पशुओं के कुछ सामान्य रोग एवं उनका प्राथमिक/घरेलू उपचार।

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डॉ संजय कुमार मिश्र पशु चिकित्सा अधिकारी चौमुहा मथुरा

1.बुखार –
लक्षण -मुंह,नथुने,शरीर,कान ठंडा साथ में नाक से गर्म हवा निकलती है। थूथन शुष्क होता है। अधिक ताप बढ़ जाने पर पशु हॉफने लगता है।
प्राथमिक चिकित्सा- १.मैगसल्फ 100 ग्राम कलमी शोरा 10 ग्राम पानी में मिलाकर पिलाया जाए।
२.कलमी शोरा 10 ग्राम नौसादर 20 ग्राम मैगसल्फ 100 ग्राम पानी में घोलकर पिलाएं।
३. सेफ्टेक २.५ग्राम की एक एक गोली दिन में दो बार दें एवं प्रेस्टीवेट की दो-दो गोली दिन में दो बार दें।

2.खांसी बुखार। ।
लक्षण-
मुंह नथुने व शरीर गर्म, कान ठंडा साथ में खांसी भी आती है कफ शुष्क रहता है खॉसने में गीला बलगम नाक से निकलता है।
प्राथमिक चिकित्सा-
१. कपूर 2 ग्राम;कलमी शोरा 3 ग्राम; नौसादर 6 ग्राम को गुड़ या सीरा में मिलाकर दिन में दो बार पशु को खिलाया या चटाया जाए।
२.कैटकफ चटनी या केफलान पाउडर 50 ग्राम दिन में दो बार खिलाया जाए।।

3 भूख न लगना
लक्षण – रोगी को आहार में अरुचि, पागुर या उगार बंद, सुस्त और उदासी मुख्य लक्षण हैं।
प्राथमिक चिकित्सा –
१.नौसादर 10 ग्राम, चिरायता 30 ग्राम ,काला नमक 30 ग्राम कूटकर मिलाकर प्रातः तथा शाम को गुड़ के साथ दें। २.डीपी स्ट्रांग चूर्ण 20 से 40 ग्राम प्रतिदिन खाने के बाद 3 से 5 दिन दें।
३.एक्रोबिट या एपटीफास्ट की एक-एक बोली दिन में दो बार दें।
4 अपच
लक्षण-पशु के मल में अन् पचा आहार या दाने निकलते हैं। मल पतला होता है। भोजन में अरुचि होती है
।प्राथमिक चिकित्सा-
१.सौंफ 60 ग्राम खाने का सोडा 15 ग्राम पीसकर सुबह-शाम ऐसी एक खुराक पानी या दाने में खिला दें।
२.हिमालय बतीसा 50 से 75 ग्राम प्रतिदिन खाने के बाद 1 सप्ताह तक दें।

5 पुराना कब्ज या गुंबा रोग

लक्षण-प्रारंभ मैं मल साफ नहीं होता जिससे कब्ज हो जाती है। बाई कोख ठस जान पड़ती है । थपथपाने पर कोख से डब डब की आवाज आती है। पशु के पेट में दर्द तथा बेचैनी रहती है।

प्राथमिक चिकित्सा

१.प्राथमिक अवस्था में शुद्ध अरंडी का तेल 400 से 800ml दिया जाए।
२.पशु को 300 ग्राम मैगसलफ, साधारण नमक 200 ग्राम , डेढ़ से 2 लीटर गुनगुने पानी में मिलाकर दें। ३.रोगी पशु को 500ml कोल- एल 12 घंटे के अंतर पर दो बार देना चाहिए।
४.यदि रोगी पशु को उक्त दवाओं से दस्त ना आवे तो भुना पिसा कुचला 6 ग्राम, अमोनियम कार्बोनेट 30 ग्राम के साथ गुड़ में मिलाकर खिलाने से दस्त होने लगते हैं।

6 खून की कमी या कमजोरी।
लक्षण-पशु को चलने फिरने, उठने बैठने मैं लड़खड़ाना, भोजन में अरुचि, नाक आंख की झिल्लियां सफेद दिखाई देने लगती हैं।
प्राथमिक चिकित्सा –
१.हरा कशीश 6 ग्राम, कुटकी 15 ग्राम, भुना कुचला 2 ग्राम, नौसादर 15 ग्राम, चिरायता 15 ग्राम, तूतिया 1 ग्राम,पीसकर पानी में या चावल के मांड में सुबह शाम 7 दिन तक खिलाकर 10 दिन तक बंद कर दें। फिर 7 दिन खिलाकर बंद कर दें। यह क्रम लगातार चलता रहेगा।

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7 शूल पेट का दर्द।

लक्षण- पेट के हर दर्द को सूल कहते हैं । इसमें पशु बेचैन होकर बार-बार उठता बैठता है व भोजन में अरुचि हो जाती है।

प्राथमिक चिकित्सा।
१.30 मिली तारपीन का तेल 30 से 40 ग्राम क्लोराइड हाइड्रेट ,पानी 200ml अलसी का तेल 400ml मिला कर एक बार मैं पिला दिया जाए।
२.डीपी स्ट्रांग चूर्ण 20 से 40 ग्राम गुड में दो बार दिया जाए।

