मुर्गियों के पोषण में अम्लकारको (एसिडफायर्स) का प्रभाव और महत्व
डॉ. श्वेता राजोरिया, डॉ रश्मि चौधरी, डॉ. वंदना गुप्ता, डॉ मधु शिवहरे, डॉ. गायत्री देवांगन एवं डॉ. निधि सिंह चौधरी
नानाजी देशमुख पशु चिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालय, जबलपुर, म. प्र.
Corresponding author: shwetarajoriya@gmail.com
- प्रस्तावना
एंटीबायोटिक्स का उपयोग पशुधन उत्पादन में सुधार के लिए आधी सदी से भी अधिक समय से किया जा रहा है | एंटीबायोटिक्स और उनके उपयोग का जानवरों के स्वास्थ्य पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है| एंटीबायोटिक्स पशुधन और मुर्गीपालन में शारीरिक वृद्धी, प्रजनन क्षमता एवं उत्पादन क्षमता को प्रभावित करते है | रिसर्च के अनुसार मुर्गियों की वजन एवं दाना खाने की क्षमता मे लगभग 3-5% की वृद्धि हुई है| एंटीबायोटिक्स चयापचय को नियंत्रित करके, पोषक तत्वों की दक्षता में सुधार करके और बीमारियों से बचाव करके मुर्गियों में अपना प्रभाव बनाते है| लेकिन, एंटीबायोटिक्स का लंबे समय तक उपयोग पशुधन और मुर्गी पालन में दुष्प्रभावों के रूप में परिणत होता है, उदहारण के लिए माइक्रोबियल प्रतिरोध का विकास और मांस में एंटीबायोटिक्स के अवशिष्ट की मात्रा का बढ़ना। परिणामस्वरूप, कई यूरोपीय देशों ने इसके उपयोग को प्रतिबंधित या गैरकानूनी घोषित कर दिया है| किन्तु दुर्भाग्य से इस प्रतिबंधन से एंटीबायोटिक दवाओं के अवैध उपयोग, उत्पादन लागत में वृद्धि और फ़ीड दक्षता को कमी रुग्णता और मृत्यु दर में वृद्धि हुई है। परिणामस्वरूप, मुर्गी पालन में एंटीबायोटिक दवाओं के उपयोग के कई विकल्पों पर शोध किया जा रहा है। एंजाइम, प्रोबायोटिक्स, प्रीबायोटिक्स, जड़ी-बूटियाँ, आवश्यक तेल और इम्यूनोस्टिमुलेंट जैसे कई उत्पाद एंटीबायोटिक्स के विकल्प के रूप में उभरे हैं| इनमें से एक हैं कार्बनिक अम्ल या सीधे कह सकते हैं अम्लीयकारक (acidifiers)| कार्बनिक अम्ल पशु जठरांत्र में पोषण व पाचन संबंधी एक आवश्यक भूमिका निभाते हैं जिसमे और मुर्गियों के स्वस्थ्य को प्रभावित करते हैं| जैविक प्रोपियोनिक एसिड जैसे कार्बनिक एसिड का उपयोग खाद्य पदार्थों में बैक्टीरिया की और फफूंदी वृद्धि को कम करने और खाद्य पदार्थों को अच्छी गुणवत्ता के साथ संरक्षित करने के लिए 30 वर्षों से अधिक समय से किया जा रहा है| फॉर्मिक एसिड सहित फ्यूमरिक, साइट्रिक और लैक्टिक एसिड और उनके लवण जैसे कई कार्बनिक अम्लों का उपयोग स्वास्थ्य और उत्पादन वृद्धि के लिए किया गया है| मुर्गीपालन में उच्चतर फ़ीड रूपांतरण दर और दैनिक भार में वृद्धि के साथ-साथ दस्त लगने की घटनाओं में भी कमी आई है परिणामवरुप कम फ़ीड लागत और कम समय में आर्थिक लाभ बढ़ाने में कार्बनिक अम्ल का महत्वपूर्ण योगदान है|
- कार्बनिक अम्ल की परिभाषा
