बकरी पालन: संसाधन विहीन किसानों के लिए आजीविका का एक वैकल्पिक स्रोत

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बकरी पालन: संसाधन विहीन किसानों के लिए आजीविका का एक वैकल्पिक स्रोत
1दीपक चंद मीना, 2अक्षिता चड्डा, 3जसवंत कुमार रेगर
1,3 भा.कृ.अनु.प. – राष्ट्रीय डेरी अनुसंधान संस्थान, करनाल, हरियाना – 132001
2गुरु अंगद देव पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान विश्वविद्यालय, लुधियाना, पंजाब – 141001

प्रकति ने छोटे किसानों को वरदान के रुप में बकरियाँ दी है। बकरी पालन मुख्यतः दूध एवं माँस के लिए किया जाता है। भूमिहीन, लघु एवं सीमान्त किसानों के लिए बकरी पालन एक अच्छा एवं लाभकारी रोजगार है। ये न्यूनतम खाद्य ग्रहण करके मनुष्य को उच्च स्तर का आहार जैसे दूध, माँस इत्यादि देती है। उच्च रोग प्रतिरोधी क्षमता और अधिक उत्पादन के कारण ये निर्धनों हेतु सर्वश्रेष्ठ पालतू पशु मानी जाती है। बकरी एक बहुउपयोगी, सीधा-साधा, किसी भी वातावरण में आसानी से ढलने वाला छोटा पशु है जो अपनी रहन-सहन व खान-पान सम्बंधित आदतों के कारण सबका चाहता पशु है। अकाल जैसी भीषण परिस्थिति में जब किसी अन्य तरह का पशुपालन दूभर हो जाता है तो बकरी पालन द्वारा निर्धन वर्ग के लोग अच्छी आय प्राप्त कर सकते है। बकरियों का दूध, बच्चों एवं रोगियों के लिए बहुत उपयोगी होता है क्योंकि प्रतिरोधी क्षमता अधिक होने के साथ-साथ इसका पालन भी आसानी से हो जाता है। अच्छे गुणों वाले दूध के साथ-साथ बकरियों से अच्छे प्रकार का माँस भी मिलता है जिससे किसान की अच्छी कमाई हो जाती है। बकरी के गोबर को मिंगन कहते है जिससे बढ़िया किस्म की खाद बनती है। इन मिंगन को किसान बेचके एक अच्छा लाभ प्राप्त कर सकता है और इन मिंगन के खाद को अपने खेत में डालके कृषि खेती को अधिक उपजाव भी बना सकता है। इस पशु के मरने के बाद इसके खाल की कीमत भी अच्छी होती है। बकरी को भारत में “गरीबो की गाय” के नाम से भी जाना जाता है। भारत में बकरियों की जनसँख्या 148.9 मिलियन है जो विश्व की कुल जनसँख्या का लगभग 20 प्रतिशत हिस्सा भारत में में पाया जाता है।
बकरियों से किसान कही प्रकार से लाभ उठा सकता है जैसे वह दूध देने वाली बकरी को जरूरत बंध किसान को बकरी बेचकर, बकरी को माँस के रूप में बेचकर, मरने के बाद उसकी खाल बेचकर एव बकरियों के मिंगन को बेचकर इत्यादि तरीके से बकरी पालक लाभ उठा सकता है।
किसानो के लिए प्रमुख बकरी की नस्ले एव उनको अच्छी नस्ल चयन करने का तरीका
वैसे तो बकरयो की बहुत सारी नस्ले है परन्तु किसान के लिए मुख्यत जमनापुरी , बारबरी , सिरोही, ब्लैक बंगाल फायदेबंद हैं
मादा का चयन कैसे करे
1. बकरी का पिछला हिस्सा तिकोना एव पैर मुड़ा हुआ होना चाहिये
2. बकरी स्वस्थ एव नस्ल के अनुसार रूप, रंग एव भार के हो
3. उम्र के हिसाब से थन का विकास अच्छे से हुआ हो
4. दो बियातो की बिच कम अन्तराल एव जुड़वा बच्चे देती हो जिससे बकरीपालक को दोगुना फायदा होता है
नर बकरे का चयन कैसे करे
1. नस्ल के अनुसार रूप, रंग एव कद -काठि अच्छी हो
2. शारीरिक रूप से पूर्ण स्वस्थ एव चुस्त हो
3. दोनों अंडकोष पूर्ण रूप से विकसित हो
4. अच्छी स्वस्थ और निरोगी माँ की संतान हो
जमुनापारी – यह उच्च कोटि नस्ल की बकरी है जो मुख्यतः उत्तरप्रदेश प्रदेश के इटावा, मथुरा, आगरा, जनपदो में पाई जाती है। यह बकरी एक वर्ष में एक बार बच्चा देती है। बकरी का आकार बड़ा होने एवं दूध की अधिक उत्पादन क्षमता के कारण ये दूध एवं माँस दोनों प्रकार में उपयोगी होती है। मादा बकरी प्रायः एक वर्ष की उम्र में ग्याभिन हो जाती है। जून-जुलाई में गाभिन बकरी अक्तूबर-नवम्बर में बच्चा देती है और गर्मी भर दूध देती रहती है। इनके मेमने भी अच्छी कीमतों पर बिक जाते हैं. और इस नस्ल के वयस्क नर का औसत वजन 70 से 90 किलोग्राम का होता है, साथ ही मादा का वजन 50 से 60 किलोग्राम का होता है.
बारबरी – यह पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जिले जैसे आगरा, अलीगढ़ मथुरा, दिल्ली, हरियाणा एव राजस्थान में मुख्यतः पाई जाने वाली प्रजाति है। यह 13-14 माह में दो बार ब्याती है और प्रति ब्यांत में दो या दो से अधिक बच्चे देती है। यह माँस एवं दूध दोनों के उत्पादन के लिए उपयोगी होती है।
ब्लैक बंगाल – ये पश्चिमी बंगाल एवं उड़ीसा में पायी जाने वाली उच्च नस्ल की है, यह बकरी उच्चकोटि का माँस प्रदान करती है। इस नस्ल की बकरिया मुख्यत अच्छे माँस उत्पादन के पुरे भारत में जनि जाती है.
इन नस्ल के अलावा भी बहुत सारि बकरियों की नस्ल है जैसे बीटल, मालबरी, गद्दी, सिरोही नस्ल की उपयोगी बकरियो की नस्ल देश के विभिन्न भागों में पाई जाती है। चेगु नस्ल की बकरी जो कश्मीर में ही पाई जाती है जो की इससे उच्चकोटि की ‘पशमीना’ प्राप्त होता है। पशमीना उन सबसे महंगी उनो में से एक है।
बकरियों का प्रबंधन कैसे करे
बकरियों का अच्छे से प्रबंधन करने से उनकी उत्पादन क्षमता बढ़ती है जिससे बकरीपालक अधिक से अधिक लाभ प्राप्त कर सकता है। अच्छा प्रबंधन बकरी ही नहीं हर प्रकार के पशु के उत्पादन की वर्धि करने में बहुत ही सहायक है।
पोषण प्रबंधन
अर्ध सघन एव सघन में पद्धति में रखे जाने वाले बकरे एव बकरियों में प्रतिदिन दाने /चारे की मात्रा
उम्र दाना मिश्रण सूखा चारा हरा चारा
मेमने (3 -12 माह) 100-300 ग्राम 100-400 ग्राम 500 ग्राम – 1 किग्रा
व्यस्क बकरा/ बकरी 200-250 ग्राम 300-600 ग्राम 1-2.5 किग्रा
ग्याभिन बकरी 400-500 ग्राम 300-600 ग्राम 1-3 किग्रा
प्रजनन व प्रजनन के समय 400 ग्राम 300-600 ग्राम 1-3 किग्रा

