आधुनिक सूकर पालन की पद्धति एवं प्रबंधन
(संकलन – डॉ राजेश कुमार सिंह , जमशेदपुर ,9431309542,
rajeshsinghvet@gmail.com)
परिचय
बढ़ती हुई जनसंख्या के लिए भोजन की व्यवस्था करना अति आवश्यक है| भोजन के रूप में अनाज एवं मांस, दूध, मछली, अंडे इत्यादि का प्रयोग होता है| छोटानागपुर में जहाँ सिंचाई के अभाव में एक ही फसल खेत से लाना संभव है, वैसी हालत में साल के अधिक दिनों में किसान बिना रोजगार के बैठे रहते है| यह बेकार का बैठना गरीबी का एक मुख्य कारण है इस समय का सदुपयोग हमलोग पशुपालन के माध्यम से कर सकते हैं| अत: पशुपालन ही गरीबी दूर करने में सफल हो सकती है| आदिवासी लोग मुर्गी, सुअर, गाय, भैंस एवं बकरी आवश्य पलते हैं लेकिन उन्न्त नस्ल तथा उसके सुधरे हुए पालने के तरीके का अभाव में पूरा फायदा नहीं हो पाता है| सुअर पालन जो कि आदिवासियों के जीवन का एक मुख्य अंग है, रोजगार के रूप में करने से इससे अधिक लाभ हो सकता है|
लाभदायक व्यवसाय
अपने देश की बढ़ती हुई जनसंख्या के लिए केवल अनाज का उत्पादन बढ़ाना ही आवश्यक नहीं है| पशुपालन में लगे लोगों का यह उत्तरदायित्व हो जाता है कि कुछ ऐसे ही पौष्टिक खाद्य पदार्थ जैसे- मांस, दूध, अंडे, मछली इत्यादि के उत्पादन बढ़ाए जाए जिससे अनाज के उत्पादन पर का बोझ हल्का हो सके| मांस का उत्पादन थोड़े समय में अधिक बढ़ने में सुअर का स्थान सर्वप्रथम आता है| इस दृष्टि से सुअर पालन का व्यवसाय अत्यंत लाभदायक है| एक किलोग्राम मांस बनाने में जहाँ गाय, बैल आदि मवेशी को 10-20 किलोग्राम खाना देना पड़ता है, वहां सुअर को 4-5 किलोग्राम भोजन की ही आवश्यकता होती है| मादा सुअर प्रति 6 महीने में बच्चा दे सकती है और उसकी देखभाल अच्छी ढंग से करने पर 10-12 बच्चे लिए जा सकते हैं| दो माह के बाद से वे माँ का दूध पीना बंद कर देते हैं और इन्हें अच्छा भोजन मिलने पर 6 महीने में 50-60 किलोग्राम तक वजन के हो जाते हैं| यह गुण तो उत्तम नस्ल की विदेशी सुअरों द्वारा ही अपनाया जा सकता है| ऐसे उत्तम नस्ल के सुअर अपने देश में भी बहुतायत में पाले एवं वितरित किए जा रहे हैं| दो वर्ष में इनका वजन 150-200 किलोग्राम तक जाता है| आहारशास्त्र की दृष्टि से सोचने पर सुअर के मांस द्वारा हमें बहुत ही आवश्यक एवं अत्यधिक प्रोटीन की मात्रा प्राप्त होती है| अन्य पशुओं की अपेक्षा सुअर घटिया किस्म के खाद्य पदार्थ जैसे- सड़े हुएफल, अनाज, रसोई घर की जूठन सामग्री, फार्म से प्राप्त पदार्थ, मांस, कारखानों से प्राप्त अनुपयोगी पदार्थ इत्यादि को यह भली-भांति उपयोग लेने की क्षमता रखता है| हमारे देश की अन्न समस्या सुअर पालन व्यवसाय से इस प्रकार हाल की जा सकती है| अच्छे बड़े सुअर साल में करीब 1 टन खाद दे सकते हैं| इसके बाल ब्रश बनाने के काम आते है| इन लाभों से हम विदेशी मुद्रा में भी बचत कर सकते हैं|
