गोवर्धन अर्थात किसानी उत्सव
भारत आदिकाल से ही कृषि प्रधान देश रहा है और आज तक इसकी अर्थव्यवस्था की रीढ कृषि और पशुपालन से उत्पन्न उत्पाद रहे हैं। प्राचीनकाल से लेकर अधुनातन 1970 के दशक तक ग्राम्यांचल में खेती के मुख्य आधार हल बैल ही होते थे । किसान और बैल एक तरह से सहचर थे ।दोनो एक दूसरे के आत्मीय ह्रदय के साथी । दूसरे शब्दों में कहें तो दोनो का चोली दामन का साथ और मित्रता ।किसान फसल उपजाने वाला था तो उस उपजने वाली फसल की धुरी के रुप में बैलों का श्रम था । दोनो ही एक दूसरे के बिना किसी काम के नहीं थे । बैलो की जन्म दायित्रि थी गाय अत गाय या उसके वंश अर्थात गौवंश को विशेष महत्व और संरक्षण दिया गया । गोवर्धन जैसा की विदित है कि गौ+वर्धन अर्थात गोवंश का संरक्षण , पालन करना , उसी से ये शब्द व्युत्पन्न हुआ है । इसी महत्व के चलते आदिकाल में गौ या गौवंश एक मुद्रा से भी महत्वपूर्ण माने गये थे । Barter system या विनिमय प्रणाली जो प्राचीन काल में अस्तित्व में थी उसमें गौवंश अतुलनीय इसी विशेषता और आवश्यकता की वजह से रहा ।
आज जिस त्यौहार को हम मना रहे हैं ये उसी कृषि के आधार और किसान के महत्व की वजह से मना रहे हैं । आज बैल की पूजा होती थी । गोबर के बनाये गोवर्धन पर इसी को फिराने का विशेषाधिकार इसिलिए था कि ये किसान की रीढ था । इस प्रकार यह त्यौहार विशुद्ध रुप से किसानी पर्व है जिसमें किसी प्रकार के कर्म कांड या मंत्रोच्चार का कोई लेना देना नहीं है । इसमें हर घर से आये मुखिया व्यक्तिगत रुप से श्रद्धावश चूरमा , अन्य पकवान या जो भी फसली उत्पाद हो उसे समर्पित करके इसे मनाते है ।
इसमें प्रयुक्त गोबर प्रतीक है उत्पादकता का ,
इसमें रोपी रई प्रतीक है दूध दही और घी के सम्मान और वृद्धि की,
इसमें रोपे गये ओंगा और पेडो की पत्तियां प्रतीक हैं किसान और प्रकृति के अटूट प्रेम की ।
इसमें चढाये गये बाजरे का चूरमा प्रतीक है मौसम परिवर्तन के तहत भोजन के बदलाव के आगाज का ।
इसमे समर्पित किये गये अन्नकूट का ऐलान प्रतीक है कि आज से मोटा अनाज खाने का शुभारम्भ होगा क्योंकि ये मौसम की आवश्यकता है । खरीफ की फसल में पैदा हुआ मोटा अनाज यथा बाजरा , ज्वार , मूंग ,चौला आदि आदि….
विशुद्ध रुप से किसानी त्यौहार । बाद में इसे भी कुछ लोगो ने हाईजैक करके और अपनी रोजी-रोटी बनाने के चक्कर में विभिन्न कथाओं से जोडने का काम किया जिनसे आप सभी भिज्ञ हैं। किसानों का सरल ह्रदय और सरल ही उनका दर्शन है और सरल ही उनके पर्व हैं लेकिन असरल व्यक्तियों ने इसी का फायदा उठाकर उसे कहीं और पहुंचा दिया ।
एक किसान वधु भी अपने पिता से शादी के वक्त सिर्फ एक जोडी बैल की अर्दास कर रही है जैसा कि इस पुराने गीत में वर्णित है ।इसका भावार्थ है कि काका हमकु सिर्फ एक जोडी धौडा बैलन की दे दे ।इनके सहारे ही मैं और मेरा परण्यां जोत कर एक बीघा में ही 15 क्या 20 मण पैदा करके बता देंगे। यही जज्बात होते थे किसान बालाओं के एक समय ।
” धौडा धौडा बैल काका भ्याव में दीज्यो ,
इनका चाडा में ओरूंगी पन्द्रह कांई बीस की खीज्यो।”
दूसरे चित्र मै शहरों में रह रहे हमारे समाज के लोग प्रतीक स्वरूप इस तरह भी इस त्यौहार को सम्पन्न कर लेते है।
इस किसानी पर्व की सभी को अनेक अनेक मंगलकामनाए.
प्रोफेसर डॉ धर्मसिंह मीना ,PGIVER,RAJUVAS