पशु का आवास प्रबंधन
Author- Dr. Kishan Tosawada (Asst. Professor at MGVC)
Department of LPM
सार -पशु का आवास जितना अधिक स्वच्छ तथा आरामदायक रहता है,पशु का स्वस्थ उतना ही अच्छा रहता है जिससे वह अपनी क्षमता के अनुसार उतना ही अधिक दुग्ध उत्पादन करने में सक्षम हो सकता है।अत: दुधारू पशु के लिए साफ सुथरी तथा हवादार पशुशाला का निर्माण अतिआवश्यक है क्योंकि इसके आभाव से पशु दुर्बल हो जाता है और उसे अनेक प्रकार के रोग लग जाते है ।
एक आदर्श गौशाला बनाने के लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिये:
(1) पशु का आवास का स्थान का चयन: स्थान समतल तथा बाकि जगह से कुछ ऊँचा होना आवश्यक है ताकि बारिस का पानी,मल-मूत्र तथा नालियों का पानी इत्यादि आसानी से बाहर निकल सके।स्थान पर सूर्य के प्रकाश का होना भी आवश्यक है।धुप कम से कम तीन तरफ से लगनी चाहिए।गौशाला की लम्बाई उत्तर-दक्षिण दिशा में होने से पूर्व व पश्चिम से सूर्य की रोशनी खिड़कियों व दरवाजों के द्वारा गौशाला में प्रवेश करेगी।सर्दियों में ठंडी व बर्फीली हवाओं से बचाव का ध्यान रखना भी जरूरी है।
(2) स्थान की पहुंच: स्थान पशुपालक के घर के नज़दीक होना चाहिए ताकि वह किसी भी समय आवश्यकता पड़ने पर शीघ्र पहुंच सके।व्यापारिक माप पर कार्य करने के लिए सड़क के नज़दीक होना आवश्यक है ताकि दूध ले जाने, दाना, चारा व अन्य सामान लाने-लेजाने में आसानी हो तथा खर्चा भी कम हो।
(3) पशु का आवास का बिजली,पानी की सुविधा: स्थान पर बिजली व पानी की उपलब्धता का भी ध्यान रखना आवश्यक है क्योंकि डेयरी के कार्य के लिए पानी की पर्याप्त मात्रा में जरूर होती है, इसी प्रकार वर्तमान समय में बिजली का होना भी आवश्यक है क्योंकि रात को रोशनी के लिए तथा गर्मियों में पंखों के लिए इसकी जरूरत होती है।
(4) चारे,श्रम की सुविधा: स्थान का चयन करते समय चारे की उपलब्धता का ध्यान रखना बहुत आवश्यक है क्योंकि चारे के बिना दुधारू पशुओं का पालना एक असम्भव कार्य है।हरे चारे के उत्पादन के लिए पर्याप्त मात्रा में सिंचित कृषि योग्य भूमि का होना भी आवश्यक है।चारे की उपलब्धता के अनुरूप ही दुधारू पशुओं की संख्या रखी जानी चाहिए।पशुओं के कार्य के लिए श्रमिक की उपलब्धता भी उस स्थान पर होनी चाहिए क्योंकि बिना श्रमिक के पड़े पैमाने पर पशुपालन का कार्य चलना अत्यन्त कठिन होता है।
(5) पशु का आवास का स्थान का वातावरण: पशुशाला एक साफ-सुथरे वातावरण में बनानी चाहिए।प्रदूषित वातावरण पशुओं के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव डालता है जिससे दुग्ध उत्पादन में कमी हो सकती है|
पशु का आवास बनाने की विधि:
दुधारू पशु का आवास सामान्यत: दो प्रकार का होता है:(क) बंद आवास तथा (ख) खुला आवास
(क) बंद आवास: इस विधि में पशु को बांध कर रखा जाता है तथा उसे उसी स्थजाता है।पशु का दूध भी उसी स्थान पर निकाला जाता है।इसमें पशु को यदि चरागाह की सुविधा हो तो केवल चराने के लिए ही कुछ समय के लिए खोला जाता है अन्यथा वह एक ही स्थान पर बना रहता है।
इस प्रकार के आवास में कम स्थान की आवश्यकता है, पशुओं को अलग-अलग खिलाना, पिलाना संभव है, पशु की बिमारी का आसानी से पता लग जाता है तथा पशु आपस में लदी नहीं कर सकते।उपरोक्त लाभों के साथ-साथ इस विधि में कुछ कमियां भी है जैसेकी आवास निर्माण अधिक खर्चीला होता है, स्थान बढाये बगैर पशुओं की संख्या बढाना मुश्किल होता है, पशुओं को पूरी आज़ादी नहीं मिल पाती है तथा मद में आए पशु का पता लगाना थोडा मुश्किल होता है।
(ख) खुला आवास: इस विधि में पशुओं को एक घिरी हुई चारदीवारों के अन्दर खुला छोड़ दिया जाता है तथा उनके खाने व पीने की व्यवथा उसी में की जाती है।इसआवास को बनाने का खर्च अपेक्षकृत कम होता है।इसमें श्रम की बचत होती है, पशुओं को ज्यादा आराम मिलता है तथा मद में आए पशु का पता आसानी से लगाया जा सकता है।इस विधि की प्रमुख कमियों में इसमें अधिक स्थान की आवश्यकता पडती है, पशुओं को अलग-अलग खिलाना संभव नहीं है तथा मद में आए पशु दूसरे पशुओं को तंग करते है।
(ग) अर्ध खुला आवास: अर्ध खुला आवास बंद तथा पूर्ण आवासों की कमियों को दूर करता है।अत: आवास की यह विधि पशुपालकों के लिए अधिक उपयोगी है।इसमें पशु को खिलाने, दूध निकालने अथवा इलाज करते समय बाँधा जाता है, बाकी समय में उसे खुला रखा जाता है।इस आवास में हर पशु को 12-14 वर्ग मी. जगह की आवश्यकता होती है जिसमें से 4.25 व.मी.(3.5 X 1.2 मी.) ढका हुआ तथा 8.6 व.मी.खुला हुआ रखा जाता है।व्यस्क पशु के लिए चारे की खुरली (नांद) 75 सेमी. छड़ी तथा 40 सेमी.गहरी रखी जाती है जिसकी अगली तथा पिछली दीवारें क्रमश:75 व 130 सेमी.होती है।खड़े होने से गटर( नाली) की तरफ 2.5-4.0 सेमी.होना चाहिए।खड़े होने का फर्श सीमेंट अथवा ईंटों का बनाना चाहिए।गटर 30-40सेमी. चौड़ा तथा 5-7 सेमी.गहरा तथा इसके किनारे गोल रखने चाहिए । इसमें हर 1.2 सेमी. के लिए 2.5सेमी. ढलान रखना चाहिए।बाहरी दीवारें1.5 मी. ऊँची रखी जानी चाहिए।इस विधि में बछड़ों – बछड़ियों तथा ब्याने वाले पशु के लिए अलग से ढके हुए स्थान में रखने की व्यवस्था की जाती है।प्रबंधक के बैठने तथा दाने चारे को रखने के लिए भी ढके हुए भाग में स्थान रखा जाता है।
गर्मियों के लिए शेड के चारो तरफ छायादार पेड़ लगाने चाहिए तथा सर्दियों तथा बरसात में पशुओं को ढके हुए भाग में रखना चाहिए।सर्दियों में ठंडी हवा से बचने के लिए बोरे अथवा पोलीथीन के पर्दे लगाए जा सकते हैं।