औषधीय पौधों की मदद से मनुष्य एवं पशुओं की चिकित्सा
डॉ.प्रतीक मिश्रा, डॉ. विधि गौतम, डॉ. राजेश शर्मा, डॉ. के. श्रमण, डॉ. सचिन जैन, डॉ. अनुश्री तिवारी, डॉ .आर.पी. सिंह
पशु भेषज एवं विष विज्ञान विभाग
पशु ब्याधि विज्ञान विभाग
पशु चिकित्सा विज्ञान एवं पशु पालन महाविद्यालय, जबलपुर– 482001 (म.प्र.)
मनुष्यों एवं पशुओं में औषधीय पौधे की मदद से चिकित्सा एक पुरानी पद्धति है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने ये बताया है. की लगभग 80 प्रतिशत विश्व की जनसंख्या जिसमें बहुत से गरीब एवं कम विकसित पारम्परिक तरीके से औषधीय पौधों का प्रयोग कर प्राथमिक उपचार कर रहे हैं। औषधीय पौधों का प्रयोग बहुत ही अच्छे से वैज्ञानिक तरीके से बताया जा चुका है। इसके प्रमाण भी प्रस्तुत किये जा चुके है। गांव के किसान भाई आज भी पौधों से प्राप्त होने वाली औषधी पर निर्भर करते हैं। जिससे वे अपने पशुओं का इलाज आसानी से सस्ते तरीके से एवं आसान उपलब्धता के कारण कर लेते हैं। इनके उपयोग से सूक्ष्मजीवियों में दवाई के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित नहीं होती जो की ऐलोपैथिक दवाई खाने से होती है, इस अध्याय का प्रमुख उद्देश्य ये है की पारंपरिक ज्ञान को आसपास के किसान भाइयों एवं जो भी इस में अभिरूचि रखता है। उसे इस ज्ञान को बताना एवं स्वयं एवं अपने पशु के स्वास्थ्य को अच्छा बनाना है। भारत में कई स्थानों में पशुपालक केवल औषधीय पौधों से ही पशु चिकित्सा करते हैं यहां पर हम औषधीय पौधों से प्राप्त होने वाली कुछ जड़ी बूटी एवं उनके लाभ को एक एक करके विस्तार से देखेंगे।
1.वैज्ञानिक नाम: एकेसिया कांसिन्ना
स्थानीय नाम : सीकाकाई
उपयोग: बीज को चूर्ण बनाकर दूध के साथ देने से भोजन के विषाक्ता को कम किया जा सकता है।
2.वैज्ञानिक नाम: एकेसिया निलोतिचा
स्थानीय नामः देशी बबूल
उपयोगः तने के छाल को पानी में उबाल कर घाव में लगाने से घाव भर जाते हैं एवं इसकी फली को चारे के साथ पको देने में बच्चा जनने के समय दूध बढ़ता है इसके गोंद का उपयोग थनेला रोग ठीक करने में होता है।
3.वैज्ञानिक नाम: गोसिपियम हैरबेसियम
स्थानीय नामः कपास
उपयोगः अधपके फल एवं जड़ को उबलने के बाद पशु को खिलाने पर प्लासेन्टा (खेडी) प्रसव / जनन के बाद से बाहर आ जाते हैं।
4.वैज्ञानिक नाम: निकोटियाना टोबेकम
स्थानीय नामः तम्बाकू
उपयोग– पत्ती को पीस कर पैर में लगाने से पैर की बीमारिया दूर होती है जैसे घाव, दर्द आदि।
5.वैज्ञानिक नाम: रिसनस कोम्मुनिस
स्थानीय नामः अरंडी
उपयोगः बकरी को अरंडी का तेल खिलाने से बुखार में आराम मिलता है एवं भेड में देने से गले की समस्या दूर होती है।
6.वैज्ञानिक नाम: ट्राईगोनिला फोईनुमागैसीयम
स्थानीय नाम: मेथी
उपयोग: ताजी पत्तिया एवं बीच को चारे के साथ मिला कर देने से जोड़ों के दर्द से आराम मिलता है। बीजों को गुड़ के साथ मिला कर देने से गाय एवं भैंस में दूध देने का समय बढ़ता है।
7.वैज्ञानिक नाम : ऐनोना स्कमोसा
स्थानीय नामः सीताफल
उपयोगः पत्तियों को निचोड़ कर बाहरी सतह पर लगाने पर इसके कीड़े मर जाते हैं। पत्तियां, फल एवं बीज का उपयोग दस्त, पेचिस एवं बेहोशी के समय किया जाता है।
8.वैज्ञानिक नामः: डेन्ड्रोकालामस स्ट्रीकटस
स्थानीय नामः वास
उपयोग: वास की छीन को पैर की हड्डी के फैक्चर पर कर इसके ऊपर पानी छिड़क देते हैं जिससे हड्डी की स्थिति सही बनी रहती है। वास के तने की कुछ टुकड़ों को पानी में उबालते हैं जब तक की पानी का अनुपात आधा न हो जाये इसके बाद इसे मुंह से पशु को खिला देते है जिससे रूकी खेड़ी बाहर आ जाती है।
9.वैज्ञानिक नामः ब्रासिका कैम्पेस्ट्रिस
स्थानीय नामः सरसों
उपयोग: बीज का तेल पिलाने से कफ ठीक होता है।
10.वैज्ञानिक नाम: धतूरा मेटल
स्थानीय नाम: धतूरा
उपयोग: पत्तियों को पीस कर बाहरी तरफ से सूजन एवं मोच में लगाने से आराम मिलता है।
11.वैज्ञानिक नाम: ऐलोवेरा
स्थानीय नामः ऐलोवेरा
उपयोग: इसकी पत्ती के गुदा एवं जेल (वा भाग) ब्लड सुगर को कम करने का गुण होता है जो की सुगर को स्थिर बनाये रखता है। पशुओं में इसका उपयोग त्वचा के घाव को भरने में किया जाता है।
उपसंहार
किसान उपचार के बहुत से तरीकों को पारंपरिक बुद्धिमानी और ज्ञान से उपयोग कर रहे हैं एवं इसमें सफलता प्राप्त कर रहे हैं। इस ज्ञान की जरूरत इस देश को बहुत ज्यादा है एवं इसकी, वैज्ञानिक तरीके से लिखित प्रमाण प्रस्तुत करने की जरूरत है। इसके लिए हमें यह जरूरत है पौधे के प्रमुख सिद्धांत को पहचाने इस पदार्थ के सहक्रिया को जाने एवं किस अनुपात में इसे दें कि ये अधिक कार्य कर सके।
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