लेखक- डॉ संजय कुमार मिश्र,
पशु चिकित्सा अधिकारी ,चौमुंहा ,मथुरा
गलघोटू रोग गाय भैंस ऊंट भेड़ बकरी तथा सूअरों में पाई जाने वाली तीव्र सेप्टीसीमिक बीमारी है। इस रोग के होने की संभावना अत्यधिक थकान, तनाव तथा लंबी दूरी की यात्रा के बाद बढ़ जाती है। इस बीमारी में मुख्यत:अचानक तेज बुखार, अवसाद, भूख में कमी, निमोनिया के लक्षण जैसे सांस लेने में कष्ट व लसिका ग्रंथियों में सूजन आदि लक्षण पाए जाते हैं। यह बीमारी पाश्चुरेला मल्टोसिडा टाइप 1 नामक जीवाणु द्वारा होता है। गाय तथा भैंस इस रोग के लिए अधिक संवेदनशील हैं। यह बीमारी किसी भी आयु के पशु को हो सकती है लेकिन 6 महीने से 2 साल तक की आयु वाले पशुओं के रोग ग्रस्त होने की संभावनाएं अपेक्षाकृत अधिक होती हैं। कुत्ते इस बीमारी के लिए प्रतिरोधी होते हैं।
संक्रमण का तरीका :
मुख्यत: यह रोग अन्य नली द्वारा होता है जब एक स्वस्थ पशु रोग ग्रस्त पशु के लार, मल मूत्र आदि से दूषित घास या भूसा को खाता है।
लक्षण:
१: तीव्र रक्त पूतित अवस्था-
अचानक तापक्रम 104 से 108 डिग्री फॉरेनहाइट तक बढ़ जाना, खाने पीने में अरुचि, सुस्त हो जाना। पहले कब्ज फिर जोर लगाकर दस्त एेंठन,रंभाना ,दांत पीसना, दस्त में रक्त व श्लेष्मा का होना आदि। इसमें पशु की मृत्यु 6 से 8 घंटे में हो जाती है।
२: सोथ अवस्था:
पशु को तेज बुखार कंठ और निचले जबड़े के बीच सूजन एवं कष्टप्रद स्वास प्रस्वास और सभी श्लेष्मक झिल्लियों का रक्त वर्ण हो जाना आदि इस अवस्था के प्रमुख लक्षण हैं। इसमें पशु की मृत्यु 12 से 36 घंटे में हो जाती है।
३: अंश अवस्था:
इसमें न्यूमोनिया जैसे लक्षण प्रकट होते हैं। स्वास गहरी व जल्दी जल्दी आने लगती है। पशु थोड़ा बहुत धांसता है और उसकी नाक से सफेद या लाल रंग का बबूलेदार स्राव निकलता है। पशु को बुखार रहता है इसमें 1 से 7 दिन में पशु की मृत्यु हो जाती है।
उपचार:
अपने नजदीकी पशु चिकित्सक से संपर्क करें। और पशु चिकित्सक की सलाह से सल्फामैथाजीन
अथवा ऑक्सीटेटरासाइक्लिन अथवा सेफ्टीऑफर सोडियम कम से कम 3 से 5 दिन तक देना चाहिए। इसके साथ डेक्सामेथासोन या वीटालॉग भी देना चाहिए। इसके अतिरिक्त अन्य औषधियां लक्षणों के अनुसार देनी चाहिए।
बचाव या रोकथाम: बीमार पशुओं को स्वस्थ पशुओं से अलग रखें। स्वस्थ पशु को साफ-सुथरे हवादार एवं रोशनी युक्त स्थान में रखें। रोग की आशंका होने पर तुरंत ही समीप के पशु चिकित्सा अधिकारी को सूचना देनी चाहिए। रोग से मरे हुए पशु का शव 6 से 8 फीट गहरा गड्ढा खोदकर उसके ऊपर चूना पाउडर डालकर मिट्टी के अंदर दबा देना चाहिए। पशु गृह की दीवारों एवं फर्श को 3% कास्टिक सोडा या 5% कार्बोलिक अम्ल के घोल से धोना चाहिए। गलघोटू रोग का टीका मानसून ऋतु आने से पूर्व ही लगवा लेना चाहिए। सभी नए खरीदे गए पशुओं को निजी पशुओं में मिलाने से पूर्व 15 दिन तक अलग रखकर (आइसोलेशन या क्वॉरेंटाइन) इस बात की परीक्षा करनी चाहिए कि पशु किसी संक्रामक रोग से पीड़ित है या नहीं। यदि पशु स्वस्थ पाए जाएं तो ही उसे स्वस्थ झुंड में शामिल करना चाहिए। बाजारों मेलो व प्रदर्शनियों मे रोगी पशुओं को स्वस्थ पशुओं से मिलने से रोकना चाहिए। गला घोटू की रोकथाम के लिए इन मुख्य उपायों को अपनाकर पशुपालक अपने स्वस्थ पशुओं को बचा सकते हैं।
बचाव या रोकथाम:
बीमार पशुओं को स्वस्थ पशुओं से अलग रखें। स्वस्थ पशु को साफ-सुथरे हवादार एवं रोशनी युक्त स्थान में रखें। रोग की आशंका होने पर तुरंत ही समीप के पशु चिकित्सा अधिकारी को सूचना देनी चाहिए। रोग से मरे हुए पशु का शव 6 से 8 फीट गहरा गड्ढा खोदकर उसके ऊपर चूना पाउडर डालकर मिट्टी के अंदर दबा देना चाहिए। पशु गृह की दीवारों एवं फर्श को 3% कास्टिक सोडा या 5% कार्बोलिक अम्ल के घोल से धोना चाहिए। गलघोटू रोग का टीका मानसून ऋतु आने से पूर्व ही लगवा लेना चाहिए। सभी नए खरीदे गए पशुओं को निजी पशुओं में मिलाने से पूर्व 15 दिन तक अलग रखकर (आइसोलेशन या क्वॉरेंटाइन) इस बात की परीक्षा करनी चाहिए कि पशु किसी संक्रामक रोग से पीड़ित है या नहीं। यदि पशु स्वस्थ पाए जाएं तो ही उसे स्वस्थ झुंड में शामिल करना चाहिए। बाजारों मेलो व प्रदर्शनियों मे रोगी पशुओं को स्वस्थ पशुओं से मिलने से रोकना चाहिए। गला घोटू की रोकथाम के लिए इन मुख्य उपायों को अपनाकर पशुपालक अपने स्वस्थ पशुओं को बचा सकते हैं।