मानसून पूर्व पशुओं का स्वास्थ्य प्रबंधन
डा. विजय बसुनाथे1 और झरणा साहु2
1.सहाय्यक प्राध्यापक 2.एम व्ही एस सी विद्यार्थी
नागपूर पशुवैद्यक महाविद्यालय, नागपूर
भारत एक कृषि प्रधान देश है और पशुधन हमारे देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है ।मध्यम वर्गीय और सीमांत किसान मुख्यतः कृषि कार्य के साथ साथ पशुपालन करके अपनी आजीविका चलाते हैं। भारत की आबादी के लगभग 50 प्रतिशत जनसंख्या कृषि पर निर्भर है। पशुधन क्षेत्र कुल भारतीय कार्यबल का 8 प्रतिशत हैं। बारिश का मौसम पशुपालकों के लिए बहुत ही चुनौतीपूर्ण होता हैं। इस समय पशुओं को विभिन्न बीमारियों के होने का खतरा होता हैं। जिससे बचाव के लिए पशुओं का टीकाकरण कराना चाहिए एवं बाह्य तथा अंतः परजीवी नाशक दवा भी पशुओं को देना चाहिए।
बाह्य तथा अंतर परजीवी नाशक
पर्णकृमि, चपटेकृमि, गोलकृमि तथा अन्य अंतः परजीवी पशुओं के स्वास्थ्य पर बुरा असर डालते है।पशुपालकों को नियमित अंतराल मेंअपने पशुओं को निकटतम सरकारी पशु चिकित्सालय या पशु औषधालय में ले जाकर परजीवीनाशकदवा देना चाहिए।पशु चिकित्सालयमें कमकीमतों में दवाइयां उपलब्ध होती हैं ।
परजीवीनाशक देने का समय –
1.गाय एवं भैंस -गाय व भैंस में परजीवीनाशक दवा का उपयोग प्रत्येक 4 -6 महीने के अंतराल में करना चाहिए।
2.भेड़ एवं बकरी -भेड़ व बकरियों को प्रत्येक 3 माह में 1 बार परजीवी नाशक दवा देना चाहिए।
परजीवियो के दुष्प्रभाव
- स्वास्थ्य खराबदृ परजीवी के संक्रमण सेपशुकमजोरदिखाई देता है,दुबला पतला हो जाता हैं।उचित मात्रा में दानाचारामिलने पर भी शरीरसंक्रमितदिखाई देता है क्योंकिचारा परजीवीद्वाराखा लियाजाता हैं औरगायको पोषणनहींमिलताहैं।
- कम उत्पादकतादृ परजीवी के शरीर में होने के कारण पशुओं को उचित पोषण नहीं मिलता जिससेउनके दुग्ध उत्पादन एवं बछड़ों की क्षमतामें कमी आती हैं।
- खून की कमीदृ कुछ बाह्यपरजीवी जैसे किलनी, पिस्सू, जू एवं कीड़े पशुओं का खूनचूसते हैं जिससे उनमें खून की कमी हो जाती हैं तथा उनमें भूखन लगना, सुस्त रहना, मसूड़ों का पीला होना, सांस लेने में कठिनाई जैसी समस्या उत्पन्न होती हैं।
परजीविनाशक देने के लाभ
- परजीवीनाशक देने से पशुओं का स्वास्थ्य अच्छा रहता हैं और उन्हें पोषक तत्व अच्छी तरह मिलते हैं।
- दुग्ध उत्पादन क्षमता बढ़ताहैं।
- परजीवी के न होने से भेड़ बकरियों में वजन में वृद्धि अच्छी तरह होती हैं।
- दाना रूपांतरण अनुपात (Feed Conversion Ratio) बढ़ता हैं।
पशुओं को विभिन्न रोगों से मुक्ति के लिए टीकाकरण अत्यंत आवश्यक है। टीकाकरण के द्वारा पशुओ के शरीर में विभिन्न रोगों के प्रतिरोग प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न होती हैं। यह रोग प्रतिरोधक क्षमता निश्चित समय के लिए होती हैं, इसे बनाए रखने के लिए नियमित रूप से टीकाकरण करवाना चाहिए। टीकाकरण करवाने से पशुपालक ना सिर्फ रोगों के उपचार में होनेवाले व्यय से बच जातेहै अपितु पशुओं से बेहतर उत्पादन भी प्राप्त कर सकते हैं। मानसून के मौसम में पशुओं को विभिन्न रोगों के होने का खतरा होता हैं।
- खुरपका मुंहपका (Foot and Mouth Disease)- इस बीमारी का संक्रमण तेजी से होता हैं। इस रोग से पशुपालकों को भारी नुकसान पहुंचता है क्योंकि पशु कमजोर हो जाता हैं जिससे उनकी उत्पादन एवं कार्यक्षमता कम हो जाती हैं। गाय, बैल, भैंस, बकरी में यह रोग होता हैं।