सूकर पालन कम कीमत पर में कम समय में अधिक आय देने वाला व्यवसाय साबित हो सकता हैं,जो युवक पशु पालन को व्यवसाय के रूप में अपनाना चाहते हैं सूकर एक ऐसा पशु है, जिसे पालना आय की दृष्टि से बहुत लाभदायक हैं, क्योंकि सूकर का मांस प्राप्त करने के लिए ही पाला जाता हैं । इस पशु को पालने का लाभ यह है कि एक तो सूकर एक ही बार में 5 से 14 बच्चे देने की क्षमता वाला एकमात्र पशु है, जिनसे मांस तो अधिक प्राप्त होता ही है और दूसरा इस पशु में अन्य पशुओं की तुलना में साधारण आहार को मांस में परिवर्तित करने की अत्यधिक क्षमता होती है, जिस कारण रोजगार की दृष्टि से यह पशु लाभदायक सिद्ध होता है ।
सूकर का मांस भोजन के रूप में खाने के अलावा इस पशु का प्रत्येक अंग किसी न किसी रूप में उपयोगी है। सूकर की चर्बी, पोर्क, त्वचा, बाल और हड्डियों से विलासिता के सामान तैयार किये जाते हैं। इसे अपनाकर बेरोजगार युवक आत्मनिर्भर हो सकते हैं । अपने देश के बेरोजगार ग्रामीण युवकों, अनुसूचित जाति, जनजाति व पिछड़े वर्ग के लोगों के लिए तो सूकर पालन एक महत्वपूर्ण व्यवसाय साबित हो सकता है, बशर्ते इस व्यवसाय को आधुनिक एवं वैज्ञानिक पद्धतियों के साथ अपनाया जाये ।
सरकार ने भी सुकर पालन से संबंधित प्रशिक्षण केन्द्र स्थापित किये गये है। जिससे लोगों की रूझान इस व्यवसाय की तरफ बढ़तीा जा रही है, सूकर को खरीदने व बेचने के लिए समय-समय पर विभिन्नि क्षेत्रों में मार्केटिंग हार्ट भी लगाये जाते है, सूकर मेलों का आयोजन किया जाता है, जहां उचित मूल्य पर सूकरों का क्रय-विक्रय होता है और सूकर के रोगों की रोकथाम के लिए टीके व कीटनाशक दवाएं दी जाती हैं. देशी सूकर पालना आर्थिक दृष्टि से फायदेमंद नहीं होता, क्योंकि जहां देशी नस्ल के सूकर का वजन डेढ़ वर्ष की आयु में 35-40 किलोग्राम होता है, वहीं इतनी ही आयु के विदेशी नस्ल के सूकर का वजन 90 से 100 किलोग्राम होता है, जहां देशी नस्ल के नवजात बच्चे का वजन 1.4 किलोग्राम होता है, देशी सूकरों का मांस भी काफी घटिया किस्म का होता हैं, इसलिए विदेशी नस्ल के सूकर ही पालने चाहिए।
सूकरों के लिए घर बनाते समय सर्दी, गर्मी, वर्षा नमी व सूखे आदि से बचाव का ध्यान रखना चाहिए । सूकरों के घर के साथ ही बाड़े भी बनाने चाहिए । ताकि सूकर बाड़े में घूम-फिर सकें । बाड़े में कुछ छायादार वृक्ष भी होने चाहिए, जिससे अधिक गर्मी के मौसम में सूकर वृक्षों की छाया में आराम कर सकें । सूकरों के घर की छत ढलवां होनी चाहिए और घर में रोशनी व पानी के लिए खुला बनाते समय यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि खुरली गोलाई में हो ताकि राशन