भेड़ और बकरियों के खतरनाक आंतरिक परजीवी हेमोन्कस कंटोर्टस

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heamonchus contortus in sheep and goat
heamonchus contortus in sheep and goat

भेड़ और बकरियों के खतरनाक आंतरिक परजीवी हेमोन्कस कंटोर्टस

डा. अमीर कुमार सामल 1*,  डा. मोहिनी सैनी 2, डा. प्रवीण कुमार गुप्ता 3,  डा. पुतान सिंह 4

 

परिचय: हेमोन्कस कोंटरटस क्या है?

भारत एक कृषि प्रधान देश है और इसके अधिकांश किसान पशुपालन पर निर्भर हैं। इन किसानों की भलाई और लाभप्रदता पशुओं के स्वास्थ्य और उत्पादकता पर निर्भर करता है। भेड़ और बकरियां छोटे जुगाली करने वाले जानवर होते हैं तथा छोटे किसानों की वित्तीय स्थिरता में बहुत योगदान देते हैं । अक्सर ये जानवर विभिन्न प्रकार के परजीवियों से संक्रमित होते हैं। इन परजीवी संक्रमणों के कारण जानवरों की उत्पादकता काफी घट जाती है  और किसानों को बड़ा नुकसान उठाना पड़ता है। भेड़ और बकरियों के परजीवियों में से, हेमोन्कस कंटोर्टस (Haemonchus contortus)  सबसे ज्यादा प्रचलित और हानिकारक कृमि प्रकार का परजीवी है (चित्र 1) । ये कृमि भेड़ और बकरियों के पेट में रहते हैं और पेट के उपकला से खून चूसते हैं। इसलिए, संक्रमित पशुओं की उत्पादकता में भारी कमी आती है।

Haemonchus contortus
Haemonchus contortus

चित्र 1: बकरी के पेट से  संगृहीत किये गए नर और मादा हेमोन्कस कंटोर्टस कृमि ।

लेखक की जानकारी

  1. वैज्ञानिक, भारतीय पशु चिकित्सा अनुशंधान संस्थान, मुक्तेस्वर, उत्तराखंड (* पत्र – व्यवहार)

Email: scientificamirican@gmail.com

  1. प्रधान वैज्ञानिक तथा विभागाध्यक्षया, जीवरसायन विभाग भारतीय पशु चिकित्सा अनुशंधान संस्थान, इज़तनगर, बरैली, उत्तर प्रदेश
  2. प्रधान वैज्ञानिक तथा विभागाध्यक्षय, जैव प्रौद्योगिकी विभाग, भारतीय पशु चिकित्सा अनुशंधान संस्थान, इज़तनगर, बरैली, उत्तर प्रदेश।
  3. प्रधान वैज्ञानिक तथा प्रभारी परिसर, भारतीय पशु चिकित्सा अनुशंधान संस्थान, मुक्तेस्वर, उत्तराखंड।

 

हेमोन्कस कंटोर्टस कृमि का जीवन चक्र

हेमोन्कस कंटोर्टस भेड़ और बकरियों में बहुत ही व्यापक रूप से फैलने वाली एक रोगजनक परजीवी है । यह एक गोल कृमि है जो जानवरों के पेट (जठरान्त, या abomasum) में रहता है और श्लेष्मा झिल्ली से खून चूसता है । वयस्क नर और मादा कृमि अबोमेसम में प्रजनन करते हैं और वयस्क मादा लगभग 10000 अंडे देती है, जो कि मल में निकल जाते हैं। इन अंडों में से पहले चरण के लार्वा निकलते हैं और दूसरे और तीसरे चरण के लार्वा में परिवर्तित हो जाते हैं। चराई के दौरान जानवर तीसरे चरण के इन संक्रामक लार्वों को निगल जाते हैं।  इन तीसरे चरण के लार्वा अबोमासम में पहले चौथे चरण के लार्वा में परिवर्तित होते हैं जो कि अंत में वयस्क कृमि बन जाते हैं।

 

