मानव तथा हाथी के बीच संघर्ष  : कारण तथा रोकथाम के उपाय

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HUMAN-ELEPHANT CONFLICT IN INDIA : CAUSES & THEIR MITIGATION MEASURES

 मानव तथा हाथी के बीच संघर्ष  : कारण तथा रोकथाम के उपाय

HUMAN-ELEPHANT CONFLICT IN INDIA : CAUSES & THEIR MITIGATION MEASURES

 वन्यजीवों के संरक्षण पर सरकारों के बढ़ते ध्यान के बीच, मानव- हाथी संघर्ष की घटनाओं के परिणामस्वरूप वर्षो से मनुष्यों और हाथी दोनों की जान चली गई है।

पर्यावरण और वन मंत्रालय से मिली जानकारी के अनुसार, 2018-19 और 2020-21 के बीच बड़ी संख्या में हाथियों की मौत विभिन्न कारणों से हुई जिनमें बिजली का करंट लगना और अन्य शामिल हैं। आंकड़ों में कहा गया है कि देश भर में बिजली के झटके से कुल 222 हाथियों की मौत हो गई, ट्रेन की टक्कर में 45, शिकारियों द्वारा 29 और इसी अवधि के दौरान जहर से 11 की मौत हो गई।

देशभर में 14 साल में 1,375 हाथियों की हुई असमय मौत, करंट से 910 ने तोड़ा दम,

दूसरी ओर, बड़ी संख्या में मनुष्य भी संघर्ष का शिकार हुए, जिससे उनकी मृत्यु हुई। हाथियों ने तीन वर्षो में 1,579 मनुष्यों को मार डाला, जिनमें 2019-20 में 585, 2020-21 में 461 और 2021-22 में 533 लोगों की मौत शामिल है। जहां तक राज्यों का सवाल है, ओडिशा में सबसे ज्यादा 322 मौतें दर्ज की गईं, इसके बाद झारखंड में 291, पश्चिम बंगाल में 240, असम में 229, छत्तीसगढ़ में 183 और तमिलनाडु में 152 मौतें हुईं।

झारखंड , केरल तथा छत्तीसगढ़ में हाथियों के मौत ने एक बार पुनः हाथियों तथा मानव के बीच बढ़ते संघर्ष को अखबारों तथा सोशल मीडिया की सुर्खियाँ बना दिया है। विगत 21 नवंबर 2023 को झारखंड के पूर्वी सिंहभूम स्थित मुसाबनी वन क्षेत्र के बेनाशोल उपरबांधा पोटास जंगल में 33 हजार वोल्ट की चपेट में आने से 5 हाथियों की मौत हो गई। हिंदुस्तान कॉपर लिमिटेड के माइंस के लिए हाईटेंशन तार गया था, जिसकी चपेट में आने से हादसा हुई।

वर्तमान में भारत में हाथियों की संख्या 27312 है। (2017 के रिपोर्ट के अनुसार ) तथा प्रति वर्ष 13 अगस्त को हाथी दिवस मनाया जाता है।

भारत में पाए जाने वाले हाथी को एशियाई हाथी कहा  जाता है। एशियाई हाथी अब पहले के मुक़ाबले सीमित क्षेत्र में ही पाए जाते हैं। पहले यह क्षेत्र पश्चिम एशिया के टिग्रिस-यूफ़्रेटस बेसिन से पूर्व की ओर उत्तरी चीन तक फैला हुआ था। इसमें वर्तमान इराक़ और पड़ोसी देश, दक्षिण ईरानपाकिस्तानहिमालय के दक्षिण में समूचा भारतीय उपमहाद्वीप, एशिया महाद्वीप का दक्षिण-पूर्वी हिस्सा, चीन का एक बड़ा हिस्सा और श्रीलंका , सुमात्रा तथा संभवतः जावा के क्षेत्र शामिल हैं। आमतौर पर हाथी स्लेटी भूरे रंग का होता है। कुछ हाथी सफेद होते हैं। इन्हें ‘एल्बिनो’ कहते हैं। म्याँमार आदि देशों में ऐसे हाथी पवित्र माने जाते हैं और इनसे कोई काम नहीं लिया जाता।

जीवाश्मों से पता चलता है कि किसी समय बोर्नियों में भी हाथी थे, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि वे वहाँ के मूल निवासी थे या 1750 के दशक में वहाँ लाकर छोड़े गए बंदी हाथियों के वंशज हैं। अभी मुख्य रूप से हाथी सबाह (मलेशिया) और कालिमंतन (इंडोनेशिया) के एक छोटे क्षेत्र तक सीमित हैं। हाथी पश्चिम एशिया, भारतीय महाद्वीप के अधिकांश हिस्से, दक्षिण-पूर्व एशिया के काफ़ी हिस्से और लगभग समूचे चीन (युन्नान प्रांत के दक्षिणी क्षेत्रों को छोड़कर) से विलुप्त हो चुके हैं। इसके क्षेत्र के पश्चिमी हिस्सों की शुष्कता, पालतू बनाए जाने के लिए बड़े पैमाने पर बंदी बनाने (जो लगभग 4,000 साल पाहले सिंधु घाटी में शुरू हुआ था), मानव आबादी के लगातार बढ़ने से इनके पर्यावास में कमी और इनका शिकार, इनके क्षेत्र व संख्या में कमी के प्रमुख कारण हैं।

भारतीय हाथी

भारतीय हाथियों के अफ़्रीकी हाथियों के मुक़ाबले कान छोटे होते हैं, और माथा चौड़ा होता है। मादा के हाथीदाँत नहीं होते हैं। नर मादा से ज़्यादा बड़े होते हैं। सूँड अफ़्रीकी हाथी से ज़्यादा बड़ी होती है। पंजे बड़े व चौड़े होते हैं। पैर के नाख़ून ज़्यादा बड़े नहीं होते हैं। अफ़्रीकी पड़ोसियों के मुक़ाबले इनका पेट शरीर के वज़न के अनुपात में ही होता है, लेकिन अफ़्रीकी हाथी का सिर के अनुपात में पेट बड़ा होता है।