आसानी से खाया जा सके । सूकरों के घर का फर्श समय-समय पर साफ करते रहना चाहिए । मादा सूकर वर्ष में दो बार बच्चे देती हैं, सामान्यतया मादा 112 से 116 दिन गर्भावस्था में रहती हैं इस अवस्था में तो विशेष सावधानी की जरूरत नहीं पड़ती, लेकिन ब्याने से एक महीना पूर्व मादा को प्रतिदिन तीन किलोग्राम खुराक दी जाती है, ताकि मादा की बढ़ती हुई जरूरत को पूरा किया जा सके ।
सुअरों के लिए आवास की व्यवस्था
आवास आधुनिक ढंग से बनाए जायें ताकि साफ सुथरे तथा हवादार हो| भिन्न- भिन्न उम्र के सुअर के लिए अलग – अलग कमरा होना चाहिए| ये इस प्रकार हैं –
क) प्रसूति सुअर आवास
यह कमरा साधारणत: 10 फीट लम्बा और 8 फीट चौड़ा होना चाहिए तथा इस कमरे से लगे इसके दुगुनी क्षेत्रफल का एक खुला स्थान होना चाहिए| बच्चे साधारणत: दो महीने तक माँ के साथ रहते हैं| करीब 4 सप्ताह तक वे माँ के दूध पर रहते हैं| इस की पश्चात वे थोड़ा खाना आरंभ कर देते हैं| अत: एक माह बाद उन्हें बच्चों के लिए बनाया गया इस बात ध्यान रखना चाहिए| ताकि उनकी वृद्धि तेजी से हो सके| इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि सुअरी बच्चे के खाना को न सके| इस तरह कमरे के कोने को तार के छड़ से घेर कर आसानी से बनाया जाता है| जाड़े के दिनों में गर्मी की व्यवस्था बच्चों केलिए आवश्यक है| प्रसूति सुअरी के गृह में दिवार के चारों ओर दिवार से 9 इंच अलग तथा जमीन से 9 इंच ऊपर एक लोहे या काठ की 3 इंच से 4 इंच मोटी बल्ली की रूफ बनी होती है, जिसे गार्ड रेल कहते हैं| छोटे-छोटे सुअर बचे अपनी माँ के शरीर से दब कर अक्सर मरते हैं, जिसके बचाव के लिए यह गार्ड रेल आवश्यक है|
ख) गाभिन सुअरी के लिए आवास
इन घरों ने वैसी सुअरी को रखना चाहिए, जो पाल खा चुकी हो| अन्य सुअरी के बीच रहने से आपस में लड़ने या अन्य कारणों से गाभिन सुअरी को चोट पहुँचने की आंशका रहती है जिससे उनके गर्भ को नुकसान हो सकता है| प्रत्येक कमरे में 3-4 सुअरी को आसानी से रखा जा सकता है| प्रत्येक गाभिन सुअरी को बैठने या सोने के लिए कम से कम 10-12 वर्गफीट स्थान देना चाहिए| रहने के कमरे में ही उसके खाने पीने के लिए नाद होना चाहिए तथा उस कमरे से लेगें उसके घूमने के लिए एक खुला स्थान होना चाहिए|
ग) विसूखी सुअरी के लिए आवास
जो सुअरी पाल नहीं खाई हो या कूंआरी सुअरी को ऐसे मकान में रखा जाना चाहिए| प्रत्येक कमरे में 3-4 सुअरी तक रखी जा सकती है| गाभिन सुअरी घर के समान ही इसमें भी खाने पीने के लिए नाद एवं घूमने के लिए स्थान होना चाहिए| प्रत्येक सुअरी के सोने या बैठने के लिए कम से कम 10-12 वर्गफीट स्थान देना चाहिए|
घ) नर सुअर के लिए आवास