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1. अर्ध सघन पद्धति में बकरियों को 5 -6 घंटे चराई जाए।
2. दाना मिश्रण बनाने के लिए खली 20 प्रतिशत, ज्वार /बाजरा /मक्का /गेहूँ 60 प्रतिशत, भूसी 17 प्रतिशत , खनिज मिश्रण 1.5 प्रतिशत मिलाना चाहिये।
3. बकरी के आहार में अचानक कोई परिवर्तन नहीं चाहिये अगर करना भी छाए तो धीरे धीरे अंतराल में करना चाहिये
4. बकरियों के बाड़े में हरा चारा, भूसा व दाना उपयुक्त उपकरण में देना चाहिये, इससे आहार का नुकसान नहीं होता है एव चारा संक्रमित भी नहीं होता।
आवास प्रबंधन
आधिकांशः बकरी आवास की लम्बाई 20 मीटर , चैड़ाई 6 मीटर तथा किनारे पर ऊचाई 2.7 मीटर रखी जाती है। बकरियों को उम्र के आधार पर अलग अलग जगह की जरूरत परती है।
उम ढकी जगह की आवस्याकता (वर्ग मीटर में) बाड़े की आवश्यकता (वर्ग मीटर में)
3 महीने तक के बच्चे 0.2-0.3 0.4-0.6
3 से 9 महीने तक के बच्चे 0.6-0.75 1.2-1.5
9 से 12 महीने तक के बच्चे 0.75-1.0 1.5-2.0
1 – 2 वर्ष तक के युवा बच्चे 1.0 2.0
वयस्क बकरे 1.5-2.0 3.0-4.0
गाभिन एव दूध देने वाली बकरियाँ 1.5-2.0 3.0

