बेहतर दूध उत्पादन हेतु ठंड के मौसम में डेयरी फार्म का उत्तम प्रबंधन
उत्तरी भारत में वर्ष के चार महीने नवम्बर, दिसम्बर, जनवरी और फरवरी का समय शरद ऋतु माना जाता है। डेरी व्यवसाय के लिए यह सुनहरा काल होता है क्योंकि अधिकतर गायें एवं भैसें इन्हीं महीनों में व्याती हैं। जो गाय व भैसें अक्तूबर या नवम्बर में ब्याती है, उनके लिए समय अधिकतम दूध उत्पादन का होता है। यह काल दुधारू पशुओं, विशेषकर भैसों, के प्रजनन कें लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि अमूमन भैंस इसी मौसम में गाभिन होती है। कड़ी सर्दी के कारण इन दिनों में विभिन्न रोगों से ग्रसित होकर नवजात बच्चों की मृत्युदर भी अधिक हो जाती है। इसलिए दुधारू पशुओं से अधिक उत्पादन व अच्छे प्रजनन क्षमता बनाये रखने के लिए सर्दी के मौसम में पशुओं के रख-रखाव के कुछ विशेष उपाय किये जाने को आवश्यकता होती है, जिनका उल्लेख इस लेख में किया गया है।
आवास प्रबन्धन
वातावरण में धुंध व बारिश के कारण अक्सर पशुओं के बाड़ों के फर्श गीले रहते हैं जिससे पशु ठन्डे में बैठने से कतराते हैं। अतः इस मौसम में अच्छी गुणवत्ता का बिछावन तैयार करें, जिससे कि उनका बिछावन 6 इंच मोटा हो जाए। इस बिछावन को प्रतिदिन बदलने की भी आवश्यकता होती है। रेत या मेट्ट्रेस्स का बिछावन पशुओं के लिए सर्वोत्तम माना गया है क्योंकि इसमें पशु दिनभर में 12-14 घंटे से अधिक आराम करते हैं, जिससे पशुओं की उर्जा क्षय कम होती है।
नवजात एवं बढ़ते बछड़े-बछबड़ियों को सर्दी व शीट लहर से बचाव की विशेष आवश्यकता होती है। इन्हें रात के समय बंद कमरे या चरों ओर से बंद शेड के अंदर रखना चाहिए पर प्रवेश द्वारा का पर्दा/दरवाजा हल्का खुला रखें जिससे कि हवा आ जा सके। तिरपाल, पौलिथिन शीट या खस की टाट/पर्दा का प्रयोग करके पशुओं को तेज हवा से बचाया जा सकता है।
सर्दियों के दिनों में ज्यादातर गाय-भैंस दूध दे रही होती हैं। इसलिए उनको दुग्ध उत्पादन के अनुपात के अनुसार उन्हें संतुलित आहार देने की आवश्यकता होती है। संतुलित आहार बनाने के लिए 35 प्रतिशत खल, दालों और चने का चोकर 20 प्रतिशत और खनिज लवण मिश्रण 2 और नमक 3 प्रतिशत मात्रा में लेकर तैयार किया जा सकता है। दुधारू पशुओं के अलावा गर्भवती पशुओं को भी सर्दियों में एक से दो किग्रा संतुलित आहार देते रहना चाहिए। सूखे चारे के रूप में अगर करवी या भूसा खिला रहे हैं तो उसमें बरसीम और जई का हरा चारा मिलाकर खिलाना चाहिए। सर्दियों में दुधारू पशुओं से अधिक दुग्ध उत्पादन करने के लिए अधिक मात्रा में हरे चारे के रूप में बरसीम और जई को खिलाना चाहिए। छोटे पशु जैसे बकरी और भेड़ को सर्दियों के दिनों में अरहर, चना, मसूर का भूसा भरपेट खिलाना चाहिए।
