पशुधन आहार में एजोला को सम्मिलित करने का महत्व
IMPORTANCE OF AZOLLA IN ANIMAL FEEDING
दिव्यांशु पांडे¹, श्रुति गुप्ता², अंकिता भोसले3, नीलम पुरोहित4, स्नेहलमिसाळ51, 5 पशु आनुवांशिकी एवं प्रजनन विभाग, राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान करनाल हरियाणा -1320012, 3, 4 पशुधन उत्पादन एवं प्रबंधन विभाग, राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान करनाल हरियाणा–132001
भारत की जनसंख्या में वृद्धि के साथ उसके पालन-पोषण के लिए खाद्य उत्पादन की मांग भी बढ़ती जा रही है | उसको पूर्ण करने के लिए वैज्ञानिक भिन्न-भिन्न तरीकों से उत्पादन बढ़ाने का निरंतर प्रयास कर रहे हैं | दूध, मांस, अंडा – कुछ ऐसे खाद्य पदार्थ है जो सभी श्रेणियों के व्यक्ति के लिए अनिवार्य है और समय के साथ इसकी महत्वता बढ़ती ही रहेगी | पशु मूल के खाद्य पदार्थ का उत्पादन – पशु का स्वास्थ्य, उसका पोषण और उसका शारीरिक क्रिया पर निर्भर करता है| यदि पशु को संतुलित आहार प्राप्त होता है तो वे ज्यादा से ज्यादा उत्पादन करने हेतु सक्षम रहते हैं | हाल ही में वैज्ञानिको ने पशु के पोषण को पूर्ण करने के लिए एक उपाय निकाला है जो पशुओं के आहार की भी पूर्ति करता है और साथ ही किसानों के लिए भी लाभकारी है |
एजोला जल की सतह पर मुक्त रूप से तैरने वाला फर्न है। जो शैवाल से मिलती-जुलती है। यह छोटे-छोटे समूह में हरित गुक्ष्छ की तरह तैरता है। सामान्यतः एजोला, धान के खेत या उथले पानी में उगाई जाती है। यह तेजी से बढ़ती है| कम से कम आठ प्रजातियां हैं दुनिया भर में अजोला की; एजोला कैरोलिनियाना, एजोला सर्किनाटा, एजोला जैपोनिका, एजोला मेक्सिकाना, एजोला माइक्रोफिला, एजोला निलोटिका, एजोला पिन्नाटा और एजोला रूब्रा। भारत में मुख्य रूप से “अजोला पिन्नाटा” नामक अजोला की जाति पाई जाती है जो काफी हद तक गर्मी सहन करने वाली जाति है। एक तरफ जहाँ इसे धान की उपज बढ़ती है वहीं ये कुक्कुट, मछली और पशुओं के चारे के काम आता है। यह एक जैव उर्वरक है।
विशेषता
ü यह अनुकूल वातावरण में ५ दिनों में ही दो-गुना हो जाता है। यदि इसे पूरे वर्ष बढ़ने दिया जाये तो ३०० टन से भी अधिक सेन्द्रीय पदार्थ प्रति हेक्टेयर पैदा किया जा सकता है | यानी ४० कि०ग्रा० नत्रजन (Nitrogen) प्रति हेक्टेयरü एजोला में ३.५ प्रतिशत नत्रजन तथा कई तरह के कार्बनिक पदार्थ होते हैं जो भूमि की ऊर्वरा शक्ति बढ़ाते हैं ।ü धान के खेतों में इसका उपयोग सुगमता से किया जा सकता है। २ से ४ इंच पानी से भरे खेत में १० टन ताजा एजोला को रोपाई के पूर्व डाल दिया जाता है। इसके साथ ही इसके ऊपर ३० से ४० कि०ग्रा० सुपर फास्फेट का छिड़काव भी कर दिया जाता है। ü इसकी वृद्ध के लिये ३० से ३५ डिग्री सेल्सियस का तापक्रम अत्यंत अनुकूल होता है।