नर सुअर जो प्रजनन के काम आता है उन्हें सुअरी से अलग कमरे में रखना चाहिए| प्रत्येक कमरे में केवल एक नर सुअर रखा जाना चाहिए| एक से ज्यादा एक साथ रहने आपस में लड़ने लगते हैं एवं दूसरों का खाना खाने की कोशिश करते हैं नर सुअरों के लिए 10 फीट| रहने के कमरे में X 8 फीट स्थान देना चाहिए| रहने के कमरे में खाने पीने के लिए नाद एवं घूमने के लिए कमरे से लगा खुला स्थान जोना चाहिए| ऐसे नाद का माप 6 X4 X3 X4’ होना चाहिए| ऐसा नाद उपर्युक्त सभी प्रकार के घरों में होना लाभप्रद होगा|
ङ) बढ़ रहे बच्चों के लिए आवास
दो माह के बाद साधारण बच्चे माँ से अलग कर दिए जाते हैं एवं अलग कर पाले जाते हैं| 4 माह के उम्र में नर एवं मादा बच्चों को अलग –अलग कर दिया जाता है| एक उम्र के बच्चों को एक साथ रखना अच्छा होता है| ऐसा करने से बच्चे को समान रूप से आहार मिलता है एवं समान रूप बढ़ते हैं| प्रत्येक बच्चे के लिए औसतन 3X4’ स्थान होना चाहिए तथा रात में उन्हें सावधानी में कमरे में बंद कर देना चाहिए|
सुअरों के लिए आहार
पूरा फायदा उठाने के लिए खाने पर ध्यान देना बहुत आवश्यक है| ऐसा देखा गया है कि पूरे खर्च का 75 प्रतिशत खर्च उसके खाने पर होता है| सुअर के जीवन के प्रत्येक पहलू पर खाद्य संबंधी आवश्यकता अलग- अलग होती है| बढ़ते हुए बच्चों एवं प्रसूति सुअरों को प्रोटीन की अधिक मात्रा आवश्यक होती है अत: उनके भोजन में प्रोटीन की अधिक मात्रा 19 प्रतिशत या उससे अधिक ही रखी जाती है|
खाने में मकई, मूंगफली कि खल्ली, गेंहूं के चोकर, मछली का चूरा, खनिज लवण, विटामिन एवं नमक का मिश्रण दिया जाता है| इसके मिश्रण को प्रारंभिक आहार, बढ़ोतरी आहार प्रजनन आहार में जरूरत के अनुसार बढ़ाया आहार में जरूरत के अनुसार बढ़ाया – घटाया जाता है|
छोटानागपुर क्षेत्र में जंगल भरे हैं| जंगल में बहुत से फल वृक्ष जैसे – गुलर, महूआ पाये जाते है| गुलर फल पौष्टिक तत्व हैं| इसे सूखाकर रखने पर इसे बाद में भी खिलाया जा सकता है| सखूआ बीज, आम गुठली एवं जामुन का बीज भी सुअर अच्छी तरह खाते हैं| अमरुद एवं केंदू भी सोअर बड़ी चाव से खाते हैं|
माड़ एवं हडिया का सीठा जिसे फेंक देते हैं, सुअरों को अच्छी तरह खिलाया जा सकता है| पहाड़ी से निकले हुए घाट में सुअर जमीन खोद कर कन्द मूल प्राप्त करते हैं|
प्रजनन
नर सुअर 8-9 महीनों में पाल देने लायक जो जाते हैं| लेकिन स्वास्थ ध्यान में रखते हुए एक साल के बाद ही इसे प्रजनन के काम में लाना चाहिए| सप्ताह में 3-4 बार इससे प्रजनन काम लेना चाहिए| मादा सुअर भी करीब एक साल में गर्भ धारण करने लायक होती है|
बीमारियों का रोकथाम
