पशुओं में गलघोंटू रोग लक्षण,इलाज एव बचाव
पशुओं के लिए बहुत घातक है यह रोग, आइये जाने लक्षण एवं बचाव के तरीके
किसान भाई अगर पशुपालन का कार्य करते है तो उन्हें पशुओं के स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखना पड़ता है. क्योकि अगर पशुओं का स्वास्थ्य ठीक नही होगा तो उन्हें लाभ के बजाये हानि उठानी पड़ेगी. क्योकि पशुओं के बीमार होने से दूध के उत्पादन में कई आएगी और बीमारी पर अतरिक्त पैसा खर्च करना पडेगा. इसी कड़ी में हम आज आपको एक ऐसे बीमारी के बारे में जानकारी देने जा रहे है. जो पशुओं के लिए बहुत ही घातक साबित होती है. जी हाँ, हम बात करने वाले है पशुओं का खतरनाक रोग गलघोंटू (Galghotu rog) की.
गलघोंटू पशुओं में होने वाली एक संक्रामक बीमारी है. जिसके होने से पशुओं को सही इलाज न मिलने से म्रत्यु हो जाती है. इसलिए इसे पशुओं की खतनाक बीमारियों में एक माना जाता है. किसान भाई इस लेख के जरिये इस बीमारी से पशुओं में होने वाले प्रमुख लक्षणों और बचाव के तरीकों के बारें में जान पायेगें –
गलघोंटू बीमारी क्या है ?
बरसात के मौसम में पशुओं को कई तरह के रोगों से सामना करना पड़ता है जिसमें से गलघोटू प्रमुख रोग है. जिसका वैज्ञानिक नाम हेमेरोजिक सेप्टीसीमिया (Hemorrhagic Septicemia) है. यह पाश्चुरेला मल्टीसिडा (Pasteurella multocida) नामक जीवाणु (bacteria) के कारण होता है. यह अति तीव्र गति से फैलने वाला यह जीवाणु जनित रोग, छूत वाला भी है. इस रोग को साधारण भाषा में गलघोंटू के अतिरिक्त ‘घूरखा’, ‘घोंटुआ’, ‘अषढ़िया’, ‘डकहा’ आदि नामों से भी जाना जाता है.
यह बीमारी मुख्य रूप से गाय तथा भैंस को लगती है. बरसात के मौसम में यह रोग अधिक होता है. लक्षण के साथ ही इलाज न शुरू होने पर एक-दो दिन में पशु मर जाता है. इसमें मौत की दर 80 फीसदी से अधिक की रहती है. इस रोग के शुरुआत तेज बुखार (105-107 डिग्री) से होती है. पीड़ित पशु के मुंह से ढेर सारा लार निकलता है. गर्दन में सूजन के कारण सांस लेने के दौरान घर्र-घर्र की आवाज आती है और अंतत: 12-24 घंटे में मौत हो जाती है. रोग से मरे पशु को गढ्डे में दफनाएं। खुले में फेंकने से संक्रमित बैक्टीरिया पानी के साथ फैलकर रोग के प्रकोप का दायरा बढ़ा देता है.
इस रोग के प्रमुख लक्षण
जो भी पशु गलघोंटू बीमारी से ग्रसित होता है. उसमें निम्न लक्षण दिखाई देते है-
- पशुओं को तेज बुखार आ जाता है.
- पशु के गले व गर्दन में सूजन आ जाती है.
- स्वसन अंग में सूजन आ जाने के कारण स्वास लेने में कठनाई होती है. जिससे स्वास में घर्र-घर्र की आवाज आती है.
- तेज बुखार के साथ पेट भी फूल जाता है.
- नाक और मुंह से पानी गिरने लगता है.
- पशु सुस्त हो जाता है और खाना पीना बंद कर देता है.
- पशु की आँखे लाल हो जाती है. पेट दर्द होता है जिससे वह जमीन पर भी गिर जाता है.
गलघोंटू रोग का लक्षण
- पशुओं का सुस्त एवं बेचैन रहना।
- पशुओं को 106 से 108 डिग्री फारॅनेहाइट तक तेज बुखार होना।
- इस रोग के होने पर पशुओं को भूख कम लगती है।
- पशु जुगाली करना कम कर देते हैं।
- पशुओं के मुंह से लार टपकने लगता है।
- प्रभावित पशुओं की आंखें लाल हो जाती हैं।
- सांस में घरघराहट शुरू हो जाती है।
- पशु जीभ बाहर निकालकर सांस लेने लगते हैं।
- पशुओं के सिर एवं गर्दन में दर्दयुक्त सूजन होती है।
गलघोटू का इलाज क्या है?