ü अजोला में प्रोटीन, आवश्यक अमीनो एसिड, विटामिन (विटामिन ए, विटामिन बी-12 तथा बीटा-कैरोटीन) एवं खनिज लवण जैसे कैल्शियम, फास्फ़ोरस, पोटेशियम, आयरन, कापर, मैगनेशियम आदि प्रचुर मात्रा में पाए जाते है। ü इसमें शुष्क मात्रा के आधार पर 20-30 प्रतिशत प्रोटीन, 10-15 प्रतिशत खनिज एवं 7-10 प्रतिशत एमीनो अम्ल, 10-13 प्रतिशत रेशा, जैव सक्रिय पदार्थ एवं पोलिमर्स आदि पाये जाते है।ü इसमें कार्बोहाइड्रेट एवं वसा की मात्रा अत्यन्त कम होती है (20-30%) , अतः इसकी संरचना इसे अत्यन्त पौष्टिक एवं असरकारक आदर्श पशु आहार बनाती है।
उपयोग
ü अजोला सस्ता, सुपाच्य, पौष्टिक, पूरक पशु आहार है। इसे खिलाने से पशुओं के दूध में वसा व वसा रहित पदार्थ सामान्य आहार खाने वाले पशुओं की अपेक्षा अधिक पाई जाती हैं।ü यह पशुओं में बांझपन निवारण में उपयोगी है।ü पशुओं के पेशाब में खून आने की समस्या फॉस्फोरस की कमी से होती है जो अजोला खिलाने से दूर हो जाती है। ü अजोला से पशुओं में कैल्शियम, फॉस्फोरस, लोहे ( iron) की आवश्यकता की पूर्ति होती है जिससे पशुओं का शारिरिक विकास अच्छा है। ü यह गाय, भैंस, भेड़, बकरियों , मुर्गियों आदि के लिए एक आदर्श चारा सिद्ध हो रहा है।ü दुधारू पशुओं पर किए गए प्रयोगों से पाया गया है कि जब पशुओं को उनके दैनिक आहार के साथ 1.5 से 2 किग्रा. अजोला प्रतिदिन दिया जाता है तो दुग्ध उत्पादन में 15-20 प्रतिशत वृद्धि होती है।ü इसमें उत्तम गुणवत्ता युक्त प्रोटीन एवं उपरोक्त तत्व होने के कारण पशु इसे आसानी से पचा लेते हैं।ü यह पशुओं के लिए प्रतिजैविक (अन्टीबायोटिक) का कार्य करती है। यह पशुओं के लिए आदर्श आहार के साथ साथ भूमि उर्वरा शक्ति बढाने के लिए हरी खाद के रूप में भी उपयुक्त है।ü दूध की संरचना पशुओं के आहार की गुणवत्ता पर निर्भर करती है | वैज्ञानिकों के अनुसार यह पाया गया है कि दुधारू भैंस को यदि हम @ 2 kg / पशु / दिन अजोला खिलते है तो वह लगभग 25% अनाज की पूर्ति करता है और दूध के उत्पादन को 10% और 0.5% वसा , एस.एन.एफ. को बढ़ाता है| इससे किसान को Rs.6/पशु / दिन का मुनाफ़ा अनाज पर और Rs.9/ पशु / दिन का मुनाफ़ा दुग्ध उत्पादन पर होता है|ü मांस उत्पादक पशुओं जैसे भेड़, बकरी, मुर्गी, शूकर में शरीर का वजन बढ़ाने में मदद करता है जिस से किसान को कम समय में ज्यादा आर्थिक लाभ होता है| चूंकि अजोला की उत्पादन लागत बहुत ही कम ( प्रति किग्रा. एक रूपये से भी कम) आती है, इसलिए यह किसानो के बीच तेजी से लोकप्रिय होता जा रहा है और यही कारण है कि दक्षिण से शुरू हुआ अजोला की खेती का कारवां अब भारत के विभिन्न प्रदेश तक जा पहुंचा है। इसकी विभिन्न विशेषताओं से अभिभूत किसान अपने आसपास खाली पड़ी जमीन में ही नहीं बल्कि अपने घर की छतों पर भी इसका उत्पादन कर रहे है। इस प्रकार दिन-प्रतिदिन कम होती जा रही खेती योग्य जमीन और मौसम की अनिश्चिताओ के कारण पशुओ के लिए हरे चारे के संकट से जूझ रहे किसानो व डेयरी किसानो के लिए एजोला किसी वरदान से कम नहीं है।