पशुशाला मे स्वच्छ दूध उत्पादन की अनिवार्यता एवं उपाय

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पशुशाला मे स्वच्छ दूध उत्पादन की अनिवार्यता एवं उपाय

दूध एक श्रेष्ठ पेय एवं सम्पूर्ण आहार है जिसमें लगभग सभी आवश्यक पोषक तत्व जैसे प्रोटीन, शक्कर, वसा, खनिज लवण तथा विटामिन आदि उचित मात्रा में पाये जाते है। भारतीय भोजन में दूध और दूध से बने पदार्थों का सदैव ही विशिष्ट स्थान रहा है। भारत में दूध के मुख्य स्रोत गाय और भैंस हैं। इसके अतिरिक्त बकरी और कुछ अन्य पशुओं से प्राप्त दूध का भी उपयोग किया जाता है। दूध जब पशु के थन से बाहर आता है उस वक़्त तक पुर्णतः जीवाणु/ विषाणु रहित एवं अन्य प्रकार के हानिकारक पदार्थों से मुक्त होता है। किन्तु दूध निकालते समय आवश्यक सतर्कता एवं उपाय न अपनाने पर इस की गुणवत्ता प्रभावित होने लगती है। दूध में मौजूदा पोषक तत्त्व ही दूध के संक्रमित हो जाने पर अवांच्छित सूक्ष्म जीवानुओ के विकास में सहायक होकर दूध को ख़राब कर देते हैं। इस वजह से सामान्य अवस्था में दूध को लम्बे समय तक रखना मुमकिन नहीं होता।

दूध में जीवाणुओं की वृद्धि होते ही दूध तेजी से खराब होने लगता है जिसके कारण दुग्ध उतापदाको को  नुकसान उठाना पड़ता है। इस हानि से बचने केलिए दुग्ध आपूर्ति श्रृंखला में कभी-कभी कई स्तरों पर कुछ लोग भिन्न-भिन्न तरह की मिलवाटे करने लगते हैं जिसके कारण बाजारों और दुग्ध प्रशंसकरण संयंत्रों को वांच्छित गुणवत्ता का दूध नहीं मिल पाता। संक्रमित दूध में मौजूद हानिकारक जीवाणु दूध के माध्यम से दूध पीने वालों में विभिन्न प्रकार की बीमारियाँ पैदा कर देते हैं। दूध को लम्बे समय तक सुरक्षित रखने, गन्दे एवं असुरक्षित दूध को पीने से होने वाली बीमारियों से उपभोक्ताओं को बचाने तथा अधिक आर्थिक लाभ कमाने के उद्देश्य से दूध का उत्पादन स्वच्छ तरीकों से करना अत्यन्त आवश्यक है। यह आवश्यक हो जाता है कि दूध के उत्पादन में उन प्रक्रियाओं को अपनाया जाये जिनसे स्वच्छ एवं सुरक्षित दूध प्राप्त हो सके।

