भैंस के नवजात बच्चों के लिये खीस की उपयोगि

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भैंस के नवजात बच्चों का रख रखाव

भैंस के नवजात बच्चों के लिये खीस की उपयोगिता

डॉ. मौसमी यादव एवं डॉ. मनोज यादव, पशु चिकित्सा सहायक शल्यज्ञ

पशुधन विकास विभाग, छत्तीसगढ़

किसान भाईयों नवजात पशओु के लिये खीस अत्यन्त आवश्यक होता है परन्तु हमारे किसान भाई खीस पिलाने पर ज्यादा ध्यान नही देते जिसके कारण भैंस के नवजात बच्चों में मृत्यु दर अधिक होती है। अतः हम नवजात पडडे एवं पडिडयों में खीस पिलाने की उपयोगिता पर जानकारी दे रहे है । भैंस ब्याने के बाद प्रथम 4 से 5 दिनों तक जो दूध देती है उसे कोलोस्ट्रम या खीस कहते हैं।  जन्म के तुरन्त बाद नवजात पशुओं में बिमारियों से रक्षा हेतु उनके शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता बहुत कम होती हैं।  खीस में रोग प्रतिरोधी अर्थात एण्टीबोडीज पाये जाते हैं, जो नवजात पशुओं को संक्र्र्र्र्र्रामक रोगों से बचाते है।

खीस में अनेकों गुण पाये जाते है जो नवजात पशु के स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होते है, जैसे:

1. खीस दस्तावर होता है जो बच्चे के अन्दर पाचन नली में मौजूद अवशिष्ट पदार्थों को बाहर निकालने व सफाई में मदद करता है। 2. खीस में प्रोटीन अधिक मात्रा में पायी जाती है जो नवजात पशु के शारीरिक विकास में सहायक होती है। 3. खीस में कई खनिज पदार्थ जैसे कैल्सियम, फास्फोरस व लौह तत्व इत्यादि की मात्रा दूध की अपेक्षा कई गुना अधिक होती है, जो हड्डिया व रक्त बनाने में सहायक होती हैं। नवजात पशु को खीस कब पिलाए: जन्म के 15 मिनट के बाद ही नवजात पशुओं को खीस पिला देना चाहिये। खीस पिलाने में देरी होने से नवजात पशु के आत्र छिद्र बंद होने लगते है तथा खीस में उपस्थित महत्वपूर्ण पदार्थ शरीर द्वारा अवशेषित न होकर मल द्वारा बाहर निकल जाते है। खीस में उपलब्ध एण्टीबोडीज का नवजात बछड़ों द्वारा अवशोषण होना एक बहुत तेज प्रक्र्रिया हैं। खीस पिलाने के 4 घण्टे के पश्चात् ही प्रतिरक्षक पिण्डों की मात्रा रक्त में पहुच जाती है। खीस के प्रतिरक्षक पिण्ड बाद में बछड़ों द्वारा अवशोषित नहीं किये जा सकते। जिसके कारण बछड़ों में सांस व पेट की अन्य बिमारियां हो जाती हे। अतः नवजात पशु को जन्म के आधे धंटे के अन्दर ही खीस पिला देना चाहिये। आम तौर पर पशु पालकों में यह देखा गया है कि जब तक भैंस जेर नहीं गिराती है तब तक न तो खीस निकालते हैं और न ही नवजात पशु को खीस पिलाते हैं। इस गलत धारणा के कारण नवजात पशुओं के साथ ही मादा पशुओं के स्वास्थ्य पर भी हानिकारक प्रभाव पड़ता है। भैंस के थन में खीस का दबाव बने रहने से पशु को परेशानी होती है एवं मादा पशुओं में थनैला रोग की सम्भावना बढ. जाती है। इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि यदि नवजात थन से खीस पीने में असमर्थ है तो खीस को स्वच्छ बर्तन में निकालकर पिला देना चाहिए। पडडे को उसके शरीर भार के 10वे भाग के बराबर ही खीस पिलानी चाहिए, अर्थात प्रत्येक 10 किलोग्र्राम शरीर-भार पर 1 किलोग्राम खीस। उदाहरण के लिए यदि नवजात पडडा 25 कि0ग्रा0 वजन का है तो उसे पूरे दिन में ढाई कि0ग्रा0 खीस तीन बार में बराबर-बराबर मात्रा में बांटकर पिलाना चाहिए। प्रस्तावित मात्रा से अधिक खीस पिलाने से बच्चों में दस्त लगने का डर लगा रहता है।यदि किसी कारणवश जैसे भैंस से खीस का न उतरना, भैंस की मृत्यु हो जाना, भैंस का बच्चे को खीस न पीने देना आदि के कारण नवजात पडडो को खीस उपलब्ध न हो रहा हो तो उसे किसी दूसरी भैंस का खीस पिला देना चाहिए। यदि यह भी संभव न हो तो खीस के अभाव की स्थति में नवजात को खीस प्रतिस्थापक पिलायें, जिसे बनाने की विधि हम आपको बता रहे है। इसके लिये 600 मिली. दूध, 300 मिली. पानी, आधा चम्मच अरण्डी का तेल, 1-2 फेटे हुए अण्डों को मिलाकर उसमें विटामिन -ए और 80 मिग्रा. ओरोमाईसिन की दवा मिलाकर एक मिश्रण तैयार करे। यह मिश्रण 1 किग्र. खीस के बराबर है जो 10किग्रा. शारीरिक भार हेतु बनाया गया है। 25 किग्रा शारीरिक भार वाले नवजात पडड्ो के लिए इस मिश्रण का ढाई गुना तैयार करे एवं दिन में तीन बार बराबर मात्रा में बांटकर पडडों को पिलाए। तथा इस मिश्रण को 5 दिन तक नवजात को पिलाए। इसे पिलाने पर खीस की ही भाति नवजात में प्रतिरक्षा शक्ति बढ़ती है और पाचन नली साफ हो जाती है। खीस प्रतिस्थापक के अलावा हिमीकृत खीस को पिघलाकर भी नवजात को पिलाया जा सकता है। खीस का हिमीकरण करके एक लम्बे समय तक, उसकी गुणवत्ता को बिना कम किये रखा जा सकता है। इसके लिए खीस को डेढ़ से 2 लीटर वाले पैकेट में फ्रीज करके रखा जा सकता है। खीस को हिमीकृत करने व पिघलाने से उसकी गुणवत्ता तथा एण्टीबोडीज कम नहीं होती है। कुछ परिस्थितियों में जैसे मादा पशु का पतला या पानी जैसा खीस आने पर या खीस में खून आने पर अथवा थनैला रोग से ग्रसित होने पर हिमीकृत खीस को पिघलाकर नवजात पशु को पिलाया जा सकता है। हिमीकृत खीस को पिघलाने के लिए 40 -45 डिग्री तापक्रम वाले गर्म पानी का प्रयोग करना चाहिए व खीस को शरीर तापक्रम तक गर्म होने पर नवजात बछड़ों को पिलाए। आशा करते है कि किसान भाई इस वार्ता द्वारा खीस की उपयोगिता से भली-भाति परिचित हो चुके होंगें। नवजात पशुओं को संक्र्र्रामक रोगों से बचाने एवम् उनको स्वस्थ जीवन देने में खीस की एक महत्वपूर्ण भूमिका है। अतः नवजात पशुओं को सही समय पर व उचित मात्रा में खीस अवश्य पिलाए ताकि एक स्वस्थ पशु तैयार किया जा सके। धन्यवाद

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