पशुपालन व्यवसाय में बीमारियों की रोकथाम एक बहुत ही प्रमुख विषय है| इस पर समुचित ध्यान नहीं देने से हमें समुचित फायदा नहीं मिल सकता है| रोगों का पूर्व उपचार करना बीमारी के बाद उपचार कराने से हमेशा अच्छा होता है| इस प्रकार स्वस्थ शरीर पर छोटी मोटी बिमारियों का दावा नहीं लग पाता| यदि सुअरों के रहने का स्थान साफ सुथरा हो, साफ पानी एवं पौष्टिक आहार दिया जाए तब उत्पादन क्षमता तो बढ़ती ही है| साथ ही साथ बीमारी के रूप में आने वाले परेशानी से बचा जा सकता है|
संक्रामक रोग
क) आक्रांत या संदेहात्मक सुअर की जमात रूप से अलग कर देना चाहिए| वहाँ चारा एवं पानी का उत्तम प्रबंध होना आवश्यक है| इसके बाद पशु चिकित्सा के सलाह पर रोक थाम का उपाय करना चाहिए|
ख) रोगी पशु की देखभाल करने वाले व्यक्ति को हाथ पैर जन्तूनाशक दवाई से धोकर स्वस्थ पशु के पास जाना चाहिए|
ग) जिस घर में रोगी पशु रहे उसके सफाई नियमित रूप से डी. डी. टी. या फिनाईल से करना चाहिए|
घ) रोगी प्शूओन्न के मलमूत्र में दूषित कीटाणु रहते हैं| अत: गर्म रख या जन्तु नाशक दवा से मलमूत्र में रहने वाले कीटाणु को नष्ट करना चाहिए| अगर कोई पशु संक्रामक रोग से मर जाए तो उसकी लाश को गढ़े में अच्छी तरह गाड़ना चाहिए| गाड़ने के पहले लाश पर तथा गढ़े में चूना एवं ब्लीचिंग पाउडर भर देना चाहिए जिससे रोग न फ़ैल सके|
सुअरों के कुछ संक्रामक रोग निम्नलिखित हैं
क) सूकर ज्वर
इसमें तेज बुखार, तन्द्र, कै और दस्त का होना, साँस लेने में कठिनाई होना, शरीर पर लाला तथा पीले धब्बे निकाल आना इस रोग के प्रमुख लक्षण हैं| समय-समय पर टीका लगवा कर इस बीमारी से बचा जा सकता है|
ख) सूकर चेचक
बुखार होना, सुस्त पड़ जाना, भूख न लगना, तथा कान, गर्दन एवं शरीर के अन्य भागों पर फफोला पड़ जाना, रोगी सुअरों का धीरे धीरे चलना, तथा कभी-कभी उसके बाल खड़े हो जाना बीमारी के मुख्य लक्षण है| टीका लगवाकर भी इस बीमारी से बचा जा सकता है|
ग) खुर मुंह पका
बुखार हो जाना, खुर एवं मुंह में छोटे-छोटे घाव हो जाना, सुअर का लंगड़ा का चलना इस रोग के प्रमुख लक्षण हैं| मुंह में छाले पड़ जाने के कारण खाने में तकलीफ होती है तथा सुअर भूख से मर जाता है|
खुर के घावों पर फिनाईल मिला हुआ पानी लगाना चाहिए तथा नीम की पत्ती लगाना लाभदायक होता है| टीका लगवाने से यह बीमारी भी जानवरों के पास नहीं पहुँच पाती है|
घ) एनये पील्ही ज्वर
इस रोग में ज्वर बढ़ जाता है| नाड़ी तेज जो जाती है| हाथ पैर ठंडे पड़ जाते हैं| पशु अचानक मर जाता है| पेशाब में भी रक्त आता है| इस रोग में सुअर के गले में सृजन हो जाती का भी टीका होता है|
ङ) एरी सीपलेस
तेज बुखार, खाल पर छाले पड़ना, कान लाल हो जाना तथा दस्त होना इस बीमारी को मुख्य लक्षण हैं| रोगी सुअर को निमानिया का खतरा हमेशा रहता है| रोग निरोधक टीका लगवाकर इस बीमारी से बचा जा सकता है|
च) यक्ष्मा
