उन्नत मुर्गीपालन हेतु आदर्ष बिछावन (लीटर) कैसे तैयार करें?

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उन्नत मुर्गीपालन हेतु आदर्ष बिछावन (लीटर) कैसे तैयार करें?
डॉ. देवकिषन गुर्जर, डॉ वाचस्पति नारायण
पषु चिकित्सा एवं पषु विज्ञान महाविद्यालय ,नवानिया ,उदयपुर (राजस्थान)

मुर्गीपालन एक आदर्ष एवं बहुत जल्दी मुनाफा देने वाला व्यवसाय है लेकिन मुर्गीपालन में वातावरण के कारकों जैसे तापमान, नमी एवं ठंडी हवा आदि का उत्पादन स्तर पर षीघ्र प्रभाव पडता है। अतः मुर्गीपालन से जुडे किसानों को छोटी-छोटी बातों का ध्यान में रखना बहुत आवष्यक है। मुर्गीपालन में मुर्गीयों को तीन तरीकों से रखा जा सकता है- पहला बंद मुर्गीषाला में फर्ष पर, दूसरा पिंजरों में और तीसरा घर के बाहर या पिछवाडे खुली जगह में।
लीटर या बिछावन :-
मुर्गियों को मुर्गीषाला में रखने के लिए विभिन्न चीजों का उपयोग करके जो फर्ष या चादर तैयार की जाती है उसे ही लीटर या बिछावन कहते हैं। मुर्गीषाला बिछावन वास्तव में कुछ कार्बनिक पदार्थ जैसे मूंगफली के छिलके, भूसा, सूखी घास, कागज की कतरन, गत्ते के टुकडे, लकडी का बुरादा, पेडों की सूखी पत्तियों के मिलने से बनता है। बिछावन बनने में लगभग दो महीनों का समय लगता है और पूरी तरह बिछावन तैयार होने में 6 माह का समय लगता है। बिछावन पर एक मुर्गी को 4-5 वर्ग फीट क्षेत्र मिलना चाहिए।
अच्छी बिछावन के लाभ :-
 एक अच्छी बिछावन मुर्गियों का सीधे फर्ष के संपर्क में आने से रोकती है। इससे मुर्गियों के बीमार होने की संभावना कम हो जाती है।
 बिछावन मुर्गियों के नरम, बैठने एवं चलने में आरामदायक है एवं ठंड के समय षरीर को गर्मी का अहसास कराती है।
 बिछावन में काम आने वाले पदार्थो के साथ मुर्गी की बीठें मिल जाती है इससे फर्ष सूखा रहता है एव बार-बार सफाई नहीं करनी पडती।
 बिछावन में मुर्गियों की बीठें सम्मिलित होती रहती है जिन्हें कुछ जीवाणु सूक्ष्म क्रिया करके छोटे छोटे कणों में तोडते रहते हैं। इससे बिछावन में फॉस्फोरस, मैग्निषियम, सोडियम एवं कैल्षियम आदि लवणों का समावेष होता रहता है।

