जलवायु परिवर्तन का पशुधन पर प्रभाव
जलवायु किसी स्थान विशेष के दीर्घकालीन मौसम संबंधी दशाओं के औसत को कहते हैं। सामान्यतः यह स्थिर रहती है, परंतु वर्तमान में स्थानिक एवं वैश्विक जलवायु में मानवीय एवं प्राकृतिक कारणों से परिवर्तन देखने को मिल रहा है जिसे जलवायु परिवर्तन कहते हैं। जलवायु में दिखने वाले ये परिवर्तन लंबे समय का परिणाम है जिसके न केवल क्षेत्रीय एवं वैश्विक प्रभाव देखने को मिल रहे हैं बल्कि संपूर्ण विश्व जलवायु परिवर्तन से प्रभावित हो रहा है। जलवायु परिवर्तन के कारण प्राकृतिक एवं मानवीय दोनों है जिसमें मानवीय कारणों का अधिक योगदान है। मानवीय कारणों में ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन यथा कार्बनडाई आक्साइड, मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड, सल्फरडाई ऑक्साइड आदि के उत्सर्जन में वृद्धि पृथ्वी के औसत तापमान में वृद्धि का एक प्रमुख कारण है। वनोन्मूलन, पशुपालन, कृषि में वृद्धि, नाइट्रोजन उर्वरकों का कृषि में उपयोग आदि क्रियाएँ भी जलवायु परिवर्तन के लिये जिम्मेदार हैं। प्राकृतिक कारणों में सौर विकिरण में बदलाव एवं ज्वालामुखी विस्फोट आदि शामिल हैं। वस्तुतः जलवायु परिवर्तन का प्रमुख कारण भूमंडलीय ऊष्मन है जिसके लिये प्रमुख रूप से ग्रीन हाउस गैसें (GHGs) जिम्मेदार हैं। एक कहावत के अनुसार जलवायु वह है जिसकी आप उम्मीद करते हैं; मौसम वह है जो कि हमें मिलता है। हम प्रायः ‘जलवायु’ एवं ‘मौसम’ शब्द में अन्तर नहीं कर पाते हैं। मौसम वह है जो रोज रात को टीवी पर दर्शाया जाता है जैसे विभिन्न स्थानों पर अधिकतम एवं न्यूनतम तापमान, बादलों एवं वायु की स्थिति, वर्षा का पूर्वानुमान, आर्द्रता आदि। निर्धारित समय पर किसी स्थान पर बाह्य वातावरणीय परिस्थितियों में होने वाला परिवर्तन, मौसम कहलाता है। जलवायु शब्द किसी स्थान पर पिछले कई वर्षों के अन्तराल में वहाँ की मौसम की स्थिति को बताता है। जलवायु वैज्ञानिक, किसी स्थान विशेष की जलवायु का पता लगाने के लिये कम-से-कम 30 वर्षों के मौसम की जानकारी को आवश्यक मानते हैं।
ऊष्मीय तनाव का पशु उत्पादन पर प्रभाव
सामान्य चयापचय को बनाए रखने के लिए पशुओ का मुख्य शरीर तापमान स्थिर होना आवश्यक है। इस के साथ ही मुख्य शरीर का तापमान परिवेश के तापमान से थोड़ा अधिक होना चाहिए। ताकि गर्मी का स्थानांतरण बाहरी वातावरण में आसानी से हो सके। चारे के पाचन से और पोषक तत्वों की चयापचय से पशुओ के शरीर में गर्मी उत्पन्न होती है। डेयरी पशुओ में मुख्य शरीर का तापमान तभी तक बरकरार रहता है जब तक वातावरण का तापमान 28-30 डिग्री सेल्सियस तक रहता है। इससे अधिक तापमान इनके लिए तनावपूर्ण स्थिति उत्पन्न कर सकता है। अत्यधिक तापमान पशुओं की रूमेन कार्य-क्षमता को कम करता है जो कई स्वास्थ्य संबंधित बीमारियों का कारण बनता है। उष्मीय तनाव के चलते पशु हाँफने लगते हैं और उनके मुँह से लार गिरती दिखाई देती है। पशुओं के शरीर में बाइकार्बोनेट तथा आयनों की कमी से रक्त की पीएच कम हो जाती है। उष्मीय तनाव के दौरान पशुओं के शरीर का तापमान 102.5 डिग्री से 103 डिग्री फाहरेनहाइट तक बढ़ जाता है। जिसके फलस्वरूप दूध उत्पादन, दुग्ध-वसा, प्रजनन क्षमता एवं प्रतिरक्षा प्रणाली में कमी आती है। उष्मीय तनाव से प्रभावित पशुओ को मदकाल प्रदर्शन करने में भी कठिनाई होती है। उष्मीय तनाव के दौरान मदकाल की अवधि छोटी तथा प्रजनन हॉर्मोन के स्राव में असंतुलन, मुख्यत: इस्ट्रोजन हॉर्मोन (जो मद के व्यवहार को प्रभावित करता है) की मात्रा कम हो जाती है। उच्च तापमान वाले वातावरण में पशुओ के मदकाल अकसर मूक ही रहते हैं और अमदकाल की घटनाएं बढ़ जाती हैं। यदि मद का पता लग भी जाए तो शरीर का तापमान अधिक होने के कारण कई बार पशु गर्भधारण नहीं कर पाता। उष्मीय तनाव