स्वच्छ दूध का तात्पर्य

स्वच्छ दूध से तात्पर्य है स्वस्थ पशुओं से प्राप्त वो दूध जिसका उत्पादन और रखरखाव स्वच्छ तरीके से किया गया हो। यह आवश्यक है कि दूध में अत्यल्प मात्र में उपस्थित  हानिरहित बैक्टीरिया के अतिरिक्त हानिकारक रासायनों एवं अन्य प्रकार के अवांच्छित तत्वों की मिलावट या अवशेष बिलकुल न हों। दूध निकालने वाला दूधिया पूर्णतः स्वस्थ हो और दूध निकालने का काम भौतिक एवं जैविक जोखिमों से मुक्त एक सुरक्षित माहौल में इस तरह हुआ हो कि  बिना उबाले भी दूध की गुणवत्ता लम्बे समय तक बनी रहे। स्वच्छ दूध उत्पादन में ऐसे सुरक्षित उपायों को अपनाया जाता है जो जानवरों के स्वास्थ्य को नुकसान न पहुचाये और दुधारू पशुओं को थनैला जैसी बिमारियों से बचाने में सहायक हो।  प्रत्येक पशु से बिना उसकी उत्पादकता को प्रभावित किये उचित रखरखाव और देखभाल के द्वारा श्रेष्ठ  गुणवत्तायुक्त दूध प्राप्त करना तभी संभव हो सकता है जब दूध को साफ एवं बीमारी रहित दुधारो पशुओं से, स्वच्छ वातावरण में, एवं जीवाणु रहित बर्तन मे, स्वस्थ एवं साफ सुथरे ग्वालों द्वारा निकाला गया हो। यह भी आवश्यक है की दूध में किसी भी तरह  की गन्दगी जैसे कि गोबर या पशु मूत्र के छीटें, घास-फूस, बाल, कीड़े-मकोड़े जैसी चीज किसी भी सूरत में न मिलने पाये। हानिकारक सूक्ष्म जीवाणुओं की उपस्थिति भी कम से कम संख्या में हो ताकि दूध जल्दी ख़राब न हो। कई बार अनजाने तो कई बार जान बूझ कर भी दूध में ऐसे तत्त्व मिला दिए जाते हैं जिससे यह संकमित और हानिकारक हो जाता है। इन अशुद्धियाँ को दो तरह से वर्गीकृत किया जा सकता है। एक, ऐसी अशुद्धियाँ जो खुली आँखों से प्रत्यक्षतौर पर देखा जा सकता है. दूसरी, ऐसी अशुद्धियाँ जिन्हें नंगी आँखों से नहीं देखा जा सकता। आँख से दिखाई देने वाली अशुद्धियों में गोबर के कण, घास-फूस के तिनके, बाल, धूल के कण, मच्छर, मक्खियाँ आदि सामान्यतौर पर पाए जाते हैं। इन्हें साफ कपड़े या छन्ने से छान कर अलग किया जा सकता है। जबकि खुली आँख से दिखाई देने वाली अशुद्धियों में वैसे सूक्ष्म जीवाणु शामिल हैं जिन्हें सूक्ष्मदर्शी यन्त्र के द्वरा ही देख जा सकता है और इन्हें कह्तं करने केलिए विशेष प्रक्रिया अपनानी पड़ती है।

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दूध में अशुद्धियों के प्रकार

दूध में अशुद्धियाँ दो प्रकार से पैदा होती हैं। कभी-कभी पशुओं के संक्रमित होने के कारण थनों के अन्दर से प्राप्त दूध में ही जीवाणु पनप जाते हैं। जबकि अधिकांश मामलों में वातावरण या बाहरी कारणों से दूध में अशुद्धियाँ पैदा हो जाती हैं। जानवरों के शारीर या थनों को सही तरीके से साफ़ न करने, पशुओं को सही एवं साफ़ जगह पर न बांधने, दूध के बर्तनों को सही तरीके से न धोने और दूध दुहने वाले  ग्वाले से भी दूध में अशुधियां उत्पन्न हो जाती हैं। इसके अतिरिक्त वाह्य तत्त्व जैसे गोबर, मूत्र, तिनके, कीड़े-मकोड़े, धुल, बाल आदि के मिलने से भी दूध ख़राब हो जाता है।

स्वच्छ दूध उत्पादन एक चुनौती है क्योंकि भारत में दुग्ध उत्पादन अब भी व्यापक पैमाने पर भूमिहीन, सीमान्त और लघु किसनो द्वारा किया जाता है जो सामन्यतः एक या दो दुधारू पशुओं को पाल कर अपनी जीविका चलाते हैं। जानकारी एवं संसाधनों के आभाव में अक्सर ये पशुओं और उनके बाड़ों का सही रखरखाव नहीं कर पाते जिसके कारण वांच्छित गुणवत्ता वाले दूध का उत्पादन नहीं हो पाता। इसके अतिरिक्त  भारत का वातवरण भी जीवाणुओं के पनपने में सहायक होता है।