रोगी सुअर के किसी अंग में गिल्टी फूल जाती है जो बाद में चलकर फूट जाता है तथा उससे मवाद निकलता है| इसके अलावे रोगी सुअर को बुखार भी आ जाता है| इस सुअर में तपेदिक के लक्षण होने लगते हैं| उन्हें मार डाल जाए तथा उसकी लाश में चूना या ब्लीचिंग पाउडर छिड़क कर गाड़ किया जाए|
छ) पेचिस
रोगी सुअर सुस्त होकर हर क्षण लेटे रहना चाहता है| उसे थोड़ा सा बुखार हो जाता है तथा तेजी से दुबला होने लगता है| हल्के सा पाच्य भोजन तथा साफ पानी देना अति आवश्यक है| रोगी सुअर को अलग- अलग रखना तथा पेशाब पैखाना तुरंत साफ कर देना अति आवश्यक है|
परजीवी जय एवं पोषाहार संबंधी रोग
सुअरों में ढील अधिक पायी जाती है| जिसका इलाज गैमक्सीन के छिड़काव से किया जा सकता है| सुअर के गृह के दरारों एवं दीवारों पर भी इसका छिड़काव करना चाहिए|
सुअरों में खौरा नामक बीमारी अधिक होता है जिसके कारण दीवालों में सुअर अपने को रगड़ते रहता है| अत: इसके बचाव के लिए सुअर गृह से सटे, घूमने के स्थान पर एक खम्भा गाड़ कर कोई बोरा इत्यादि लपेटकर उसे गंधक से बने दवा से भिगो कर रख देनी चाहिए| ताकि उसमें सुअर अपने को रगड़े तथा खौरा से मुक्त हो जाए|
सुअर के पेट तथा आंत में रहने वाले परोपजीवी जीवों को मारने के लिए प्रत्येक माह पशु चिकित्सक की सलाह से परोपजीवी मारक दवा पिलाना चाहिए| अन्यथा यह परोपजीवी हमारे लाभ में बहुत बड़े बाधक सिद्ध होगें|
पक्का फर्श पर रहने वाली सुअरी जब बच्चा देती है तो उसके बच्चे में लौह तत्व की कमी अक्सर पाई जाती है| इस बचाव के लिए प्रत्येक प्रसव गृह के एक कोने में टोकरी साफ मिट्टी में हरा कशिस मिला कर रख देना चाहिए सुअर बच्चे इसे कोड़ कर लौह तत्व चाट सकें|
ध्यान देने योग्य बातें
- प्रसूति सुअर से बच्चों को उनके जरूरत के अनुसार दूध मिल पाता है या नहीं अगर तो दूध पिलाने की व्यवस्था उनके लिए अलग से करना चाहिए| अन्यथा बच्चे भूख से मर जाएंगें|
- नवजात बच्चों के नाभि में आयोडीन टिंचर लगा देना चाहिए|
- जन्म के 2 दिन के बाद बच्चों को इन्फेरोन की सूई लगा देनी चाहिए|
- सुअरों का निरिक्षण 24 घंटो में कम से कम दो बाद अवश्य करना चाहिए|
- कमजोर सुअर के लिए भोजन की अलग व्यवस्था करनी चाहिए|
- आवास की सफाई पर विशेष ध्यान देना चाहिए|
- प्रत्येक सुअर बच्चा या बड़ा भली भांति खाना खा सके, इसकी समुचित व्यवस्था करनी चाहिए|
- एक बड़े नर सुअर के लिए दिन भर के के लिए 3-4 किलो खाने की व्यवस्था होना चाहिए|
- एक बार में मादा सुअर 14 से 16 बच्चे दे सकती है अगर उचित व्यवस्था की जाए तो एक मादा सुअरी साल में बार बच्चा दे सकती है|
- सुकर ज्वर एवं खुर मुंह पका का का टीका वर्ष में 1 बार जरूर लगा लेना चाहिए|
- बच्चों को अलग करने के 3-4 दिन के अंतर में ही सुअरी गर्भ हो जाती है और यदि सुअरी स्वस्थ हालर में हो तो उससे साल में 2 बार बच्चा लेने के उद्देश्य से तुरंत पाल दिला देना चाहिए|
