सूअर पालन मे आहार प्रबंधन का महत्तव
डॉ. अशोक पाटिल, डॉ. ज्योत्सना शक्करपुड़े एवं डॉ कविता रावत
पशु पोषण विभाग, पशु चिकित्सा एवं पशुपालन महाविधालय, महू (म.प्र.)
सूकर पालन एक ऐसा व्यवसाय है जो कम कीमत, कम समय में प्रारम्भ करके अधिक आय देने वाला व्यवसाय हो सकता हैं, जो किसान पशु पालन को व्यवसाय के रूप में अपनाना चाहते हैं। सूकर एक ऐसा पशु है, जिसे पालना आय की दृष्टि से बहुत लाभदायक हैं । इस पशु को पालने का लाभ यह है कि एक तो सूकर एक ही बार में 5 से 14 बच्चे देने की क्षमता वाला एकमात्र पशु है, जिनसे मांस तो अधिक प्राप्त होता ही है और दूसरा इस पशु में अन्य पशुओं की तुलना में साधारण आहार को मांस में परिवर्तित करने की अत्यधिक क्षमता होती है, जिस कारण रोजगार की दृष्टि से यह पशु लाभदायक सिद्ध होता है ।
सूकर-पालन व्यवसाय मे बच्चे से लेकर मांस हेतु व्यस्क सूकर तैयार होने तक खर्च का 70-75% आहार पर व्यय होता है । इसलिए आहार का प्रबंधन ठीक ओर संतुलित तरीके से करने पर इस व्यवसाय मे अच्छा मुनाफा प्राप्त हो सकता है। सूकर अत्यंत तीव्र गति से वृद्धि करके कम समय में काफी अधिक मात्रा में पौष्टिकता युक्त मांस उत्पन्न कर सकता है। इसलिए उसे अच्छी गुणवत्ता वाले प्रोटीन एंव अधिक ऊर्जायुक्त पाचनशील आहार की आवश्यकता होती है। गांव में आमतौर पर शूकर को अच्छी खुराक नहीं दी जाती और उन्हें चरने के लिए खुले मे छोड़ दिया जाता है इससे पोषक तत्वो की आवश्यकता पूर्ण नहीं हो पाती जिसके कारण उनकी वृद्धि अच्छे से नहीं होती ओर साथ ही मांस भी अच्छा नहीं होता । ग्रामीण क्षेत्रो मे दो-तीन साल की आयु के देसी शूकर का वजन 80 किलोग्राम होता है जबकि अगर उसे सही खुराक दी जाए तो इतना वजन 8 महीने की आयु में ही हो सकता है । बड़वार वाले शूकरो को अधिक प्रोटीन युक्त वाला आहार देना चाहिए जबकि शूकर को मोटा करने के लिए अधिक स्टार्च वाला खाना देना चाहिए। आहार निर्माण करते समय इस बात का ध्यान देना चाहिए की वह अधिक महंगा नहीं पढ़े और चीजें स्थानीय होवे ओर आसानी से उपलब्ध हो सके इसके अलावा यह भी ध्यान रखें कि जो दाना खिलाया जाए उससे कितना मांस बढ़ रहा है। सूकर को उसकी आयु, विकास स्तर एंव मांस उत्पादन के अनुसार निम्न प्रकार से आहार व्यवस्था करनी चाहिए जिससे वे कम से कम समय तथा कम व्यय में अधिक मांस तैयार हो सकें।
संतुलित आहार में निम्न लिखित विशेष लक्षण होना चाहियें l
- आहार स्वच्छ, स्वादिष्ट एवं सुपाच्य हो।
- आहार आसानी से उपलब्ध, स्थानीय अवयवों के उपयोग से बनाया जाना चाहिए ताकि सस्ता भी हो।
- आहार अधिक मूल्यवान ना हो।
- यह विषैला, सड़ा-गला, दुर्गंध युक्त व अखाद्य पदार्थो से मुक्त हो।
- आहार भली भांति तैयार किया जाना चाहिए। जिससे वह आसानी से पचने व रूचिकर बन सकें। सख्त दाने जैसे-जौ, मक्का इत्यादि को चक्की से दलिया के रूप में दलवा लेना चाहिए।
- चारे व दाने का प्रकार अचानक बदलना नहीं चाहिये। चारे में धीरे-धीरे बदलाव लाना चाहिए, ताकि पशु की भोजन प्रणाली पर कुप्रभाव न पडें ।
विभिन्न शारीरिक अवस्थाओ के अनुसार आहार प्रबंधन
सूकर के बच्चों को पैदा होते ही माँ का दूध (कोलेस्ट्रम) अवश्य देना चाहिए कोलेस्ट्रम बच्चे के शरीर में पहुँच कर रोगो से बचाने हेतु प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न करता है। तीन-चार दिन बाद जब कोलेस्ट्रम निकलना बंद हो जाये तब भी माँ का दूध देते रहना चाहिए। इसके बाद सात दिन की उम्र पर सूकर के बच्चों को क्रीप आहार देना शुरू कर चाहिए जिसे दूध छुड़ाने की आवस्था तक वे पर्याप्त मात्रा में आहार खाने लगें। सूकर को उसके वजन के अनुसार विभिन्न प्रकार के आहार जैसे क्रीप आहार, स्टार्टर आहार, ग्रोअर एंव फिनिशर आहार की आवश्यकता होती है। सूकरों का आहार जन्म के एक पखवारे बाद शुरू हो जाता है। माँ के दूध के साथ-साथ छौनों (पिगलेट) को सूखा ठोस आहार दिया जाता है, जिसे क्रिप राशन कहते हैं। दो महीने के बाद बढ़ते हुए सूकरों को ग्रोवर राशन एवं वयस्क सूकरों को फिनिशर राशन दिया जाता है। गर्भवती एवं दूध देती मादाओ को भी फिनिशर राशन ही दिया जाता है।