थनैला से बचाव
सर्दियों में दुधारू पशुओं के अक्सर थन चटक जाते हैं या थनों में सूजन आ जाती है। इससे दूध दोहन में परेशानी के साथ ही थनैला बीमारी पनपने की आशंका बन जाती है। इसके बचाव के लिए दूध निकालने के बाद कम से कम आधा घंटा पशुओं को जमीन पर बैठने ना दें। थनैला रोग के बचाव के लिए दूध दोहन के बाद थनों को पोटेशियम परमैग्नेट के घोल से साफ करना चाहिए।
समय पर गर्भाधान
सर्दियों के दिनों में अधिकतर भैंस गर्मी (हीट) पर आकर गर्भधारण करती है। पशुपालकों को भैंस के गर्मी के लक्षण दिखने पर 12 से 24 घंटे के बीच में दो बार अवश्य ग्याभन करा दें। ब्याने के 2.5 से 3 महीने के भीतर गाय-भैंस ग्याभिन हो जानी चाहिए इसके लिए ब्याने के बाद यह सुनिश्चित कर लें कि गर्भ की ठीक प्रकार से सफाई हो गई है या नहीं। गर्भ की सफाई के लिए दवाएं पशुचिकित्सक से पूछकर दें। गाय-भैंस को उचित समय पर गर्मी पर लाने और ग्याभन कराने के लिए उन्हें नियमित रूप से 50 ग्राम विटामिनयुक्त खनिज लवण मिश्रण अवश्य खिलाना चाहिए।
सर्दी से बचाव
सर्दियों में पशुओं को बचाने के लिए विशेष प्रबंध करने की आवश्यकता होती है क्योंकि ठंड लग जाने पर दुधारू पशुओं के दूध देने की क्षमता पर बुरा असर पड़ता है। गाय- भैंस के छोटे बच्चों और भेड़-बकरियों पर जाड़े का घातक असर होता है। कई बार इन पशुओं के बच्चे ठंड की गिरफ्त में आकर निमोनिया रोग के शिकार बन जाते हैं। इसलिए जाड़े के दिनों में दुधारू पशुओं के साथ-साथ छोटे पशुओं को विशेष देखभाल की जरूरत होती है। पशुओं को ठंड से बचाने के लिए पशुशाला के खुले दरवाजे और खिड़कियों पर टाट लगाए जिससे ठंडी हवा अदंर न आ सके। सर्दियों में पशुशाला को हमेशा सूखा और रोगाणुमुक्त रखें। इसके लिए साफ-सफाई करते समय चूना, फिनायल आदि का छिड़काव करते रहना चाहिए।
आग और धूप से तपाएं
ठंड से बचाव के लिए सुबह-शाम और रात को टाट की पल्ली उढ़ा दें। पशुशाला में रात को सूखी बिछावन का प्रयोग करें जिसे सुबह हटा देना चाहिए। नवजात बच्चों को सर्दी से बचाने के लिए उन्हें ढककर सूखे स्थान पर बांधे और रात को अधिक ठंड होने की आग जलाकर तपाते रहना चाहिए। ठंड में दिन के समय सभी पशुओं को बाहर खुली धूप में रखें जिससे ठंड के बचाव के साथ-साथ उनके शरीर का रक्त संचार भी अच्छा रहता है।
स्वच्छ और ताजा पानी ही पिलाये