8.कीड़े पड़े घाव
लक्षण-घाव में कीड़े पड़ जाने से अति तीव्र दुर्गंध आती है। पशु बेचैन होकर आहार छोड़ देता है। घाव वाले स्थान से रक्त बहने लगता है।
प्राथमिक चिकित्सा –
१.तारपीन का तेल या फिनायल 30ml को 300ml तीसी के तेल में मिलाकर घाव साफ करने के बाद तेल को जूट में लगाकर घाव में रोजाना भर दिया जावे। उक्त दवा में 50 ग्राम कपूर भी मिलाया जा सकता है।
२.टॉपिक्योर या ड्रेसाल एडवांसड स्प्रे दिन में तीन बार घाव पर स्प्रे करें।

9.मोच या स्प्रेन।
लक्षण – प्रभावित अंग सूज जाता है । सूजन छूने पर गर्म लगती है। दबाने पर पशु को दर्द होता है तथा इस अंग का प्रयोग पशु नहीं करता है ।
प्राथमिक चिकित्सा
१.नमक नौसादर कलमी शोरा बराबर भाग लेकर 20 ग्राम पानी में घोलकर शीतल घोल बना लिया जावे। इस घोल से पट्टी भिगोकर घाव को ठंडा रखा जाए।
२.कपूर एक भाग सरसों का तेल 5 भाग मिलाकर मालिश किया जाए।

10.डायरिया डिसेंट्री दस्त व पेचिश।
लक्षण- पतला गोबर बार-बार होना,पशु में कमजोरी एवं भोजन में अरुचि जाती है। पतला गोबर या कंडी स्वरूप हो सकता है। गोबर में अॉव या खून अथवा दोनों मलद्वार से बाहर आते हैं। पेट में मरोड़ होने के कारण दर्द बढ़ जाता है।

प्राथमिक चिकित्सा
१.रेंडी का शुद्ध तेल 20 से 30 मिली,अलसी का तेल 50 मिली ,60 ग्राम बबूल का गोंद गर्म पानी में घोलकर एक में मिला कर दिया जाए।
२.कत्था 30 ग्राम ,सोंठ 15 ग्राम ,खड़िया मिट्टी 60 ग्राम, बेलगिरी 30 ग्राम, अफीम 6 ग्राम इसकी दो खुराक सुबह शाम चावल के मांड में मिला कर दिया जाए।
३.मल के साथ खून या अॉव आने पर नोरफ्लोक्स टी जेड, या मेगाजिल की एक एक गोली सुबह-शाम 3 से 5 दिन तक दी जाए एवं नेबलान पाउडर 100 -१००ग्राम सुबह शाम चावल के मांड में खिलाया जाए।

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11.क्रॉनिक डायरिया पुराना दस्त।
लक्षण -मिश्रित पतला दुर्गंध युक्त गोबर का बार बार होना पशु को कमजोर बना देता है।

प्राथमिक चिकित्सा
१.पिसा हुआ हरा कसीस, 10 ग्राम पतला गंधक या तेजाब या सोंठ 30 ग्राम की दो मात्राएं सुबह और शाम को 3 माह तक पिलाया जाए।।

12.लीवर फ्लूक (जोकियाना)

लक्षण -दुर्गंध युक्त पतले गोबर का बार-बार होते रहना, जबड़े झालर के नीचे गर्दन में पानी एकत्र होने से सूजन हो जाती है । रोगी पशु कमजोर होकर मर जाता है। यदि पुराने दस्त लीवर फ्लूक के कारण आ रहे हो तो निम्नलिखित नुस्खे में से कोई एक दिया जाए।
प्राथमिक चिकित्सा
१ तूतिया पिसी हुई 3 ग्राम तंबाकू की धूल 3 ग्राम गुनगुना पानी 5m।२.डिसटोडिन की एक से दो गोली हर 10 दिन पर
३.बैनमिनथ फोर्ट की चार गोली 3 से 4 सप्ताह बाद फिर देनी चाहिए। उक्त कोई एक नुस्खा युवा पशुओं को सितंबर से अप्रैल तक अवश्य देना चाहिए।।

13.पेट के गोल क्रमी।
लक्षण -पतला पतला दुर्गंध युक्त गोबर तथा कभी-कभी गोबर के साथ अॉव या खून गिरता है एवं पशु का स्वास्थ्य गिरता जाता है।

प्राथमिक चिकित्सा
१.युवा पशु को तारपीन का तेल 60 मिली ,तीसी का तेल 10 मिली प्रतिदिन दिया जाए।
२.एक प्रतिशत तूतिया का घोल 300ml पानी में मिलाकर पिला दिया जाए। 1 ग्राम दवा १०० मिली पानी में मिलाने से 1% का घोल तैयार होता है।

14.पेट फूलना/ अफरा।
लक्षण -बाई कोख का फूल कर तन जाना, उंगली से बजाने पर ढोलक जैसी आवाज आना, सांस लेने में कष्ट आदि प्रमुख लक्षण है।

