ग्रामीण महिलाओं की आजीविका का स़्त्रोत: बकरी पालन

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ग्रामीण महिलाओं की आजीविका का स़्त्रोत: बकरी पालन

1डाॅ0 अंबिका शर्मा एवं 2डाॅ0 प्रियंका शर्मा

1सहायक आचार्य, जीैव रसायन विभाग,
पशुचिकित्सा विज्ञान एवं पशुपालन महाविद्यालय, दुवासु मथुरा उ0 प्र0 भारत
2पशुचिकित्साधिकारी , मोरा, सहारनपुर उ0 प्र0 भारत

भारतवर्ष में 35-40 प्रतिशत से अधिक लोग ग्रामीण आबादी में गरीबी का शिकार हैं जो कि बुनियादी सुविधाओं और खाद्य सुरक्षा से वंचित हैं । बेरोजगारी गरीबी का प्रमुख कारण है । ग्रामीण परिवेश में लगभग 85 प्रतिशत परिवार अपनी आजीविका के लिये कृषि पर निर्भर रहते हैं, जिसमें से लगभग 65-70 प्रतिशत योगदान कृषि के क्षेत्र में महिलाओं का है । बहरहाल, प्राकृृतिक संसाधनों के कारण, जमीन और जलवायु परिस्थितियों में उतार-चढाव इत्यादि कारणें से कृषि से होने वाली प्रति व्यक्ति आय तेजी से घटती नजर आई है । चूॅकि ज्यादातर ग्रामीण महिलायें अशिक्षित हैं और वे घरेलू जिम्म्ेदारियों को छोडकर औपचारिक प्रशिक्षण पाठ्यक्रम में शामिल होने में असमर्थ होती हैं और ग्रामीण महिलायें नई तकनीक अपनाने में और आधुनिक वैज्ञानिक और सूचना प्रौद्योगिकी का लाभ उठाने में असमर्थ होती हैं, महिलाओं के सशक्तिकरण या स्वावलंबन के लिए ग्रामीण भारत में टिकाउ आजीविका कार्यक्रम का महत्वपूर्ण योगदान है । महिला नेत्ृत्व में परिवारों के लिए घर के पिछवाडे की अर्थव्यवस्थाओं को बढावा देना ग्रामीण आजीविका का प्राथमिक लक्ष्य होना चाहिए ।
जब हम महिलाओं की बात करते हैं तो महिलायें देशभर में अपना दायित्व हर चरण पर कर्मनिष्ठा से निभा रही हैं । तो क्यों न ग्रामीण महिलायें पशुपालन को अपनी आजीविका का स्त्रोत बनायें ।

प्राचीन काल से ही पशुपालन – बकरी हमारे जीवन का अटूट हिस्सा रहा है । अंततः पशुपालन समावेशित विकास को दिशा देने में सहयोगी हो सकता है । बढती हुई बेरोजगारी, घटती कृृषि योग्य भूमि तथा कृृषि कार्यो पर समय समय पर मौसम की प्रतिकूलता के दुष्प्रभाव जैसे कारणें की वजह से पशुपालन वैकल्पिक जरिया बनाया जा सकता है ।

बकरी पालन से संबंधित कुछ जानकारी ग्रामीण महिलाओं के लिये
बकरी को आमतौर पर गरीबों की गाय कहा जाता है । क्योंकि कम खर्चे पर दूध उत्पादन किया जा सकता है । तथा बकरी से दूध, माॅस, चमडा आदि प्राप्त होता है । बकरी पालन को रोजगार बनाने हेतु कुछ वैज्ञानिक तथ्य