शब्द “कार्बनिक अम्ल” का प्रयोग यौगिकों के एक व्यापक वर्ग के लिए किया जाता है जो शरीर की मूलभूत चयापचय प्रक्रियाओं में शामिल होते है| सभी जैविक एसिड पानी में घुलनशीलता, अम्लीयता और निनहाइड्रिन-नकारात्मकता (कोई प्राथमिक या द्वितीयक एमाइन नहीं) जैसे सामान्य विशेषताएं साझा करते हैं। कार्बोक्जिलिक एसिड शब्द में आम तौर पर सभी को शामिल माना जाता है, चाहे कीटो, हाइड्रॉक्सिल, या अन्य गैर-अमीनो कार्यात्मक समूह उसके साथ हो या न हो लेकिन अधिकांश अमीनो एसिड को इनमे शामिल नहीं किया गया हैं। कुछ नाइट्रोजन युक्त यौगिक इसमें शामिल हैं, जैसे पायरोग्लूटामेट, या अमीनो संयुग्म जैसे हिप्पुरेट (बेंज़ॉयलग्लिसिन) साथ ही इसमें शॉर्ट चेन फैटी एसिड भी शामिल किये गए हैं|
तालिका 1: मुर्गी आहार अम्लीय के रूप में उपयोग किए जाने वाले कार्बनिक अम्लों और उनके गुणों की सूची
कार्बनिक अम्ल | एमईएन (एमजे/किग्रा) |
फार्मिक अम्ल | 11.34 |
एसिटिक अम्ल | 12.19 |
प्रोपियोनिक अम्ल
|
17.78 |
ब्यूटिरिक अम्ल
|
22.43 |
लैक्टिक अम्ल
|
14.53 |
मैलिक अम्ल
|
9.79 |
साइट्रिक अम्ल
|
10.29 |
वे या तो “सरल मोनोकार्बोक्सिलिक एसिड जैसे फॉर्मिक, एसिटिक, प्रोपियोनिक और ब्यूटिरिक एसिड या “हाइड्रॉक्सिल ग्रुप के साथ कार्बोक्जिलिक एसिड जैसे लैक्टिक, मैलिक, टार्टरिक और साइट्रिक एसिड या “द्विबंध युक्त लघु श्रृंखला” कार्बोक्जिलिक एसिड जैसे फ्यूमरिक और सॉर्बिक अम्ल होते हैं| रासायिक रूप से कोई यौगिक जिसमे सामान्य संरचना R-COOH हो, को कोई कार्बनिक अम्ल माना जाता है (फैटी एसिड और अमीनो एसिड सहित)। इनमें से सभी अम्लों का प्रभाव पर आंत माइक्रोफ्लोरा नहीं पड़ता है| विशिष्ट रोगाणुरोधी गतिविधि वाले कार्बनिक अम्ल हैं शॉर्ट-चेन एसिड (C1-C7) और वे प्रकृति में पौधों या जानवरों के ऊतकों के सामान्य घटक के रूप में व्यापक रूप से वितरित होते हैं| वे मुख्य रूप से बड़े पैमाने पर कार्बोहाइड्रेट के माइक्रोबियल किण्वन के माध्यम से आंत में भी बनते हैं| वे कभी-कभी सोडियम, पोटेशियम या कैल्शियम लवण के रूप में पाए जाते हैं| रोगाणुरोधी गतिविधि वाले अधिकांश कार्बनिक अम्लों का pKa (पीएच जिस पर एसिड आधा विघटित होता है) 3 और 5 के बीच होता है। तालिका 2 कार्बनिक अम्लों का सामान्य नाम, रासायनिक नाम, सूत्र और प्रथम pKa को दर्शाती है जो आमतौर पर मोनोगैस्ट्रिक जानवरों में आहारीय अम्लीय के रूप में उपयोग किये जाते है|
तालिका 2
- कार्बनिक अम्ल का चयन करने से पहले ध्यान देने योग्य बातें
कुक्कुट पोषण किसी भी आहार में परिवर्तन करने से पहले, हमें पोल्ट्री की गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल विशेषताओं और माइक्रोबियल पारिस्थितिकी तंत्र पर विचार करना चाहिए। कार्बनिक अम्ल और उनके लवण पीएच कम करके और माइक्रोबियल कोशिका में ऋणायन धनायन प्रभाव दिखाकर पेट और आंत के रोगाणुओं की वृद्धि पर विपरीत प्रभाव डालते हैं| जैसे क्लोस्ट्रीडियम पर्फ़्रिंजेंस, ई. कोली या साल्मोनेला प्रजाति के कई सूक्ष्मजीव की विकास