वैसे गलघोटू का कोई पक्का इलाज नही है. केवल टीकाकरण ही केवल एक मात्र बचाव है. लेकिन इस बीमारी का पता लगने पर उपचार शीघ्र शुरू किया जाए तो इस जानलेवा रोग से पशुओं को बचाया जा सकता है. इसके अलावा इसमें एंटी बायोटिक जैसे सल्फाडीमीडीन ऑक्सीटेट्रासाइक्लीन और क्लोरोम फॉनीकोल एंटी बायोटिक का इस्तेमाल इस रोग से बचाव के साधन हैं.
उपचार
- रोग की शुरुआत में पशु को स्ल्फामेजाथिन 33%100 से 120 मिली या 20-30 मिली टेरामाईसिन का टीका ( खून वाली नस में ) लगाकर बचाया जा सकता है।
- सल्फामेजाथिन की 5 ग्राम वाली 3-4 गोलियाँ प्रतिदिन गुड़ में पीसकर 2-3 दिन तक खिलानी चाहिए।
- सल्फामेजाथिन के अलावा सल्फामीराजिन, सल्फाडायजीन, सल्फाथायजोल आदि अन्य सल्फा औषधियाँ भी प्रयुक्त की जा सकती है। सीरम यदि प्राप्त ना हो सके तो कैल्सियम ग्लूकोनेट और कपूर युक्त तेल का प्रयोग करना चाहिए।
- 1 ड्रॉप पोटैशियम परमैगनेट, 1 ड्रॉप कपूर शीरा में मिलाकर तीन बार दिन में देना चाहिए।
- आजकल इस बीमारी की चिकित्सा में होस्टासैक्लिन, टेरामाइसिन, एक्रोमाइसिन, स्टेक्लीन,ऐम्पीसिलिन, तथा ओम्नामाइसिन नामक पेटेन औषधियाँ का उपयोग अधिक लाभदायक समझा जाता है।
- रोगी पशु के संपर्क में आये हुए सभी स्वस्थ पशुओं को यदि उपलब्ध हो, तो 15-20 घ. से (S.) सीरम का त्वचा के निचे इंजेक्शन देना चाहिए। उसके बाद जब तक इस महामारी का प्रकोप कम न हो जाय , प्रति 10 दिन बाद सीरम का इंजेक्शन पशु को देते रहना चाहिए। सीरम देने के 15 दिन बाद पशुओं को वैक्सीन का टीका देने से अधिक लाभ पहुचता है।
पशुओं को गलाघोंटू रोग से कैसे बचाएं?
गलघोंटू जैसे खतरनाक बीमारी से पशुओं को बचाने के लिए पशुपालक किसान भाई निम्न उपाय अपना सकते है-
- गलघोंटू रोकथाम का टीका अवश्य लगाना चाहिए,टीकाकरण वर्ष में दो बार कराया जाय.
- बरसात शुरू होने के एक माह पूर्व पशुओं को इस बीमारी का टीका जरुर लगवा ले.
- बीमार पशु को स्वस्थ पशुओं से अलग बंधना चाहिए.
- बीमार पशु को सार्वजनिक स्थल पर नही ले जाना चाहिए.
- 6 महीने एवं उससे अधिक उम्र के पशुओं को टीका जरुर लगवाएं.
- दूसरी बार पशुओं को सर्दियाँ शुरू होने से पहले टीका लगवाना चाहिए.
- जिस स्थान पर संक्रमित पशु मरा हो उस स्थान को कीटाणुनाशक दवाइयों, फिनाइल या चूने के घोल से धोना चाहिये.
- किसान भाई अपनी पशु शाला को स्वच्छ रखें तथा रोग की संभावना होने पर तुरन्त अपने नजदीकी पशु चिकित्सक से सम्पर्क कर सलाह जरुर ले.
Compiled & Shared by- Team, LITD (Livestock Institute of Training & Development)
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पशुओं में ‘मुँह एवं खुर रोग’ तथा ‘गलघोटू रोग’: निदान, उपचार और रोकथाम