लक्षण – बुखार, भूखन लगना, उत्पादन कम होना, मुंह और खुर में पहले छोटे छोटे फोड़े ध् छाले निकलता है और बाद में पककर घाव बन जाता हैं।
चिकित्सा – मुंह के छालों को 2: फिटकरी के घोल से साफ करना चाहिए। पैर के घावों को फिनाएल के घोल से धोना चाहिए।घावों को मक्खी से बचाना चाहिए।
बचाव – पशुओं को साल में दो बार छःमाह के अंतराल में रोगों से बचाव के टीके लगवाना चाहिए।
- गलघोटू (Haemorrhagic Septicaemia) – यह बीमारी भैसो व गायों मेंअधिक होती हैं।यह बारिश के मौसम में होता हैं।
लक्षण – पशुओं के शरीर का तापमान बढ़ना, लार गिरना, सुस्त रहना, गले में सूजन हो जाता हैं जिससे खाद्य पदार्थों को निगलने में परेशानी होती हैं जिससे पशुखाना पीना बंद कर देताहै।सांस लेने में दिक्कत होती हैं, कुछ पशुओं में कब्ज और फिर दस्त भी होता हैं। 6 – 24 घंटे के बीच बीमार पशु की मृत्यु हो जाती हैं।
बचाव – रोग के रोकथाम के लिए पशुओं को तुरंत निकटतम पशु चिकित्सालय में ले जाए। बारिश के पहले ही पशुओंको टीकाकरण कराके सुरक्षित किया जा सकता है।मुफ्त टीकाकरण की व्यवस्था विभाग द्वारा की गई हैं।
- जहरवाद (Black Quarter) – यह 6 से 18 महीनों के स्वस्थ बछड़ों में अधिकांशतः होता हैं।
लक्षण – इस रोग में पिछले पैर में सूजन हो जाता है, पशु लंगड़ा के चलता है।किसी किसी पशुका आगे का पैर भी सूजन हो जाता हैं। सूजन में काफी दर्द होता हैं और उससे कूड़कुड़ा हट की आवाज आती हैं। शरीर का तापमान 104 से 106 डिग्री फारेन हाइट रहता है, बाद मे सूजन सड़कर घाव बन जाता हैं।
बचाव – पशु चिकित्सक के परामर्श से पशु का इलाज कराए। बारिश के पहले स्वस्थ पशुओंका टीकाकरण कराए।
- बोवाइन ब्रुसेलोसिस – जिसे बैंग्स रोग के रूप में भी जाना जाता है, एक जीवाणु रोग है जो ब्रुसेला एबॉर्टस जीवाणु के कारण होता है। ब्रुसेला एबॉर्टस जीवाणु मवेशियों के संक्रामक गर्भपात का कारण बनता है और मुख्य रूप से बछियों को प्रभावित करता है।
लक्षण – मवेशियों में ब्रुसेलोसिस के सबसे आम लक्षण प्रजनन प्रणाली से संबंधित हैं, सबसे प्रमुख और आसानी से पता लगाने योग्य गर्भपात (गर्भपात) है, खासकर गर्भावस्था के पांचवें और सातवें महीने के बीच। ब्रुसेलोसिस के अन्य लक्षणों में शामिल हैं:
- जाल का अटकना
- कमजोर या मृत बछड़ों का जन्म
- योनि स्राव
- बाँझपन या प्रजनन संबंधी कठिनाइयाँ
- दूध उत्पादन में कमी
- जोड़ों में चोट
- प्रभावित के मामले में ऑर्काइटिस
बचाव – जहां ब्रुसेलोसिस का प्रकोप होता है तो यह अनुशंसा की जाती है कि आप अपने मवेशियों का ब्रुसेलोसिस का टीकाकरण करें। ब्रुसेलोसिस टीका यह सभी संशोधित जीवित वायरस से बने हैं।
5.पी.पी.आर.- यह मूल रूप से बकरियों और भेड़ों की पैरामाइक्सो वायरस से होने वाली बीमारी है। 4 महीने से 1 साल के बीच के मेमने, कुपोषण और परजीवियो से पीड़ित भेड़ बकरियों को पी.पी.आर. रोग होने का खतरा होता हैं।
लक्षण – भूख न लगना, शरीर का तापमान बढ़ना,नीरसता, निमोनिया,आंख और ना कसे चिपचिपा तरल पदार्थ निकलने के कारण आंख बंद हो जाता हैं और सांस लेने में दिक्कत होती हैं, मुंह में सूजन और अल्सर बन जाने से चारा खाने में दिक्कत होती हैं।