भारत विश्व का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक देश है। देश का वर्तमान दूध उत्पादन 187.7 मिलियन टन है। उत्पादित दूध का लगभग पच्चास प्रतिशत हिस्सा दुग्ध उतापदकों वर घरेलु खपत के लिए ही रख लिया जाता है जबकि शेष पचास प्रतिशत विपणन के लिए बिभिन्न माध्यमों से बाजारों तक पहुंचता है। बाज़ारों में उपलब्ध दूध प्रायः वांछित गुणवत्ता के मानकों पर खरे नहीं। दूध का  उत्पादन अधिकतर गाँवों में या शहरों की छोटी छोटी निजी डेरियों में किया जाता है, जहां साफ़ सफाई और रखरखाव पर ध्यान न देने के कारण दूध में जीवाणुओं की संख्या बहुत अधिक मात्रा में मौजूदगी ही नहीं पाई जाती बल्कि अन्य प्रकार की अशुद्धियाँ और गन्दगियाँ भी मौजूद रहती हैं।

तालिका-1: दूध में अशुद्धियाँ और संक्रमण के कारण

दूध उत्पादन में सही तरीके का प्रयोग न किये जाने से या फिर अज्ञानता और लापरवाही से भी अशुद्धियाँ पैदा हो जाती हैं।  शिशु-पशुओं को सीधे थन से दूध पिलाने से भी पशुओं के थन पर जीवाणु पैदा होने लगते हैं तथा थान पर लग दूध के अवशेषों पर मख्खियों आदि के बैठने से दुहते समय दूध संक्रमित हो जाता है। दूध दुहने की जगह की सही सफाई नहीं होने से या गंदे स्थान पर दूध निकालने से भी दूध की गुणवत्ता प्रभावित होती है।  दूधिये का बीमार होना या सही तरीके से हाथों एवं पशु के थनों की धुलाई किये बिना दूध निकालने, गन्दे बर्तनों में दूध दुहना एवं इकठ्ठा करना, दूध बेचने केलिय ले जाते समय पत्तियों, भूसे व कागज आदि से ढकना, गंदे पदार्थों का दूध में मिश्रण, दुहते समय गोबर या मूत्र के दूध में छीटें पड़ना, अदि कुछ ऐसे कारक हैं जिनसे दूध में अशुद्धियाँ उत्पन्न हो जाती हैं।  कभी-कभी जानबूझ कर भी कुछ ऐसे पदार्थों को दूध में मिला दिया जाता है जिससे दूध जल्दी फटता तो नहीं पर उसकी गुणवत्ता बुरी तरह प्रभावित होती है और वह मानव उपभोग के लिए भी उपयुक्त नहीं रह जाता।

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तालिका-2: दूध में संदूषण के कारण एवं उपाय

दूध में संदूषण के कारक आवशयक उपाय
1. आतंरिक कारक
अ) थनैला से प्रभावित थन 1. स्ट्रिप कप में दूध के शुरुआती धार डाल कर जाँच करें
2. होटिस टेस्ट या कैलिफ़ोर्निया टेस्ट के द्वारा दूध की जाँच कराएं. प्रभावित पाया जाये तो दूध को फेक दें

3. प्रभावित पशुओं का दूध सभी स्वस्थ पशुओं के दूध निकालने के बाद ही करें

ब)आरंभिक दूध सभी थनों से दूध की आरंभिक दो धार बाहर फेंक दे ताकि दूध में बैक्टीरिया की मात्रा न बढे
2. बाहरी कारक
क) दुधारू पशु (गाय और भैंस)

·         त्वचा

 

 

·         अयन

 

 

दुहने से कम से कम एक घंटा पहले स्वस्थ पशुओं को अच्छी तरह साफ सुथरा करलें. पिछला हिस्सा धो लें, और दुहने से पहले पूंछ पैरों के साथ बांध दें

अयन एवं थनों को धोकर, निस्संक्रामक भिगोये कपडे से थनो को पोंछ कर सुखा लें.

