दुधारू पशुओं के प्रोटीन का प्रबंधन करने के कारगर उपाय
अब गर्मी के मौसम का दूध उत्पादन पर असर नहीं पड़ेगा। वैज्ञानिक शोधों में इस दिशा में उत्साहजनक परिणाम आए हैं। इन दिनों दूध का उत्पादन औसतन 10 प्रतिशत तक कम हो जाता है। पशुओं में पाए जाने वाले खास प्रकार के प्रोटीन इसके मुख्य कारक हैं।
तापमान के 48 डिग्री सेल्सियस के आसपास पहुंचते ही पशु के मार्कर सेल डैमेज होने शुरू हो जाते हैं। इसे बचाने के लिए प्रोटीन अपनी सक्रियता बढ़ा देते हैं। यही प्रोटीन दूध बनाने में कारक होते हैं। लिहाजा इसका असर पशु के दूध पर पड़ता है। पशुओं में 547 प्रकार के प्रोटीन मिले हैं। इनमें 106 प्रोटीन की पहचान हुई है जो गर्मी में पशुओं को संवेदनशील बना देते हैं और दूध की कमी का वजह बनते हैं। इसका सीधा संबंध पशुपालक की आय से है। एक भैंस से प्रतिवर्ष पशुपालक को 50 हजार रुपये तक का नुकसान हो जाता है। इस तरह बचाव संभव
कुछ जरूरी उपाय कर दूध उत्पादन पर नकारात्मक प्रभाव को रोका जा सकता है। इसके लिए पशु की खुराक में बदलाव करने होंगे। एनर्जी ज्यादा मिले इसके लिए प्री फैट देने होंगे। ज्यादा से ज्यादा हरा चारा दिया जाए और यदि यह संभव न हो तो माइक्त्रोन्यूट्रेंट, विटामिन ई, जिंक व कॉपर युक्त मिक्चर बनाकर इस्तेमाल हो। पशुशाला में भी बदलाव करके उसे खुली और हवादार बनानी होगी। पशुओं के लिए पीने का साफ पानी और छत पर घासफूंस रख उसे ठंडा रखना उपयोगी है। तापमान झेलने में सक्षम
साहीवाल व थारपारकर दुधारू पशुओं पर गर्मी के प्रभाव का अध्ययन कर रहे । थारपारकर व साहीवाल नस्लें 46 से 48 डिग्री तापमान में भी स्वयं को ढालने में सक्षम हैं। संकर नस्ल की गाय पर 30 डिग्री से ऊपर तापमान जाते ही गर्मी का असर दिखने लगता है।
लेखक – डॉ. महेंद्र , डॉ. अंजलि अग्रवाल