चिकित्सा – स्वस्थ बकरियों को बीमार से शीघ्र अलग कर देना चाहिए। द्वितीयक जीवाणुओं के संक्रमण को रोकने के लिए पशु चिकित्सक की सलाह से एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग करना चाहिए।
बचाव – पी पी आर से बचाव के लिए बकरियों को निश्चित समयांतराल में टीके लगवाना चाहिए।
6.एंटरोटॉक्सीमिया यह बीमारी क्लोस्ट्रीडियम परफ्रिंजेंसटाइप डी नामक जीवाणु से होता हैं यह जीवाणु विषैले पदार्थ उत्पन्न करते हैंजिससे यह बीमारीहोती हैं।यह बीमारी बकरी भेड़ एवं वयस्क बछड़ों में होती हैं।
लक्षण – तीव्र ज्वर के कारण पशु बेचौन हो कर हवा में कूदने लगता हैं, शरीर में कम्पन होना , पतला दस्त होना, मुंह से झाग आना, भोजन की मात्रा में कमी।
चिकित्सा – तीव्र ज्वर से पशु की शीघ्र मृत्यु हो जाने के कारण उपचार का कोई लाभ नहीं होता किंतु समय पर उपचार होने पर जानबच सकती हैं। जिसमें प्रभावी औषधी एंटीबायोटिक सल्फोनामाइड तथा लक्षणात्मक सहारात्मक उपचार भी पढ़ी को देना चाहिए।
बचाव – मेमनो का टीकाकरण 4 10 सप्ताह में करना चाहिए।
7.थनैला (Mastitis) – दुधारू पशुओं में यह बीमारी थनपर चोटया कट जाने से तथा संक्रामक जीवाणुओं के थन मे प्रवेश करने से होती हैं।अधिक दूध देने वाली गाय भैंसो में यह बीमारी अधिकतर होता हैं।
लक्षण – थन लाल एवं गर्म हो जाना, उसमे सूजन होना, भूखन लगना, शरीर का तापमान बढ़ना, दूध का रंग बदलना एवं दूध का जमना।
चिकित्सा – पशु को सुपाच्य एवं हल्का आहार देना चाहिए। पशु चिकित्सक के परामर्श से एंटीबायोटिक दवाओं एवं मरहम का उपयोग करना चाहिए। थनैला से पीड़ित पशुओं को स्वस्थ पशु के बाद दुहना चाहिए।
रोग का नाम | वैक्सीन का नाम | मात्रा | माध्यम | टिप्पणी
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खुरपका मुंहपका (Foot and Mouth Disease)
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एफ एम डी इनैक्टिवेटेड पॉलिवेलेंट वैक्सीन | 2 मि. लि. | मांस में मार्च अप्रैल या सितंबर अक्टूबर
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1 माह से कम उम्र में पहला टीका दूसरा 21 दिन बाद पुनः 5- 6 माह की उम्र में टीका देते हैं उसके बाद हर 6 माह में। |
गलघोटू (Haemorrhagic Septicaemia) | एच एस ऑयल एडजुवेंट वैक्सीन | 3 मि. लि. | मांस में एच एस ऑयल एडजुवेंट वैक्सीन | 8 माह की उम्र में पहला वर्ष में एक बार बारिश के पूर्व |
जहरवाद (Black Quarter)
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पॉलिवेलेंट बी क्यू वैक्सीन | 5 मि. लि. | चमड़े में | 6 माह की उम्र में पहला उसके बाद 1 वर्ष में एक बार |
बोवाइन ब्रुसेलोसिस
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ब्रूसेला एबॉर्टस स्ट्रेन 19 लाइव वैक्सीन | 2 मि. लि. | चमड़े में | मादा बछिओ को 6 9 माह की उम्र में, नर को आवश्यकता नहीं। |
पी पी आर
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पी पी आर रक्षा | 1 मि. लि. | चमड़ी में | 4 महीने की उम्र में पहला पुनः टिकाकरण म वर्ष की उम्र में |
एंटरोटॉक्सिमिया
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रक्षा ईटी | 2 मि. लि. | चमड़ी के निचे | 4 महीने में अगर मादा वैक्सिनेटेड है 1 सप्ताह में अगर मादा वैक्सिनेटेड नहीं है। |
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