शूकर / सुअर उत्पादन क्षेत्र में जैव सुरक्षा उपाय के महत्व
डॉ. लक्ष्मी कान्त1 एवं डॉ. अभिनव मीणा2
1पीएचडी स्कॉलर, राजस्थान पशु चिकित्सा और पशु विज्ञान विश्वविद्यालय बीकानेर (राजस्थान)
2सहायक आचार्य, अपोलो कॉलेज ऑफ़ वेटेरिनरी मेडिसिन, जयपुर
राजस्थान पशु चिकित्सा और पशु विज्ञान विश्वविद्यालय बीकानेर (राजस्थान)
पशुओं विशेष रूप से शूकर / सुअर से मानवों और मानवों से पशुओं को होने वाली बीमारी की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है | ये बढ़त राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देखी जा सकती है | उदाहरण के लिए निपाह विषाणु एवियन इनफ़्लुएंज़ा और विश्यव्यापी एच१ एन१ २००९ विषाणु का प्रकोप |
ये रोग आम जनता की सेहत और पशुओं के व्यापार पर नकारात्मक प्रभाव डालते है, इसलिए इनका रोकथाम बहुत ज़रूरी है |
विकसित जैव सुरक्षा कार्यक्रम और उसका सुचारू कार्यान्वयन का महत्व – यह खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम का एक आवश्यक घटक है |
उपभोक्ता भोजन और उसके उत्पादों को खरीद / उपयोग के समय उसकी गुणवत्ता और खाद्य आपूर्ति की सुरक्षा का मुख्य रूप से ध्यान रखता है | एक विकसित जैव सुरक्षा कार्यक्रम के कारण उपभोक्ता स्वीकार्यता बढ़ जाती है | स्वस्थ जानवर के अनुपात में वृद्धि जो अधिक उत्पादक हैं | बेहतर पशु कल्याण बेहतर कार्य कुशलता / दक्षता, यह सभी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से और सूअर का मांस / पोर्क उत्पादक को लाभ प्रदान करते है |
जैव सुरक्षा का सिद्धांत :- इस प्रकार के उपायों का क्रियंवान करना जो की नई बीमारिओं को पशुओं के झुंड में आने के ख़तरे को कम करें और रोगों को पशुओं में फैलने से रोके (आंतरिक नियंत्रण | इसके लिए ज़रूरी है कि पशुपालक और इस व्यवसाय से जुड़े लोग अपना नज़रिया और व्यवहार बदले और नई बीमारिओं के ख़तरे को घरेलू विदेशी और जंगली जानवरों और उनसे मिलने वाले उत्पाद सभी में कम करने का प्रयास करें |
जैव सुरक्षा का लक्ष्य :-
१ . एक फार्म से दूसरे फार्म तक फैलने वाले रोग को सीमित करना
२ . सूअर से सुअर रोग के संचरण को सीमित करना
३ . संक्रामक सूअर रोगों के प्रभाव को कम करना
४ . आर्थिक नुकसान को कम करना
सूअरों में बीमारी संचरण के मार्ग :-
१ . प्रत्यक्ष सुअर–से–सुअर संपर्क –
यह मार्ग सुअर रोगों के संचरण के लिए सबसे शक्तिशाली और सामान्य मार्ग है | यह रोगों को संक्रमित सुअर से अतिसंवेदनशील सुअर के बीच सीधे संपर्क के माध्यम से फैलाता है | बहुत नज़दीकी लंबे समय तक या बार – बार सम्पर्क उदाहरण के लिए परिवहन के दौरान ट्रकों में गौशाला में सामूहिक चराई के दौरान – रोग संचरण की संभावना बढ़ जाती है |
कुछ जानवर जो स्वस्थ लगता है वह भी रोगाणुओं का उत्सर्जन कर सकता है, ऐसे जानवर बहुत खतरनाक हैं | इन जानवरों को रोगज़नक़ों के मूक वाहक कहा जाता है |
२ . पशु वीर्य/ शुक्र/ बीज –
