By -Dr Savin Bhongra,
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पशुओं में खुर का बढ़ना
पशुओं में खुर का बढ़ना एक सतत, प्राकृतिक प्रक्रिया है। जो पशु चलायमान होते है, उनके खुर घीसते रहते है। जिससे खुर अपने उचित आकार में बने रहते हैं। परन्तु दिन प्रति दिन घटते चारगाह, असंतुलित पशुपालन, शहरों में छोटे से छोटे स्थान पर बाँध कर पशुपालन करने, पशुओं के खुरों की उचित देखभाल व कटाई-छटाई, रगड़ाई के आभाव में आजकल पशु का खुर अत्यधिक बढ़ रहा है। जिस कारण पशु चलने-फिरने व खड़ा होने में धीरे-धीरे असमर्थ होने लगता है। साथ ही पशु के स्वास्थ्य का तीव्र क्षरण भी प्रारम्भ हो जाता है। फलस्वरूप पशु बीमार, कमजोर दिखने लगता है। जिससे उत्पादन कार्य भी बाधित हो जाता है। यह समस्या लगभग छोटे पशुओं बकरी से लेते हुए गाय-भैंस तक में पाई जाती है। इस समस्या के कारण पशुपालकों को भारी आर्थिक क्षति उठानी पड़ती है।
कारण
खुर का अत्यधिक बढ़ना दो प्रमुख कारणों से होता है
लम्बे समय तक पशु को एक ही स्थान पर बाँध कर पशुपालन करना। जिससे पशु के खुर एक ही स्थान पर बंधे रहने के कारण घिसावाट के आभाव में निरंतर बढ़ते रहते है।
प्राकृतिक कारण: कभी-कभी प्राकृतिक कारणों अथवा अनुवांशिक/वंशागत गुणों के हस्तान्तरण या शारीरिक विकृति इत्यादि के कारण से भी पशुओं के खुर में तीव्र वृद्धि देखने को मिलती है। जिससे पशु के खुर सामान्य की अपेक्षा अधिक बढ़ जाते है।
उपरोक्त दोनों कारणों के अतिरिक्त कभी-कभी गौण कारणों:
1 अत्यधिक उम्र होने के कारण भी खुर बढ़ते है।
2 कैल्सियम का क्षरण जब पशु शरीर से अधिक होता है। इस दशा में भी पशुओं के खुर में वृद्धि देखी जाती है।
3.पशु जब अत्यधिक कमजोर हो जाता है तब भी खुर बढ़ जाता है।
- पशु को जब संतुलित राशन (चारा-दाना) नही प्राप्त होता है। तब खुर का बढ़ना जारी रहता है।
5.वैकटिरीयल बीमारी जो की गंदे बाड़ों में चराई के दौरान पशु के खुरों में लगती है। उसके कारण भी खुर असमान्य हो जाते है।
लक्षण
उपरोक्त सभी कारणों के कारण एक समय ऐसा आता है कि पशु के खुर इतना अत्यधिक बढ़ जाते है की पशु जब चलने की कोशिश करता है तो खुर के अत्यधिक बढ़े होने के कारण बार-बार पशु को ठोकर लगती रहती है जिससे पशु को कष्ट होता है। अत: पशु घुटनों के बल अथवा बढ़े हुए खुर के पैर को मोड़ कर चलने का प्रयास करता है।
पशु के खुर बढ़े हुए दिखते है।
पशु लंगड़ा कर चलता है।
पशु खुर बढ़े पैर का प्रयोग चलने फिरने में नहीं करता है।
पशु चलने-फिरने से परहेज करता है।
पशु चलने पर कष्टमय प्रतीत होता है।
पशु का खुराक (भोजन) कम हो जाता है।
धीरे-धीरे उत्पादन भी कम हो जाता है।
पशु के शारीरिक वृद्धि में उपरोक्त घटावत दर्ज की जाती है।
मादा पशु समय से गर्मी में नहीं आती तथा नर पशु प्रजनन कार्य के प्रति उदासीन हो जाता है।
पशु के खुर में घाव की शिकायत मिलती है।
बढ़े हुए खुर में ज्यादा चोट के कारण रक्त का स्त्राव होता है।
पशु अत्यंत कमजोर, सुस्त दिखता है।
उपचार
पशुओं में खुर बढ़ने की समस्या के उपचार हेतु खुर बढ़े पशु को अन्य पशुओं से अलग कर उसके खुर की कटाई-छटाई व रगड़ाई करा देना चाहिए।
शहरी पशुपालकों को रेगमाल, रेती, चाक़ू आदि से कुशल खुर काटने वाले तथा पशु चिकित्सक की उपस्थिति में पशु के खुर की घिसाई, रगड़ाई कटाई-छटाई कराते रहना चाहिए। साथ ही इस बात का भी ध्यान रखे की खुर एक सीमा से अधिक न कटे वरन ज्यादा कटने से भी पशु को कष्ट हो सकता है तथा समय-समय पर पशु चिकित्सक से पशुओं का अवलोकन कराते रहे तथा संस्तुत उपचार को अपनाएं।
बचाव व रोकथाम
इस समस्या से बचाव व रोकथाम हेतु कभी भी पशुपालन के अंतर्गत पशुओं को लम्बे समय तक एक ही स्थान पर बाँध कर खिलाई-पिलाई से बचना चाहिए।
यथा सम्भव पशुओं को समय-समय पर चारागाह में भेजते रहना चाहिए जिससे प्राकृतिक रूप से खुर घीस कर अपने उचित आकार में बने रहें।
शहरों में अथवा ग्रामीण अंचल में पशुपालन को अपनाने से पूर्व पशु चिकित्सकों एवं पशु वैज्ञानिकों से सलाह-परामर्श ले लेना चाहिए तथा उनके द्वारा सुझाए गए उपयुक्त प्रजाति का चयन पशुपालन में करना चाहिए। जैसे – बकरी की बरबरी नस्ल शहरों में बाँध कर पालने हेतु सर्वोत्तम है।
खुर बढ़े माता अथवा पिता का चयन पशुपालन व्यवसाय में नहीं करना चाहिए।
पशु के खुरों का भी अवलोकन करते रहना चाहिए तथा बढ़ा हुआ प्रतीत होने पर तत्काल पशु चिकित्सक से सम्पर्क करें।
पशुओं को संतुलित आहार दिया जाए।
पशु बाड़े की नियमित साफ़-सफाई कराते रहना चाहिए।
पशुओं के खुर को कीटाणुनाशक से उपचारित कराते रहना चाहिए।
साफ़-सुथरे, स्वस्थ बाड़ों में चराई हेतु पशुओं को भेजे।
पशुपालक को पशुओं के चलने-फिरने, व्यायाम, चराई हेतु पर्याप्त खुले स्थान की व्यवस्था करनी चाहिए।
कम स्थान में अधिक संख्या में पशुपालन से बचाना चाहिए। श्रेष्ठ होगा की विभिन्न पशुओं हेतु सुझाएँ संस्तुत आदर्श माप के अनुसार प्रत्येक पशु को स्थान उपलब्ध कराना चाहिए।
शहरी पशुओं को समय-समय पर ग्रामीण अंचल में ग्रीष्मकालीन चराई हेतु भेजते रहना चाहिए।
पशुओं को कच्चे-पक्के दोनों स्थानों पर चलाते-फिराते रहना चाहिए।
बढ़े हुए खुरों से निजात पाने के लिए नियमित रूप से कतरन करते रहना चाहिए।