प्राथमिक चिकित्सा
१.तारपीन का तेल 30 मिली हींग 10 ग्राम थोड़े पानी में घोलकर तीसी का तेल 400 मिली मिलाकर एक ही बार में पिला दे,तथा बाई कोख को मुट्ठी से मल दें।
२.डी पी स्ट्रांग चूर्ण 20 से 40 ग्राम दिन में दो बार देना चाहिए।
३.टायरल या ब्लाटोसिल 100ml 6 घंटे के अंतराल पर कानपुर देना चाहिए ।

15.जलने के घाव में
लक्षण- छाले या घाव हो जाते हैं। तीव्र जलन, बराबर दर्द व भोजन में अरुचि हो जाती है।

प्राथमिक चिकित्सा
१.अलसी का तेल 1 भाग निथरा हुआ चूने का पानी एक भाग दोनों को मिलाकर जले अंग पर रोजाना लगाना चाहिए।
२.बरनाल या सिल्वरसल्फाडाइजीन का मलहम जले घाव पर लगाएं।

16.खुजली।
लक्षण -खाल में जहां भी खुजली के कीट घुसे रहते हैं, इस अंग को पशु रगड़ता है जिससे बाद में जलन होती है, बाल गिर जाते हैं। खाल खुरदरी हो जाती है, पशु आहार छोड़ देते हैं।

प्राथमिक चिकित्सा
१.गंधक एक भाग सरसों का तेल 5 से 8 भाग मिलाकर लगाया जाए।
२.गंधक 3 ग्राम, पारा 3 ग्राम, तूतिया 3 ग्राम, मंसल पोटाश 3 ग्राम मिलाकर एक भाग चूर्ण 10 भाग सरसों का तेल मिलाकर खुजली पर लगाएं ३.एस्केबियोल लोशन लगाएं।।

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17.मुंह पका रोग
लक्षण – मुंह के अंदर दाने, छाले या घाव ,मुंह से लगातार लार का गिरना रोगी पशु को कड़ा आहार खाने में कष्ट होता है। पशु चारा छोड़ देता है।

प्राथमिक चिकित्सा
१.फिटकरी के घोल से मुंह धो कर सुहागे को 5 भाग सोरे में मिला कर मुंह के छालों पर 30 दिन में तीन से चार बार लगाएं। मुंह को गुनगुने नीम के पत्ते पड़े पानी से साफ कर ले ।
२.पोटेशियम परमैंगनेट के एक अनुपात 1000 के घोल से भी मुंह के अंदर की सफाई की जा सकती है।
३. उंडहील स्प्रे का प्रयोग भी दिन में तीन बार कर सकते है।
18. बदहजमी या अपच- बदले हुए मौसम में चारे तथा अन्य घासों की उपलब्धि एवं उनके प्रकार पर अपच का होना निर्भर है । यदि अधिक अम्लीय या अधिक क्षारीय गुण वाले चारे खिलाये जाए तो अपच हो जाता है। कभी-कभी बिना अम्लीय व छारीय गुण वाले चारे भी अपच कर देते हैं। पूरा का पूरा सूखा चारा जैसे कर्वी पुवॉल (धान का भूसा) गेहूं का भूसा इत्यादि खिलाने से जबकि हरा चारा उपलब्ध नहीं हो पाता तो क्षारीय अपच हो जाता है। इसके विपरीत यदि हरा चारा ही पूरी तौर पर खिलाया जाए तो भी अम्लीय अपच हो जाता है जैसे हरा चारा साइलेज हरी दाने बरसीम इत्यादि अधिक खिलाने से अपच पैदा होता है। अधिक चारा खिलाने से चाहे अम्लीय या क्षारीय स्थिति भी न पैदा करते हैं तो भी अपच हो जाता है। अपर्याप्त तथा त्रुटिपूर्ण आहार एवं प्रतिजैविक औषधियां भी रूमैन (पशु के प्रथम पेट) के कार्य को अवरुद्ध करके अपच की स्थिति उत्पन्न कर देते हैं इसमें पशु खाना छोड़ देता है जुगाली या उगार भी बंद हो जाती हैंl यद्यपि पशु को बुखार नहीं होता है।

उपचार – रूमेन एफ.एस.या
रूमबियोन दो बोलस
दिन में दो बार 3 से 5 दिन तक दें। क्योंकि पशु के प्रथम पेट रूमेन में उपस्थित जीवाणु एवं प्रोटोजोआ (माइक्रोफ्लोरा तथा माइक्रोफोना )सक्रिय होकर पाचन में सहायता करते हैं यह औषधि केवल अपच को ही दूर नहीं करती अपितु अजीर्ण तथा कमजोरी भूख का ना लगना खाने में रुचि ना लेना इत्यादि को भी दूर करता है। लिव-52 प्रोटेक् 100 मिली लीटर प्रतिदिन कम से कम 10 दिन तक पशु को दें, जिससे कि यकृत द्वारा उचित तरीके से पाचन क्रिया में सहायता मिले।

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