दुग्ध उत्पादन हेतु दुधारू पशुओं का चयन तथा खरीददारी कैसे की जाए
सतेन्द्र कुमार यादव1 अरूण कुमार झीरवाल2 एवं अनिल हर्ष1 1पी.एच.डी. स्कॉलर, 2सहायक आचार्य राजस्थान पशु चिकित्सा और पशु विज्ञान विश्वविद्यालय बीकानेर-334001
भारत दुग्ध उत्पादन के क्षेत्र में प्रथम स्थान पर है तथा इसके साथ ही साथ दुग्ध उत्पादन दर भी लगातार बढ रही है। भारतवर्ष में कुल 50 गाय और 17 भैंस की नस्ल पंजीकृत है। इसमें से ज्यादातर गाय और भैंस की नस्ल कम दुग्ध उत्पादन क्षमता वाली है तथा बहुत कम नस्ल ऐसी है जो ज्यादा दुग्ध उत्पादन की क्षमता रखती है। ऐसी नस्ल वाले पशु, जो ज्यादा दुग्ध उत्पादन की क्षमता रखते है उनकी पहचान एवं चयन करना डेयरी व्यवसाय को सफल बनाने तथा ज्यादा फायदा कमाने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। कृषि एवं डेयरी व्यवसाय भारत के अर्थव्यवस्था की रीढ़ है तथा किसानो की आय का मुख्य स्त्रोत है। डेयरी शुरू करने से पहले हमें ये जानना जरुरी है की कौन सी गाय या भैंस की नस्ल ज्यादा दूध देती है तथा उनका सही चुनाव कैसे किया जाए? दुधारू पशु का चयन करते समय यह ध्यान रखना बहुत जरुरी है की पशु एक अच्छे दुधारू नस्ल का हो, जिससे की अधिक से अधिक दुग्ध उत्पादन हो तथा किसान भाई बेहतर आर्थिक लाभ प्राप्त कर सके।
दुधारू पशुओ का चयन करते समय कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों को ध्यान में रखना चाहिए, जैसे-पशु की उम्र शारीरिक बनावट वंशावली संतान उत्पादन इत्यादि।
पशु चयन के आधारः
दुधारू पशु का चयन करना अन्य पशुओ की तुलना में बहुत ही आसान है, बस कुछ बातो को ध्यान में रख कर किसान भाई उत्तम दुधारू पशु का चयन कर सकते है।
- पशु की उम्रः पशु जैसे की गाय एवं भैंस में दुग्ध उत्पादन उनकी उम्र पर निर्भर करता है। सामान्यतः गाय एवं भैंस की जनन क्षमता 10-12 वर्ष की उम्र के बाद समाप्त हो जाती है। गाय में दुग्ध उत्पादन प्रत्येक ब्यात में बढता रहता है तथा तीसरे ब्यात तक चरम उत्पादन (PeakYeald) पर पहुँच जाता है और उसके बाद हर ब्यात मे धीरे धीरे कम होता चला जाता है, इसिलिये दुधारू पशु का चयन करते समय यह ध्यान रखना चाहिए की वह पशु पहले या दुसरे ब्यात में ही हो जिससे की किसान उस पशु से अधिक से अधिक दुग्ध का उत्पादन प्राप्त कर सके। बेहतर आय के लिए दुग्ध उत्पादन हेतु
3-9 वर्ष की आयु सही होती है। - पशु की नस्लः पशु का चयन करने से पहले उसकी नस्ल के बारे में जानना बहुत आवश्यक है कि यह गाय या भैंस दुधारू नस्ल की है या नहीं। क्योकि दुधारू नस्ल की गाय/भैंस में ज्यादा दुग्ध उत्पादन करने की क्षमता होती है जिससे की किसान भाई अधिक मुनाफा प्राप्त कर सकते है। हमारी देशी नस्ल की गायों में उत्पादन लागत कम व दुग्ध उत्पादन अनुकूल होने के कारण किसानों को अधिकतम लाभ प्राप्त होता है। देशी नस्ल की गायों में वातावरण के अनुसार अपने आप को ढालने के कारण बीमारियाँ होने की दर कम हो जाती है तथा अपने इस गुणों को जीवन में अच्छे से प्रदर्शित करती है।
– दुधारू देशी गाय की नस्लेः गिर साहिवाल रेड सिन्धी थारपारकर और राठी।
– दुधारू विदेशी गाय की नस्लेः होलस्टीन फ्राइज़ियन और जर्सी।
– दुधारू भैंस की नस्लेः मुर्रा सुरती जफरावादी मेहसाना आदि।
