पशु चिकित्सालयों में श्वानों में भय और चिंता नियंत्रित करने के उपाय

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पशु चिकित्सालयों में श्वानों में भय और चिंता नियंत्रित करने के उपाय

डॉ. निशा मीना, डॉ. चित्रा चैहान, डॉ. पार्थ देसाई एवं डॉ. सरिता देवी

पशु औषधि विभाग, पशुचिकित्सा एवं पशुपालन महाविघालय

कामधेनु विश्वविघालय,

 सरदारकृषिनगर, गुजरात

भय और चिंता एक दूसरे के पूरक हैं। यह दोनों अवस्थाए भावनात्मक रूप से भिन्न है परन्तु दोनों श्वानो के व्यवहार और कल्याण पर गहरा प्रभाव डालती है। भय एक भावनात्मक प्रक्रिया है जो तब उत्पन्न होती है जब कोई श्वान किसी खतरे को महसूस करता है, जिसके परिणामस्वरूप वह उस संभावित खतरे से बचने का प्रयास करता है। दूसरी और चिंता भविष्य के खतरे का पूर्वानुमान है, चाहे वह वास्तविक हो, काल्पनिक हो या अज्ञात हो, और यह बेचैनी और घबराहट से युक्त होती है। श्वानों की छोटी नस्ले आमतौर पर बड़ी नस्लों के श्वानों की तुलना मैं अधिक भयभीत रहती है। भय की प्रवृति शुद्ध नस्लों की तुलना मे मिश्रित नस्लों मैं कम परिलक्षित होती है। इसके अतिरिक्त, नर श्वान मादा श्वानों की तुलना मे कम भय दिखाते है लेकिन अधिक आक्रामकता प्रकट करते है। भय की प्रतिक्रिया लगभग तीन से बारह सप्ताह की उम्र मे विकसित होती है। मानव जाति के साथ रहने वाले सहचर श्वानों मे समाजीकरण बहुत महत्वपूर्ण होता है। जिससे यह निश्चित होता है कि वे जीवन के विभिन्न अनुभवो पर कैसे प्रतिक्रिया देंगे। भय चार से आठ साल की उम्र के बीच चरम पर होता है। श्वानों मे] मनुष्यो की तरह भय और चिंता मस्तिष्क परिपथो के बीच जटिल अंतःक्रियाओ मे शामिल होती है, हालांकि इन पर कम अध्ययन हुआ है। श्वान मे, मस्तिष्क के एमिग्डाला और लिम्बिक प्रणाली के हिप्पोकैंपस भाग उसकी स्मृति और भावात्मक प्रतिक्रिया मे मुख्य भूमिका निभाते है, जिसमे उत्प्रेरण, उत्तेजना और भय शामिल है।

नॉन इनवेसिव मस्तिष्क चित्रण (इमेजिंग) तकनीक जैसे की पेट (PET) या स्पैक्ट (SPECT) क्षेत्रीय मस्तिष्क रक्त प्रवाह का मूल्यांकन करती है, जो क्षेत्रीय तंत्रिका गतिविधि को दर्शाती है। इन आधुनिक तकनीकों का उपयोग भय और चिंता के अध्ययन में भी किया जाता हैं। घरेलू श्वानों मे भय से संबन्धित कुछ व्यावहारिक प्रतिरूप आनुवंशिकी (जेनेटिक्स), फिजियोलॉजी, इंद्रिय अनुभूति, पर्यावरणीय अनावरण (गृह तथा नैदानिक) और अनुभव से उत्पन्न हो सकते है। श्वानों में कुछ व्यवहार संबंधित स्थितियां जैसे कि दुबक के बैठना, पुंछ का मुड़ना, कान पीछे करना, तनावपूर्ण बंद मुह दर्शाना, संधायी पीठ, व्हेल की तरह आंखें हो जाना तथा जीभ का फड़कना श्वानों मे भय और चिंता के संकेत होते है।