Haemonchus contortus
Haemonchus contortus

चित्र 2 : हेमोन्कस कंटोर्टस कि जीवन चक्र

कृमि का आकृति विज्ञान

हेमोन्कस कंटोर्टस के अंडे पीले रंग के होते हैं और वे चौड़ाई में लगभग 44 माइक्रोन और लंबाई में 70-80 माइक्रोन होते हैं। अंडे में विपाटन (cleavage) के प्रारंभिक चरण में 16-32 कोशिकाएं होती हैं। वयस्क मादा  18-30 मिली मीटर लंबी होती है और आसानी से अपने चिन्हक ” नाई की खम्भी” जैसी रूप द्वारा पहचानी जाती है। मादा के ”नाई की खम्भी” जैसा रूप उसके रक्त से भरी आंत के चारों ओर सफेद गर्भाशय के अटेरने के कारण होता है। वयस्क नर कृमि की लंबाई 10-20 मिमी होती है । वयस्क नर कृमि में एक अच्छी तरह से विकसित कोपुलेटरी (मैथुन संबंधी) बर्सा पाया जाता है, जिसमें एक विषम पृष्ठीय पालि और एक वाई-आकार पृष्ठीय किरण होती हैं।

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नैदानिक संकेत और रोग का निदान

हेमोन्कस  द्वारा संक्रमण को हेमोन्कोसिस कहा जाता है, और यह  दुनिया भर के कृषकों, विशेष रूप से गर्म जलवायु में रहने वालों के लिए बड़े आर्थिक नुकसान का कारण बनता है । वजन घटना और विकास में विफल रहना हेमोन्कोसिस के सबसे आम नैदानिक संकेत होते हैं। जैसे-जैसे कृमि का बोझ बढ़ता है, वयस्क कृमि रक्त चूसने के कारण पशुओं में अधिक गंभीर संकेत, जैसे रक्ताल्पता , शोफ (oedema), अपच, वजन घटना, बीमार, सुस्ती और अवसाद इत्यादि होते है और गंभीर मामलों में पशुओं की  मौत भी हो जाती है। एक अनुमान के अनुसार प्रति दिन प्रति कृमि औसत 0.05 मिलीलीटर की रक्त हानि कर सकता है ।   इस प्रकार यदि एक जानवर 5000 कृमियों द्वारा संक्रमित होता है, तो उसमें प्रति दिन 250 मिली लीटर तक की रक्त हानि हो सकता है।  इस कारण पशुओं में भीषण उत्पादन हानि और विकास की हानि होती है। नैदानिक ​​संकेत मोटे तौर पर रक्त की कमी के कारण होते हैं। अकस्मात संक्रमण में अचानक मृत्यु एकमात्र नैदानिक संकेत हो सकती है। जठरांत्र मैं रहने वाली अन्य गोल कृमिओं के विपरीत, हेमोन्कस आमतौर पर दस्त का कारण नहीं बनता है। गैर-विशिष्ट संकेतों और दस्त की कमी के कारण, हेमोन्कोसिस का अक्सर मृत्यु तक  पता नहीं चल पाता। मौत अचानक प्रकट हो सकती है, भले ही संक्रमण का कोर्स लंबे समय तक रहा हो।

हेमोन्कोसिस का निदान आमतौर पर नैदानिक संकेतों और मल तैरने की परीक्षण (faecal floatation test) की परिणामों पर आधारित होता है। नैदानिक अवलोकन संभवतः हेमोन्कोसिस का निदान और प्रबंधन करने में सबसे उपयोगी उपकरण है, लेकिन इसके लिए सूक्ष्म रोग परीक्षण की आवश्यकता होती है। क्योंकि एनीमिया सैद्धांतिक नैदानिक समस्या है, श्लेष्म झिल्ली का पैलर भेड़ की निगरानी के सबसे आसान तरीकों में से एक है, और नैदानिक दृष्टिकोण से प्रभावी साबित हुआ है।