- सूअरियों नका औसतन 12, 14 बाट (स्तन) होते हैं| अत: प्रत्येक स्तन को पीला कर इतनी ही संख्या में बच्चों को भली भांति पालपोस सकती है| सूअरियों को आगे की ओर स्तन में दूध का प्रवाह बहुधा पीछे वाले स्तन से अहिक होता है| अत; आगे का स्तन पीने वाला बच्चा अधिक स्वस्थ होता है| यदि पीछे का स्तन पीने वाला बच्चा कमजोर होता जा रहा है तो यह प्रयास करना चाहिए कि 2-3 दिन तक आगे वाला बात दूध पीने के समय पकड़वा दिया जाय ताकि वह उसे पीना शुरू कर दे|
घुंगरू सूकर :
ग्रामीण किसानों के लिए देशी सूअर की एक संभावनाशील प्रजाति
सूकर की देशी प्रजाति के रूप में घुंगरू सूअर को सबसे पहले पश्चिम बंगाल में काफी लोकप्रिय पाया गया, क्योंकि इसे पालने के लिए कम से कम प्रयास करने पड़ते हैं और यह प्रचुरता में प्रजनन करता है। सूकर की इस संकर नस्ल/प्रजाति से उच्च गुणवत्ता वाले मांस की प्राप्ति होती है और इनका आहार कृषि कार्य में उत्पन्न बेकार पदार्थ और रसोई से निकले अपशिष्ट पदार्थ होते हैं। घुंगरू सूकर प्रायः काले रंग के और बुल डॉग की तरह विशेष चेहरे वाले होते हैं। इसके 6-12 से बच्चे होते हैं जिनका वजन जन्म के समय 1.0 kg तथा परिपक्व अवस्था में 7.0 – 10.0 kg होता है। नर तथा मादा दोनों ही शांत प्रवृत्ति के होते हैं और उन्हें संभालना आसान होता है। प्रजनन क्षेत्र में वे कूडे में से उपयोगी वस्तुएं ढूंढने की प्रणाली के तहत रखे जाते हैं तथा बरसाती फ़सल के रक्षक होते हैं।
रानी, गुवाहाटी के राष्ट्रीय सूकर अनुसंधान केंद्र पर घुंगरू सूअरों को मानक प्रजनन, आहार उपलब्धता तथा प्रबंधन प्रणाली के तहत रखा जाता है। भविष्य में प्रजनन कार्यक्रमों में उनकी आनुवंशिक सम्भावनाओं पर मूल्यांकन जारी है तथा उत्पादकता और जनन के लिहाज से यह देशी प्रजाति काफी सक्षम मानी जाती है। कुछ चुनिन्दा मादा घुंगरू सूअरों ने तो संस्थान के फार्म में अन्य देशी प्रजाति के सूकर की तुलना में 17 बच्चों को जन्म दिया है।
संकर सूकर पालन संबंधी कुछ उपयोगी बातें:
देहाती सूकर से साल में कम बच्चे मिलने एवं इनका वजन कम होने की वजह से प्रतिवर्ष लाभ कम होता है।
विलायती सूकर कई कठिनाईयों की वजह से देहात में लाभकारी तरीके से पाला नहीं जा सकता है।
विलायती नस्लों से पैदा हुआ संकर सूकर गाँवों में आसानी से पाला जाता है और केवल चार महीना पालकर ही सूकर के बच्चों से 50-100 रुपये प्रति सूकर इस क्षेत्र के किसानों को लाभ हुआ।
संकर सूकर, राँची पशु चिकित्सा महाविद्यालय (बिरसा कृषि विश्वविद्यालय), राँची से प्राप्त हो सकते हैं।
इसे पालने का प्रशिक्षण, दाना, दवा और इस संबंध में अन्य तकनीकी जानकारी यहाँ से प्राप्त की जा सकती है।
