डॉ संजय कुमार मिश्र
पशु चिकित्सा अधिकारी चौमूहां मथुरा
पशुओं और पक्षियों को प्रभावित करने वाले अथवा पशु उत्पादों जैसे दूध मांस एवं अंडे आदि मैं पाए जाने वाले एवं मनुष्य द्वारा उपभोग किए जाने पर दुष्प्रभाव उत्पन्न करने वाले विषाक्त प्रभावों की जानकारी रोकथाम के उपाय तथा उपचार करना नितांत आवश्यक है। क्योंकि यह विषाक्त तत्व पशु और पक्षियों के जनन वृद्धि खानपान एवं व्यवहार को प्रभावित करते हैं। यह विषैले तत्व अनेक प्रकार के हो सकते हैं जिनमें मुख्य प्रकार निम्नवत है:-
१. चारागाह के विषैले पौधे और उनके बीज
२. कृषि कार्य में प्रयुक्त होने वाले रसायन
३. उद्योगों से निकलने वाले रसायन व रसायनिक तत्व
४. उपचार में प्रयुक्त होने वाले रसायनों की विषाक्तता
पशुओं में विषाक्तता के दो मुख्य स्रोत हैं यथा विषैले पेड़ पौधे और पर्यावरण प्रदूषण। अक्सर यह देखा गया है कि जिन पौधों को पशुआमतौर पर चरने से छोड़ देते हैं, सूखे की स्थिति में पशु पुन: उन्हीं पौधों को चर लेते हैं, जोकि पशु के लिए अत्यंत हानिकारक एवं घातक सिद्ध होते हैं। चारे के पौधों पर कटाई से पहले अनुचित रूप से या असंतुलित मात्रा में कीटनाशकों के प्रयोग पशु चारे के फसल में प्रयोग होने वाले रसायन से विषाक्तता उत्पन्न होने की संभावना होती है। इसके अतिरिक्त औषधियों के असंतुलित मात्रा में या अनुचित प्रयोग से एवं औद्योगिक संस्थानों द्वारा विषाक्त मलबे, दूषित वायु प्रदूषण से भी पशुओं में विषाक्तता उत्पन्न होने की संभावना होती है। सभी विषाक्त तत्व सामान्य रूप से विषाक्तता उत्पन्न नहीं करते हैं। इन विषाक्त तत्वों को विभिन्न वर्गों में विभाजित किया जाता है जैसे:-
१. उत्पत्ति के आधार पर- पेड़ पौधों द्वारा उत्पन्न होने वाले जीवाणु जनित, कवक जनित, विभिन्न जीव जनित, विभिन्न निम्न वर्गीय जीवो के डंक व काटने से प्रवाहित विष
२. विषाक्तता के आधार पर- सर्वाधिक विषाक्त, अत्याधिक विषाक्त, सामान्य रूप से विषाक्त, कम विषाक्त,।
तुलनात्मक रूप से अविषाक्त
विषाक्त तत्वों के द्वारा उत्पन्न होने वाले लक्षणों के कई कारण हैं जो मुख्यतः उनके द्वारा प्रभावित अंगों व ऊतकों के साथ-साथ उनके कार्य करने की प्रक्रिया पर निर्भर करते हैं जैसे-
१. अम्ल,छार, भारी धातु तत्व, सांप, बिच्छू व कीटों के डंक केवल क्षेत्रीय उतको को प्रभावित करते हैं।
२. पौधों से उत्पन्न विषाक्त तत्व त्वचीय ऊतकों का छरण करते हैं।
३. स्टिक़नींन, सायनाइड व हाइड्रोकार्बन केंद्रीय नाड़ी तंत्र को प्रभावित करते हैं।
४. तांबा ,सीसा ,अरंडी आदि रक्त कोशिकाओं को प्रभावित करते हैं।
५. अर्गट व थैलियम रक्त वाहिकाओं का क्षरण करते हैं।
६. क्लोरेट व नाइट्रस ऑक्साइड गैस रक्त के हीमोग्लोबिन से मेट हीमोग्लोबिन बनाते हैं।
७. वारफेरिन व डाईक्यूमेराल रक्त जमाव को रोकते हैं।