दरें पीएच 5 से नीचे कम हो जाती हैं, जबकि एसिड सहिष्णु रोगाणुओं पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। एस्चेरिचिया कोली, लैक्टोबैसिलस एसपीपी, साल्मोनेला प्रजाति, कैम्पिलोबैक्टर जेजुनी की वृद्धि के लिए इष्टतम पीएच क्रमश 6-8, 5.4-6.4, 6.8-7.2 और 6.8-7.2 है। फ़ीड एडिटिव्स के रूप में उपयोग किए जाने वाले एसिड का पीके मान 3 और 5 के बीच होता है। मुर्गी पालन में एसिडिफ़ायर का उपयोग तीन तरीकों से किया जाता है:
१. पक्षियों के आहार में ठोस रूप में मिलाया जाता है। यह फीड में फफूंद के विकास और क्रॉप में पीएच कम करता है।
२. मुर्गियों के बिछौने पर छिड़काव किया जाता है । यह यूरिक एसिड को अमोनिआ
में विघटित करने वाले बैक्टीरिया को नष्ट कर अमोनिया उत्सर्जन की मात्रा को सीमित करता है|
३. बैक्टीरिया को मारने के लिए पानी में इंजेक्ट किया जाता है, जिसमे क्लोरीन भी मदद करता है| पक्षियों की क्रॉप में बैक्टीरिया और पीएच को कम करता है । यदि कार्बनिक अम्ल विघटित न हो तो ग्राम नेगेटिव बैक्टीरिया पर प्रभाव बढ़ जाता है (आकृति 1 )। इसी कारण से एसिडिफायर के रूप में ऐसे कार्बनिक अम्लों को शामिल करने की आवश्यकता होती है जो विभिन्न पीएच-मानों पर अविघटित रहते हैं, ताकि एंटी माइक्रोबियल क्रिया व्यापक पीएच रेंज में लंबे समय तक बनी रहती है।
चूँकि कार्बनिक अम्लों से चयापचय के दौरान ऊर्जा भी उपलब्ध होती है इसलिए, फ़ीड राशन की ऊर्जा गणना में इसे ध्यान में रखा जाना चाहिए। उदाहरण के लिए, प्रोपियोनिक एसिड में है गेहूं से पांच गुना तक ज्यादा ऊर्जा होती है|. कार्बनिक अम्लों द्वारा पीएच में कमी और उनकी रोगाणुरोधी गतिविधि उनकी पृथक्करण स्थिति पर निर्भर करता है। पृथक्करण की मात्रा विशिष्ट pK (पृथक्करण स्थिरांक) मान निर्भर करती है, कम pK मान वाला एसिड ज्यादा अम्लीय शक्ति का होगा, जो वातावरण के कम pH को कम करेगा | आहार में एसिडिफाइरेस सप्लीमेंट्स की दक्षता को प्रभावित करने वाले कारक:
- पीकेए-मान
- रासायनिक रूप (एसिड, लवण, लेपित )
- आणविक वजन
- एसिड का एमआईसी-मूल्य
- सूक्ष्म जीव का प्रकार
- जानवर की प्रजाति,
- जठरांत्र में स्थान
- फ़ीड की बफरिंग क्षमता
- आहार सामग्री की बफरिंग क्षमता:
बफरिंग क्षमता एसिड ( HCl 0.1 मोलर ) की वह मात्रा है जो 10-ग्राम सामग्री के घोल को दिए गए पीएच (आमतौर पर 3 से 5) तक पहुंचने के लिए आवश्यक होती है| प्रोटीन और खनिज इसमें सबसे अधिक योगदान देती हैं। अनाज और अनाज के उपोत्पादों की बफरिंग क्षमता कम होती है।ऐसिडिफाइर्स आहार की बफरिंग क्षमता को काम कर देते है जिससे महत्वपूर्ण एन्ज़इम्स के क्रियाविधि कम होने से माइक्रोबियल प्रसार पर नियंत्रण होता है। एक रिसर्च के अनुसार बफरिंग क्षमता को 23.5 से बढ़ाकर 56.7 करने से अमीनो एसिड की पाचनशक्ति में 10% तक कमी आई । एक अनुशंसित बफ़रिंग पोल्ट्री स्टार्टर आहार के लिए क्षमता मान 0 से 10. है| .
