हाइड्रोपोनिक्स: एक हरा चारा का विकल्प भाग -1

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लेखक -सविन भोगरा ,पशुधन विशेषज्ञ हरियाणा

हाइड्रोपोनिक्स क्या है?

केवल पानी में या बालू अथवा कंकड़ों के बीच नियंत्रित जलवायु में बिना मिट्टी के पौधे उगाने की तकनीक को हाइड्रोपोनिक कहते हैं। हाइड्रोपोनिक शब्द की उत्पत्ति दो ग्रीक शब्दों ‘हाइड्रो’ (Hydro) तथा ‘पोनोस (Ponos) से मिलकर हुई है। हाइड्रो का मतलब है पानी, जबकि पोनोस का अर्थ है कार्य।

हाइड्रोपोनिक्स में पौधों और चारे वाली फसलों को नियंत्रित परिस्थितियों में 15 से 30 डिग्री सेल्सियस ताप पर लगभग 80 से 85 प्रतिशत आर्द्रता में उगाया जाता है।

सामान्यतया पेड़-पौधे अपने आवश्यक पोषक तत्व जमीन से लेते हैं, लेकिन हाइड्रोपोनिक्स तकनीक में पौधों के लिये आवश्यक पोषक तत्व उपलब्ध कराने के लिये पौधों में एक विशेष प्रकार का घोल डाला जाता है। इस घोल में पौधों की बढ़वार के लिये आवश्यक खनिज एवं पोषक तत्व मिलाए जाते हैं। पानी, कंकड़ों या बालू आदि में उगाए जाने वाले पौधों में इस घोल की महीने में दो-एक बार केवल कुछ बूँदें ही डाली जाती हैं। इस घोल में नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश, मैग्नीशियम, कैल्शियम, सल्फर, जिंक और आयरन आदि तत्वों को एक खास अनुपात में मिलाया जाता है, ताकि पौधों को आवश्यक पोषक तत्व मिलते रहें।

हाइड्रोपोनिक्स यानि जलीय कृषि। ये खेती की वो आधुनिक तकनीक है जिसमें वनस्पति की वृद्धि और उपज का नियंत्रण जल और उसके पोषण स्तर के जरिए होता है। दूसरे शब्दों में ये मिट्टी के बगैर की गई खेती है जिसमें पानी में फसल उगाया जाता है। हाइड्रोपोनिक्स शब्द का मतलब होता है जल संबंधी और खेती की ये तकनीक लोकप्रिय होती जा रही है जिसमें ज्यादातर आधुनिक खेती के तरीके इस्तेमाल में लाए जाते हैं।

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हाइड्रोपोनिक्स खेती की प्रक्रिया

हाइड्रोपोनिक्स यानि की जलीय कृषि में जल को अच्छी तरह से उन संतुलित पोषक तत्वों से समृद्ध किया जाता है जो पौधों की वृद्धि और बेहतर उपज के लिए जिम्मेदार होते हैं। जल के पीएच मान को निर्दिष्ट स्तर के अंदर रखा जाता है जिसके परिणामस्वरूप पौधों की अच्छी वृद्धि होती है और बेहतर उपज प्राप्त होते हैं। कृषि की इस पद्धति में पौधे जल और सूरज की रोशनी से पोषण प्राप्त करते हैं औऱ उपज देते हैं। जैसा कि हमने कहा कि इसमें खेती के लिए मिट्टी की जरूरत नहीं होती है ये मिट्टी के बगैर खेती है इसलिए अगर कोई हाइड्रोपोनिक्स कृषि करना चाहता है तो इसे शुरू करने से पहले उसे ये सुनिश्चित करना होगा कि मिट्टी की बुनियादी क्रिया को जल के साथ बदल लिया जाए। जलीय कृषि में मिट्टी की जगह जल लेता है इसलिए ऐसे जल की उपलब्धता सुनिश्चित की जानी चाहिए जो कि मिट्टी के गुणों से लैस हो।
पोषक तत्वों को जमा रखने वाला पोषण टैंक
पोषक पंप जो पोषक तत्वों को संचारित करता है
पोषक तत्व के बहने के लिए चैनल
पौधों की जड़ों द्वारा अवशोषित किए जा रहे पोषक तत्व
बचे पोषक तत्व पुन: टैंक में वापस
पौधे की जड़ों को समर्थन आम तौर पर हाइड्रोपोनिक्स प्रणाली में बालू या बजरी या प्लास्टिक का इस्तेमाल पौधों की जड़ों को समर्थन देने के लिए किया जाता है।
पोषक तत्वों की आपूर्ति मिट्टी आधारित कृषि प्रणाली में पोषक तत्वों की आपूर्ति जैविक सामग्रियों से होती है लेकिन हाइड्रोपोनिक्स अर्थात जलीय कृषि में पौधों को संतुलित पोषण प्रदान करने के लिए जल में उर्वरक मिलाया जाता है।
ऑक्सीजन की आपूर्ति मिट्टी आधारित कृषि में पौधे मिट्टी से ही ऑक्सीजन ग्रहण करते हैं जबकि हाइड्रोपोनिक्स अर्थात जलीय कृषि में पौधे जल से ऑक्सीजन ग्रहण करते हैं।
पानी की आपूर्ति मिट्टी आधारित कृषि में पौधे मिट्टी में अपने जड़ों के प्रसार के लिए मिट्टी से ही जल ग्रहण करते हैं जबकि हाइड्रोपोनिक्स में पौधों को पानी की सीधी आपूर्ति की जाती है।
हाइड्रोपोनिक्स अर्थात जलीय कृषि के फायदे एवं लाभ :