८. अॉरसैनिक, ऑर्गेनोफॉस्फेट व भारी धातुएं आदि विभिन्न एंजाइम्स पर कार्य करती हैं।
९. ब्रेकन फर्न, बेंजीन इत्यादि हड्डी के ऊतकों को प्रभावित करते हैं।
विषाक्तता की पहचान:
विषाक्तता की पहचान उत्पन्न होने वाले लक्षणों के साथ साथ मुख्यतः पशु के इतिहास पर निर्भर करती हैं। इसके अतिरिक्त परिस्थितियों, लक्षणों, रासायनिक परीक्षणों व मृत पशु के ऊतकों के परीक्षण व रासायनिक जांच लाभदायक रहती है। पशुपालक से लक्षणों के प्रकार, लक्षण प्रारंभ होने का समय, कुल प्रभावित, पशुओं की संख्या अथवा प्रकार, उनको दिए गए दाना, चारा व पानी का प्रकार उनके आवास, चारागाह व जल ग्रहण करने के स्थान के साथ-साथ दी गई औषधियों या उपचार की जानकारी करना महत्वपूर्ण है।
विषाक्तता एक आपातकालीन स्थिति होती है जिसका यथा शीघ्र निदान व निराकरण करना अति आवश्यक है। इससे बचाव एवं निदान करने के लिए पांच बिंदुओं पर सदैव ध्यान रखना होगा:-
१. पशु को जीवित अवस्था में बनाए रखने के लिए उचित प्राथमिक उपचार की व्यवस्था करनी चाहिए।
२. पशु के अति विशिष्ट पैरामीटर जैसे कि शरीर का तापमान, स्वास गति, हृदय गति को सामान्य करने की कोशिश की जाए।
३. पशु के इतिहास, खानपान, भ्रमण तथा लक्षणों को देखते हुए विषाक्तता का संदेहात्मक निर्धारण किया जाए जिसके आधार पर पशुओं का उपचार प्रारंभ किया जा सके।
४. पशु के चारा, रक्त, मल, मूत्र, आदि के नमूने प्रयोगशाला जांच के लिए भेजने की यथासंभव व्यवस्था की जानी चाहिए।
५. प्रयोगशाला के परीक्षण परिणाम के आधार पर विषाक्तता का एक निश्चयात्मक निर्धारण किया जाए और उसी के अनुसार पशु का उपचार किया जाए।
अधिकांश पशुओं का उपचार प्रयोगशाला के अभाव के कारण संदेहात्मक निर्धारण के आधार पर किया जाता है। पशुओं में विषाक्तता उत्पन्न करने वाले पदार्थों की संख्या हजारों में है। प्रत्येक पदार्थ का पशु के शरीर में कुछ प्रिय स्थान है जहां पर पहुंचकर वह पदार्थ रुक जाते हैं और अपनी संघता बनाते हैं
।पशुओं में विषाक्तता के पाए जाने वाले लक्षण इसी संघता पर निर्भर करते हैं। विषाक्तता का उपचार प्रमुख लक्षणों के आधार पर तात्कालिक प्रभाव से प्रारंभ कर देना चाहिए। प्रभावित पशु का विशेष ध्यान रखते हुए उनके लक्षणों के कारक की पहचान की जाती है। यदि उसका कोई विशेष एंटीडोट है तो उसको देना अत्यंत प्रभावी होता है। रक्त व गुर्दे सहित विभिन्न अंगों में विष के प्रभाव को कम करने के लिए फ्लूड थेरेपी निरंतर किया जाना अति लाभदायक होता है।
पशुओं में विषाक्तता के उपचार के विभिन्न चरण निम्न प्रकार से हैं:-
१. विषाक्त तत्व के माध्यम जैसे- आहार पानी व वातावरण को यथाशीघ्र बदलना।
२. शरीर में उपलब्ध विषाक्त तत्व के शोषण को रोकने के लिए साबुन पानी इत्यादि से सफाई करना बाल या ऊन का काटना पेट में उपस्थित तत्वों को निकालना, उल्टी कराना, नली द्वारा पेट की धुलाई करना तथा सामान्य विषाक्त रोधी पदार्थ जैसे कि कैलशियम ग्लूकोनेट, ग्लूकोस तथा थायोसल्फेट दिया जाना सम्मिलित है।