भारतीय हाथी लंबाई में 6.4 मीटर (21 फ़ुट) तक पहुँच सकता है; यह थाईलैंड के एशियाई हाथी से लंबा व पतला होता है। सबसे लंबा ज्ञात भारतीय हाथी 26 फ़ुट (7.88 मी) का था, पीठ के मेहराब के स्थान पर इसकी ऊँचाई 11 फुट (3.4 मीटर), 9 इंच (3.61 मीटर) थी और इसका वज़न 8 टन (17935 पौंड) था।

भारतीय हाथी का वज़न लगभग 5,500 किलोग्राम और कंधे तह ऊँचाई 3 मीटर होती है; इसके कान अफ़्रीकी हाथी की तुलना में काफ़ी छोटे होते हैं। हाथियों में चर्वणक दाँत एक साथ ही पैदा नहीं होते; बल्कि पुराने दाँत के घिस जाने पर नया पैदा हो जाता है, लगभग 40 वर्ष की आयु में चर्वणक दाँतों का छठा और अंतिम जोड़ा निकलता है, इसलिए बहुत कम हाथी इससे अधिक आयु तक जीवित रह पाते हैं।

हाथी की औसत आयु 60 वर्ष की होती है, यद्यपि कुछ हाथी 70 वर्ष तक जीते पाए गए हैं। जन्म के समय बच्चा 1 मीटर ऊँचा और 90 किलोग्राम भार का होता है। तीन चार वर्षों तक हथिनी बच्चे को दूध पिलाती है और सिंह, बाघ, चीते आदि से बड़ी सर्तकता से उसकी रक्षा करती है।

जंगलों में हाथी वरिष्ठ हथिनी के नेतृत्व में छोटे पारिवारिक समूहों में रहते हैं। जहाँ भरपूर भोजन उपलब्ध होता है, वहाँ झुंड बड़े भी हो सकते हैं। अधिकांश नर मादाओं से अलग झुंड में रहते हैं। भोजन और पानी की उपलब्धता के अनुसार, हाथी मौसमी प्रवास करते हैं। वे कई घंटे भोजन करने में बिताते है और एक दिन में 225 किलोग्राम घास और अन्य वनस्पति खा सकते हैं। एशियाई हाथी अफ़्रीकी हाथी की तुलना में छोटा होता है और उसके शरीर का उच्चतम बिंदु कंधे के बजाय सिर होते हैं, सामने के पैरों पर नाख़ून जैसी पांच संरचनाएं और पिछले पैरों पर चार संरचनाएँ होती हैं। हाथी के पैर स्तंभ की भाँति सीधे होते हैं। खड़ा रहने के लिए इसे बहुत कम पेशी शक्ति की आवश्यकता पड़ती है। जब तक बीमार न पड़े या घायल न हो, तब तक अफ़्रीकी हाथी कदाचित्‌ ही लेटता है। भारतीय हाथी प्राय: लेटते हुए पाए जाते हैं। हाथी की अँगुलियाँ त्वचा की गद्दी में धँसी रहती हैं। गद्दी के बीच में चर्बी की एक गद्दी होती है, जो शरीर के भार पड़ने पर फैल जाती और पैर ऊपर उठाने पर सिकुड़ जाती है। हाथी की त्वचा एक इंच मोटी पर पर्याप्त संवेदनशील होती है। त्वचा पर एक-एक इंच की दूरी पर बाल होते हैं। इसकी खाल खोल के सदृश और झुर्रीदार होती है। खाल का भार एक टन तक का हो सकता है।

आमतौर पर सिर्फ़ नरों के ही गजदंत होते हैं, जबकि अफ़्रीकी हाथियों में नर और मादा, दोनों में गजदंत पाए जाते हैं। हाथियों में घ्राणशाक्ति अत्यंत विकसित होती है और इसके ज़रिये वे ख़तरों का पता लगाते हैं तथा बांस के घने झुंडों में नरम कॉपल जैसे मनपसंद आहार ढूंढते हैं। खाते समय हाथी इस प्रकार खड़े होते है कि सबसे बड़ी हथिनी हवा की दिशा में खड़ी हो और बच्चे उसे ढूंढ सकें।

एशियाई हाथी किसी भी समय भोजन कर सकते हैं, लेकिन 24 घंटों में दो मुख्य भोजनकाल होते हैं। वयस्कों की गतिविधियों का 72 से 90 प्रतिशत हिस्सा भोजन ढूंढने और उसे खाने में बीतता है।

हाथी तथा मानव संघर्ष का कारण

पिछले दस साल में सिर्फ झारखंड, ओडिशा और छत्तीसगढ़ में जंगली हाथी एक हज़ार लोगों को मार चुके हैं. इसी अवधि में सिर्फ झारखंड, ओडिशा और छत्तीसगढ़ में एक सौ सत्तर से ज़्यादा हाथी भी मारे जा चुके हैं. पूर्वोत्तर और दक्षिण भारत की कहानी भी इससे बहुत अलग नहीं.

ग्रीनपीस इंडिया द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार छत्तीसगढ़ में हाथियों की संख्या लगातार बढ़ी है। ओडिशा और झारखंड में जंगलों की अंधा-धुंध कटाई की वजह से 80 के दशक में हाथियों ने राज्य के जंगलों की तरफ पलायन करना शुरू किया था। इसके परिणामस्वरुप मानव-हाथी संघर्ष बढ़ने से मानव मौत, जानवर और संपत्ति को नुकसान पहुंचा है। हाथियों के हमले से मरने वाले लोगों की संख्या में आठ गुनी वृद्धि हुई है। साल 2005 के बाद 25 लोगों की औसत मृत्यु प्रति साल दर्ज की गयी है।इस रिपोर्ट के अनुसार, साल 2005 से 2013 के बीच छत्तीसगढ़ में 14 हाथियों की बिजली के झटके से मौत हुई। इस अवधि में मानव-हाथी संघर्ष की वजह से 198 मानव मौत हुई। राज्य में 2004 से 2014 के बीच  8, 657 घटनाएँ संपत्ति नुकसान और 99,152 घटनाएँ फसल नुकसान की दर्ज की गयी। इस अवधि में मानव-हाथी संघर्ष की वजह से 2,140.20 लाख मुआवजे की राशि का भुगतान किया गया।

