दुधारू पशुओं का चुनाव करते समय सावधानियां
डॉ जितेंद्र सिंह , कानपुर देहात
दूध उत्पादन हेतु पशुओं का चुनाव करते समय पशुपालकों को निम्नलिखित बिन्दुओं पर ध्यान देना होगा.
– बाह्य आकृति के आधार पर, वंसावली के आधार पर, संतान उत्पादन के आधार पर
बाह्य आकृति के आधार पर :
हाट या मेले में जहां पशुओं की जानकारी उपलब्ध नहीं होती है, वहाँ पर दुधारू पशुओं का चनाव, उनकी बाह्य आकृति के अनुसार किया जाता है. इसमें कुछ प्रमुख बिन्दुओं पर ध्यान देना चाहिये.
शारीरिक बनावट :
दुधारू गाय की पहचान उसकी त्रिभुजाकार शारीरिक बनावट से की जा सकती है. ऐसी दुधारू गाय का पिछला भाग आकार में बड़ा और भारी, परन्तु अग्रिम भाग अपेक्षाकृत पतला और छोटा होता है. दुधारू गाय की त्वचा पतली, ढीली, चिकनी और मुलायम होती है.
पांव :
पशु के अगले पैर का निचला भाग लगभग खड़ा (सीधा) होता है तथा पिछले पैर बगल से देखने पर हासिये के आकार के होते हैं.
छाती :
दुधारू पशुओं की छाती चौड़ी, पसली अन्दर की ओर होना चाहिये. आँखे चौकनी और चमकीली होनी चाहिए.
अयन एवं थन का आकार :
दुधारू गाय का अयन का अगला हिस्सा पुष्ट और वृहद होना उचित माना जाता है. पिछले भाग से अयन चौड़ी दिखनी चाहिए तथा शरीर से इस तरह जुड़ा हो ताकि उथला जैसा लगे. अयन को स्पर्श करने पर वह मुलायम प्रतीत होता है, जिसकी दुग्ध शिराएं विशेष रूप से विकसित होती हैं. गाय अथवा भैंस के अयन चार थनों में विभाजित रहते हैं. गाय का थन 5-6 से.मी. लम्बा और 20-25 मि.मी. व्यास का हो, वह गाय अच्छी समझी जाती है. समतल भूमि में खड़ी एक दुधारू गाय के थनों और जमीन के बीच 45-50 से.मी. या अधिक से अधिक 48 से.मी. की दूरी आदर्श मानी जाती है. झूलते या लपकते हुए अयन अच्छे नहीं माने जाते हैं, क्योंकि जब गाय व भैंस चरने हेतु छोड़ी जाती हैं तो कांटे या नुकीले पदार्थ से तन को जख्म होने की संभावना रहती है और थनैला रोग की समस्या बढ़ जाती है. अयन में थनों की स्थिति समान दूरी पर होना चाहिए. यदि थनों में सूजन या दर्द हो तो ऐसे गायों का चयन नहीं करना चाहिए.
उम्र के आधार पर :
पशुओं की उम्र उनकी स्थायी कृन्तक जोड़ा दांत तथा सींग पर उभरे घेरों द्वारा ज्ञात की जा सकती है. गाय या बैल की प्रथम स्थायी कृन्तक जोड़ा दाँत लगभग दो वर्ष में दिखने लगता है. जबकि पूरे कृन्तक जोड़ा दाँत 3-1/2 से 4 साल की उम्र में निकल आते हैं.. दाँत के अतिरिक्त पशु की सींग पर उभरे घेरों से भी उसकी उम्र का अनुमान लगाना संभव है. सींग के घेरों की संख्या में दो ओर जोड़ देने पर उम्र का पता लगाया जा सकता है.
वंशावली के आधार पर :
आर्थिक पहलू से गाय एवं भैंसों के गुणों को तीन क्रमों में बांटा गया है.
(1) शारीरिक विकास,
(2) दूध उत्पादन और
(3) प्रजनन.
दुधारू पशुओं की पहचान नस्ल के आधार पर अधिकांशत: की जाती है. प्रत्येक नस्ल के शारीरिक विकास उनकी वंशावली के आधार पर होता है. पशुओं के जनने के बाद दूध का उत्पादन बहुत कुछ अनुवांशिकता पर निर्भर करता है. माता-पिता से गुण बच्चों में जाते हैं, अत: दुधारू पशु के बच्चे भी अधिक दूध देने की क्षमता रखते हैं, बशर्ते उन्हें अच्छा आहार एवं उत्तम व्यवस्थापन प्राप्त हो. सांड को दुग्ध प्रक्षेत्र का आधा हिस्सा माना जाता है, क्योंकि एक सांड से बहुत से बच्चे पैदा हो सकते हैं. अत: सांड को प्रजनन हेतु लाने के समय ठीक से चयन करना बहुत आवश्यक है. जनक और जननी दोनों का ही प्रभाव संतान के लक्षणों पर होता है.
संतान के उत्पादन के आधार पर :
दुधारू पशुओं का चुनाव उनकी संतान के उत्पादन के आधार पर किया जाना अधिक लाभकारी होता है. इन संतान में माता-पिता दोनों के गुण सम्मिलित रहते हैं, अत: जिन पशुओं की संतान की उत्पादन क्षमता अधिक रहती है, उन्हीं के आधार पर चयन किया जा सकता है. दो ब्यातों का अन्तराल करीबन 15 माह होना चाहिए ब्याने के तीन माह पश्चात ही गाय का पुन: गर्भधारण कर लेना अच्छा माना जाता है. पशुओं के आहार एवं वातावरण पर पशुधन की उत्पादकता एवं पशुओं की गुणवत्ता निर्भर करती है. परन्तु अच्छी गुणवत्ता के पशुओं का उत्पादन, उनमें पाये जाने वाले अनुवंशीय गुणों पर आधारित होता है. पशुपालकों को सुझाव दिया जाता है कि दुधारू पशु का चुनाव करते समय उनकी शारीरिक बनावट, नस्ल, उत्पादन क्षमता, उम्र इत्यादि बिन्दुओं पर विशेषरूप से ध्यान दिया जाना चाहिए. इसके अतिरिक्त यह भी देखना चाहिए कि पशु पूर्णरूप से रोगमुक्त हो. जहां तक संभव हो, गर्भवती गाय, भैंसों का क्रय करना उचित रहता है.