- ग्रोअर सूअर (वजन 12 से 25 किलो तक) : प्रतिदिन शरीर वजन का 6 प्रतिशत अथवा 1 से 1.5 किलो ग्राम दाना मिश्रण।
- ग्रोअर सूअर (26 से 45 किलो तक) : प्रतिदिन शरीर वजन का 4 प्रतिशत अथवा 1.5 से 2.0 किलो दाना मिश्रण।
- फिनसर पिगः 2.5 किलो दाना मिश्रण।
- प्रजनन हेतु नर सूकरः 3.0 किलो।
- गाभिन सूकरीः 3.0 किलो।
- दुधारू सूकरी 3.0 किलो और दूध पीने वाले प्रति बच्चे 200 ग्राम की दर से अतिरिक्त दाना मिश्रण। अधिकतम 5.0 किलो।
- दाना मिश्रण को सुबह और अपराहन में दो बराबर हिस्से में बाँट कर खिलायें।
दाने | क्रिप राशन | ग्रोअर राशन | फिनिशर राशन |
मकई | 60 भाग | 64 भाग | 60 भाग |
बादाम खली | 20 भाग | 15 भाग | 10 भाग |
चोकर | 10 भाग | 12.5 भाग | 24.5 भाग |
मछली चूर्ण | 8 भाग | 6 भाग | 3 भाग |
लवण मिश्रण | 1.5 भाग | 2.5 भाग | 2.5 भाग |
नमक | 0.5 भाग | 0.5 | 0.5 |
प्रजनक सुअरों के लिये विभिन्न आहार:
दाने | आहार-I | आहार-II | आहार-III |
मकई | 50 | 28 | 30 |
चोकर | 27 | 25 | 30 |
मूंगफली खल | 15 | 20 | 20 |
गेंहू | – | 20 | – |
चना/दाल चुनी | – | – | 8 |
मछली चूर्ण | 5 | 4 | – |
लवण मिश्रण | 2 | 2 | 2 |
नमक | 1 | 1 | 1 |
कुछ महत्त्वपूर्ण बिन्दु :
- आहार में ऊर्जा, प्रोटीन, विटामिन्स एंव लवणों की सही मात्रा होनी चाहिए जिसके परिणामस्वरूप आहार संतुलित बन सके।
- जहां तक हो सके शूकर के रहने के स्थान पर पानी हर समय उपलब्ध रहना चाहिए । एक शूकर जिसका वजन 50 किलो है उसे 2 से 6 लीटर पानी प्रतिदिन की आवश्यकता होती है जबकि बच्चो ओर दुधारू सुकरी को पानी अधिक मात्रा में देना चाहिए।
- कार्बोहाइड्रेट शरीर को शक्ति ओर ऊर्जा प्रदान करने के लिए इसकी आवश्यकता होती है । अधिक मात्रा में देने से यह चर्बी में परिवर्तित हो जाता है। यह ध्यान रखने योग्य बात की जो दाना दिया जाए उसमें फाइबर 5-7 % से अधिक न हो क्यूकी शूकर अन्य जुगाली करने वाले पशुओं की तरह रेशे को पचा नहीं पाता है ।
- प्रोटीन की आवश्यकता बढ़ते हुए शूकरो को शरीर मांस बनाने के लिए होती है । ग्रोवर राशन में इसकी मात्रा 22% होती है, दूध देने वाली ग्याभिन शूकरी को 14 से 15% तक प्रोटीन की आवश्यकता होती है।
- चर्बी एवं तेल की आवश्यकता शरीर का तापमान बनाए रखने एवं शरीर को शक्ति प्रदान करने के लिए होती है । अधिक मात्रा में देने से यह शरीर में चर्बी के रूप में जमा हो जाती है । समान्यता भोजन मे वसा की मात्रा 1-1.5 % तक होती है परंतु फिनिशर आहार मे 5 से 10 % तक भी दे सकते है क्यूकी इससे पशु की चर्बी की मात्रा बढ़ेगी ।
- चारा दाने के अलावा शूकर को हरा चारा जैसे ल्यूशन, मटर, हरी घास, ज्वार भी देना चाहिए इसकी मात्रा 1 किलो प्रति दिन प्रति पशु देनी चाहिए । दाना दिन मे 2 बार ओर हरा चारा दिन मे 1 बार देना चाहिए ।
आहार प्रबंधन के फायदे:
- नवजात सुअरों का विकास तेजी से होता है।
- मृत्युदर में कमी आती है।
- बीमारियों से बचाव एवं रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित होती है।
- सही आहार प्रबंधन कुल लागत को भी कम करता है जिससे मुनाफा अधिक होता है।