ख) दुधिया स्वस्थ, नाख़ून कटे, धुले हाथ, ढंका सर, हाथ 200 पीपीएम क्लोरीन के घोल से साफ किये हुए हों
ग) बर्तन साफ धुले, जीवाणु रहित, स्टील के बिना मोर के छोटे मुह बर्तन.धोने के लिए क्लोरीन का 200 पीपीएम घोल का या 2 प्रतिशत बेंजीटोल का प्रयोग
घ) बथान या बारा साफ, चूने से पुती दीवारें, गंध रहित, मकरी के जालों एवं कीड़े मकड़ों से मुक्त, धुल ही फर्श, हवा एवं प्रकाश युक्त होना चाहिए
च) दुहने का तरीका दूध निकलने केलिए पूरी मुट्ठी का प्रयोग , छोटे थनों अलग कर दुहना, आदि
छ) पशु आहार और साफ चारा एवं स्वच्छ पानी
ज) दूध का रखरखाव एवं शीतल करना ताजे दुहे गए दूध का तापक्रम 380c के करीब होता है जो बैक्टीरिया के विकास केलिए अनुकूल है. अतः संभव हो तो दूध को यथा शीघ्र 50 – 60 सेंटीग्रेड से कम तापमान पर ठंढा करें.

स्वच्छ दूध का उत्पादन मानव स्वास्थ्य के साथ-साथ बेहतर आर्थिक लाभ के लिए आवश्यक है।  स्वच्छ दूध के उत्पादन हेतु स्वस्थ एवं अच्छे प्रबंधन प्रक्रियाओं को अपनाना जरुरी है। दूध उत्पादन कुछ सावधानियां रख कर पशुपालक अच्छी गुणवत्तायुक्त दूध का उत्पादन कर सकते हैं:

  • सुचारु रूप से नियत अन्तराल पर पशुओं के स्वास्थ्य की जाँच करायी जानी चाहिए।  सवस्थ पशुओं से ही स्वच्छ दूध प्राप्त किया जा सकता है।  अतः यह आवश्यक है कि दुधारू पशु थनैला, क्षय रोग (टी.बी.), रेबीज, आदि जैसी बिमारियों से मुक्त हों।
  • नियत समय पर पशुओं का टीकाकारण कारवाना भी आवश्यक है। बीमार पशुओं में रुग्नवास्था के दौरान एवं एंटीबायटिक जैसी दवाओं और टीकाकरण के प्रयोग बाद संस्तुत समय तक दूध का प्रयोग अथवा संग्रह मानव उपभोग के लिए नहीं करना चाहिये।
  • दूध दुहने से पहले दूधिये का शरीर व हाथ सही तरीके से साबुन या अन्य रसायनों द्वारा स्वच्छ किया हुआ होना चाहिए। साथ ही ग्वाले के नाख़ून कटे होने और बाल ढंका होना चाहिए चाहिए दूध निकालते समय सर खुजाना, बात करना, तम्बाकू या गुटखा खाकर थूकना, खांसना जैसी आदतों से बचना चाहिए।
  • पशु के शरीर की अच्छी तरह सफाई भी करनी चाहिए। पशु के शरीर पर लगी मिटटी अदि को अच्छी तरह साफ़ करना भी आवश्यक है। खास तौर से पशु के शरीर के पीछे के हिस्से, पेट, अयन, पूंछ व पेट के निचले हिस्से की विशेष सफाई करनी चाहिए।
  • दुहाई से पहले अयन की सफाई पर विशेष ध्यान देना चाहिए एवं थनों को किसी जीवाणु-नाशक के घोल में भीगे हुए कपड़े से पोंछ कर स्वच्छ कर लेना भी वांछित है। दूध निकालने से पहले दूध की कुछ बूंदें जमीन पर गिरा देना चाहिए या फिर अलग बर्तन में एकत्रित करना चाहिए। ऐसा करने से था पर अवस्थित जीवाणु एवं गन्दगी सारे दूध में पहुचने से बच जाते हैं।
  • थनैला या किसी अन्य बीमारी से संक्रमित जानवरों का दूध नहीं निकालना चाहिए या अलग से निकलने के बाद फेक दें।
  • पशुओं को साफ़ एवं सूखी जगह पर रखना चाहिए और दूध निकालते समय पूरी सतर्कता बरती जानी चाहिए। जहाँ तक संभव हो सके पशु को बांधने वाली जगह की फर्श या तो पक्की होनी चाहिए या फिर कोई ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि गोबर या मूत्र आसानी से बह कर साफ़ हो जायें। बाड़े की दीवारें, छत आदि भी साफ होनी चाहिए और समय समय पर उनकी चूने से पुताई होती रहनी चाहिए। संभव हो तो फर्श की फिनाईल या किसी अन्य जीवाणु नाशक से दूध निकलने से पहले धुलाई कर लेनी चाहिए।
  • यह आवश्यक है कि दूध दुहने का बर्तन पूरी तरह साबुन या सर्फ़ के घोल से  धोकर साफ कर लिया जाये। दूध निकालने वाले बर्तन इस तरह के होने चाहिए जिसमे कहीं भी दूध के अवशेष इकठ्ठा न हो और उसकी सफाई सहज ढंग से हो सके। दूध के बर्तन को पहले ठण्डे पानी से, फिर सोडा या अन्य जीवाणु-नाशक रसायन मिले गर्म पानी से और फिर सादे खौलते हुए पानी से धोकर धूप में या चूल्हे के ऊपर उल्टा रख कर सुखा लेना चाहिए। इन बर्तनों को साफ़ करने के बाद ढँक कर रखना चाहिए ताकि उनपर  मक्खी मच्छर आदि न बैठ सकें और न ही कुत्ते-बिल्ली आदि उन्हें चाट सकें। जहाँ तक हो सके दूध दुहने वाले बर्तनों का मुंह संकरा हो ताकि उसमे बाल, मिटटी, धुल, गोबर, घास फूस, तिनके आदि न गिर सकें।
  • दूध में जीवाणुओं की वृद्धि रोकने केलिए उसे ठण्डा करके रखा जाना चाहिए। इस हेतु रेफ्रिजरेटर या फिर किसी ऐसे शीतल स्थान में दूध को इस तरह से रखना चाहिए कि दूध का तापक्रम यथा संभव कम बना रहे। अब सरकार, सहकारी संस्थाएं और निजी संयंत्र भी गाँवों में बल्क-कूलर लगा रहे है। संभव हो तो दूध निकालने के बाद यथाशीघ्र दूध को इन बल्क-कूलर या प्रशीतक-संयंत्रों (चिलिंग सेंटर) तक पंहुचा देना दे ताकि दूध संरक्षित और सुरक्षित रह सके। दूध को कभी भी बिना गर्म हुए प्रयोग में नहीं लाना चाहिए।

