्थान गैस के इस्तेमाल की जानेवाली जगह के नजदीक हो (घर या खेत)।
•यह जानवरों के रखे जानेवाले स्थान से भी नजदीक होनी चाहिए, जिससे गोबर इत्यादि के लाने-ले जाने में दिक्कत न हो।
•पानी का स्तर ज्यादा ऊंचा नहीं होना चाहिए।
•संयंत्र वाली जगह पर पानी की पर्याप्त सुविधा होनी चाहिए।
•संयंत्र को दिन भर पर्याप्त धूप मिलनी चाहिए।
•संयंत्र स्थल में हवा आने-जाने की पर्याप्त व्यवस्था होनी चाहिए।
•संयंत्र और किसी अन्य दीवार के बीच कम से कम 1.5 मीटर का फासला हो।
•संयंत्र को किसी वृक्ष से भी दूर रखना चाहिए, ताकि उसकी जड़ें इसमें न घुस सकें।
•संयंत्र को कुएं से कम से कम 15 मीटर की दूरी पर होना चाहिए।
•कच्चेपदार्थोंकीउपलब्धता : कच्चे पदार्थों की उपलब्धता पर ही बायो गैस संयंत्र का आकार निर्भर करता है। यह माना जाता है कि जानवर से प्रतिदिन 10 किलो गोबर मिलता है। गोबर से औसतन 40 लीटर किलो गैस का उत्पादन होता है। अत: 3 घन मीटर बायोगैस उत्पादन के लिए 75 किग्रा गोबर की आवश्यकता पड़ेगी, जिसके लिए कम से कम चार जानवरों की जरूरत पड़ेगी।
गोबर गैस संयंत्र – ऊर्जा का खजाना, खाद का कारखाना
प्राकर्तिक रूप से प्राणियों के मृत शरीर एवं वनस्पति विघटित होकर सेंद्रिय खाद के रूप में मिट्टी में मिल जाते है. विघटन की यह प्रक्रिया सूक्ष्म जीवाणुओं, बेक्टीरिया, फफूंद (फंगस) आदि के द्वारा की जाती है. इस विघटन की प्रक्रिया में गैस का निर्माण भी होता है. इस गैस को बायोगैस कहते है. यह विघटन वायु रहित एवं वायु सहित दोनों अवस्थाओं में होता है.
वायु रहित अवस्था में सेंद्रिय पदार्थो से जो गैस पैदा होती है. उसमें 50 से 55 प्रतिशत तक मीथेन गैस होती है. 30 से 45 प्रतिशत तक कार्बन डाईआक्साइड गैस तथा अल्प मात्रा में नाइट्रोजन, हाइड्रोजन सल्फाइड, ऑक्सीजन आदि गैस होती है. भारत में प्रथम बार सन 1900 में माटुंगा, मुंबई स्थित लेप्रेसी असायलम द्वारा एक संयंत्र स्थपित कर मल से बायोगैस की उत्पत्ति की. बाद में गोबर पर आधारित गोबर गैस संयंत्र बनाने की तकनीकें विकसित की गई. इनमें दो संयंत्र लोकप्रिय हुए –
- फ्लोटिंगड्रम मॉडल या के.वी.आई.सी. मॉडल
- दीन बन्धु मॉडल या फिक्स डोम मॉडल
इन दोनों संयंत्र से प्राप्त मीथेन गैस गंघ रहित नीले रंग की ज्वाला से प्रज्वलित होकर पर्याप्त ऊर्जा देती है जिससे की रसोई पर धुआं रहित होकर सामान्य समय से आधे में भोजन पकाया जा सकता है | भोजन पकाने के अतिरिक्त गैस से निम्न कार्य भी लिए जा सकते है- - रात में प्रकाश के लिए.