सूअर वीर्य में कई संभावित रोगजनक शामिल हो सकते हैं | वीर्य संग्रह और वितरण के दौरान उचित स्वच्छता बहुत जरूरी है | सामान्यतया वीर्य कूरियर द्वारा फ़ार्म में आता है, कूरियर आने के तुरंत बाद वीर्य का बैग कूरियर से निकाल कर ६३ डिग्री फ़ारेनहाइट के तापमान पर वीर्य कूलर में रखना चाहिए | सभी वीर्य पैकेजिंग (बैग स्टायरोफोम कूलर आदि फ़ार्म के बाहर रहना चाहिए |
३ . हवा के माध्यम से -
कोई दो फ़ार्म के बीच सुरक्षित दूरी होना चाहिए | यह दूरी फ़ार्म के आकार हवा में रोगज़नक़ों का स्तर पर्यावरणीय परिस्थितियों के विरुद्ध रोगजनकों में प्रतिरोध जलवायु परिस्थितियों और स्थानीय भूगोल पर निर्भर करता है |
- उदाहरण – एफ.एम.डी. विषाणु २० किलोमीटर तक हवा द्वारा ले जाया जा सकता है |
- स्यूडोराबीज विषाणु ९ किलोमीटर तक हवा द्वारा ले जाया जा सकता है |
- छोटी – छोटी बूंदों से सूअर इन्फ्लूएंजा वायरस किसी परिसर के अंदर कम दूरी तक फैल सकता है |
४ . सामान्य मनुष्य / लोग –
लोग जूते कपड़े हाथ आदि के मध्यम से रोगजनकों को फैला सकते है | लोग प्रत्यक्ष संक्रमित हो सकते हैं और रोगजनकों के वाहक भी | सुअर फ़ार्म के कामगारों / पशुपालक को इससे अवगत होना चाहिए, किसान / पशुपालक सुअर फ़ार्म के कार्यकर्ता तकनीकी अधिकारी और पशु चिकित्सक को कई फ़ार्म का दौरा करने की आवश्यकता हो सकती है | जिससे एक फार्म से दूसरे फार्म पर रोग फैलने का ख़तरा बढ़ सकता है |
५ . वाहन और उपकरणों द्वारा –
सुअर – किसानों द्वारा उपयोग किए जाने वाले उपकरण को रोग फैलाने का संभावित स्रोत माना जाना चाहिए | उदाहरण – सुअर – मल लगे गंदे वाहन और उसके टायर एक फार्म से दूसरे फार्म पर रोग फैलने का ख़तरा बढ़ सकता है |
६. सुअर का चारा और पीने के पानी –
चारा और पानी दूषित हो सकते हैं, रोग बनाए रखने के और उसके फैलाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते है | कुछ रोगज़न क़ा दूषित मांस कचरे में जीवित रह सकते हैं, इसलिए इस प्रकार के खाद्य अपशिष्टों माँस को प्रयोग करते समय विशिष्ट ध्यान किया जाना चाहिए | कई देशों ने अप्रयुक्त मांस उत्पादों को सूअरों को खिला देने पर रोक लगाई है | ताजा सूअर का माँस रोगज़नक़ों के संचरण के लिए जोखिम कारक हैं |
७ . सुअर खाद / सुअर–मल और बिस्तर –
संक्रमित सूअरों से खाद में बड़ी मात्रा में वायरस बैक्टीरिया या परजीवी होते हैं | यह जीव दूषित हाथो, भोजन, पानी इत्यादि के मार्ग से मुख (फीको – ओरल मार्ग) में जा सकते है और मानव और पशु स्वास्थ्य के लिए जोखिम पैदा कर सकता है |
अगर सुअर खाद / सुअर – मल और बिस्तर आदि का पर्याप्त रूप से इलाज / प्रसंस्करण / निपटारा नहीं किया और इसका खेती के लिए खाद के रूप में प्रयोग किया गया तो यह मानव खाद्य श्रृंखला और पारिस्थितिकी तंत्र में रोगजनक रोगों को पेश कर / फैला सकता हैं |
सुअर – खाद में एस्केरिस, टीनिया, क्रिप्टोस्पोरिडियम, एरसीनिया और साल्मोनेला, क्षय / तपेदिक के बैक्टीरिया, कंपयलोबक्टोर, फीकल – कोलीफ़ॉर्म और अन्य रोगजनकों जैसेकि हेपेटाइटिस – ई वायरस हो सकते हैं |
बिस्तर में – माइकोबैक्टीरियम एवियम बैक्टीरिया हो सकते हैं |