बढऩे से निषेचन क्रिया पर विपरीत प्रभाव पड़ता है जो भ्रूण को क्षति भी पहुँचा सकता है तथा पैदा हुए बछड़े का दैहिक भार सामान्य ताप पर जन्म लेने वाले बछड़ों से कम पाया गया है। जलवायु परिवर्तन से पशुओं पर निम्नलिखित प्रभाव होते है अत्यधिक पसीना आना, तेजी से साँस लेना। चयापचय का दर कम होना। इलेक्ट्रोलाईट अंसतुलन होना, पानी की मांग में वृद्धि आना आदि। गर्मी के तनाव से पशुओं में शुष्क पदार्थ का सेवन 10-20% कम हो जाता है, दूध उत्पादन में 10-25%की कमी आ जाती है, एवं पशुओ में प्रजनन प्रदर्शन में भी कमी आ जाती है। प्रजनन का प्रभाव गर्मी के तनाव के काफी समय पश्चात भी पशुओं में बना रहता है।जैसे कि: मद अवधि घटने की लंबाई और तीव्रता, गर्भाधान दर में कमी डिम्बग्रंथि के रोम के विकास और आकार के वृद्धि में कमी।
उष्मीय तनाव से पशुओ का बचाव कैसे करे
गर्मियों में पशुओ के लिए छाया की व्यवस्था करना चाहिए, गर्मियों में पशुओं को दो से तीन बार स्नान करवाएं, एक ही स्थान पर अधिक पशुओं को न रखे, आवास और सुविधा का समायोजन करें, पशुओं के लिए स्वच्छ और नियमित रूप से पीने के पानी की व्यवस्था करें, जल संसाधनों को बेहतर प्रबन्धन एवं चराई सुबह जल्दी और देर शाम में करवानी चाहिए। – जलवायु तनाव में सोडियम और पोटेशियम पूरकता 30ग्राम प्रति सप्ताह में दे पशु के परिवेश के तापमान को कम करके उष्मागत तनाव को कम किया जा सकता है। पशुओं हेतु प्राकृतिक व कृत्रिम छाया का प्रावधान सबसे किफायती तरीकों में से एक है। हमें अपने पशुओं के लिए छायादार शेड का निर्माण करें इसके अतिरिक्त पशु को आराम देने हेतु अन्य तरीकों का इस्तेमाल भी आवश्यक है जैसे फव्वारे, कूलर, मिस्ट पंखे, पानी के टैंक तथा नहलाने आदि की व्यवस्था भी करवानी चाहिए। पशुशाला में गर्म हवाओं से बचाव के लिए उपलब्ध सामान जैसे जूट या बोरी के पर्दों का उपयोग किया जा सकता है। गर्मियों में हरे चारे की पैदावार कम हो जाती है, जिसकी कमी पूरा करने के लिए सूखा भूसा भिगोकर तथा उसमें दाना व मिनरल मिश्रण मिलाकर दें। गर्मियों में पशुओं के लिए हर समय ताजा व स्वच्छ पानी उपलब्ध हो। प्राय: ऐसा देखा गया है कि यदि तापमान 30-35 सेल्सियस तक बढ़ता है तो दुधारू पशुओं में पानी की आवश्यकता 50 प्रतिशत से अधिक बढ़ जाती है।
https://www.pashudhanpraharee.com/impacts-of-climate-change-on-dairy-cattle/
सर्द मौसम का पशु उत्पादन पर प्रभाव
प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से बढ़ते हुए तापमान, अनियमित मानसून, भयंकर ठंड, ओले, तेज हवा आदि पशुओं के स्वास्थ्य, शारीरिक वृद्धि और उत्पादकता को प्रभावित करते हैं। मौसम में तनाव के कारण डेयरी पशुओं की प्रजनन क्षमता कम हो रही है। परिणामस्वरूप गर्भधारण दर में भी काफी गिरावट हो रही है। जलवायु परिवर्तन प्रतिरक्षा प्रणाली कार्यक्षमता को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है। इससे थनैला रोग, गर्भाशय की सूजन तथा अन्य बीमारियों के जोखिम में वृद्धि हो रही है। भारत में उष्मीय तनाव पशु उत्पादकता को प्रभावित करने वाला एक प्रमुख कारक है। कम वातावरणीय तापमान में तेजी से चलने वाली हवा पशुओं के लिए अत्यंत कष्टदायी होती है जो स्वास्थ्य, शारीरिक वृद्धि और उत्पादकता को प्रभावित करता है। जब सर्दियों में तापमान में गिरावट शुरू होती है या जब हमारे पशु 5 डिग्री सेल्सियस के नीचे के तापमान पर पहुँचते हैं, तो गाय की उत्पादकता और दक्षता पर गहरा प्रभाव पड़ता है।
https://www.ncbi.nlm.nih.gov/pmc/articles/PMC7419064/
डॉ आनंद कुमार जैन, डॉ आदित्य मिश्रा, डॉ दीपिका डी सीजर, डॉ संजू मंडल, डॉ ज्योत्सना शक्करपुड़े एवं डॉ. प्रीति वर्मा
पशु शरीर क्रिया और जैव रसायन विभाग
पशु चिकित्सा और पशुपालन महाविद्यालय जबलपुर -482001 (म.प्र)