पशुओं के लिए भी पशुशाला में स्वच्छ और ताजा पानी का प्रबंध होना जरुरी है। पानी की कमी से पशुओं के स्वास्थ्य पर असर पड़ता है और उनका दूध उत्पादन भी प्रभावित होता है। इसलिए सर्दियों में पशुओं को तालाब, पोखर, नालों, और नदियों का गंदा और दूषित पानी बिल्कुल न पिलाएं बल्कि उन्हें दिन में तीन से चार बार साफ-स्वच्छ पानी पिलाना चाहिए। अगर पानी पिलाने को टैंक की दीवारों की बिना बुझे चूने से पुताई करने के साथ ही नीचे भी चूना डाल दें। इससे पानी हल्का, स्वच्छ होने के साथ काफी हद तक पशुओं के शरीर की कैल्शियम की पूर्ति भी करता है।
स्वास्थ्य प्रबन्धन
ठण्ड में पैदा वाले बछड़े-बछबड़ियों के शरीर को बोरी, पुआल आदि से रगड़ कर साफ करें, जिससे उनके शरीर को गर्मी मिलती रहें और रक्तसंचार भी बढ़े। ठण्ड में बछड़े-बछबड़ियों का विशेष ध्यान रखे, जिससे कि उनकी सफेद दस्त, निमोनिया आदि रोगों से बचाया जा सके।
याद रहे, कि पशुघर के चारों तरफ से ढक का रखने से अधिक नमी बनती है, जिससे रोग जनक कीटाणु के बढ़ने की संभावना होती है। ध्यान रहे, कि छोटे बच्चों के बाड़ों के अदंर का तापमान 7-80 सेंटीग्रेड से कम न हो। यदि आवश्यक समझें, तो रात के समय इन शेडों में हीटर का प्रयोग भी किया जा सकता है। बछड़े-बछबड़ियों को दिन के समय बाहर धुप में रखना चाहिए तथा कुछ समय के लिए उन्हें खुला छोड़ दें, ताकि वे दौड़-भाग कर स्फ्रुतिवान हो जाएँ।
अधिकतर पशु पालक सर्दियों में रात के समय अपने पशुओं को बंद कमरे में बांध का रखते हैं और सभी दरवाजे खिड़कियों बढ़ कर देते हैं, जिससे कमरे के अंदर का तापमान काफी बढ़ जाता है उअर कई दूषित गैसें भी इकट्ठी हो जाती है,जो पशु के स्वास्थ्य को प्रभावित करती है। अतः ध्यान रखें कि दरवाजे-खिड़कियाँ पूर्णतयः बंद न हो।
अत्यधिक ठण्ड में पशुओं को नहलाएं नहीं, केवल उनकी ब्रुश से सफाई करे, जिससे की पशुओं के शरीर से गोबर, मिट्टी आदि साफ हो जाएं। सर्दियों के मौसम में पशुओं व छोटे बछड़े-बछबड़ियों को दिन में धुप के समय हो ताजे/गुनगुने पानी से ही नहलाएं।
अधिक सर्दी के दिनों में दुधारू पशुओं के दूध निकालने से पहले केवल पशु के पिछवाड़े, अयन व थनों को अच्छी प्रकार ताजे पानी से धोएं। ठंडे पानी से थनों को ढोने से दूध उतरना/लेट-डाउन अच्छी प्रकार से नहीं होता और दूध दोहन पूर्ण रूप से नहीं हो पाता।
इस मौसम में अधिकतर दुधारू पशुओं के थनों में दरारें पड़ जाती है, ऐसा होने पर दूध निकालने के बाद पशुओं के थनों पर कोई चिकानी युक्त/एंटीसेप्टिक क्रीम अवश्य लगायें अन्यथा थनैला रोग होने का खतरा बढ़ जाता है। दूध दुहने के तुरंत बाद पशु का थनछिद्र खुला रहता है जो थनैला रोग का कारक बन सकता है, इसलिए पशु को खाने के लिए कुछ दे देना चाहिए जिससे कि वह लगभग आधे घंटे तक बैठे नहीं, ताकि उनका थनछिद्र बंद हो जाए।
अंत: परजीवियों से बचाव