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आदर्ष बिछावन के गुण :-
 एक आदर्ष बिछावन 3 से 5 इंच मोटी होनी चाहिए। सर्दियों के मौसम में बिछावन की मोटाई 10-12 इंच तक अच्छी रहती है।
 अच्छी बिछावन सूखी होनी चाहिए। इसमें नमी की मात्रा षुरूआत में 12ः एवं बाद में 30ः तक हो सकती है। नमी की मात्रा 30ः से उपर नहीं होनी चाहिए एवं बिछावन में गीलापन नहीं रहना चाहिए।
 बिछावन में तुरन्त नमी सोखने के गुण होने चाहिए।
मुर्गीषाला में बिछावन कैसे तैयार करें :-
 सामान्यतः मुर्गीपालन कच्चे फर्ष पर भी किया जा सकता है लेकिन बिछावन को बार-बार बदलने एवं उसे जीवाणु मुक्त रखने के लिए पक्का फर्ष उपयुक्त रहता है।
 बिछावन से पहले मुर्गीषाला की दीवारों एवं फर्ष पर बनी दरारों एवं छिद्रों को भर देना चाहिए ताकि उनमें किसी भी प्रकार की नमी न रहे एवं जीवाणु न पनप सकें।
 बिछावन हेतु लकडी का बुरादा, मूंगफली का छिलका, गत्ते या पेपर की कतरन, गेहूँ या चावल का भूसा आदि को उपयोग में ला सकते है।
 आरम्भ में बिछावन की मोटाई 3-5 इंच रखे और उसे एक समान फैलाएं। हर पंद्रह दिन बाद बिछावन की परत को पलटना चाहिए।
 दिन के समय बिछावन को थोडा समतल करते रहना चाहिए ताकि उसमें नमी इकट्ठी न हो सके।
 बिछावन में लकडी का बुरादा एवं खाद स्तर का सुपर फॉस्फेट 4ः1 के अनुपात में मिलाकर 10 वर्ग मीटर के क्षेत्र में 5 कि.ग्रा. बिछा सकते है। इससे बिछावन से निकलने वाली अमोनिया गैस को रोका या कम किया जा सकता है।
बिछावन में उपयोग आने वाले वस्तुओं के गुण :-
 बिछावन में काम आने वाली वस्तुओं में मुर्गियों की बीठों में नमी को सोखने का गुण होना चाहिए।
 बिछावन में तुरन्त सूखने का गुण होना चाहिए।
 बिछावन में कवक, ई.कोलाई, कोक्सिडीया एवं सालमोनेला आदि जीवाणु नहीं पनपने चाहिए।
 बिछावन में किसी प्रकार का विशैला एवं एलर्जिक पदार्थ नहीं हो।
 बिछावन में कोई भी नुकीली, धारदार एवं चुभने वाली वस्तुएं नहीं हो।
 बिछावन में प्रयोग आने वाली वस्तुएं, सस्ती, भार में हल्की एवं बाजार में आसानी से उपलब्ध होने वाली होनी चाहिए।
 बिछावन सर्दियों के मौसम में चूजां एंव मुर्गियों को उचित तापमान या ऊश्मा प्रदान करने वाली होनी चाहिए।
 बिछावन में काम आने वाली वस्तुएं जल्दी से अपघटित (बायोडिग्रेडेबल) होने वाली होनी चाहिए ताकि वातावरण में किसी भी प्रकार का प्रदूशण न फैले।
बिछावन के अनुपयोगी होने के कारण :-
 बिछावन पर अधिक संख्या में मुर्गियों को रखना।
 बरसात का पानी बिछावन पर आ जाना।
 मुर्गीषाला में रखे पानी पीने के बर्तन या नल से टपकता पानी बिछावन पर फैलना।
 मुर्गीषाला का वायु अकूलन नहीं होना।
 मुर्गियों द्वारा बीमारियों की वजह से अधिक एवं पतली बीठें करना।
 बिछावन को समय-समय पर नहीं बदलना या समतल नहीं करना।
 अधिक नमी के कारण बिछावन में फफूंद अथवा हानिकारक जीवाणुओं का पनपना।
 अमोनिया की अधिकता के कारण बिछावन से तीक्ष्ण गंध आना।
बिछावन को कब बदला जाये :-
 बिछावन के ऊपर की परत को सप्ताह में एक बार हल्का हिलाना एवं समतल करते रहना चाहिए।
 बिछावन में गीलापन एवं नमी अधिक होने की अवस्था में उसमें ढेले (डले) बनने लगते हैं, ऐसी अवस्था में बिछावन को बदल देना चाहिए।
 बिछावन को कवक, सूक्ष्म जीवाणु अधिक पनप जाने की स्थिति में बदल देना चाहिए।
 बिछावन की मिट्टी को मुट्ठी में लेकर लड्डू बनायें और यदि मुट्ठी खोलने पर लड्डू नहीं टूटता है तो बिछावन को बदल देना चाहिए।
 वर्श में एक बार पुरानी बिछावन को पूर्ण रूप से हटा कर नयी बिछावन बिछानी चाहिए।

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