सारांश

उच्च गुणवत्तायुक्त दूध बाज़ारों में अच्छी कीमत पाने में सफल होता है। अतः स्वच्छ दुग्ध उत्पादन के तरीकों, जानकारियों एवं हुनर से  दुग्ध उतापदकों को प्रशिक्षित और जानकर करके दूध की अशुद्धियों से होने वाली  बर्बादी रोकी जा सकती है. स्वच्छ दूध उत्पादन के माध्यम से उच्छ गुणवत्तायुक्त दूध मुहैय्या कराकर मानव स्वास्थ्य और पोषण को भी सूनिश्चित जा सकता है। इतना ही नहीं, गुणवत्तायुक्त होने के कारण ऐसे दूध बाज़ारों में अच्छी कीमत पर बिकते हैं जिससे से किसानो की समृद्धि भी सुनिश्चित हो सकती है। दूध उत्पादन में विश्व में  प्रथम स्थान रखने के बावजूद भी वैश्विक परिदृश्य में भारत की उपस्थिति नगण्य है। इसका प्रमुख कारण दूध का अन्तराष्ट्रीय मानकों पर खड़ा न उतर पाना है। स्वच्छ दूध उत्पादन भारतीय किसानों को अन्तरराष्ट्रीय बाज़ार उपलब्ध करने की दिशा में भी एक कारगर कदम साबित होगा।

स्वच्छ दूध उत्पादन

स्वचछ-दूध-उत्पादन-जरुरतऔर-निदान

डॉ. अवधेश कुमार झा एवं डॉ. सोनिया कुमारी

संजय गाँधी गव्य-प्रौद्योगकी संसथान, जगदेवपथ, पटना

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