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संयोग से, अध्ययन क्षेत्र में स्थित अधिकांश कोयला ब्लॉक में हाथियों की उपस्थिति दर्ज की गयी है, जिसे सरकार ने खनन के लिये पहचान किया है। इन वन प्रभागों में पहले से ही राज्य की औसत 30 प्रतिशत मानव मौत और फसल नुकसान की घटनाएँ होती हैं। इसलिए, यहां के जंगलों के खनन में बदलने से मानव-हाथी संघर्ष में बढ़ोत्तरी हो सकती है।

हाथियों का संरक्षण

चुनौतियां और प्रयास

एशियाई हाथियों को, लुप्तप्राय: प्रजातियों की अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ की लाल सूची  में संकटग्रस्त प्रजाति के रूप में सूचीबद्ध किया गया है. भारत में जंगली एशियाई हाथियों की सर्वाधिक संख्या है, जो हाथी परियोजना की 2017 की गणना के अनुसार 29,964 होने का अनुमान है. यह संख्या इन प्रजातियों की वैश्विक आबादी का लगभग 60 प्रतिशत है. भारतीय हाथी को राष्ट्रीय विरासत पशु (वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की अनुसूची 1) के रूप में घोषित किया गया है और इसे प्रवासी प्रजातियों की संधि के परिशिष्ट -1 में भी सूचीबद्ध किया गया है. यह व्यापक रूप से स्वीकार किया जाता है कि वन्यजीव प्रजातियों की पारिस्थितिक भूमिका, पारिस्थितिकी तंत्र को बहुत प्रभावित करती है. पर्यटन के दृष्टिकोण से भी वन्यजीवों की उपस्थिति काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे पर्यटन उद्योग को बढ़ावा मिलता है. हाथी जंगलों में सबसे प्रमुख और प्रतिष्ठित प्रजातियों में से एक हैं, जो वन पारिस्थितिकी तंत्र और जैव विविधता को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. हाथी जंगलों में विभिन्न प्रकार की  गतिविधियां करते हैं, जिनसे अन्य जानवरों को उनके पारिस्थितिकी तंत्र के साथ अंत:क्रिया में आसानी होती है. बड़े भू-भागों और विस्तृत आवासों पर हाथियों की आवाजाही भी क्षेत्रीय जानवरों को अन्य विद्यमान समुदायों के साथ अंत:क्रिया में मदद करती है. विश्व हाथी दिवस (12 अगस्त) दुनिया के हाथियों के संरक्षण के महत्व को रेखांकित करता है, और हाथियों के संरक्षण के बारे में जागरूकता पैदा करता है. यह आम जनता के साथ-साथ विभिन्न हितधारकों को हाथियों की रक्षा करने, अवैध शिकार को रोकने, हाथियों के आवासों के संरक्षण आदि में मदद करने की याद दिलाता है.

वन पारिस्थितिकी तंत्र में हाथियों की भूमिका

हाथी बुद्धिमान और अत्यधिक सामाजिक प्राणी होते हैं और बदलते परिवेश के अनुसार प्रतिक्रिया करने की उनकी क्षमता उन्हें कम असुरक्षित बनाती है. वे असंख्य प्रकार के भूदृश्यों में अपने बड़े प्रवासों के लिए जाने जाते हैं. एक वयस्क हाथी को प्रतिदिन 100 किलोग्राम से अधिक भोजन की आवश्यकता होती है, जिसमें घास से लेकर छाल, फल, कंद आदि शामिल हैं. बड़े प्रवासी गलियारों की उपलब्धता से हाथियों को बड़े भू-भागों में जाने में मदद मिलती है और वे आसानी से प्रजनन करते हैं, जिससे उनका दीर्घकालिक अस्तित्व सुनिश्चित होता है. प्राकृतिक आवासों को खेतों, औद्योगिक क्षेत्रों और मानव बस्तियों में परिवर्तित करने के कारण इस विशाल जानवर की आबादी विखंडित बनी हुई है. हाथी वन पारिस्थितिकी तंत्र और जैव विविधता के पुनर्स्थापन में प्रमुख भूमिका निभाते हैं. अन्य जानवरों को आवास, पानी और पोषक तत्व उपलब्ध कराकर वनों में वनस्पति पुनर्जनन को बदलने में इनका व्यापक प्रभाव पड़ता है.

बीज फैलाने वालों के रूप में हाथी

हाथी उन महत्वपूर्ण प्रजातियों में से हैं जो पेड़ों के बीजों को बिखेरते हैं. चूंकि एक परिपक्व हाथी प्रति दिन लगभग 100 किलोग्राम भोजन खाता है, उसके बड़ी मात्रा में चारा खाने से बड़ी संख्या में बीज फैलते हैं. हाथी फल खाने की अपनी आदत से बीजों के फैलाव और बाद में अंकुरण में सहायता करते हैं. हाथी की आंत से गुजरने से बीजों की प्रसुप्तावस्था को तोड़ने में मदद मिलती है और उनके अंकुरण में तेजी आती है.

पर्यावास प्रदाता की भूमिका में हाथी

स्थलीय स्तनधारी नियमित रूप से जंगलों में पगडंडियों का उपयोग करते हैं, जो आमतौर पर हाथियों द्वारा तैयार की जाती हैं. दिलचस्प बात यह है कि अन्य जंगली जानवर भी अपनी नियमित गतिविधियों के दौरान इन पगडंडियों का उपयोग करते हैं. चूंकि हाथी के गोबर में बीज और पोषक तत्व होते हैं, खुले और बंजर जंगलों में हाथियों की आवाजाही से वहां वनस्पतियों के पुनर्जनन में मदद मिलती है. हाथियों की इस तरह की प्रकृति जंगल की पगडंडियों को बनाए रखने में मददगार होती है.