- अम्लीकरण में कार्बनिक अम्लों का प्रकार:
१. मुक्त अम्ल रूप (पाउडर, तरल)।
२. लवण के रूप में: ए) सामान्य रूप, बी) संरक्षित/लेपित नमक।
पोल्ट्री में कार्बनिक अम्लों का सामान्य समावेश:
- फफूंद को नियंत्रित करने के लिए 0.5 किग्रा/टन फ़ीड
- पीएच को कम करने और साल्मोनेला नियंत्रण में मदद करने के लिए 2.5 से 3.0 किग्रा/टन फ़ीड।
6.कार्बनिक अम्लों की क्रिया की विधि
एंटीबायोटिक दवाओं की तरह, कार्बनिक अम्लों में रोगाणुरोधी गतिविधि होती है। एसिड जीवाणु की कोशिका भिति में प्रवेश कर सामान्य जैव क्रियायों को बाधित करते हैं जैसे साल्मोनेला प्रजाति, ई. कोलाई, क्लॉस्ट्रिडिया प्रजाति , लिस्टेरिया प्रजाति, कुछ कोलीफॉर्म आदि। इसलिए, एसिडिफाइर्स युक्त फीड खाने वाली मुर्गियों में रोगजनक बैक्टीरिया के साथ साथ सामान्य आंत्र बैक्टीरिया की कुछ प्रजातियों की संख्या में भी कमी आती है।
आकृति १: असिडिफिएर्स की क्रियात्मक गतिविधि
7. कार्बनिक अम्लों का जीवाणुरोधी स्पेक्ट्रम: प्रत्येक एसिड का रोगाणुरोधी गतिविधि का अपना स्पेक्ट्रम होता है। उदाहरण के लिए, सॉर्बिक एसिड अपनी एंटीमोल्ड गतिविधि के लिए बेहतर जाना जाता है, लेकिन लैक्टिक एसिड बैक्टीरिया के खिलाफ अधिक प्रभावी है। फॉर्मिक एसिड, प्रोपियोनिक एसिड और एचएमबी में व्यापक रोगाणुरोधी गतिविधियां हैं जो यीस्ट सहित बैक्टीरिया और कवक के विरूद्ध प्रभावी है। यह बताया गया है कि कुछ एसिड के मिश्रण में सहक्रियात्मक रोगाणुरोधी गुण होते हैं| एसिटिक, ब्यूटिरिक, लैक्टिक और कैप्रिलिक एसिड के लिए एमआईसी ई. कोलाई में 4 ग्राम/लीटर से कम है, लेकिन यही जीवाणु लगभग है मैलिक, टार्टरिक और साइट्रिक एसिड के प्रति 10 गुना अधिक प्रतिरोधी है |
8. मुर्गियों के फीड में कार्बनिक अम्ल का उपयोग:
बेहतर ब्रॉयलर प्रदर्शन की पहली रिपोर्टों में से एक फॉर्मिक एसिड के बारे में थी, जब फीड में केवल फॉर्मिक एसिड दिया गया था। इसके बाद, इज़ात ने ब्रॉयलर राशन में कैल्शियम फॉर्मेट को शामिल करने के बाद शव और सीकल नमूनों में साल्मोनेला प्रजाति के स्तर में कमी से अवगत कराया था। इज़ात ने दिखाया कि बफर्ड प्रोपियोनिक एसिड का उपयोग ब्रॉयलर मुर्गियों की आंत में रोगजनक माइक्रोफ़ेलोरा को नष्ट करने के लिए किया जा सकता है, जिसके परिणामस्वरूप मुर्गियों में स्चेरिचिया कोली और साल्मोनेला प्रजाति में उल्लेखनीय कमी आई। शुद्ध फॉर्मिक एसिड का उपयोग ब्रीडर आहार ने ट्रे लाइनर्स और हैचरी अपशिष्ट में साल्मोनेला एंटरिटिडिस के संक्रमण को कम कर दिया। ऐसिडिफाइर्स के रूप में कार्बनिक अम्ल बैक्टीरियोस्टेटिक होते है और पोल्ट्री के लिए पानी एवं फ़ीड में साल्मोनेला-नियंत्रण एजेंट के रूप में उपयोग किये जाते हैं। विभिन्न दुर्बल अम्लों जैसे फॉर्मिक, फ्यूमरिक, प्रोपियोनिक, लैक्टिक और सॉर्बिक एसिड के साथ पोल्ट्री फीड के अम्लीकरण से बैक्टीरियल कॉलोनी