- डीजल इंजन चलाने के लिए गैस का प्रयोग करके 80-85 प्रतिशत डीजल की बचत की जा सकती है | डीजल इंजन से पानी के पम्पसेट, कुट्टी मशीन, आटा(पीसने की) चक्की आदि भी चलाये जा सकते है |
- बिजली उत्पादन के लिए
- उन सभी कार्यो में जहाँ ऊर्जा की आवश्यकता होती है जैसे वेल्डिंग आदि |
बायोगैस स्लरी
बायोगैस संयंत्र में गोबर गैस की पाचन क्रिया के बाद 25 प्रतिशत ठोस पदार्थ रूपान्तरण गैस के रूप में होता है और 75 प्रतिशत ठोस पदार्थ का रूपान्तरण खाद के रूप में होता हैं। जिसे बायोगैस स्लरी कहा जाता हैं दो घनमीटर के बायोगैस संयंत्र में 50 किलोग्राम प्रतिदिन या 18.25 टन गोबर एक वर्ष में डाला जाता है। उस गोबर में 80 प्रतिशत नमी युक्त करीब 10 टन बायोगैस स्लेरी का खाद प्राप्त होता हैं। ये खेती के लिये अति उत्तम खाद होता है। इसमें 1.5 से 2 % नत्रजन, 1 % स्फुर एवं 1 % पोटाश होता हैं।
बायोगैस संयंत्र में गोबर गैस की पाचन क्रिया के बाद 20 प्रतिशत नाइट्रोजन अमोनियम नाइट्रेट के रूप में होता है। अत: यदि इसका तुरंत उपयोग खेत में सिंचाई नाली के माध्यम से किया जाये तो इसका लाभ रासायनिक खाद की तरह फसल पर तुरंत होता है और उत्पादन में 10-20 प्रतिशत बढ़त हो जाती है। स्लरी के खाद में नत्रजन, स्फुर एवं पोटाश के अतिरिक्त सूक्ष्म पोषण तत्व एवं ह्यूमस भी होता हैं जिससे मिट्टी की संरचना में सुधार होता है तथा जल धारण क्षमता बढ़ती है। सूखी खाद असिंचित खेती में 5 टन एवं सिंचित खेती में 10 टन प्रति हैक्टर की आवश्यकता होगी। ताजी गोबर गैस स्लरी सिंचित खेती में 3-4 टन प्रति हैक्टर में लगेगी। सूखी खाद का उपयोग अन्तिम बखरनी के समय एवं ताजी स्लरी का उपयोग सिंचाई के दौरान करें। स्लरी के उपयोग से फसलों को तीन वर्ष तक पोषक तत्व धीरे-धीरे उपलब्ध होते रहते हैं।
जानें- क्या है गोबर धन योजना——
सरकार ने इस योजना की घोषणा बजट 2018 में की थी. बजट में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने ग्रामीणों के जीवन को बेहतर बनाने की कोशिश के तहत इस योजना का जिक्र किया था. इस योजना के तहत गोबर और खेतों के बेकार या इस्तेमाल में न आने वाले उत्पादों को कम्पोस्ट, बायो-गैस और बायो-सीएनजी में बदल दिया जाएगा.
बजट में ‘स्वच्छ भारत’ के तहत गांवों के लिए बायोगैस के माध्यम से वेस्ट टू वेल्थ और वेस्ट टू एनर्जी बनाने पर जोर दिया गया. इस गोबर धन योजना का उद्देश्य गांवों को स्वच्छ बनाना और पशुओं के गोबर और खेतों के ठोस अपशिष्ट पर्दाथों को कंपोस्ट और बायो-गैस में परिवर्तित कर, उससे धन और ऊर्जा जनरेट करना है.
भारत में मवेशियों की आबादी पूरे विश्व में सबसे ज्यादा है. भारत में मवेशियों की आबादी लगभग 30 करोड़ है और गोबर का उत्पादन प्रतिदिन लगभग 30 लाख टन है. कुछ यूरोपीय देश और चीन पशुओं के गोबर और अन्य जैविक अपशिष्ट का उपयोग ऊर्जा के उत्पादन के लिए करते हैं लेकिन भारत में इसकी पूर्ण क्षमता का उपयोग नहीं हो रहा था. ‘स्वच्छ भारत मिशन ग्रामीण’ के अंतर्गत अब इस दिशा में हम आगे बढ़ रहे हैं.
क्या होगा फायदा
मवेशियों के गोबर, कृषि से निकलने वाले कचरे, रसोई घर से निकलने वाला कचरा, इन सबको बायोगैस आधारित उर्जा बनाने के लिए इस्तेमाल करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है. ‘गोबर धन योजना’ के तहत ग्रामीण भारत में किसानों, बहनों, भाइयों को प्रोत्साहित किया जाएगा कि वो गोबर और कचरे को सिर्फ कचरे के रूप में नहीं बल्कि आय के स्रोत के रूप में देखें.
- ‘गोबर धन योजना’ से ग्रामीण क्षेत्रों को कई लाभ मिलेंगे और गांव को स्वच्छ रखने में मदद मिलेगी.
- इससे पशु-आरोग्य बेहतर होगा और उत्पादकता बढ़ेगी.
- बायोगैस से खाना पकाने और लाइटिंग के लिए ऊर्जा के मामले में आत्मनिर्भरता बढ़ेगी.
- किसानों एवं पशुपालकों को आमदनी बढ़ाने में मदद मिलेगी.