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बकरी की सबसे बडी विशेषता यह है कि वह किसी भी स्थान पर बिना पर्याप्त साधन से रखी जा सकती है । आमतौर पर बेकार समझी जाने वाली चीजों को खाकर भी वह दूध और मंाॅस उत्पादित करती है । ग्रामीण महिलायें चाहें तो अपने अतिरिक्त समय का उपयोग कर कम पूॅजी से अतिरिक्त आमदनी हासिल कर सकती हैं । बकरी माॅस की मांग आपूर्ति पर निर्भर करता है इसलिए बकरी-पालन व्यवसाय का भविष्य भी उज्जवल होता है । बस जरूरत इस बात की है कि बकरी पालन का धंधा वैज्ञानिक एवं आधुनिक ढंग से किया जाये । अतः महिलायें अगर इन पर अमल करें तो बकरी पालन से अधिक से अधिक आमदनी हासिल कर सकती हैं ।
बकरियों के नस्ल का चूनाव सही हो यानि उन्नत नस्ल की बकरियों का चुनाव फायदेमंद रहता है । हमारे देश में जमुनापारी, बीटल, बरबरी, ब्लैक बंगाल, सुरती आदि विभिन्न नस्लों की बकरियों पैदावार के लिए अच्छी नस्ल मानी जाती हैं ं ।
ग्रामीण क्षेत्र में पाली जा रही बकरियाॅ अपना ज्यादा समय घूम फिर कर चरने में व्यतीत करती हैं और चारे से लौटने पर घर के किसी कोने में ही खूॅटी के सहारे बंाध दिया जाता है । लेकिन बकरी पालन से अधिक फायदा उठाने के लिए एक साफ, हवादार और सस्ता बकरी घर बना लेना उचित है । अगर आप दो-तीन बकरियाॅ ही पालना चाहते हैं तो मकान के किसी किनारे में ही पाली जा सकती हैं । दोनों बकरियों के बीच एक तख्ता लगाकर रहने का हिस्सा अलग-अलग कर सकते हैं । यदि मकान के किसी किनारे में बकरी पालन मुश्किल हो तो घर के अगल-बगल थोडी सी जमीन में झोपडीनुमा बकरी घर बहुत कम खर्च में ही तैयार किया जा सकता है । वैसे तो बकरी का घर भूसा और बंास/बल्ली/ख्ंाबे गाडकर तैयार किया जा सकता है । अधिक गर्मी, कडी ठण्ड या बरसात के मौसम में एैसे घरों के चारों ओर बोरे का घेरा लगाकर बकरियों की हिफाजत कर सकती हैं । अगर किसी हिंसक जानवर का डर हो या बकरी चोरी होने की आशंका हो तो लकडी के फट्टे की दीवार बनाई जा सकती है । दीवार पर मिठ्टी और गोबर का लेप करने से घर काफी मजबूत हो सकता है । छोटी आमदनी के लिये घर बना लेना ही उचित है । लेकिन व्यवसायिक तौर पर बकरी पालन करने के लिये स्थायी बकरी घर होना जरूरी है । स्थायी बकरी घर पक्की ईट या लकडी से बनाया जा सकता है । साफ हवा और सूर्य की रोशनी भी जरूरी है । आमतौर पर दो बकरियों के लिए 4 फीट चैडी और साढे तीन फीट लंबी जगह सही है । प्रत्येक बकरी केे लिए अलग थान होना चाहिए ताकि आहार देना आसान हो सके । बीच में खाने का बर्तन और घास-पात रखने की जगह भी बनानी चाहिए ।
घर चाहे स्थायी हो या अस्थायी, उसकी प्रतिदिन सफाई आवश्यक है । समय-समय पर डेटोल, सेवलोन, फिनाइल से बकरी घर को रोगाणुरहित कर लेना चाहिए ।
आमतौर पर गांाव की बकरियां चराई पर ही निर्भर रहती हैं । पत्ते, हरा चारा, पौष्टिक खुराक दें । गेहॅू की भूसी, दालों का चूरा या चना और मक्का आदि तीन-चार चीजों को मिलाकर तैयार कर लेना चाहिए । प्रतिदिन दाने में एक चुटकी नमक भी मिलाना चाहिए । खुराक की मात्रा बकरियों के उत्पादन क्षमता या वजन के अनुसार घटाई-बढाई जा सकती है । एक बकरी को 2 किलो चारा तथा आधा किलो दाना देना चाहिए । बकरियों को खिलाने-पिलाने का समय निश्चित करें इससे भूख अच्छी लगती है । सूखे चारे के साथ हरा चारा भी जरूर मिलायें । चारा खिलाने वाले बर्तन की सफाई प्रतिदिन करें । बकरियों को साफ बर्तन में ताजा पानी पीने को देें । फफूॅद वाली चीजों से बकरियों को बचाना चाहिए । बकरियाॅ वर्ष में 2 बार गाभिन हो सकती हैं । एक वर्ष की आयु पूरी होने के बाद बकरियों को गर्भाधान कर सकते हैं । बकरी के प्रसव-काल से लगभग एक महीने पहले झुण्ड से अलग कर देना चाहिए और चरने के लिए बाहर नहीं ले जाना चाहिए । अगर बकरी दो-तीन या अधिक बच्चों को जन्म दे तो अंत में जन्म लेने वाले बच्चे को पहले दूध पीने का मौका देना चाहिए ।
आमतौर पर अन्य मवेशियों की अपेक्षा बकरियाॅ कम बीमार पडती हैं । फिर भी बकरी पालन से समुचित फायदा उठाने के लिए उनके रोगों के लक्षणों और उपचार के संबंध में कुछ जानकारी होना आवश्यक है । कुछ सामान्य रोग जैसे पी0 पी0 आर0, खुरपका-मुॅहपका रोग, निमोनिया, आन्तरिक परजीवी रोग, बाहय कृृमि आदि के लिये नजदीकी पशुचिकित्सक से संपर्क करें ।
राज्य सरकार गरीबों के हित में बकरी पालन को प्रोत्साहन देती है,एवं उन्नत मेमनों को गरीबी रेखा से नीचे जीवन बसर करने वाले परिवारों को सरकार निर्धारित अनुदानित दर पर उपलब्ध कराती है । उसी तरह पंचायत स्तर पर बकरे का वितरण किया जाता है ताकि उन्नत नस्ल के बकरे के उपयोग में स्थानीय बकरियों की संततियों में धीरे-धीरे सुधार लाया जा सके ।
अतः महिलाओं के लिये बकरी पालन एक लाभदायक व्यवसाय है । ग्रामीण महिलायें अपने खाली समय का उपयोग कर कम पूॅजी से ही अतिरिक्त आमदनी हासिल कर सकती हैं । यह एक ए0टी0एम0 की तरह है । बकरी द्वारा प्राप्त दूध, मंास, चमडा के अलावा इसका मल-मूत्र भी खाद के रूप में उपयोगी है । इसलिये यह गरीबों की गाय कहलाती है ।

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