निर्माण और विषैले मेटाबोलाइट्स उत्पादन में कमी तो होती ही है साथ ही प्रोटीन और कैल्शियम, फॉस्फोरस, मैग्नेशियम और ज़िंक की पाचनशक्ति में सुधार करते हैं। कई अध्ययनों से पता चला है कि कार्बनिक अम्लों की पूर्ति ब्रॉयलर आहार से विकास प्रदर्शन में वृद्धि हुई, बीमारियाँ और प्रबंधन सम्बंधित समस्याएं कम हुईं, असिडिफायर्स का प्रभाव तालिका ३ में दिए गए है| तालिका ३: असिडिफायर्स का प्रभाव व सांद्रता
एसिड | सांद्रता % | प्रभाव |
फूमरिक एसिड | 0.50- 1.00 | ब्रोइलर्स के भार वृद्धि में सुधार, ब्रोइलर्स और लेयर्स की फीड रूपांतरण क्षमता में सुधार |
प्रोपिओनिक एसिड | 0.15 – 0.2. | मादा पक्षियों के मांस की मात्रा में बढ़ोत्तरी नर पक्षियों के वसा में कमी |
मैलिक एसिड | 0.50- 2.00 | शारीरिक वजन में वृद्धि |
सोर्बिक एसिड | 1.12 | फीड रूपांतरण क्षमता में वृद्धि |
टारटरिक एसिड | 0.33 | शारीरिक वजन में वृद्धि |
लैक्टिक एसिड | 2.00 | आहार से शारीरिक वृद्धि के अनुपात में वृद्धि |
फोरमिक एसिड | 0.50 – 1.00 | सिकल pH में कमी और साल्मोनेला पर जीवाणुनाशक प्रभाव |
बेंज़ोइक एसिड | 0.20 | वृद्धि पर सकारात्मक प्रभाव |
ब्यूटिरिक एसिड | 0.15 | लाभप्रद मइक्रोफ्लोरा को बनाये रखें आंत्र कोशिकाओं की संख्या में तीव्र वृद्धि |
हिंटन और लिंटन ने फॉर्मिक और प्रोपियोनिक एसिड के मिश्रण का उपयोग करके ब्रॉयलर में साल्मोनेला संक्रमण का अध्ययन किया । उन्होंने प्रदर्शित किया कि इस कार्बनिक अम्ल मिश्रण का 6 किग्रा/ टन (0.6%) आंतों के साल्मोनेला प्रजाति कोलोनिजाशन को रोकने में प्रभावी था चाहे संक्रमण प्राकृतिक या कृत्रिम रूप से दूषित फ़ीड से हुआ हो। ऐसिडिफाइयर्स का प्रयोग हमेशा ही ब्रॉयलर की वृद्धि व् विकास में सकारात्मक भूमिका प्रद्रशित करते है। हालाँकि, एक महत्वपूर्ण बिंदु यह है कि कार्बनिक अम्ल का अग्रांत्र (क्रॉप से गिजार्ड) में तेजी से चयापचय होता है, जिससे इनका प्रभाव कम हो जाता है।
कार्बनिक अम्ल के डबल साल्ट, जैसे पोटेशियम डाइफॉर्मेट और सोडियम डाइफॉर्मेट, जो छोटी आंत तक पहुंच जाते हैं, महत्वपूर्ण प्रभाव प्रदर्शित करते है। पोटेशियम डाइफॉर्मेट के 0.3-1.2% दर से उपयोग करने पर हैचिंग के 35 दिन बाद तक इनका प्रभाव देखा गया (चित्र 5)। इसके अलावा, ब्रॉयलर में रोगजनकों बैक्टीरिया (साल्मोनेला, कैम्पिलोबैक्टर और एंटरोबैक्टर) की संख्या में कमी लेकिन मुर्गियाँ में लाभप्रद लैक्टोबैसिली और बिफीडोबैक्टीरिया की संख्या में वृद्धि देखि गयी है ।
मिकेलसेन ने दिखाया कि 0.45% पोटेशियम डाइफॉर्मेट से नेक्रोटिक एंटरटाइटिस (क्लोस्ट्रीडियम परफिरिंगेंस) के कारण मृत्यु दर कम हो गयी। नेक्रोटिक आंत्रशोथ के प्रकोप के बाद (परीक्षण अवधि का 35वां दिन), पोटेशियम डाइफॉर्मेट जेजुनम से क्लोस्ट्रीडियम परफिरेंजेंस की संख्या में उल्लेखनीय रूप से कमी आई जैसे फॉर्मिक एसिड क्लोस्ट्रीडियम परफिरिंगेंस की वृद्धि कृत्रिम परिवेश (इन विट्रो) में रोकता है।