- बायोगैस की बिक्री आदि के लिए नई नौकरियों के अवसर मिलेंगे.
ऐसे होगा काम - गोबर धन योजना के सुचारू व्यवस्था के लिए एक ऑनलाइन ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म भी बनाया जाएगा जो किसानों को खरीदारों से कनेक्ट करेगा ताकि किसानों को गोबर और एग्रीकल्चर वेस्ट का सही दाम मिल सके.
चर्चा में क्यों?
बजट 2018-19 में गोबर-धन (Galvanizing Organic Bio-Agro Resources Dhan – GOBAR-DHAN) योजना शुरू करने की घोषणा की गई थी।
हाल ही में प्रधानमंत्री द्वारा गोबर-धन योजना के सुचारु संचालन के लिये एक ऑनलाइन ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म विकसित करने की बात कही गई है। किसानों के लिये गोबर और फसल अवशेषों के उचित दाम सुनिश्चित करने हेतु यह प्लेटफॉर्म किसानों को खरीदारों से जोड़ेगा।
गोबर-धन (गैल्वनाइज़िंग ऑर्गेनिक बायो-एग्रो रिसोर्सेज़-धन) योजना
बजट 2018-19 में इस योजना के मुख्यत: दो उद्देश्य हैं : गाँवों को स्वच्छ बनाना एवं पशुओं और अन्य प्रकार के जैविक अपशिष्ट से अतिरिक्त आय तथा ऊर्जा उत्पन्न करना।
गोबर-धन योजना के अंतर्गत पशुओं के गोबर और खेतों के ठोस अपशिष्ट पदार्थों को कम्पोस्ट, बायोगैस, बायो-CNG में परिवर्तित किया जाएगा।
इस कार्यक्रम के अप्रैल माह में शुरू होने की उम्मीद की जा रही है। इसका लक्ष्य उद्यमियों को जैविक खाद, बायोगैस / बायो-CNG उत्पादन के लिये गाँवों के क्लस्टर्स बनाकर इनमें पशुओं का गोबर और ठोस अपशिष्टों के एकत्रीकरण और संग्रहण को बढ़ावा देना है।
फिलहाल प्रत्येक ज़िले में एक क्लस्टर का निर्माण करते हुए लगभग 700 क्लस्टर्स स्थापित करने की योजना है।
इसके तहत जैव-ऊर्जा मूल्य श्रृंखला के सभी श्रेणियों में छोटे और बड़े पैमाने पर परिचालनों को शामिल करते हुए विभिन्न व्यवसाय मॉडल विकसित किये जा रहे हैं।
योजना की सफलता की संभावनाएं ———
19वीं पशुधन जनगणना (2012) के मुताबिक़ भारत में मवेशियों की 300 मिलियन आबादी से प्रतिदिन लगभग 30 लाख टन गोबर प्राप्त होता है।
कुछ यूरोपीय देशों और चीन द्वारा ऊर्जा उत्पादन के लिये पशुओं के गोबर और अन्य जैविक अपशिष्ट का उपयोग किया जाता है।
लेकिन भारत इस तरह के अपशिष्ट की आर्थिक क्षमताओं का पूरी तरह लाभ उठाने में सफल नहीं हो सका है।
दुनिया में सबसे बड़ी पशु जनसंख्या के साथ भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में गोबर की बड़ी मात्रा को धन और ऊर्जा में बदलकर इसका लाभ उठाने की क्षमता है।
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के एक अध्ययन (2014) के मुताबिक गोबर का प्रोडक्टिव तरीके से उपयोग राष्ट्रीय स्तर पर 15 लाख रोज़गारों का सृजन कर सकता है। जैसे- एक किसान के लिये गोबर की बिक्री आय का एक महत्त्वपूर्ण अतिरिक्त स्रोत सिद्ध हो सकता है।
मवेशियों का गोबर, रसोई अपशिष्ट और कृषि संबंधी कचरे का बायोगैस-आधारित ऊर्जा बनाने के लिये प्रयोग किया जा सकता है।
गोबर-धन की पहल से पशुओं का गोबर और अन्य कार्बनिक अपशिष्ट को खाद, बायोगैस और यहां तक कि बड़े पैमाने पर बायो-CNG इकाइयों में परिवर्तित करने के लिये ऐसे ही अवसरों का सृजन किये जाने की संभावना है।
स्वच्छ भारत मिशन-ग्रामीण इस पहल का मार्गदर्शन करने में सक्षम है।
स्वच्छ भारत मिशन———-