३. लक्षणों के आधार पर ऑर्गेनोफॉस्फेट व कार्बोनेट कंपाउंड विषाक्तता के लिए एट्रोपिन सल्फेट तथा आंक़जींस, जैसी औषधियां प्रभावी होती हैं।
अतः जैसे ही पशु के विष ग्रहण करने की जानकारी प्राप्त होती है तत्काल सबसे पहले प्रयास करें कि विष को शरीर से निकालने व कम करने का प्रयास करें। अगर विष पशु की त्वचा पर लगा है तो त्वचा को स्वच्छ पानी से अच्छी तरह से धुलाई करनी चाहिए इस धुलाई में साबुन या किसी अन्य डिटर्जेंट का प्रयोग नहीं करना चाहिए क्योंकि हो सकता है साबुन की सहायता से विष का अवशोषण बढ़ जाए।
यदि विष पशु के पेट में पहुंच चुका है तो पेट की धुलाई करनी चाहिए या फिर उल्टी कराने का प्रयास करना चाहिए। पेट की धुलाई के लिए 9 ग्राम सादा नमक या मीठा सोडा 1 लीटर पानी में घोलकर एक नली के द्वारा पेट में डालें। उल्टी कराने के लिए एक से तीन चाय के चम्मच सादा नमक हल्के गुनगुने पानी में पशु के जीभ के पिछले भाग पर डाल दें। यदि जहर अम्ल या छार है तो उल्टी कराने का प्रयास नहीं करना चाहिए अधिक से अधिक पेट की धुलाई ही सर्वोत्तम उपाय है। यदि पशु भी बेहोशी की दशा में है तो भी उल्टी कराने का प्रयास ना करें नहीं तो पशु को न्यूमोनिया हो सकता है।
पेट की धुलाई करने के पश्चात 10 ग्राम एक्टीवेटेड चारकोल 5 ग्राम हल्का मैग्नीशियम ऑक्साइड और 5 ग्राम टैनिक अम्ल का मिश्रण बनाकर पशु को पिलाना चाहिए। छोटे पशुओं को कच्चे अंडे की सफेदी पिलाना चाहिए और फिर एक कप कच्चा दूध पिलाना चाहिए।
यदि पेट की धुलाई संभव ना हो तो जैसे चार पेट वाले बड़े पशुओं, गाय, भैंस मे तो नमकीन परगेटिव जैसे कि जुलाबी नमक 60 ग्राम खिलाना चाहिए।
लक्षणात्मक उपचार के अंतर्गत पशु के शरीर के तापमान को बनाए रखें यदि तापमान सामान्य से कम है तो पशु को कंबल से ढक दें और यदि तापमान अधिक हैं तो पशु को नहला देना चाहिए और यदि पशु को दौरे पड़ रहे हैं तो उनकी रोकथाम करें। उल्टी और दस्त होने से यदि शरीर में शुष्कता आई है तो नमक का पानी अंत:शिरा सूची वेध विधि द्वारा दें । अम्ल की विषाक्तता समाप्त करने के लिए मीठा सोडा 1% घोल पिलाएं और छार या अल्कली के लिए नींबू का पानी या पानी में सिरका ( 100 मिली में 4 मिली़) का प्रयोग करें।
इन सबके अतिरिक्त पशु को पूर्णत: विश्राम करने दें, इस प्रकार कि कोई आहट भी ना हो। दाना चारा और साफ पानी भरपूर मात्रा में दें। यदि जहर के बारे में कोई भी जानकारी प्राप्त हो जाती है तो तुरंत उसी के अनुसार उपचार प्रारंभ कर दें। यदि पशु मूर्छित हो जाता है तो स्थिति गंभीर है और तुरंत पशु को होश में लाने का प्रयास करें। विषाक्तता एक अति गंभीर स्थिति होती है जिसमें पशु का निरंतर परीक्षण जरूरी होता है। छोटी से छोटी लापरवाही घातक सिद्ध हो सकती है।