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संशोधन अध्ययनों में पाया गया है कि, अधिकांश श्वानों को जब पशु चिकिस्तक के पास ले जाया जाता है,  तो वे भय के संकेत दिखाते है, जिससे उनके निदान एवम् उपचार के लिये उनका नियंत्रण उनके मालिकों के लिए कठिन हो जाता है । पशु चिकित्सक के पास जाने से उत्पन्न तनाव से श्वानों का शारीरिक मापदण्ड विकृत हो सकता है, जिससे उनके शारीरिक परीक्षण मे बाधा आ सकती है और पशुचिकित्सको के लिए भी जोखिम पैदा कर सकता है। यह अनुमान लगाया गया है कि पशु अस्पताल मे 10 प्रतिशत से 78.5 प्रतिशत श्वान तनावग्रस्त या भयभीत हो जाते है। मालिकों द्वारा अपने श्वानों को पशु अस्पताल न लाने का प्रमुख कारण यह होता है कि वे अपने  श्वानों को खुद से तनाव के अधीन करने से अनिच्छुक होते हैं। भय और चिंता विकारो से पीड़ित श्वानों का जीवनकाल कम हो जाता है और बीमारी कि आवृत्ति और गंभीरता बढ़ जाती हैं। श्वान की विशिष्टता, उसके मालिक की विशेषताएँ और पशु चिकित्सा की प्रक्रियाये सामूहिक रूप से मिलकर श्वानों में भय और चिंता के विकास और अभिव्यक्ति को आकार देते है। पशुचिकित्सालय के दौरे के दौरान तीव्र गंध वाले डिसिंफेक्टेंट, जीवाणुनाशक और अलार्म फेरोमोंस जैसी गंध, दूसरे श्वानो के भौकने कि आवाज और बाल काटने वाली कैंची कि आवाजे श्वान के आराम और भय के स्तर को प्रभावित कर सकती है। ठंडी, फिसलन वाली सतहों वाले अस्पताल भी स्पर्शनीय आराम को कम कर सकते है और अस्थिरता के कारण भय उत्पन्न कर सकते है।

भय और चिंता का प्रबंधन श्वान को अस्पताल दौरे के लिए तैयार करने करने से शुरू होता है। पंजीकरण काउंटर (श्वानों का पंजीकरण और प्रवेश प्रक्रिया संपन्न होती है), प्रतीक्षालय (श्वान और उनके मालिकों के लिए बैठने का स्थान)]  और नैदानिक जांच क्षेत्र (पशु चिकित्सक द्वारा श्वान की स्वास्थ्य समस्याओं का सटीक और प्रभावी ढंग से निदान और उपचार किया जाता है) बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान हैं। पंजीकरण काउंटर पर स्टाफ को श्वान का सकारात्मक और योग्य तरीके से अभिवादन करना चाहिए। यह किसी भी घबराए हुए श्वान को शांति तथा कम्फर्ट की अनुभूति कराने का पहला और मुख्य दृष्टिकोण होना चाहिए। प्रतीक्षालय में आरामदायक,  साफ-सुथरे सोफे,  कुर्सियाँ और पानी के बर्तन होने चाहि,  ताकि श्वान और उनके मालिक आराम से प्रतीक्षा कर सकें। पशुचिकित्सक को चाहिए कि वे जांच प्रक्रिया को यथासंभव आरामदायक बनाएं। कुत्ते की जांच प्राकृतिक मुद्रा/ पोस्चर में या आरामदायक स्थिति में (जैसे की मालिक गोद में) करने का प्रयास करना चाहिए। जांच की मेज पर नॉन-स्लिप मैट, कोमल दुलार (पेटिंग), मालिक की उपस्थिति, अन्य जानवरों को देखने से प्रतिबंध, और कम शोर वाले वातावरण जैसे महत्वपूर्ण पहलू श्वानों में भय और चिंता को कम करने में सहायक होते हैं। अन्य शांत करने वाले पूरक दृष्टिकोण जैसे फेरोमोन थैरेपी, एरोमा थैरेपी का भी उपयोग किया जा सकता हैं। यदि सभी प्रयासों के बावजूद भय और चिंता कि वजह से श्वान नियंत्रण में नहीं आता  और प्रभावी ढंग से परीक्षण या ईलाज नहीं किया जा सके तो दवा कि आवश्यकता होती है और अपॉइंटमेंट को पुनर्निर्धारित करना बेहतर होता है।