सुअर खाद / सुअर – मल और बिस्तर को इन्फ्लूएंजा वायरस के लिए संचरण का एक प्रमुख स्रोत नहीं माना जाता है |
८ . पक्षियों, चमगादड़, मूषक, जंगली और जंगली सूअरों और आवारा / घरेलू पशुओं –
चूहे आमतौर पर सूअरों के साथ निकट संपर्क में रहते हैं और एक फ़ार्म से दूसरे तक कई रोगों को ले जा सकते हैं | मूषक ३ या ४ किमी तक यात्रा करने में सक्षम हैं |
पक्षी अपने मल से बीमारियों का प्रसार करते हैं | पक्षी बोर्डेटेला, एरीसीपेलस और एवियन ट्यूबरकुलोसिस प्रसारित कर सकते हैं |
जंगली जानवर कई रोगों का स्रोत होते है, जैसे ब्रुसेलोसिस, लेप्टोस्पायरोसिस, ट्राइचिनेला, स्यूडोराबीज और कई अन्य रोगजनकों |
९ . कीट – पतंग / सन्धिपाद –
मच्छर, मक्खियों, टिक्स आदि कई रोगज़नक़ों से संक्रमित होते है |
जैव सुरक्षा में सुधार करने के लिए किए गए उपाय निम्न पर निर्भर करते हैं –
१ . सुअर उत्पादन प्रणाली
२ . स्थानीय भौगोलिक स्थितियों
३ . सामाजिक – आर्थिक स्थितियों
जैव सुरक्षा के तीन मुख्य तत्व निम्न हैं :-
१ . अलगाव / पृथक्करण –
संक्रमित पशुओं और दूषित सामग्री को फैलने के संभावित अवसरों को सीमित करने के लिए बाधाओं का निर्माण और रख – रखाव करना चाहिए, जिससे की दूषित वाहक किसी अन्य साफ सुथरे स्थान / पशु को दूषित ना कर सके | अगर ठीक से लागू हो तो यह समाधान प्रदूषण और संक्रमण को रोक देगा |
अलगाव उपायों में शामिल हैं –
१ . बाहर खेतों बाजार या गांवों से सूअरों के प्रवेश को नियंत्रित करना
२. नए खरीदे गए जानवरों के लिए संगरोध (कोरांटीन) को लागू करना
३. एकल स्रोत से प्रतिस्थापन सूअर चुनें जॅहा विश्वसनीय आनुवंशिक सुधार कार्यक्रम और रोग नियंत्रण कार्यक्रम चालू हो
४. खेत / फ़ार्म के चारों ओर बाड़ लगाना
५ . लोगों साथ ही पक्षियों, चमगादड़, चूने, बिल्लियों और कुत्तों के लिए प्रवेश नियंत्रण
६. दो फ़ार्म के बीच में पर्याप्त दूरी बनाए रखने
७ . फार्म कर्मचारियों के लिए जूते और कपड़ों प्रदान करना जोकि केवल खेत पर पहना जाने के लिए हो
८. ऑल – इन – ऑल – आउट प्रबंधन प्रणाली का उपयोग करना |
२ . सफाई –
जैव सुरक्षा में अगला सबसे प्रभावी चरण सफाई है | सबसे अधिक रोगज़नक़ मल मूत्र या स्राव में उपस्थित होते हैं और उनकी सतह पर रहते हैं | सफाई इसलिए अधिकांश दूषित रोगजनकों को हटा देती है | किसी भी उपकरण और सामग्री की सतह पर कोई गंदगी दिखाई नहीं देनी चाहिए |
छोटी वस्तुओं की सफाई के लिए साबुन, पानी और एक ब्रश पर्याप्त हैं लेकिन बड़े वाहनों जैसे लॉरी या ट्रैक्टर के लिए एक उच्च दबाव वॉशर (११० से १३० बार) की आवश्यकता होती है |
उदाहरण:- उच्च दाब वाशर, कम दबाव वॉशर, वाहनों, परिसर और की सफाई, जूते की सफाई का उचित स्थान |
३ . कीटाणुशोधन / रोगाणुनाशन –
जैव सुरक्षा की अंतिम चरण कीटाणुशोधन है |
परिभाषा – पशु रोगों के संक्रामक या परजीवी को नष्ट करने की प्रक्रियाएं जो उचित सफाई के बाद की जाती है | यह परिसर, वाहनों और विभिन्न वस्तुओं पर लागू होता है, जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से रोगजनकों से दूषित हो सकते हैं |
उदाहरण :- एल्कोहॉल, फोर्मल्डीहाइड, क्लोरिन, फिनोल्स और एसिड्स आदि |
