मुंहपका–खुरपका रोग (Foot-and-mouth disease) का हर्बल उपचार
डॉ. गायत्री देवांगन*, डॉ.श्वेता राजोरिया, डॉ.स्वाति कोली, एवं डॉ. नीतू राजपूत
*पशु भैषज एवं विष विज्ञान विभाग ,पशु चिकित्सा विज्ञान एवं पशुपालन महाविद्यालय महू, इंदौर
मुंहपका–खुरपका रोग एक संक्रामक विषाणु जनित बीमारी है जो फटे खुर (Cloven Footed) वाले पशुओं को ग्रसित करती है। विभक्त-खुर वाले पशुओं का अत्यन्त संक्रामक एवं घातक विषाणुजनित रोग है। यह गाय, भैंस, भेंड़, बकरी, सूअर आदि पालतू पशुओं एवं हिरन आदि जंगली पशुओं को होता है।इसकी चपेट में सामान्यतः गो जाति, भैंस जाति, भेड़, बकरी एवं सूकर जाति के पशु आते है। यह पशुओं में अत्याधिक तेजी से फैलने वाला रोग है, तथा कुछ समय में एक झुंड या पूरे गाँव के अधिकतर पशुओं को संक्रामित कर देता है। इस रोग से पशुधन उत्पादन में भारी कमी आती है साथ ही देश से पशु उत्पादों के निर्यात पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इस बीमारी से अपने देश में प्रतिवर्ष लगभग 20 हजार करोड़ रूपये की प्रत्यक्ष नुकसान होता है। मुँह में घावों कि वजह से पशु भोजन लेना तथा जुगाली करना बंद कर देता है एवं कमजोर हो जाता है। दूध उत्पादन में लगभग 80 प्रतिशत की कमी, गाभिन पशुओं के गर्भपात एवं बच्चा मरा हुआ पैदा हो सकता है । बछड़ों में अत्याधिक ज्वर आने के पश्चात बिना किसी लक्षण की मृत्यु होना।
इस रोग के आने पर पशु को तेज बुखार हो जाता है। बीमार पशु के मुंह, मसूड़े, जीभ के ऊपर नीचे ओंठ के अन्दर का भाग खुरों के बीच की जगह पर छोटे-छोटे दाने से उभर आते हैं, फिर धीरे-धीरे ये दाने आपस में मिलकर बड़ा छाला बनाते हैं छालों में जख्म हो जाता है। मुंह से लार गिरती हैं, खुर में जख्म होने की वजह से पशु लंगड़ाकर चलता है। एंटीबायोटिक दवाओं के दुष्प्रभाव भी होते है जैसे की एलर्जी, सूक्ष्मजीवों में एंटीबायोटिक्स के प्रति प्रतिरोध, एंटीबायोटिक्स फायदेमंद बैक्टीरिया को भी खत्म कर देती हैं, जिससे कई तरह की परेशानियां उत्पन्न हो जाती हैं I
मुंहपका–खुरपका रोग
हर्बल उपचार
मनुष्यों एवं पशुओं में औषधीय पौधे की मदद से चिकित्सा एक पुरानी पद्धति है। पशुओं के ईलाज के लिए अपने आसपास कई प्राकृतिक संसाधन मौजूद हैं, जो कई रोगों को दूर करने में सहायता करते हैं I इनके उपयोग से सूक्ष्मजीवियों में दवाई के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित नहीं होती जो की ऐलोपैथिक दवाई खाने से होती है, औषधीय पौधे हमारे आसपास आसानी से उपलब्ध है जिनका सही मात्रा में उपयोग कर किसान अपने पशुओं का ईलाज कर सकते हैं और उपचार में आने वाले अत्यधिक खर्च से बच सकते हैंI मुंहपका–खुरपका रोग का हर्बल उपचार नीचे दिया गया है:
उपचार के लिए आवश्यक सामग्री:
- हल्दी – 200 ग्राम (ताजा काटा हुआ प्रकंद)
- नारियल -1
- एलोवेरा – 200 ग्राम;
- ताड़ का गुड़ – 200 ग्राम;
- साधारण नमक – 100 ग्राम;
- लहसुन – 100 ग्राम;
- काली मिर्च – 50 ग्राम;
- जीरा – 50 ग्राम;
- मेथी – 50 – ग्राम।
मिश्रण को तैयार करना
उपरोक्त सामग्री अर्थात, हल्दी, एलोवेरा, लहसुन एवं कद्दूकस किया हुआ नारियल ग्राइंडर से अच्छी तरह पीस लिया गया है. पर्याप्त पानी का उपयोग करके सामग्री मिलाएं (सामग्री को नम करने के लिए पानी छिड़कें)। मिश्रण को एक बर्तन में इकट्ठा कर लें। काली मिर्च, जीरा, मेथी का चूर्ण बना लें। एक साथ अच्छी तरह मिलाएं और इसे लगभग 1 लीटर बनाने के लिए पर्याप्त पानी डालें। घोल को छाने एवं पशु को पिलाएं I
खुराक
- वयस्क जानवरों के लिए एक समय में 100 मिली या युवा या भेड़ या बकरियों के लिए 50 मिली का उपयोग करेंI
- उपचार देने से पहले पशुओं को केला (दो, गायों के लिए और एक, दूसरेजुगाली करने वाले पशुओं के लिए) 50 मिली तिल के तेल में भिगोकर खिलाना है।
- रोग की गंभीरता के आधार पर इस उपचार को दो से तीन दिनों तक जारी रखा जा सकता है।
पैर के घावों के लिए उपचार :
- 500 मिली नारियल तेल और 500 मिली धतूरा की पत्ती का अर्क एक साथ मिलाएं।
- इस मिश्रण को एक बर्तन में एक घंटे के लिए तब तक उबालें जब तक कि यह तैलीय न हो जाए।
- 5 ग्राम कॉपर सल्फेट डालें और अच्छी तरह मिलाएँ।
- मिश्रण को बोतल में भरकर रख लें एवं पैर के घावों में लगाएं I
वैकल्पिक रूप से आप निम्न सावधानियों का भी उपयोग कर सकते हैं:
- रोगग्रस्त पशु को अलग और स्वच्छ स्थान पर रखना चाहिए।
- पशु को मुलायम चारा देना चाहिए।
- इलाज में देरी से पशुओं के पैरों में कीड़े पड़ सकते हैं, ऐसे में तारपीन के तेल में डूबी रुई को खुरों पर लगाएंI
- इस बीमारी से बचाव के लिए पशु को साल में 2 बार टीका जरूर लगवाएं।
धतूरा
हल्दी
एलोवेरा
आक