स्वास्थ्य प्रबंधन
बकरी पालन की सफलता के लिए उसका स्वस्थ होना बहुत जरूरी है। स्वास्थ्य प्रबंधन में थोड़ी सी लापरवाही करने से बकरीपालक को बहुत भारी नुकसान उठाना पर सकता है जैसे बच्चे की बढ़ोतरी दर एव उत्पादन बकरियों के उत्पादन में कमी देखने को मिलती है। इसलिए जब भी बकरी अस्वस्थ महसूस करे तो तुरंत चिकित्सक से परामर्श करके बकरी का ईलाज तुरंत करवाना चाहिये।
बकरियों के लिए टीकाकरण सारणी
बीमारी प्रथम टिका बूस्टर टिका पुनः टीकाकरण
बकरी पलेग (पी.पी.आर) 3 महीने की उम्र आवश्यकता नहीं 3 वर्ष पश्चात
आंत्र विषाक्तता( इंटेरोटोक्सेमिया) 3 -4 महीने की उम्र प्रथम टीकाकरण के 3 – 4 सप्ताह के पश्चात दूसरा टिका वार्षिक (एक माह के अंतराल में 2 बार)

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बकरी प्रबंधन के लिए सामन्य जानकारियाँ
1. नियमित रूप से बकरियो के आवास की सफाई करनी चाहिये तथा जो भी बाड़े से गन्दगी निकले उसे दूर कही गड्डे में डालना चाहिये।
2. बाड़े के अंदर एव बाड़े के बहार हफ्ते में एक बार भुजे हुए चुने से छिड़काव करना चाहिये जिससे मच्छर वगेरा होने की संभावना काम होगी।
3. प्रतिमाह बाड़े के अंदर फर्श के ऊपर सूखा चारा डालके जला देना चाहिये जिससे बाड़े के भीतर और बाहर पूर्ण विसंक्रमण हो जाता है जिससे परजीवी की सभी अवस्था नष्ट हो जाती है।
4. प्रति चार माह के अंतराल में बाड़े की मिट्टी को लगभग 6 इंच तक खोदके निकाल देना चाहियेऔर दूसरी मिटटी डालना चाहिये जिससे संक्रमण की सम्भावना काफी हद तक कम हो जाती है।
5. बीमार जानवर को स्वस्थ जानवर से अलग रखकर उसका अच्छी तरह से उपचार करना चाहिये।
6 . नए खरीदे गए जानवरो को कुछ दिन लगभग 21 दिन तक अलग रखना चाहिये उसके बाद ही उसको झुंड में शामिल करना चाहिये।
बकरियों को कहाँ व कैसे बेचें
बकरियों का मुल्ये निर्धारण उसके वजन के आधार पर करे। बकरियों को सही ग्राहकों को उचित मूल्य में बेचें। जब बकरीपालक अपनी बकरी बेचते वक्त ग्राहकों को बकरियों की नस्ल, वेवहार, आकार और उम्र के बारे मे पूर्ण जानकारी प्रदान करें जिससे ग्राहकों को बकरी की दिनचर्या एव उसके आचरण को समझने में आसानी होगी । बकरी विशेष कर उनके मांस, खाल, दूध, ऊन और खाद के लिए पाली जाती है। इनको ज्यादातर व्यापारी खरीदते हैं या बकरीपालक खुद कसाई को बेच सकते हैं और किसान सीधा जाकर बाजार और कसाईखाने में भी बेच सकते हैं। अगर किसान सीधा जाकर कसाईखाने में जाकर बेचता है तो उसको अधिक मूल्य प्राप्त होगा। कही बार व्यापारी इन्हें कम मूल्य में खरीद इन्हें बाजार में ज्यादा रेट मे बेचते हैं तो अगर बकरीपालक इन्हें सीधा बाजार मे बेंचे तो आपके लिए ज्यादा फायदेमंद होगा।

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