सर्दियों के दिनों में परजीवी भी पशुओं को नुकसान पहुंचाते हैं, जिससे दुग्ध उत्पादन प्रभावित होता है, साथ ही नवजात बच्चों को दस्त, निमोनिया होने का खतरा रहता है। अक्टूबर तक पैदा होने वाले ज्यादातर भैंस के बच्चे बड़ी तादात में सर्दियों का मौसम खत्म होने तक मौत के मुंह में चले जाते हैं, जिसकी मुख्य वजह अंत: परजीवी का होना है। सर्दियों मे बकरियों में लीवर फ्लूक भी हो जाता है। इन पशुओं को अंत:परजीवी से बचाने के लिए शरीर भार के अनुसार कृमिनाशक दवाएं अल्बोमार, बैनामिन्थ, निलवर्म, जानिल आदि देते रहना चाहिए।
बाह्य परजीवियों से बचाव
सर्दियों के दिनों में जाड़ा लग जाने के डर से ज्यादातर पशुपालक अपने पशुओं को नहलाते ही नहीं हैं। जाड़ों में पशुओं के शरीर की साफ सफाई नहीं होने के कारण पशुओं के शरीर पर बाह्य परजीवी कीट- जूं, पिस्सू, किलनी का प्रकोप हो जाता है। यह सभी पशुओं का खून चूसकर बीमारी का कारण बनते हैं इसलिए जाड़े में पशुओं की साफ सफाई का बहुत ध्यान रखें। धूप निकलने पर सप्ताह में दो से तीन बार पशुओं को नहलाये। बाहरी कीट के बचाव के लिए बूटॉक्स और क्लीनर दवा की दो मिली मात्रा 1 लीटर पानी के अनुपात में घोलकर ग्रसित पशु के शरीर पर ठीक तरीके से चुपड़ दें। इसके 2 घंटे बाद उस पशु को नहलाये।
नमी से बचाव
सर्दियों में गाय-भैंस, बकरे और उनके नवजात बच्चों को जाड़े से बचाने की आवश्यकता होती है। पशुओं के बांधने की जगह नमी नहीं होनी चाहिए। अगर नमी होती है तो श्वांस संबंधी रोग और निमोनिया हो सकता है। नमी वाले स्थान पर साफ-सफाई करने के बाद चूने का छिड़काव कर दें। पशुशाला को दिन में दूध निकालने के बाद खुला छोड़ दें, जिससे उसमें हवा का संचार हो सके। सर्दियों में बकरियों को सुबह-शाम ओस के दौरान चरने के लिए नहीं छोड़ना चाहिए।
अधिक ऊर्जायुक्त आहार दें
सर्दियों में दुधारू पशुओं को उर्जा प्रदान करने के लिए समय-समय पर शीरा अथवा गुड़ अवश्य खिलाते रहना चाहिए। इस मौसम में गाय-भैंस के बच्चों और बकरियों को 30 से 60 ग्राम गुड़ जरूर खाने को देना चाहिए। बकरियों को 50 ग्राम और बड़े पशुओं को 200 ग्राम तक मेथी सर्दियों में प्रतिदिन खिलाने से जाड़े से बचाव होता है और साथ ही दूध उत्पादन भी अच्छा होता है। बकरियों को अधिक हरे चारे की जगह नीम, पीपल, जामुन, बरगद, बबूल आदि की पत्तियां खिलाना चाहिए। सर्दियों में दुधारू पशुओं को चारा-दाना खिलाने, पानी पिलाने व दूध दोहन का एक ही समय रखें। अचानक बदलाव करने से दूध उत्पादन प्रभावित हो सकता है।
पशुपालक धुंध और ठिठुरा देने वाली इन ठंडी हवाओं से अपने दुधारू पशुओं को कैसे सुरक्षित रख सकते है, आज हम आपको इसी के बारे में बताने वाले हैं. सही तरह से पशुओं का ध्यान रखकर आप उन्हें बीमारियों से भी दूर रख सकते हैं.