कार्बनिक अम्ल को उचित समय मिलाने से चिकन मीट और अंडे का संक्रमण कम करना संभव है | शॉर्ट-चेन फैटी एसिड की तुलना में मध्यम-श्रृंखला फैटी एसिड साल्मोनेला के खिलाफ अधिक प्रभावी होते हैं। इन अम्लों का जीवाणुरोधी प्रभाव प्रजाति-विशिष्ट है। जो बैक्टीरिया अंतरकोशिकीय पीएच को कम करने में असमर्थ हैं, कार्बनिक अम्ल उनकी कोशिका झिल्लियों में pH प्रवणता के अनुसार आयन जमा करते हैं । शॉर्ट-चेन फैटी एसिड विशेष रूप से ब्यूटायरेट साल्मोनेला प्रजाति में आक्रामक जीन कीअभिव्यक्ति को नियंत्रित करता है। साथ ही मध्यम-श्रृंखला फैटी एसिड और प्रोपियोनेट साल्मोनेला प्रजाति की उपकला कोशिकाओं पर आक्रमण क्षमता को कम कर देते हैं।
कई अध्ययन इसका समर्थन करते हैं कि साइट्रिक एसिड को ब्रॉयलर राशन में मिलाने से ब्रॉयलरके वजन में सुधार हुआ, फ़ीड खपतमें वृद्धि हुई और फ़ीड दक्षता बेहतर हुई। साथ ही, इससे फॉस्फोरस की मात्रा शरीर में बढ़ी, सिकल डाइजेस्टा, क्रॉप और गिज़र्ड का pH भी कम हो गया और ब्रॉयलर चूज़ों में आंत और प्रतिरक्षा प्रतिक्रियाओं में सुधार हुआ| मुर्गीयों को सबसे पहले फार्म में रखे जाने के प्रारम्भ के 7 दिनों के लिए मुर्गी के पीने के पानी को अम्लीकृत करना महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि क्रॉप और आंतों की माइक्रोबियल वातावरण अभी भी पूर्ण रूप से विकसित नहीं होता है|
लैक्टिक एसिड बैक्टीरिया (लैब ) द्वारा क्रॉप का पीएच कम बनाए रखना नवजात चूजों और मुर्गों में महत्वपूर्ण है। अम्लीकृत पीने का पानी लैब को सुरक्षा परत प्रदान करता है और इनसे क्रॉप की सामान्य वातावरण के एक भाग के रूप में स्थापित करने में मदद मिलती है। एक बार क्रॉप की लैक्टिक एसिड बैक्टीरिया (लैब ) सामान्य संख्या बन जाए तो पक्षी जब तक चारा उपलब्ध है तब तक क्रॉप का pH कम बनाए रखने में सक्षम हो जाएगा।
- कुक्कुट पोषण में कार्बनिक अम्लों के उपयोग की सीमाएँ:
- फीड की स्वादिष्टता कम हो सकती है, जिससे पक्षी खाने में अरुचि दिखा सकता है।
ii.कार्बनिक अम्ल धात्विक पोल्ट्री उपकरणों के लिए संक्षारक होते हैं।
iii.ऐसा माना जाता है कि बैक्टीरिया लंबे समय तक अम्लीय वातावरण के संपर्क में आने पर एसिड प्रतिरोध विकसित कर लेते हैं|
iv.अन्य रोगाणुरोधी यौगिकों की उपस्थिति इसकी क्षमता कम कर सकती है ।
v.फार्म के वातावरण की स्वच्छता।
vi.आहार सामग्री की बफरिंग क्षमता।
- निष्कर्ष:
कार्बनिक अम्ल अम्लीय प्रभाव वाले पोषक तत्व होते हैं जिनका उपयोग हानिकारक सूक्ष्मजीवी आबादी को रोकने या उनसे निपटने के लिए पोल्ट्री फ़ीड में किया जा सकता है, ताकि वे जैविक रूप से पक्षियों के स्वास्थ्य और प्रदर्शन में सुधार कर सकें। हालाँकि, पोषण विशेषज्ञ को कुछ महत्वपूर्ण मुद्दों पर विचार करना चाहिए जैसे कि मुर्गियों का प्रकार और उम्र, उनके जठरांत्र मार्ग के सूक्ष्मजीव पारिस्थितिकी, पीएच और पोषण तत्वों की बफरिंग क्षमता।
