उष्ट्र दुग्ध:इम्युनिटीवर्धक एवं औषधीय गुणों का भंडार
डॉ. बरखा गुप्ता,सहायक आचार्य, पशुचिकित्सा कार्यिकी और जैव-रसायन विभाग, स्नाकोत्तर पशुचिकित्सा शिक्षा एवं अनुसन्धान संस्थान (पी.जी.आई.वी.ई.आर.), जामडोली, जयपुर
डॉ. गोविन्द सहाय गौत्तम, सह आचार्य एवं विभागााध्यक्ष, पशुचिकित्सा कार्यिकी और जैव-रसायन विभाग,स्नाकोत्तर पशुचिकित्सा शिक्षा एवं अनुसन्धान संस्थान (पी.जी.आई.वी.ई.आर.),जामडोली, जयपुर
डॉ. पवन कुमार मित्तल,टी.ए.,पशुचिकित्सा कार्यिकी और जैव-रसायन विभाग,स्नाकोत्तर पशुचिकित्सा शिक्षा एवं अनुसन्धान संस्थान (पी.जी.आई.वी.ई.आर.), जामडोली, जयपुर
ऊँटनी के दूध को रेगिस्तान का सफेद सोना कहा जाता है, जो मानव के दूध के समान होता है। आज के कोरोना युग में इम्युनिटी (रोग-प्रतिरोधक क्षमता) को बढ़ाने की ज्यादा आवश्यकता है, ऊँटनी का दूध परम-उपयोगी साबित हो सकता है। हमारे यहाँ ऊँटनी के दुग्ध का उपयोग गाॅवों में केवल ऊँटों से जुडे रायका एवं रेबारी समुदाय के लोगों द्वारा सामान्यतः किया जाता है, परन्तु अब इसके औषधीय गुणों के कारण ऊँटनी के दूध व उत्पादों की मांग लगातार बढती जा रही है। ऊँटनी के दूध में पानी (Water) 86-88 प्रतिशत, प्रोटीन (Protein) 3.0-3.9 प्रतिशत, वसा (Fat) 2.9-5.4 प्रतिशत, राख (Ash) 0.6-0.9 प्रतिशत एवं लैक्टोज (Lactose) 3.3 प्रतिशत पाया जाता है। अन्य स्तनधारियों के दूध से उष्ट्र दुग्ध रासायनिक संगटन में भिन्न होता है, जैसे कि कोलेस्ट्रोल व शर्करा का कम होना तथा खनिज लवण एवं विटामिन सी की अधिकता आदि। इसमें रक्षात्मक प्रोटीन जैसे लैक्टोफेरिन, लैक्टोपरआॅक्सीडेज, इम्युनोग्लोब्युलिन्स, पैप्टीडोग्लाइकान पहचान प्रोटीन (Peptidoglycan Recognition Protein) एवं लाइसोजाइम्स आदि सामान्यतः पाये जाते है। ऊँटनी के किण्वित दूध (Fermented Milk) में एंजीयोटेंसिन परिवर्तक एंजाइम निरोधात्मक गुण [Angiotensin-converting enzyme (ACE) inhibitors] पाया जाता है, जो कि रक्तचाप नियंत्रण में सहायक हैं। ऊँटनी के दुग्ध में बायोएक्टिव घटकों (Bioactive constituents) के कारण औषधीय गुण होते है, जिसके कारण यह डायबिटीज, टी.बी., हिपेटाईटिज, आॅटिज्म, पीलिया, त्वचा रोग, एंटी-एजिंग एवं कैंसर जैसी भयावह रोगों के उपचार में सहायक है। जिसने पिछले एक-दो दशक से वैज्ञानिकों की इसमें रूचि बढा दी है। ऊँटनी के दूध में बीटा-लेक्टग्लोब्युलिन अनुपस्थित/बहुत ही कम मात्रा (Trace) में होता है, जो मनुष्य में एलर्जी का मुख्य कारण है। इसीलिए यह दूध लेक्टोज इन्टोलरेन्स वाले मनुष्यों के लिए उपयुक्त है। पोषण के साथ-साथ इसमें एंटीवायरल, सूक्ष्मजीवरोधी क्षमता (Antimicrobial), एंटीफंगल, सूजनरोधी (Anti-inflammatory), प्रति-आॅक्सीकारक (Antioxidant) एवं कैंसररोधी (Anticancer) गुण पाये जाते है। मुख्यतः ऊँटनी के दूध में रासायनिक घटक जैसे लैक्टोफेरिन, लैक्टोपरआॅक्सीडेज, इम्युनोग्लोब्युलिन्स एवं लाइसोजाइम्स, विटामिन बी काॅम्प्लेक्स, विटामिन सी, जिंक और आयरन की अधिकता से मानवरोग जैसे डायबिटीज से लेकर कैंसर तक के उपचार में इसका उपयोग लाभदायक है। साथ ही यह गाय, भैंस, भेड आदि के दूध से ज्यादा पौष्टिक एवं प्रभावकारी सिद्ध हो रहा है। ऊँटनी के दूध के निरन्तर उपयोग से जहां डायबिटीज जैसे रोगों में लाभ होता है, वहीं रोग प्रतिरोधक क्षमता में भी उल्लेखनीय वृद्धि होती है। जिसका कारण सुरक्षात्मक प्रोटीन जैसे लाइसोजाईम, लैक्टोफेरिन (इम्युनोमोडॅयूलेटर) इम्युनोग्लाब्युलिन्स जैसे आई.जी.जी. (गाय के दूध से पांच गुणा ज्यादा) एवं आई.जी.