- पशु का वजनः गाय व भैंस का व्यस्क वजन एक महत्वपूर्ण घटक है। अतः प्रारंभिक अवस्था में पशुओ की वृद्धि दर अच्छी होने से यह पशु के उत्पादन को बढ़ाती है । सामान्यतः पशुओ का वजन उत्पादन हेतु 300-400 किलोग्राम होना चाहिए। इससे अधिक व कम वजन के पशु दुग्ध उत्पादन हेतु अच्छे नही माने जाते।
- 4. पशु की बाह्य शारीरिक संरचनाः जब हमें पशु के बारे में जानकारी उपलब्ध न हो तो उसकी बाह्य आकृति के आधार पर चयन करके खरीदा जा सकता है। एक अच्छे दुधारू पशु की पहचान उसकी त्रिभुजाकार शारीरिक बनावट के आधार पर की जाती है । गाय एवं भैंस के शरीर का अगला भाग पतला तथा पिछला भाग अपेक्षाकृत चौड़ा और भारी होना चाहिए जिससे की उसके गर्भाशय एवं थन का विकास अच्छी प्रकार से हो सके। पशु के थन विकसित तथा घुटना अथवा होक्क संधि (HockJoint) तक लटके होने चाहिए थन के पास पाई जाने वाली दुग्ध नसें (रक्त वाहिकाओं का नेट्वर्क) विकसित होनी चाहिए चारो थनों के बीच स्पष्ट सीमांकन (Clear Demarcation) तथा थन के चारो चूचकों का आकार एक समान होना चाहिए।
मादा पशु को खरीदते समय यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए की पशु ग्याभिन है या उसकी ब्यात हो चुकी है। पशु अगर ग्याभिन है तो और कितने दिन बाद उसकी ब्यात होगी तथा अगर ब्यात हो चुकी है तो खरीददार को अपने सामने गाय/भैंस का दुग्ध दोहन करना चाहिए। दुग्ध दोहन कार्य लगातार दो दिन तक सुबह दोपहर और शाम (तीन बार) को करना चाहिए जिससे यह सुनिश्चित हो सके की पशु में दुग्ध उत्पादन क्षमता ज्यादा है या नहीं। साथ ही साथ यह भी पता चल जाए की पशु प्रतिदिन कुल कितना दुग्ध उत्पादन कर सकता है।
दोहन कार्य पशु खरीदने से पहले करने से निम्न बातों का भी पता चल जाता है। जैसे-
- दुग्ध दोहन करते समय गाय की गतिविधियाँ।
- बिना बछड़े का दुग्ध दोहन संभव है या नहीं।
- पशु के चारो थनों से दुग्ध निकल रहा है या नहीं।
5.पशु की वंशावलीः दुधारू पशुओ के चयन में उनकी वंशावली का बहुत महत्वपूर्ण योगदान है। ज्यादातर दुधारू पशुओ का चयन उनकी नस्ल के आधार पर किया जाता है। पशु की दुग्ध उत्पादन क्षमता एवं शारीरिक विकास उसकी वंशावली पर निर्भर करता है इसीलिए यह कहा जाता है या देखा भी गया है कि दुधारू पशु के बच्चे भी अधिक दुग्ध उत्पादन की क्षमता रखते है अगर उनका सही ढंग से अच्छा प्रबंधन किया जाए।
- 6. पशु में संतान उत्पादनः पशुओ में संतान उत्पादन दर भी दुधारू पशु के चयन में महत्वपूर्ण योगदान रखता है। संतान उत्पादन को आधार मानकर पशु का चुनाव करना बहुत ही उपयोगी सिद्ध होता है। पशु नियमित रूप से ताव में आना चाहिए। लम्बे समय तक ताव में न आने एवं ताव में अनियमितता होने से पशु की दुग्ध उत्पादन क्षमता प्रभावित होती है। एक अच्छी गाय प्रत्येक वर्ष एक संतान पैदा करने की क्षमता रखती है बशर्ते उसको अच्छा प्रवंधन मिले तथा जिन गायो में यह क्षमता है उनका चयन दुधारू पशु के तौर पर अवश्य करना चाहिए जिससे किसान भाई अत्यधिक दूध उत्पादन एवं बछड़े प्राप्त कर सके।
निष्कर्षः त्रिभुजाकार शारीरिक बनावट वाले पशु की वृद्धि दर अच्छी होने के कारण शारीरिक विकास (फिजियोलॉजिकल डेवलपमेंट) अच्छा होता है जिससे पशु दुग्ध उत्पादन के गुणों में उत्कृष्टता प्रदर्शित करता है। थन के पास पाई जाने वाली रक्तवाहिकाओं का नेट्वर्क (थन मिल्क वेन) स्पष्ट होने के कारण रक्त प्रवाह की दर ज्यादा होती है जिससे की पशु के दुग्ध उत्पादन गुणों में वृद्धि दिखाई देती है। पशु का सही मिज़ाज (टेम्परामेंट) भी थन से पूर्ण दूध निकलने हेतु जरूरी होता है।