कीटाणुशोधन तभी महत्वपूर्ण है जब लगातार और सही ढंग से किया जाता है | कीटाणुशोधन उन सामग्रियों पर मौजूद किसी भी रोगजन को निष्क्रिय कर देता है जो पहले से अच्छी तरह साफ हो चुके हैं | निस्संक्रामकों को पर्याप्त और अनुशंसित सांद्रता में और समय तक इस्तेमाल किया जाना चाहिए |
- साफ़ सुथरा सुअर का उत्पादन –
यह सबसे बुनियादी पारंपरिक प्रणाली हैं इसमें स्वास्थ्य जोखिम कई हैं क्योंकि अन्य सूअरों और जानवरों के साथ संपर्क नियंत्रित नहीं है | यह रोग प्रसार के लिए अनुकूल परिस्थितियां बनाता है | सूअरों के मालिक प्रभावी जैव सुरक्षा उपायों को लागू नहीं कर सकते क्योंकि सुअर दिन में आज़ादी से घूमते हैं | इस प्रणाली में जैव सुरक्षा उपायों को अपनाना कठिन है | हालांकि कुछ ऐसे सरल उपाय हैं जिन्हें लागत और समय के संदर्भ में कम से कम ध्यान देने की जरुरत है | ये निम्नानुसार हैं
१. दवाओं द्वारा परजीवी नियंत्रण
२. नए खरीदे गए जानवरों के लिए अलगाव
३. एकल स्रोत से प्रतिस्थापन सूअर चुनें |
छोटे पैमाने पर सुअर का उत्पादन –
यह प्रणाली अक्सर घरों में पाया जाता है | पशु आश्रयों में ही सीमित होते हैं, जो स्थानीय साधारण सामग्री से बने होते हैं अथवा आधुनिक आवास भी हो सकते है | सुअर भोजन / फ़ीड के लिए पूरी तरह से उनके पशु मालिक पर निर्भर होते हैं | सुअर मांस स्थानीय बाजारों में बेच दिया जाता है |
कुछ ऐसे सरल उपाय हैं जिन्हें जैव सुरक्षा के संदर्भ में अधिक से अधिक ध्यान देने की जरुरत है | ये निम्नानुसार हैं :-
१ . केवल स्वच्छ सूअरों का प्रवेश |
२ . बीमार सूअरों के व्यापार से बचना |
३ . नए खरीदे गए जानवरों के लिए अलगाव |
४ . पक्षियों को रोकने के लिए जाल स्थापित करें |
५. फार्म उपयोग के लिए विशिष्ट कपड़े और जूते |
६. विभिन्न सुअर प्रजातियों को अलग रखें |
७. परजीवी नियंत्रण |
८. खाद / सुअर मल नियंत्रण |
९. रेस्तरां और रसोई से बचे हुए खाद्यय को तभी पशु को खिलाए जब वह एक न्यूनतम तापमान पर पर्याप्त अवधि के लिए गर्म किया गया हो ; कम से कम एक घंटे के लिए १०० डिग्री सेल्सियस |
१०. शवों के उचित निपटान – मृत पशु दफन किया जा सकता है, या जलाया जा सकता है / उचित उपचार के बाद बाइ-प्रोड्यूट्स / उप – पदार्थ में परिवर्तित कर सकते है, कंपोस्टिंग / उर्वरक बनाया जा सकता है |
११. सफाई और कीटाणुशोधन |
१२. टीका लगाना |
१३. कृत्रिम गर्भाधान का उपयोग करें |
संचार रणनीतियों के महत्व :-
१ . ग्रामीण समुदायों में सार्थक परिवर्तन करने के लिए एक अच्छी तरह से तैयार संचार योजना आवश्यक है |
२ . इस प्रकार की संचार रणनीतियों का निर्माण करने की आवश्यकता है, जिससे लोग अपनी स्थिति का अनुभव कर सके और खुद को परिस्थिति से जोड़ सके |
३. इस प्रकार की संचार रणनीतियों का निर्माण करने की आवश्यकता है जो जोखिम और लाभ बता सके |
https://www.pashudhanpraharee.com/pig-rearinga-profitable-bussiness/
https://epashupalan.com/hi/10155/swine-farming/complete-information-and-importance-of-pig-farming/