स्वच्छ भारत मिशन का प्रमुख लक्ष्य भारत को खुले में शौच से मुक्त (ODF) बनाने के साथ ही शहरी और ग्रामीण दोनों ही क्षेत्रों में स्वच्छता का प्रसार करना है। इस मिशन के तहत ODF मोर्चे पर अच्छी प्रगति हुई है।
ग्रामीण स्वच्छता कवरेज अक्टूबर 2014 में 39% से बढ़कर वर्तमान में 78% हो गया है और लगभग 3,20,000 गाँवों को ODF घोषित किया जा चुका है तथा थर्ड पार्टी सर्वेक्षणों के अनुसार शौचालयों का उपयोग 90% से अधिक है।
अब ग्रामीण भारत में सामान्य स्वच्छता और प्रभावी ठोस तथा तरल अपशिष्ट प्रबंधन को बढ़ावा देने के लिये काफी ज़ोर दिया जा रहा है। इन उद्देश्यों को गोबर-धन योजना के साथ एकीकृत कर इस दिशा में प्रगति की जा सकती है।
चुनौतियाँ–———
इसमें प्रमुख चुनौती गोबर के उपयोग में मूल्यवर्द्धन और किसानों के बीच मवेशियों के अपशिष्ट को आय अर्जक साधन की तरह प्रोत्साहित करने के साथ ही समुदाय में स्वच्छता बनाए रखना है।
बायोगैस संयंत्रों के संचालन के लिये एक प्रमुख चुनौती पशु अपशिष्ट का एकत्रीकरण और संयंत्र ऑपरेटरों को इसकी नियमित आपूर्ति बनाए रखना है।
यही समस्या बायो-CNG संयंत्रों जैसी उच्च मूल्य श्रृंखला वाली गतिविधियों में भी है।
आगे की राह –———-
इस योजना के सफल कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने हेतु ग्रामीण समुदायों से बहुत कुछ सीखा जा सकता है जो बायोगैस संयंत्रों के संचालन को सुगम बनाने हेतु मवेशियों के गोबर को जमा करते हैं। ये संयंत्र आमतौर पर पारंपरिक LPG गैस सिलेंडर की तुलना में कम लागत पर रसोई गैस की आपूर्ति करते हैं।
कचरे से ऊर्जा : केस स्टडी ————-
पंजाब के होशियारपुर में लाम्बरा कांगड़ी बहुउद्देशीय सहकारी सेवा सोसायटी द्वारा यह कार्य सफलतापूर्वक किया जा रहा है।
यह सोसायटी मवेशियों के गोबर और अन्य जैविक अपशिष्ट को इकट्ठा कर इसका उपयोग बायोगैस संयंत्र चलाने के लिये करती है और इस तरह निर्मित कुकिंग गैस को सोसायटी के सदस्यों को उपलब्ध कराया जाता है।
इसी तरह सूरत (गुजरात) में ग्राम विकास ट्रस्ट द्वारा गोबर बैंक पहल की शुरुआत की गई है, जहाँ पर सामुदायिक बायोगैस संयंत्र को चलाने के लिये सदस्यों द्वारा ताज़ा गोबर लाया जाता है। सदस्यों द्वारा लाए गए गोबर को तौलकर उनके पासबुक में एंट्री कर दी जाती हैं।
इसके बदले में उन्हें सस्ते दामों पर कुकिंग गैस के साथ ही बायोगैस संयंत्र के अवशेष के रूप में जैविक घोल (Bio-slurry) भी उपलब्ध करा दिया जाता है जिसका वर्मी कंपोस्ट और जैविक खेती के लिये उपयोग किया जाता है।
ग्रामीण क्षेत्रों में अपशिष्ट से आय सुनिश्चित करने हेतु सभी हितधारकों और क्षेत्रों की भागीदारी की आवश्यकता होगी। साथ ही निजी क्षेत्र और स्थानीय उद्यमियों के निवेश की आवश्यकता होगी।
डंपिंग साइटों और लैंडफिल में जाने वाले जानवरों के और जैविक अपशिष्ट का लाभ उठाने के लिये पंचायतों और ग्रामीण समुदायों को प्रमुख भूमिका निभानी होंगी।
अनौपचारिक स्वच्छता सेवा प्रदाताओं को प्रशिक्षण और उन्हें लाइसेंस देकर इस व्यवस्था में एकीकृत किया जा सकता है।
उचित नीतियों और व्यवहारों द्वारा इस क्षेत्र में विकास के अवसरों में बढ़ाया जा सकता है जिससे किसानों को अतिरिक्त आय, दीर्घकालिक आजीविका सुरक्षा और गाँवों में अधिक स्वच्छता सुनिश्चित की जा सकेगी।