- Reference:
Andrys R, Klecker D, Zeman L, et al. The effect of changed pH values of feed in isophosphoric diets on chicken broiler performance. Czech Journal of Animal Science. 2003;48(5):197–206.
Atapattu NSBM, Nelligaswatta CJ. Effects of citric acid on the performance and utilization of phosphorous and crude protein in broiler chickens fed rice byproducts based diets. International Journal of Poultry Science. 2005;4(12):990–993.
Dawson A. Effect of enzyme supplementation and acidification of diets on nutrient digestibility and growth performance of broiler chicks. Poult Sci. 2009;88(1):111–117
Denil M, Okan F, Celik K. Effect of dietary probiotic, organic acid and antibiotic supplementation to diets on broiler performance and carcass yield. Pakistan Journal of Nutrition. 2003;2(2):89–91.
Hinton M, Linton AH. Control of Salmonella infections in broiler chickens by the acid treatment of their feed. Veterinary record. 1988;123(16):416‒421.
Izat AL, Tidwell NM, Thomas RA, et al. Effects of a buffered propionic acid in diets on the performance of broiler chickens and on the microflora of the intestine and carcass. Poultry Science. 1990;69(5):818‒826.
Martinez-Amezcua C, Parsons CM, Baker DH. Effect of microbial phytase and citric acid on phosphorus bioavailability, apparent metabolizable energy, and amino acid digestibility in distillers dried grains with soluble in chicks. Poultry Science. 2006;85(3):470–475.
Menconi A, Kuttappan VA, Hernandez-Velasco X, et al. Evaluation of a commercially available organic acid product on body weight loss, carcass yield, and meat quality during preslaughter feed withdrawal in broiler chickens: A poultry welfare and economic perspective. Poultry Science. 2014;93(2):448–455.
Mikkelsen LL, Vidanarachchi JK, Olnood CG, et al. Effect of potassium diformate on growth performance and gut microbiota in broiler chickens challenged with necrotic enteritis. British poultry science. 2009;50(1):66‒75.
Rahmani HR, Speer W. Natural additives influence the performance and humoral immunity of broilers. International Journal of Poultry Science. 2005;4(9):713–717.
Yesilbag D, Çolpan I. Effects of Organic Acid Supplemented Diets on Growth Performance, Egg Production and Quality and on Serum Parameters in Laying Hens. Revue Méd Vét. 2006;157(5):280‒284.