उपचार, रोकथाम और नियंत्रण

हेमोन्कोसिस से छुटकारा पाने के लिए कृमिनाशक (Anthelmintics, एंटीहेल्मिन्थिक्स) का उपयोग किया जाता है । लेकिन इन रसायनों के खिलाफ कृमियों में प्रतिरोध बढ़ रहा है। हालाँकि, कुछ नस्लें, जैसे कि पश्चिम अफ्रीकी बौना बकरी (West African Dwarf goat) और एन’डामा मवेशी (N’Dama cattle),  हेमोन्कस कंटोर्टस के खिलाफ अधिक प्रतिरोधी हैं। स्थानिक रूप से संक्रमित क्षेत्रों में संक्रमण को रोकने के लिए आवश्यक रोगनिरोधी कृमिनाशक (Anthelmintics, एंटीहेल्मिन्थिक्स) का उपयोग किया जाता है । हालाँकि, इन रसायनों के उपयोग को कम से कम रखा जाना चाहिए ताकि कृमिनाशक के खिलाफ प्रतिरोध को कम किया जा सके। हमारे देश में और दुनिया के बाकी हिस्सों में वैज्ञानिकों ने नई दवाओं तथा नए टीकों के विकास के लिए निरंतर कोशिश कर रहे हैं। भाग्यवश,  केवल हाल ही में, ऑस्ट्रेलिया में हेमोन्कस संक्रमण के खिलाफ केवल एक ही टिका (Barbervax; बार्बरवैक्स) उपलब्ध हो शका है। यह टीका मुख्य रूप से कृमि के अंडे के उत्पादन और चरागाह पर कृमि के बोझ को कम करता है। इस टीके में कृमि की आंतों के अस्तर का एक प्रोटीन होता है। टीका लगाया हुआ पशु इस प्रोटीन के खिलाफ एंटीबॉडी का उत्पादन करता है जो उसके रक्त में प्रसारित होता है। जब हेमोन्कस कंटोर्टस कृमि पशु का खून पीता है तो एंटीबॉडीज उसके पेट की परत से जुड़ जाते हैं, जिससे उसका पाचन रुक जाता है और यह भूखा रह जाता है। इसके बाद, कृमि कम अंडे का उत्पादन करता है और अंततः मर जाता है। लेकिन, दुर्भाग्य से यह टीका हमारे जैसे विकासशील देशों के लिए बहुत महंगा है और व्यावहारिक नहीं है। इसलिए, भारतीय वैज्ञानिकों ने कृमि के खिलाफ एक प्रभावी और व्यावहारिक वैक्सीन विकसित करने के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं।

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कृमिनाशक खुराक को कम करने के लिए तथा चरागाह पर प्रतिरोधी कीड़े के स्तर को कम करने के लिए FAMACHA (फामाचा; FAffa MAlan CHArt) विधि जैसे लक्षित चयनात्मक उपचार विधियाँ मूल्यवान साबित हो सकता है। जानवरों में परजीवी संक्रमण के स्तर, जानवरों की व्यक्तिगत संवेदनशीलता तथा कृमिनाशक उपचार की प्रभावशीलता पर नज़र रखने करने के लिए मल में अंडे की गिनती की मदद ली जाती है। FAMACHA विधि के तहत एक झुंड में केवल कुछ भेड़ या बकरियों को ही इलाज के लिए चुना जाता है। उपचार के लिए चयन रक्त हीनता की स्तर पर आधारित होता है । इस विधि में पशुओं में रक्त हीनता  का स्तर एक रंग निर्देशित चार्ट की मदद से आंखों के श्लेष्म झिल्ली की फीकापन से निर्धारित होता है। इस विधि के अनुसार, जिस पशु के पास  गुलाबी-लाल श्लेष्म झिल्ली होती है वह 1 स्कोर करता है और उसे किसी भी उपचार की आवश्यकता नहीं होती है। जबकि 5 के स्कोर वाली भेड़ में श्वेत श्लेष्मा होती है, जिसे के लिए हेमोन्कोसिस के खिलाफ तत्काल खुराक की आवश्यकता होती है और शायद गहन चिकित्सा उपचार की भी आवश्यकता होती है।