पशुपालक पशुओं के रहने के स्थान को भी व्यवस्थित रखें. पशुओं के लिए जूट के बोरे जैसे चीज़ों को उपयोग कर सकते हैं जिससे पशुओं को गर्माहट मिले और ठंड दूर रहे. पशुपालक ज्वार या बाजरे की टाट बांधकर हवा और सर्दी से बचाव कर सकते है. इस बात का ज़रूर ध्यान दें कि पशुशाला किसी नमी वाली जगह न हो और धुप बराबर पशुओं को मिलती रहे.खुले में पशुओं को धूप में ही बांधे. इसके साथ ऐसे जगह जहां सफाई करना आसान हो.पशुओं के गोबर और मूत्र निकास की भी उचित व्यवस्था होनी चाहिए जिससे उन्हें सूखी और साफ़-सुथरी जगह मिले.हमेशा पशु को ताजा पानी ही पिलाएं और इस बात का ख़ास ध्यान दें कि पानी न ज़्यादा ठंडा हो और न ज़्यादा गर्म हो.अगर खान-पान की बात करें तो पशुओं को हरा चारा खिलाने से पहले थोड़ा-सा सूखा चारा ज़रूर खिलाएं। आप सूखा चारा हरे चारे में मिलाकर भी पशुओं को दे सकते हैं. सर्दियों में सामान्य तापमान बनाये रखने के लिए पशुओं को रात को भी ये सूखा चारा खिलाएंअपने हर एक पशु को लगभग 50 से 60 ग्राम तक नमक ज़रूर खिलाएं जिससे उनमें खनिज पदार्थ की कमी नहीं होगी और दूध उत्पादन भी अच्छा मिलेगा. ठीक उतरेगा व प्रजनन सुचारू रूप से होपशुओं में डेगनाला बीमारी न हो, इसके लिए पराली अगर आप खिला रहे है, तो इसका ध्यान दें कि वह साफ़-सुथरी हो.पशुओं को पीने के लिए गुनगुना चारा और पानी दिया जाना चाहिए।दूध में जानवरों के शरीर के तापमान को बनाए रखने के लिए, उन्हें तेल केक और गुड़ के मिश्रण के साथ खिलाया जाना चाहिए।जानवरों को तापमान में अचानक गिरावट से बचाने के लिए, जानवरों को रात के समय एक ढका हुआ शेड / क्षेत्र में रखें।पशु शेड में बिस्तर / घास को सूखा रखना चाहिए और हर दिन बदलना / प्रसारित करना चाहिए।यह सुनिश्चित करने के लिए कि जानवरों में आवश्यक लवण बनाए रखा जाता है, उनके फ़ीड के साथ पर्याप्त मात्रा में नमक मिश्रण प्रदान करें।जानवरों की डेवोर्म /कृमिहरण करने का यह सही समय है।दुधारू पशुओं को मास्टिटिस से बचाने के लिए, सारा दूध को हटा दिया जाना चाहिए और दूध दुहने के बाद, उनके दूध को एक कीटाणुनाशक से साफ किया जाना चाहिए।हरे चारे की मात्रा पशु आहार में सीमित मात्रा में रखा जाना चाहिए, क्योंकि इससे पशुओं में दस्त और एसिडोसिस होने की संभावना बढ़ जाती है।यदि पशुओं को खिलाने के बाद भी पर्याप्त मात्रा में हरा चारा उपलब्ध हो, तो इसे धूप में सुखाकर पीरियड्स की कमी के लिए रखा जाना चाहिए।नवजात पशु को खीस और एमिनो पॉवर (Amino Power) जरूर पिलाएं, इससे बीमारी से लडऩे की क्षमता में वृद्धि होती है और नवजात पशुओं की बढ़ोतरी भी तेजी से होता है ।अलाव जलाएं पर पशु की पहुंच से दूर रखें। इसके लिए पशु के गले की रस्सी छोटी बांधे ताकि पशु अलाव तक न पहुंच सके।ठंड से प्रभावित पशु के शरीर में कपकपी, बुखार के लक्षण होते हैं तो तत्काल निकटवर्ती पशु चिकित्सक को दिखाएं ।पशुओं को जूट के बोरे को ऐसे पहनाएं जिससे वे खिसके नहीं।
डॉ चंद्रकला सिन्हा ,भ्रमण सिंह पशु चिकित्सा पदाधिकारी ,हाजीपुर ,बिहार