इन्हें उचित दाना, घर के बचे जूठन एवं भोजन के अनुपयोगी बचे पदार्थ तथा अन्य सस्ते आहार के साधन पर लाभकारी ढंग से पाला जा सकता है।
एक बड़ा सूकर 3 किलों के लगभग दाना खाता है।
इनके शरीर के बाहरी हिस्से और पेट में कीड़े हो जाया करते हैं, जिनकी समय-समय पर चिकित्सा होनी चाहिए।
साल में एक बार संक्रामक रोगों से बचने के लिए टीका अवश्य लगवा दें।
बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने सूकर की नई प्रजाति ब्रिटेन की टैमवर्थ नस्ल के नर तथा देशी सूकरी के संयोग से विकसित की है। यह आदिवासी क्षेत्रों के वातावरण में पालने के लिए विशेष उपयुक्त हैं। इसका रंग काला तथा एक वर्ष में औसत शरीरिक वजन 65 किलोग्राम के लगभग होता है। ग्रामीण वातावरण में नई प्रजाति देसी की तुलना में आर्थिक दृष्टिकोण से चार से पाँच गुणा अधिक लाभकारी है।
दिन में ही सूकर से प्रसवः
गर्भ विज्ञान विभाग, राँची पशुपालन महाविद्यालय ने सूकर में ऐच्छिक प्रसव के लिए एक नई तकनीक विकसित की है, जिसे भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् ने मान्यता प्रदान की है। इसमें कुछ हारमोन के प्रयोग से एक निर्धारित समय में प्रसव कराया जा सकता है। दिन में प्रसव
होने से सूकर के बच्चों में मृत्यु दर काफी कम हो जाती है, जिससे सूकर पालकों को काफी फायदा हुआ है।
सूकर की आहार-प्रणाली
सूकरों का आहार जन्म के एक पखवारे बाद शुरू हो जाता है। माँ के दूध के साथ-साथ छौनों (पिगलेट) को सूखा ठोस आहार दिया जाता है, जिसे क्रिप राशन कहते हैं। दो महीने के बाद बढ़ते हुए सूकरों को ग्रोवर राशन एवं वयस्क सूकरों को फिनिशर राशन दिया जाता है। अलग-अलग किस्म के राशन को तैयार करने के लिए निम्नलिखित दाना मिश्रण का इस्तेमाल करेः
क्रिप राशन ग्रोअर राशन फिनिशर राशन
मकई 60 भाग 64 भाग 60 भाग
बादाम खली 20 भाग 15 भाग 10 भाग
चोकर 10 भाग 12.5 भाग 24.5 भाग
मछली चूर्ण 8 भाग 6 भाग 3 भाग
लवण मिश्रण 1.5 भाग 2.5 भाग 2.5 भाग
नमक 0.5 भाग 100 भाग 100 भाग
कुल 100 भाग
गर्भवती एवं दूध देती सूकरियों को भी फिनिशर राशन ही दिया जाता है।
दैनिक आहार की मात्रा
ग्रोअर सूकर (वजन 12 से 25 किलो तक) : प्रतिदिन शरीर वजन का 6 प्रतिशत अथवा 1 से 1.5 किलो ग्राम दाना मिश्रण।
ग्रोअर सूकर (26 से 45 किलो तक) : प्रतिदिन शरीर वजन का 4 प्रतिशत अथवा 1.5 से 2.0 किलो दाना मिश्रण।
फिनसर पिगः 2.5 किलो दाना मिश्रण।
प्रजनन हेतु नर सूकरः 3.0 किलो।
गाभिन सूकरीः 3.0 किलो।
दुधारू सूकरी 3.0 किलो और दूध पीने वाले प्रति बच्चे 200 ग्राम की दर से अतिरिक्त दाना मिश्रण। अधिकतम 5.0 किलो।
दाना मिश्रण को सुबह और अपराहन में दो बराबर हिस्से में बाँट कर खिलायें।
सूकर-पालन-—-एक-संभावित-व्यवसाय_