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हाइड्रोपोनिक्स के निम्नलिखित फायदे हैं –
हाइड्रोपोननिक्स जल में मौजुद सभी पोषक तत्वों को बिना बर्बाद किए इस्तेमाल करता है इसलिए ये कम प्रदूषक कृषि प्रणाली है
मिट्टी आधारित कृषि यानि की पारंपरिक कृषि की तुलना में हाइड्रोपोनिक्स में जल की आवश्यकता कम होती है।
हाइड्रोपोनिक्स में जल का पीएच स्तर नियंत्रित किया जाता है, पोषक तत्व अनुकूलित तरीके से दिया जाता है इसलिए कृषि की इस प्रणाली में पौधे की तीव्र वृद्धि औऱ अधिक उपज की उम्मीद की जा सकती है।
हाइड्रोपोनिक्स में कृषि व्यवस्था को स्वचालित तरीके से आसानी से प्रबंधन किया जा सकता है।
पारंपरिक खेती से इतर जलीय कृषि में कम जगह की आवश्यकता होती है।
उत्पाद की गुणवत्ता हाइड्रोपोनिक्स में उच्च स्तर की होती है।
ग्रीन हाउस तकनीक से इस तकनीक का संयोजन कर और भी बेहतर परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं।
हाइड्रोपोनिक्स प्रणाली की एकमात्र नकारात्मक बात है इसकी स्थापना की शुरूआती लागत। हालांकि ग्रीन हाउस फार्मिंग में लगे किसान इस तकनीक के संयोजन से पहले ही अच्छे परिणाम प्राप्त कर रहे हैं।

हाइड्रोपोनिक्स तकनीक की चुनौतियाँ

सवाल यह उठता है कि जब हाइड्रोपोनिक्स के इतने सारे लाभ हो सकते हैं तो इसका उपयोग फैल क्यों नहीं रहा है? दरअसल, इस तकनीक के प्रचलित होने के रास्ते में कई कठिनाइयाँ और चुनौतियाँ भी हैं; जैसे कि

1. सबसे बड़ी चुनौती तो इस तनकीक को इस्तेमाल करने में आवश्यक शुरुआती खर्चे की है। परंपरागत विधि की अपेक्षा इसको लगाने में अधिक खर्चा आता है। यहाँ यह बात स्पष्ट करने की जरूरत है कि बाद में यह काफी सस्ती पड़ती है।

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2. चूँकि इस विधि में पानी का पंपों की सहायता से पुन इस्तेमाल किया जाता है, उसके लिये लगातार विद्युत आपूर्ति की आवश्यकता होती है। इसलिये दूसरी बड़ी चुनौती है हर वक्त विद्युत आपूर्ति बनाए रखना।

3. तीसरी सबसे बड़ी चुनौती है लोगों की मनोवृत्ति को बदलने की। अधिकतर लोग सोचते हैं कि हाइड्रोपोनिक्स के इस्तेमाल के लिये इसके बारे में काफी अच्छी जानकारी होनी चाहिए और इसमें काफी शोध अध्ययन की जरूरत होती है। लेकिन असल में ऐसा नहीं है।

अंत में इस बात को भी नकारा नहीं जा सकता कि पौधों की उचित बढ़वार के लिये आवश्यक खनिज और पोषक तत्व सही समय पर सही मात्रा में मिलते रहने चाहिए। हाइड्रोपोनिक्स तकनीक में इन तत्वों की आपूर्ति हम करते हैं, जबकि जमीन से पौधे अपने आप लेते रहते हैं।

—— क्रमशः सा अगले अंक में—-

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