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चिल प्रोटोकॉल 2014 मे टफ्ट्स विश्वविद्यालय के क्यूमिंग्स स्कूल ऑफ वेटरनरी मेडिसिन मे आक्रामी और चिंतित कुत्तों में तनाव को कम करने और प्रशांतता शांति को बढ़ावा देने के लिए विकसित किया गया था। चिल प्रोटोकॉल को नियमित रूप से  चिकित्सीय  परीक्षण निदान एवम् उपचार से पहले श्वानों के लिए उपयोग किया जाता है] जो पशुकल्याण और प्रशिक्षण मे सहायता करता है। चिल प्रोटोकॉल गाबापेंटिन, मेलाटोनिन, और ओरल ट्रांसम्यूकोसल (ओटीएम) एसीप्रोमजीन) दवाओं का संयोजन है जो चिंता और आक्रामकता को कम करती हैं। गाबापेंटिन 20 – 25 मि. ग्रा., प्रतिकिलो शारीरिक भार की दर से चिकित्सीय जांच से एक दिन पहले शाम को खिलाया जाता है। चिकित्सीय जांच से 1 से 2 घंटे पहले फिर गाबापेंटिन 20 – 25 मि. ग्रा., प्रतिकिलो शारीरिक भार की दर और साथ ही मेलाटोनिन (छोटे श्वान 0.5 – 1.0 मि.ग्रा., मध्यम श्वान 1.0 – 3.0 मि.ग्रा.,  बड़े श्वान 5 मि.ग्रा.) खिलाया जाता है। चिकित्सीय जांच के लिए आगमन से 30 मिनट पहले एसीप्रोमजीन 0.025 – 0.05 मि. ग्रा., प्रतिकिलो शारीरिक भार की दर से ओरल ट्रांसम्यूकोसल (ओटीएम) मार्ग द्वारा दिया जाता है। ये  दवाऐ पशुचिकित्सक की सलाह एवम् मार्गदर्शन में ही देनी चाहिए।

गाबापेंटिन डोज की मात्रा/ दर के हिसाब से चिंता कम करने शांति और दर्द निवारण को बढ़ावा देते हैं। हालांकि चिंता कम करने के लिए गबापेंटिन की प्रभावशीलता पर प्रकाशित डेटा की कमी है, लेकिन नैदानिक प्रमाण इसके ऐसे स्थितियों को नियंत्रित करने की क्षमता का संकेत देते हैं। मेलाटोनिन मनुष्यों में स्वाभाविक रूप से उत्पन्न होने वाला हार्मोन है जो कुत्तों में भय से अभिप्रेरित आक्रामकता और चिंता को कम करने में सहायक हो सकता है। एसीप्रोमजीन फेनोथियाजिन व्युत्पन्न ट्रैंक्विलाइजर है जो गबापेंटिन और मेलाटोनिन के साथ मिलकर सिडेशन और शांत करने के प्रभावों को समन्वयित रूप से बढ़ावा देता है। यह केंद्रीय तंत्रिका तंत्र में डोपामीन रिसेप्टर्स पर एक एगोनिस्ट के रूप में कार्य करके शांति प्रभाव उत्पन्न करता है।

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पशु चिकित्सालयों/अस्पताल मे रोगी के तनाव को कम करना महत्वपूर्ण है, जो अक्सर नजरंदाज कर दिया जाता है। अस्पतालो मे पूरी तरह से तनाव-मुक्त वातावरण संभव नहीं हो सकता, लेकिन कम तनाव या भय मुक्त वातावरण बनाना और सौम्यजनक तरीके से पशु को पकड़ना, कर्मचारियो एवम् पशुओं दोनों के लिए फायदेमंद साबित होता है।

 

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