ए. का उपस्थित होना है। रक्षात्मक प्रोटीन दूध की गुणवत्ता को लम्बे समय तक बनाये रखने में भी सहायक होते है। विटामिन-सी की मात्रा गाय के दूध से तीन गुणा ज्यादा होती है, जो प्रति-आॅक्सीकारक प्रकृति का होता है। लैक्टोफेरिन गाय के दूध से दस गुणा ज्यादा होता है। ऊँटनी के दूध में जस्ता, लोहा और ताम्बा की मात्रा गाय के दूध से काफी अधिक होती है, जो आंतो, अस्थियों, दांतो तथा रक्त के निर्माण के लिये आवश्यक होते है। साथ ही इसमें पाये जाने वाले विटामिन्स एवं खनिज लवण शरीर की सामान्य वृद्धि, उत्तम स्वास्थ्य एवं प्रजनन क्षमता को बढाते है। ऊँटनी के दूध में पाये जाने वाले प्रति-आॅक्सीकारक (Antioxidant) जैसे विटामिन सी आदि मुक्त मूलक (Free Redical) को पृथक करते है। जो कि इन्सुलिनग्राही को इन्सुलिन उपलब्ध कराता है। ऊँटनी के दूध में एल्फा-हायड्रोक्सी एसिड (Alpha Hydoxy acid) की मात्रा अधिक होती है। जो कि त्वचा संबंधी रोगों के उपचार में काम में आते है। लैक्टोफेरिन इम्युनोमोडॅयूलेटर का कार्य करता है। क्योंकि यह न्यूटरोफिल, मैक्रोफेज एवं लिम्फोसाईट्स जैसी इम्युन कोषिकाआंे की सक्रियता एवं परिपक्वता में सहायक है। साथ ही ऊँटनी के दूध मंे पाया जाने वाला लैक्टोफेरिन उपास्थि (Cartilage) की सुरक्षा हेतु एवं आर्थीराइटिकरोधी प्रभाव (Anti-arthritic) परिलक्षित होती है। इम्युनोग्लाब्युलिन्स जैसे आई.जी.जी. एवं आई.जी.ए. का उपचारात्मक लक्षण ऊँटनी के दूध का विशिष्ट गुण है। जिसका कारण इम्युनोग्लोब्युलिन्स में उपस्थित दो हैवी चैन्स है, साथ ही इसमें लाईट चैन्स अनुपस्थित रहती है। इस दूध का उपयोग इम्युन थैरेपी के रूप मंे कैंसर, मल्टीपल स्केलेरोसिस एवं एल्जाईमर रोग के उपचार में उपयोगी होता है। इस दूध में इन्सुलिन जैसा प्रोटीन होने के कारण एंटी-डायबिटीक गुण पाया जाता है। क्योंकि जस्ता की अधिकता के कारण इन्सुलिन एवं उसके ग्राही के मध्य परस्पर क्रिया बढ़ जाती है। इन्सुलिन जैसे प्रोटीन के अमीनोएसिड सिक्वेन्स (Sequence) में सिस्टीन रेजीडयू अधिक होता है, जो इन्सुलिन परिवार (insulin Family) के पैप्टाईज्ड के समान होता है। ऊँटनी के दूध में पाये जाने वाले इन्सुलिन जैसी प्रोटीन (Insulin like Protein) में एक और विशिष्ट गुण पाया जाता है कि यह नेनोपार्टिकल के अन्दर एन- कैप्सुलेशन करता है, जिससे अमाशय का पाचक एंजाइमों से बचाव होता है। ऊँटनी के दूध का रेडियोप्रतिरक्षापरख (Radioimmunoassay) अन्य पशुओं के दूध की तुलना में इन्सुलिन जैसे प्रोटीन की उच्च सांद्रता को दर्शाता है। उष्ट्र दुग्ध प्रोटीन में इन्सुलिन जैसे प्रोटीन के समान काफी विशेषताएं विद्यमान है तथा यह दूध, पेट के अम्लीय वातावरण में भी नहीं जमता (Coagulation)। इस प्रकार दूध के इन्सुलिन जैसे प्रोटीन के साथ आमाशय द्वारा तीव्रता से गुजरते है तथा आंत्र में अवशोषण हेतु उपलब्ध रहता है। ऊँटनी के दूध की बफरिंग क्षमता (Buffering capacity) गाय, भैंस एवं बकरी के दूध से भी अधिक होती है। ऊँटनी के दूध को उबालने पर भी इन्सुलिन/ इन्सुलिन जैसे प्रोटीन (Insulin like Protein) की सक्रियता में कमी आती है। इसलिए ऊँटनी के दूध को पराबैंगनी किरणों (UV-Rays) एवं एच.टी.एस.टी. विधि द्वारा पाश्च्युरीकृत करके रोगाणुरहित किया जा सकता है एवं जिससे इन्सुलिन जैसे प्रोटीन (Insulin like Protein) में भी अधिक क्षय नहीं होता है। उपरोक्त औषधीय गुणों के बावजूद भी ऊँटनी के दूध व उससे बने उत्पादों का उपयोग लोगों द्वारा पर्याप्त स्तर पर नहीं किया जा रहा है। अतः इसके औषधीय गुणों के बारे में लोगों को जागरूक करने तथा इसे डेयरी सेक्टर में समाहित करने की आवश्यकता है। साथ ही ऊँटनी के दूध का रासायनिक संगठन एवं औषधीय गुणों के गहन अनुसंधान की आवश्यकता है। जिससे मानव जाति इस कोरोना जैसी महामारी (Pandemic) में भी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढाकर सुरक्षित रह सके।