जल प्रदाता के रूप में हाथी

हाथी भूमिगत जल स्रोतों का पता लगा सकते हैं. वे विशेष रूप से गर्मियों के दौरान ताजा पानी पीने के लिए अपने अग्रभाग और सूंड का उपयोग करके संभावित शुष्क नदी-तलों को खोदते हैं. हाथी स्वभाव से गंदा पानी पीना पसंद नहीं करते. इन छोटे जल बिंदुओं का उपयोग बाद में चित्तीदार हिरण, सांभर हिरण, छोटे भारतीय नेवले, एशियाई सियार, छोटे भारतीय सिवेट, जंगली सूअर जैसे छोटे जानवर करते हैं. इसके अलावा मोर, तोता, कबूतर और जंगली मुर्गी सहित कुछ पक्षी भी ऐसे पानी का उपयोग पीने और स्नान करने के लिए करते हैं. हाथियों के इस तरह के व्यवहार से खासकर कठिन परिस्थितियों में अन्य जानवरों के साथ संबंध स्थापित करने में मदद मिलती है. हाथी के ये सभी कार्य जानवरों के वितरण को भी प्रभावित कर सकते हैं, जिसका वन्यजीवों की जनसंख्या की गतिशीलता पर असर पड़ता है.

पारिस्थितिकीय पर्यटन संवर्द्धक के रूप में हाथी

भारत में, वन्यजीव पर्यटन मुख्य रूप से बंगाल टाइगर, एशियाई हाथी,एक सींग वाले एशियाई गैंडे, एशियाई शेर, नीलगिरितहर, मारटेन और लाल पांडा जैसी दुर्लभ प्रजातियों की उपस्थिति के कारण बढ़ रहा है. पक्षियों की प्रजातियों की अधिक उपस्थिति और सर्दियों में प्रवासी पक्षियों का आगमन पर्यटकों को आकर्षित करता है. वन्यजीव अभियान के दौरान अनोखे परिदृश्य और जंगली जानवरों को बार-बार देखना पर्यटकों के लिए प्रमुख आकर्षण है. भारतीय जंगलों में हाथी एक शानदार प्रजाति है जो पर्यटकों की संख्या बढ़ाने में जीवंत भूमिका निभाती है.

संकेतक प्रजाति के रूप में हाथी

सदियों से, यह माना जाता रहा है कि जानवरों की छठी इंद्रिय होती है, क्योंकि उनमें कुछ इंद्रियां, इंसानों की तुलना में अधिक विकसित होती हैं. ऐसा कहा जाता है कि जानवर पर्यावरण में बदलाव को महसूस कर सकते हैं और प्राकृतिक आपदाओं को होने से पहले ही भांपने और भविष्यवाणी करने में सक्षम हैं. मनुष्य 20 हर्ट्ज से 20,000 किलोहर्ट्ज तक की आवाजों को सुनने में सक्षम है और इस सीमा से परे किसी भी ध्वनि का पता नहीं लगा सकता है, लेकिन कुछ जानवर इस सीमा को पार कर जाते हैं और इन ध्वनियों को समझ सकते हैं. विभिन्न वन्यजीव विशेषज्ञों के अनुसार जानवरों में सुनने की तीव्र क्षमता होती है जो उन्हें पृथ्वी के कंपन को मनुष्यों से पहले महसूस करने में सक्षम बनाती है.

स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय कीे एक प्रसिद्ध वन्यजीव विशेषज्ञ ऑकोनेल-रॉडवेल ने हाथी संचार पर एक विस्तृत जानकारी दी है, जिससे पता चलता है कि हाथी, मनुष्यों के लिए मुश्किल से श्रव्य, धीमी ध्वनियों का उपयोग करके लंबी दूरी से संवाद करते हैं. लगभग दो दशक पहले, उनके अध्ययनों ने यह प्रस्तावित करके नई दिशा का संकेत दिया कि कम आवृत्ति कॉल भी जमीन-भूकंपीय संकेतों में शक्तिशाली कंपन उत्पन्न करते हैं जिन्हें हाथी अपनी संवेदनशील सूंड और पैरों के माध्यम से महसूस कर सकते हैं और यहां तक कि इसका संकेत भी दे सकते हैं. पहले यह ज्ञात था कि मकड़ी, बिच्छू, कीड़े और कुछ कशेरुकी प्रजातियां, जैसे कि सफेद होंठ वाले मेंढक, कंगारू चूहे और सुनहरे छछूंदर सहित छोटे जानवरों में भूकंपीय संचार आम है. उन्होंने बताया कि सुनामी के दौरान, विनाशकारी लहर आने से पहले थाईलैंड में प्रशिक्षित हाथी उत्तेजित हो गए और ऊंचे मैदानों में भाग गए. इस प्रकार उन्होंने अपनी और अपनी पीठ पर सवार पर्यटकों की जान बचाई.

 चुनौतियां और संरक्षण के प्रयास

एशियाई हाथियों के संरक्षण के लिए चुनौतियाँ हैं-निवास स्थान का नुकसान तथा विखंडन, मानव हाथी संघर्ष, हाथियों का अवैध शिकार और उनके अंगों का अवैध व्यापार. जंगली एशियाई हाथियों के प्रबंधन के लिए वित्तीय और तकनीकी सहायता प्रदान करने के लिए पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने 1992 में हाथी परियोजना शुरू की. इस परियोजना का उद्देश्य हाथियों के प्राकृतिक आवासों और प्रवास गलियारों की रक्षा करके उनकी व्यवहार्य आबादी के दीर्घकालिक अस्तित्व को सुनिश्चित करना है.

ट्रेन-हाथी टक्करों को रोकने के लिए क्षेत्रीय रेलवे, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के समन्वय से उपाय कर रहा है जिनमें शामिल हैं:

  • चिह्नित हाथी गलियारों में ट्रेनों की स्थायी और अस्थायी गति प्रतिबंध लगाना.
  • चिह्नित हाथी गलियारों के बारे में लोको चालकों को चेतावनी देने के लिए संकेत बोर्ड का प्रावधान.
  • ट्रेन कर्मीदल और स्टेशन मास्टरों को इस बारे में नियमित आधार पर सुग्राही बनाना.
  • रेलवे भूमि के भीतर ट्रैक के किनारों पर वनस्पति को आवश्यकता के अनुरूप हटाना.
  • चिह्नित स्थानों पर हाथियों की आवाजाही के लिए अंडरपास और रैंप का निर्माण.
  • हाथियों को पटरियों के पास आने से रोकने के लिए हनी बी साउंड सिस्टम की स्थापना.
  • रेलवे और वन विभाग दोनों द्वारा अलग-थलग स्थानों पर बाड़ लगाने का प्रावधान.
  • रेलवे के नियंत्रण कार्यालयों में वन विभाग के कर्मचारियों को रेलवे के साथ संपर्क करने के लिए तैनात करना तथा हाथी ट्रैकर्स की नियुक्ति करना और वन विभाग द्वारा समय पर कार्रवाई के लिए स्टेशन मास्टरों तथा लोको चालकों को सतर्क करना.
  • राज्य वन विभाग और रेलवे विभाग के बीच लगातार समन्वय बैठकें.
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इसके अलावा, 2020 में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा प्रकाशित भारत में मानव हाथी संघर्ष प्रबंधन के सर्वोत्तम उपाय, पुस्तिका  में मानव हाथी संघर्षों के शमन के लिए राज्य वन विभागों द्वारा अपनाई गई सभी प्रबंधन रणनीतियों को संकलित किया गया है. मंत्रालय ने हाल में मानव हाथी संघर्ष पर वास्तविक समय की जानकारी के संग्रह के लिए सुरक्षा नामक राष्ट्रीय पोर्टल की शुरुआत की है. वर्तमान में  डेटा टेस्टिंग के लिए बीटा वर्जन उपलब्ध है. यह डेटा संग्रह प्रोटोकॉल निर्धारित करने और संघर्षों को कम करने के लिए कार्य योजना तैयार करने के साथ-साथ नीति निर्माण में मदद करेगा. विभिन्न हाथी श्रेणियों के संरक्षित क्षेत्र प्रबंधक, अग्रिम पंक्ति के वन्यजीव कर्मचारियों के साथ मिलकर प्रभावी तंत्र विकसित कर सकते हैं. चूंकि हाथी समूचेे पारिस्थितिकी तंत्र के कार्यों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, इसलिए हाथी प्रवास और आवास प्रबंधन के लिए बड़े खंडित वन खंडों और गलियारों की बहाली सर्वोपरि है. इसके अलावा, संरक्षण पहल और आवास निगरानी में स्थानीय समुदाय तथा हितधारकों की भागीदारी, एक प्रभावी प्रबंधन तथा संरक्षण कार्यनीति होगी.

निम्न कारणों से मानवों तथा हाथियों के मध्य संघर्ष लगातार बढ़ता जा रहा है

  1. मानवो की बढ़ती जनसँख्या।
  2. हाथियों के प्राकृतिक पर्यावास का काम होना।
  3. हाथियों के आवासों में बढ़ती विकास की परियोजनाएँ।
  4. पूर्वी और मध्य भारत में हाथियों का घर 23,500 वर्ग किलोमीटर के दायरे में फैला है. यानी झारखंड से लेकर पश्चिम बंगाल, ओडिशा और छत्तीसगढ़ तक इनकी आवाजाही का गलियारा फैला हुआ है ये गलियारा टूट रहा है जिससे आबादी में उनकी घुसपैठ पहले से ज़्यादा हो गई है. हाथियों का गलियारा कई राज्यों से होकर गुजरता है और हर राज्य का अपना जंगल महकमा है, जिनमें समन्वय की कमी है.
  5. भारत में साल 2007 से 2009 तक 367 वर्ग किलोमीटर जंगल कम हुए हैं. वन विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक़ 80 फ़ीसदी जंगलों के ग़ायब होने की वजह आबादी का पास आना है जबकि 20 प्रतिशत औद्योगिकीकरण है. यहाँ तक कि आदिवासी बहुल ज़िलों में भी 679 वर्ग किलोमीटर के वनोन्मूलन की बात रिपोर्ट में कही गई है.
  6. जंगल कम होने के कारण न सिर्फ जंगली हाथियों का गलियारा टूट रहा है, बल्कि उनके खाने के लाले भी पड़ रहे हैं. मसलन जंगलों में बांस और फलदार वृक्ष कम हो रहे हैं. उन्हें पता है कि अपना पेट भरने के लिए उन्हें किस तरफ रुख़ करना चाहिए. अक्सर वे इन्सानी बस्तियां ही होती हैं.
  7. ‘वाइल्डलाइफ ट्रस्ट आफ इंडिया’ ने कई इलाकों को हाथियों के कॉरीडोर के रूप में चिह्नित किया है. मगर उनका कहना था कि राज्य सरकारें इन कॉरीडोर के संरक्षण के लिए कुछ नहीं कर रहीं हैं.
  8. हिंसक पशुओं को अधिक संख्या में रखने की क्षमता वाले वनक्षेत्रों में इन जानवरों की संख्या कम है जबकि कम क्षमता वाले वन क्षेत्रों में क्षमता से काफी अधिक पशु रहने को मजबूर है। जिससे मनुष्य एवं कृषि संपदा को नुकसान पहुंचाने वाले बाघ, हाथी और नीलगाय जैसे जानवर वनक्षेत्र के तटीय इलाकों के आबादी क्षेत्रों में घुस जाते हैं।
  9. हाथियों के उग्र होने का मुख्य कारण अपने रास्ते के लिए उनका बेहद संवेदनशील होना भी है. जुलाई से सितंबर के दौरान हाथी प्रजनन करते हैं. इस समय हाथियों के हार्मोन में भी बदलाव आता है जिससे वो आक्रमक हो जाते हैं.