हेमोन्कस कंटोर्टस के नियंत्रण और उन्मूलन में किसानों की भूमिका

किसान अपने खेती वाले जानवरों के सबसे निकट से जुड़े पर्यवेक्षक हैं। पशुओं के व्यवहार, वृद्धि, स्वास्थ्य और उत्पादकता में कोई भी बदलाव सबसे पहले किसान द्वारा देखा जाता है। इसलिए यह किसानों की सबसे महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है कि वे नियमित रूप से अपने पशुओं के स्वास्थ्य, विकास और उत्पादकता का निरीक्षण करें। भेड़ और बकरियों में वजन घटना, विकास की हानि, एनीमिया, एडिमा, अपच, सुस्ती और अवसाद आदि किसी भी लक्षण के पता लगने से स्थानीय पशु चिकित्सा विभाग को सूचित किया जाना चाहिए। इन जानवरों के मल के नमूने का भी परीक्षण किया जाना चाहिए और पशु चिकित्सक की सलाह पर उपयुक्त कृमिनाशक उपचार किया जाना चाहिए। इनके अलावा, किसानों को विभिन्न प्रकार के गैर-रासायनिक नियंत्रण उपायों को भी अपनाना चाहिए।  कृमि नियंत्रण के विभिन्न गैर-रासायनिक तरीकों में से, घूर्णी चराई, टैनिन्स में समृद्ध चारा खिलाना, और प्रजनन हेतू हेमोन्कस प्रतिरोधी जानवरों का चयन सबसे महत्वपूर्ण है। अच्छा पोषण हेमोन्कोसिस से बचाव में कारगर साबित हुआ है। प्रोटीन सप्लीमेंट्स के साथ बढ़ने वाले भेड़ें खराब प्रोटीन पोषण पर बढ़ने वाले भेड़ों तुलना में हेमोन्कोसिस के खिलाफ अधिक प्रतिरोधी होते है। इसलिए किसानों को हेमोन्कोसिस के खिलाफ प्रतिरोध क्ष्यमता विकसित कराने तथा इष्टतम पशु विकास का दोहरा लाभ प्राप्त करने के लिए उचित पोषण प्रबंधन रणनीतियों को अपनाना चाहिए। इन सभी निवारक उपायों के अलावा, निमेटोफैगस (कृमि भक्षी) कवक का उपयोग हेमोन्कोसिस के बिरुद्ध एक आशाजनक विकल्प है। जब इन कवक के बीजाणु चारा के साथ मिश्रित होते हैं, तब वे जठरांत्र पथ के माध्यम से यात्रा करते हैं और हैफा में विकसित होते  हैं । हैफा बनने के बाद इन कवकों में हेमोन्कस कंटोर्टस के लार्वा को फंसाने और  नष्ट करने की क्षमता होती है। सबसे व्यापक रूप से मूल्यांकन किए गए कवक प्रजातियों में से  Duddingtonia flagrans (दुड्डिंग्टोनिअ फ्लैग्रैंस) मुख्य  है। यदि अवसर उपलब्ध हैं, किसानों को इन सभी निवारक विकल्पों को अपनाने का प्रयास करना चाहिए ।

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निष्कर्ष

हेमोन्कस कंटोर्टस  भेड़ और बकरियों का एक अत्यधिक रोगजनक गोल कृमि परजीवी है और इसके रक्त-चूसने की गतिविधि के परिणामस्वरूप भेड़ और बकरी सम्वन्धी पशुपालन में गंभीर समस्याएं पैदा होती हैं।  जलवायु स्थितियां इसके विकास और संक्रामकता पर एक महत्वपूर्ण प्रभाव छोड़ती है ।  भारत जैसे गर्म और नम जलवायु परिस्थितियों वाले क्षेत्रों में हेमोन्कस कंटोर्टस का संक्रमण और प्रसार बहुत आसान है। हेमोन्कस के सभी उपभेद सभी मौजूदा एंटीहेल्मिन्थिक्स (कृमि नाशक)  के खिलाफ प्रतिरोधी बन गए हैं। इस स्थिति में, वैज्ञानिक लगातार नए और प्रभावी कृमिनाशक तथा टीके विकसित करने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन इन प्रयासों में सफलता बहुत सीमित है। उपरोक्त को ध्यान में रखते हुए, संक्रमण का नियंत्रण कई योजनाओं के सही अनुप्रयोग से होना चाहिए। पशुपालन क्षेत्र में किसी भी योजना को सफल बनाने में किसानों का योगदान सर्वोपरि होता है। अतः हेमोन्कोसिस को नियंत्रित करने के लिए किसानों द्वारा अपनाने के लिए संभव निवारक और नियंत्रण उपायों का अत्यधिक महत्व है। इसके लिए किसानों को रोग के नियंत्रण के लिए सभी संभव वैकल्पिक उपायों जैसे चराई प्रबंधन, अच्छा प्रोटीनयुक्त पोषण, टैनिन समृद्ध चारा खिलाना, नियमित स्वास्थ्य अवलोकन, और नियमित रूप से जानवरों के मल का नमूना परीक्षण आदि अपनाने चाहिए।

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