समाधान 

  • वन्य पशुओं के कारण हुई मानवीय मौतों को रोकने के लिए उनके आगमन की या स्थिति की सही जानकारी देने वाले तंत्र के विकास की आवश्यकता है। जैसे कि हाथी अक्सर झंुड में चलते हैं और उनकी गतिविधियों की दिशा की जानकारी वन विभाग को मिलती रहती है। हाथी-बहुल इलाकों में वन विभाग कुछ सड़कों को रात के समय बंद भी कर देता है, तथा वहाँ हाथियों से सावधान रहने संबधी चेतावनी भी लगा दी जाती है।
  • आज वन्य जीवन संरक्षणकर्ता अनेक प्रकार के आधुनिक यंत्रों से लैस होते हैं। उनके पास एस एम एस एलर्ट के लिए मोबाइल फोन, वन्यपशु की स्थिति की जानकारी के लिए स्वचालित (Automated) प्रणाली एवं चेतावनी देने वाले तंत्र होते हैं। इनकी मदद से वन्य पशुओं की गतिविधियों को जानकर मानव-जीवन की, फसल की एवं संपत्ति की रक्षा की जा सकती है।
  • जंगलों के मध्य बसे गांवों में सुरक्षित आवास, बिजली की उपलब्धता, घर में शौचालयों के निर्माण एवं इन क्षेत्रों को अच्छी परिवहन सेवा से जोड़कर मानव-वन्यजीवन संघर्ष को बहुत कम किया जा सकता है।
  • पशुओं के आवास को खनन या मानव बस्तियों के लिए उजाड़ा जा रहा है। पशु किसी भी खेत में तब घुसते हंै, जब वह खेत उनके आवासीय क्षेत्र के आसपास हो, फसल खाने योग्य हो, जल स्त्रोत के पास हो या पशुओं के विचरण क्षेत्र में आते हों। ऐसे खास स्थानों को पहचानकर उनकी बाड़बंदी या बिजलीयुक्त बाड़ लगवाई जा सकती है।
  • पर्यावरण मंत्रालय ने राष्ट्रीय फसल बीमा योजना में वन्य पशुओं के कारण हुई फसल- क्षति को भी बीमा में शामिल करने की सिफारिश की है।
  • विनाशकारी पशुओं पर आरोप लगाने की बजाय ऐसे समस्याग्रस्त जगहों की पहचान करके वहाँ के लोगों को समय-समय पर सतर्क किया जाना चाहिए।
  • स्थानीय जनता और वन विभाग कर्मचारियों को पशुओं से बचने के लिए प्रशिक्षित एवं सशक्त बनाने की बहुत जरूरत है।
  • छत्तीसगढ़ में भी उग्र हाथियों के ऊपर जी पी एस लगाया जा रहा है जिसकी वजह से हाथियों के मूवमेंट के विषय में पर्याप्त जानकारी मिलने लगी है।
  • हाथी परियोजना की शुरुआत फरवरी 1992 में की गई थी, जिसके अंतर्गत हाथियों की मौजूदा आबादी को उनके प्राकृतिक आवास स्थलों में दीर्घकालिक जीवन सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त आर्थिक, तकनीकी एवं वैज्ञानिक सहायता उपलब्ध कराना है। हाथी टास्क फोर्स की रिपोर्ट, गज , जंगल में और कैद में हाथियों की रक्षा के लिए और मानव हाथी संघर्ष के समाधान के लिए एक व्यापक कार्रवाई कार्यसूची तैयार करती है।हाथी परियोजना मुख्य रूप से इन 13 राज्यों/संघशासित क्षेत्रों में चलाई जा रही है : आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, असम, झारखंड, कर्नाटक, केरल, मेघालय, नागालैंड, ओडिशा, तमिलनाडु, उत्तरांचल, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल. छोटी सहायता महाराष्ट्र और छतीसगढ़ को भी दी जा रही है.
  • छत्तीसगढ़ के  वन परिक्षेत्र अंतर्गत महेशपुर, काडरो, झिमकी, कर्राब्यौरा एवं समीप के अन्य जंगलों में 30 से अधिक हाथियों ने डेरा जमाने के बाद आस-पास के ग्रामीणों को जागरूक करने के लिए रोगबहार की झंकार नुक्कड़ नाटक करने वाली मंडली गांव-गांव पहुंच कर गीत और नाटक से लोगों को सबसे पहले अपनी सुरक्षा के उपाय बता रही है। नुक्कड़ नाटक लोगों को समझाने का सशक्त माध्यम होता है और उसका असर भी गहरा होता है। यहां हाथी और मानव के बीच चल रहे द्वंद्व को कम करने में यह माध्यम कारगर साबित हो रहा है। जिससे इस वर्ष जिले में लगातार जन और धन हानि के आंकड़े कम होने लगे हैं।
  • हाथियों की रिहाइश वाले वनों से गुजरते समय ट्रेनों की गति घटाने के उपाय किये जाये ;
  •  वनों से गुजरने वाले रेल-मार्गों को बदला जाये।
  •  जिन क्षेत्रों में ये दुर्घटनाएँ देखने में आई हैं, उनमें रात को मालगाड़ियों की आवाजाही बंद करे.

उपरोक्त सुझावों के द्वारा मानव तथा हाथियों के मध्य संघर्ष को काम किया जा सकता है। इसके अलावा मनुष्यो को भी समझना होगा की यह धरती सिर्फ मनुष्यो की नहीं है यह उन सब जानवरो की है जो इस धरती में निवास करते है।

अतः हमे धरती के संसाधनों का उतना ही प्रयोग करना चाहिए जिससे हमारी जरूरते पूरी हो सके.
देश में हाथियों के अवैध शिकार सहित मानव हाथी संघर्ष को रोकने के लिए उपाय

हाथियों का अवैध शिकार

राज्य सरकारें और केंद्रशासित प्रदेश प्रशासन हाथियों के अवैध शिकार से संबंधित अपराधों सहित मानव हाथी संघर्ष की रोकथाम के लिए प्राथमिक प्रतिक्रियाकर्ता हैं। आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और ओडिशा सहित देश में हाथियों, उनके आवास और गलियारों की रक्षा, मानव-हाथी संघर्ष के मुद्दों और बंदी हाथियों के कल्याण के मुद्दों को संबोधित करने के प्रमुख उद्देश्यों के साथ भारत सरकार द्वारा परियोजना हाथी योजना शुरू की गई। मंत्रालय ने देश में हाथियों के अवैध शिकार सहित मानव हाथी संघर्ष को रोकने के लिए निम्नलिखित उपाय किए हैं:

  1. मंत्रालय देश में प्रजातियों और उनके आवासों की सुरक्षा और संरक्षण के लिए केंद्र प्रायोजित योजना ‘प्रोजेक्ट टाइगर एंड एलीफेंट’ के तहत राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को वित्तीय और तकनीकी सहायता प्रदान करता है, जिसमें अवैध शिकार विरोधी दस्ते/शिविरों का निर्माण, गश्त ड्यूटी, इनाम शामिल है। शिकारियों आदि के बारे में सूचना देने वाले मुखबिर।
  2. मंत्रालय द्वारा 6 फरवरी, 2021 को वन्यजीव अपराध से निपटने सहित मानव-वन्यजीव संघर्ष पर एक सलाह जारी की गईहै ।
  • मानव-हाथी संघर्ष को कम करने और हाथियों की प्रतिशोधात्मक हत्या से बचने के लिए, जंगली हाथियोंके कारण होने वाली उनकी संपत्ति और जीवन के नुकसान के लिए स्थानीय समुदायों को मुआवजा प्रदान किया जा रहा है। मंत्रालय ने पत्र संख्या 14-2/2011 डब्ल्यूएल-I (भाग) दिनांक 9 फरवरी , 2018 के माध्यम से वन्यजीवों की कटाई से संबंधित अनुग्रह दरों में वृद्धि को अधिसूचित किया है।
  1. इस मंत्रालय द्वारा कार्यान्वित की जा रही विभिन्न अन्य केंद्र प्रायोजित योजनाएं जल स्रोतों को बढ़ाने, चारे के पेड़ लगाने, बांस के पुनर्जनन आदि के माध्यम से हाथियों के प्राकृतिक आवास में सुधार में योगदान देती हैं। प्रतिपूरक वनरोपण निधि अधिनियम 2016 और उसके तहत बनाए गए नियम भी इसके लिए प्रावधान करते हैं। हाथियों सहित वन्यजीव आवासों के विकास, पशु बचाव केंद्रों की स्थापना आदि के लिए निधि का उपयोग, जो एचईसी में कमी में भी योगदान देता है।
  2. मंत्रालय द्वारा 6.10.2017 को मानव हाथी संघर्ष के प्रबंधन के लिए एक दिशानिर्देश जारी किया गया है और हाथी रेंज राज्यों से इसे लागू करने का अनुरोध किया गया है।
  3. फरवरी 2021 में मंत्रालय द्वारा मानव-वन्यजीव संघर्ष से निपटने के लिए एक सलाह जारी की गई है। सलाह में समन्वित अंतरविभागीय कार्रवाई, संघर्ष के गर्म स्थानों की पहचान, मानक संचालन प्रक्रियाओं का पालन, त्वरित प्रतिक्रिया टीमों की स्थापना, राज्य और जिला स्तर के गठन की सिफारिश की गई है। समितियां अनुग्रह राहत की मात्रा की समीक्षा करेंगी, त्वरित भुगतान के लिए मार्गदर्शन/निर्देश जारी करेंगी, और मृत्यु और चोट के मामले में प्रभावित व्यक्तियों को 24 घंटे के भीतर अनुग्रह राहत के उपयुक्त हिस्से का भुगतान करने के लिए पर्याप्त धन का प्रावधान करेंगी। व्यक्ति.
  • भारतीय वन्यजीव संस्थान ने पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण, राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण और विश्व बैंक समूह के परामर्श से परियोजना एजेंसियों की सहायता के लिए ‘रैखिक बुनियादी ढांचे के प्रभावों को कम करने के लिए पर्यावरण-अनुकूल उपाय’ नामक एक दस्तावेज़ प्रकाशित किया है। विद्युत पारेषण लाइनों सहित रैखिक बुनियादी ढांचे को इस तरह से डिजाइन करना जिससे मानव-पशु संघर्ष कम हो।
  • मंत्रालय ने राज्यों और अन्य हितधारकों के लाभ के लिए “भारत में मानव हाथी संघर्ष प्रबंधन की सर्वोत्तम प्रथाएँ” नामक एक पुस्तक जारी की है।
  1. 29अप्रैल, 2022  को संचालन समिति की 16 वीं बैठक के दौरान मानव हाथी संघर्ष के प्रबंधन के लिए फ्रंटलाइन कर्मचारियों के लिए एक फील्ड मैनुअल जारी किया गया था।
  2. वन्य जीवन (संरक्षण) अधिनियम, 1972 मानव वन्यजीव संघर्ष स्थितियों से निपटने के लिए नियामक कार्य प्रदान करता है।
  3. मानव-हाथी संघर्ष को संबोधित करने के लिए पूर्वी क्षेत्र के लिए क्षेत्रीय समन्वय बैठक 19 जनवरी, 2023 को कोलकाता में आयोजित की गईथी ।
  • वन्यजीव मामलों की जांच, फोरेंसिक और सफल अभियोजन के लिए फ्रंटलाइन कर्मचारियों की क्षमता निर्माण का आयोजन नियमित अंतराल पर किया जा रहा है।
  • इसके अलावा, मंत्रालय ने वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो (डब्ल्यूसीसीबी) के साथ समन्वय में हाथियों के अवैध शिकार सहित वन्यजीव अपराध को रोकने के लिए निम्नलिखित उपाय किए हैं:
  • तस्करी में शामिल अपराधियों को पकड़ने के लिए राज्य प्रवर्तन एजेंसियों के साथ संयुक्त अभियान चलाना।
  • वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के प्रावधानों के तहत वन्यजीव मामलों की जांच पर वन और पुलिस अधिकारियों के लिए क्षमता निर्माण का संचालन करना।
  • सीमा सुरक्षा बलों, सीमा शुल्क, केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ), न्यायिक अधिकारियों, आरपीएफ, जीआरपी और अन्य हितधारकों के अधिकारियों के लिए संवेदीकरण कार्यक्रम आयोजित करना।
  • वन्यजीवों के अवैध शिकार और अवैध व्यापार पर संबंधित राज्य और केंद्रीय एजेंसियों को निवारक कार्रवाई के लिए अलर्ट और सलाह जारी करना।
  • डब्ल्यूसीसीबी ने वन्यजीव अपराध डेटाबेस प्रबंधन प्रणाली विकसित और ऑनलाइन की है और पाए गए वन्यजीव अपराध से संबंधित डेटा अपलोड करने के लिए 970 प्रभागीय वन कार्यालयों, टाइगर रिजर्व के 50 फील्ड निदेशकों और वन विभाग में 37 मुख्य वन्यजीव वार्डन और 34 पुलिस महानिदेशक के साथ उपयोगकर्ता क्रेडेंशियल साझा किए हैं। दिन-प्रतिदिन के आधार पर.
  • डब्ल्यूसीसीबी ने राज्य/केंद्रीय प्रवर्तन एजेंसियों के बीच कार्रवाई के समन्वय के लिए विशेष अखिल भारतीय प्रवर्तन अभियान भी चलाया है।”ऑपरेशन वाइल्डनेट-I, II, III और IV” में हाथी दांत की बरामदगी की गई है।
  • इसके अलावा, WCCB ने इंटरपोल के वाइल्डलाइफ वर्किंग ग्रुप द्वारा परिकल्पित ऑपरेशन थंडरबर्ड, ऑपरेशन थंडरस्टॉर्म, ऑपरेशन थंडरबॉल और ऑपरेशन थंडर 2021 जैसे वैश्विक अभियानों में भाग लिया, जिसके परिणामस्वरूप संभावित अपराधियों और पकड़ने वालों की गिरफ्तारी हुई।
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NB-यह जानकारी केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री श्री अश्विनी कुमार चौबे ने आज लोकसभा में एक लिखित उत्तर में दी।

छत्तीसगढ़ में वन विभाग द्वारा मानव-हाथी द्वंद पर नियंत्रण के लिए विशेष मॉनिटरिंग : एक आदर्श उदाहरण

 जन हानि से प्रभावित परिवार को स्व-रोजगार से जोड़ने की पहल

एआई आधारित ‘छत्तीसगढ़ एलीफेंट ट्रैकिंग एण्ड अलर्ट‘ एप विकसित

हाथी प्रभावित क्षेत्रों में चलाया जा रहा जन-जागरूकता अभियान

12 अगस्त को विश्व हाथी दिवस पर विविध कार्यक्रमों का आयोजन

छत्तीसगढ़ में वन विभाग द्वारा मानव-हाथी द्वंद पर नियंत्रण के लिए जन-जागरूकता लाने सहित अनेक कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। इनमें जंगली हाथियों के समूह के आगमन की पूर्व सूचना गांव में वायरलेस, मोबाइल तथा माइक आदि के माध्यम से मुनादी कर दी जा रही है। हाथी विचरण क्षेत्र और आसपास के ग्रामीणों को हाथियों के साथ साहचर्य बनाए रखने के लिए आवश्यक समझाईश भी दी जा रही है। साथ ही वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री श्री मोहम्मद अकबर ने जन-धन हानि से प्रभावित परिवारों को विभाग द्वारा संचालित विभिन्न योजनाओं के माध्यम से मुआवजा के अलावा स्व-रोजगार आदि से जोड़कर उन्हें राहत पहुंचाने के लिए तत्परता से कार्यवाही के लिए निर्देशित किया है। इस संबंध में प्रधान मुख्य वन संरक्षक श्री व्ही.श्रीनिवास राव ने जानकारी देते हुए बताया कि राज्य में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध भोजन एवं पानी तथा हाथियों के रहवास के लिए अनुकूल होने के कारण हाथियों की संख्या में निरंतर वृद्धि देखी जा रही है। इसके परिणाम स्वरूप वनांचलों तथा हाथी प्रभावित क्षेत्रों में मानव-हाथी द्वंद की स्थिति निर्मित होती है। इसके नियंत्रण के लिए विभाग द्वारा जन, धन एवं फसल हानि के मुआवजा प्रकरणों पर कार्यवाही करने के साथ-साथ प्रभावित गांवों में हाथी मित्र दल का गठन, जन-जागरूकता कार्यक्रम तथा हाथियों के प्राकृतिक रहवास में सुधार जैसे अनेक कार्य तत्परतापूर्वक जारी है। साथ ही जन हानि की दशा में प्रभावित परिवार के लोगों को वन विभाग द्वारा स्व-रोजगार से जोड़ने आवश्यक पहल की जा रही है। उन्होंने बताया कि 12 अगस्त को विश्व हाथी दिवस के अवसर पर राज्य में जन-जागरूकता संबंधी विविध कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है।

गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ के जंगलों में हाथियों के मूवमेंट की हाईटेक मॉनिटरिंग शुरू कर दी गई है। इसके लिए एआई आधारित ‘छत्तीसगढ़ एलीफेंट ट्रैकिंग एंड अलर्ट एप’ विकसित किया गया है। पिछले 3 महिनों से उदंती सीतानदी टाईगर रिजर्व में इस ऐप का उपयोग किया जा रहा है। 10 किलोमीटर के इलाके में हाथियों के रियल टाईम मूवमेंट का अलर्ट ग्रामीणों केे मोबाइल पर सफलतापूर्वक भेजा रहा है। इस एप में ग्रामीणों के मोबाइल नंबर और जीपीएस लोकेशन का पंजीयन किया जाता है। जब एलीफैंट ट्रैकर्स द्वारा हाथियों के मूवमेंट का इनपुट एप पर दर्ज किया जाता है, तो एप द्वारा स्वचालित रूप से ग्रामीणों के मोबाइल पर अलर्ट जाता है।

छत्तीसगढ़ के हाथी प्रभावित इलाकों में ग्रामीणों को सतर्क करने के लिए वन प्रबंधन सूचना प्रणाली (एफएमआईएस) और वन्यजीव विंग द्वारा संयुक्त रूप से इस एप को विकसित किया गया है। यह एप एलीफैंट ट्रैकर्स (हाथी मित्र दल) से प्राप्त इनपुट के आधार पर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एआई पर काम करता है। इस एप का उद्देश्य हाथी ट्रैकर्स द्वारा की जाने वाली ‘मुनादी’ के अलावा प्रभावित गांव के प्रत्येक व्यक्ति को मोबाइल पर कॉल, एसएमएस, व्हाट्सएप अलर्ट के भेजकर हाथियों की उपस्थिति के बारे में सूचना पहुंचाना है। इस तरह विभाग द्वारा जंगली हाथियों के साथ साहचर्य हेतु ग्रामीणों में जनजागरूकता, प्रचार-प्रसार एवं ग्रामीणों को शिक्षा तथा उनके साथ द्वंद से बचने के लिए उपायों को आदान-प्रदान करने पर भी विशेष जोर दिया जा रहा है।

 Compiled  & Shared by- This paper is a compilation of groupwork provided by the

Team, LITD (Livestock Institute of Training & Development)

 Image-Courtesy-Google

 Reference-On Request

Disclaimer: The Facts & Figure in this article has been taken from social media & compiled from different sources for information only.

भारत में वन्यजीवों की संरक्षण के लिए कदम और कानून

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